Friday, 28 June 2013

खेती में पुरुषों से ज्यादा होता है महिलाओं का योगदान : ढांडा

विधिवत रूप से ललीतखेड़ा में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का शुभारंभ

जिला कृषि उपनिदेशक तथा जिला बागवानी अधिकारी सहित कई अधिकारियों ने की पाठशाला में शिरकत


जींद। इतिहास गवाह है कि खेती की खोज सबसे पहले महिलाओं ने की थी और आज भी खेती के कार्यों में पुरुषों से ज्यादा योगदान महिलाओं का है। एक सर्वे के अनुसार पुरुष खेती का सिर्फ 25 प्रतिशत कार्य ही करते हैं, जबकि बाकी बचा हुआ 75 प्रतिशत कार्य महिलाएं निपटाती हैं। यह बात बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने वीरवार को ललीतखेड़ा गांव में डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता महिला खेत पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में मुख्यातिथि के तौर पर मौजूद डा. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल ने महिला किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर पाठशाला का शुभारंभ किया। जिला कृषि उपनिदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, ज्ञान-विज्ञान समिति से सोहनदास, निडाना स्कूल के मुख्याध्यापक धर्मबीर सिंह, ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी, डा. नेमकुमार, डा. यशपाल भी विशेष रूप से मौजूद थे।
जिला कृषि उपनिदेशक डा. आर.पी. सिहाग तथा जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि निस्वार्थ सेवा भाव से शुरू किया गया कोई भी कार्य अवश्य ही पूरा होता है। ललीतखेड़ा, निडाना तथा निडानी की महिलाओं ने कीटों को बचाने तथा थाली को जहरमुक्त बनाने की जो मुहिम शुरू की है, वह किसी व्यक्ति विशेष की मुहिम नहीं है। यह तो पूरे समाज की मुहिम है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कीटों की पहचान का काम सबसे आसान काम है। अगर किसान प्रतिदिन 1 घंटा भी अपनी फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन कर उनके क्रियाकलापों की जानकारी जुटाए तो कुछ ही दिन में वह कीटाचार्य बनकर फसल में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों के खर्च को कम कर सकता है। डा. सैनी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में जीव हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है लेकिन किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर निरंतर इस पाप में भागीदार बन रहे हैं। डा. सैनी ने कहा कि कीटों का प्रकृति के साथ बड़ा गहरा रिश्ता है। इसलिए हमें इस रिश्ते की अहमियत को समझते हुए प्रकृति और कीटों को बचाने के लिए कीट ज्ञान अर्जित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा पिछले 3 वर्षों से जो महिला
 महिला किसानों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर पाठशाला का शुभारंभ करती मैडम कुसुम दलाल।
पाठशाला चलाई जा रही है, वह एक तरह से अनोखी मुहिम है। क्योंकि पूरे उत्तर भारत में खेती के क्षेत्र में कहीं पर भी महिलाओं की कोई पाठशाला नहीं चल रही है। उन्होंने कहा कि आज कीट ज्ञान क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल हमारे बीच नहीं है। उनकी कमी उन्हें हमेशा खलती रहेगी। डा. सुरेंद्र दलाल के देहांत के बाद से इस मुहिम को आगे बढ़ाने की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर है। इसलिए महिलाओं को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए तहदिल से अपना सहयोग देना होगा। महिला किसान मीनी मलिक ने बताया कि यहां की महिलाएं वर्ष 2010 से इस मुहिम से जुड़ी हुई हैं। 15 जून 2010 को निडाना के खेतों महिला किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई थी। उन्होंने बताया कि कपास की फसल में सबसे पहले शाकाहारी कीट के रूप में चूरड़ा आता है और इसके बाद हरातेला तथा सफेद मक्खी दस्तक देती हैं। शाकाहारी कीटों के साथ ही मांसाहारी कीट भी फसल में आते हैं। सुदेश मलिक ने पाठशाला के महत्व के बारे में बताया तथा पाठशाला को आगे बढ़ाने के लिए 1100 रुपए की आर्थिक सहायता दी। कुसुम दलाल ने महिला किसानों को पाठशाला को आगे बढ़ाने के लिए उनकी तरफ से हर संभव सहायता देने का आह्वान किया। ज्ञान-विज्ञान समिति से आए सोहनदास तथा मुख्याध्याक धर्मबीर ने भी अपने विचार रखे। महिलाओं ने कीटों पर तैयार किए गए गीत 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं, देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं' तथा 'मैं बीटल हूं मैं कीटल हूं, तुम समझो मेरी मैहता को' गीत से पाठशाला का समापन किया। 
 पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित करते कृषि विभाग के अधिकारी तथा मौजूद महिला किसान।

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