Saturday, 10 August 2013

कीटों की मास्टरनियों ने अनोखे ढंग से मनाया तीज का त्यौहार

खेतों में पहुंचकर कीटों को झुलाया झूला और कीटों पर आधारित गीत गाए



जींद। एक तरफ जहां शुक्रवार को प्रदेशभर में तीज का पर्व परंपरागत रीति-रिवाज के साथ मनाया गया, वहीं दूसरी तरफ कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी ललीतखेड़ा, निडाना, निडानी की विरांगनाओं ने तीज के पर्व को एक अनोखे ढंग से मना। कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी इन विरांगनाओं ने तीज पर्व के पावन अवसर पर खेतों में जाकर पेड़ों पर झूल डाली तथा वहां फसल में मौजूद कीटों को झूला झुलाया और कीटों के जीवन चक्र पर तैयार किए गए गीत गाए। झूला झूलाने की शुरूआत महिलाओं ने हथजोड़े नामक मांसाहारी कीट को झूला झुलाकर की। कीटों की मास्टरनियों ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित कर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया।
हरियाणा की संस्कृति के साथ जुड़े त्यौहारों में तीज का पर्व अपना विशेष स्थान रखता है और तीज के पर्व को अन्य त्यौहारों का जनक भी कहा जाता है। क्योंकि हरियाणा की संस्कृति में तीज के पर्व के बाद ही अन्य त्यौहारों की शुरूआत होती है। इसलिए कहा जाता है कि 'आई तीज बो गई त्यौहारों का बीज'। तीज का त्यौहार विशेष रूप से महिलाओं का त्यौहार होता है। इस दिन महिलाएं सजधज कर एक साथ एकत्रित होकर झूला झूलती हैं और मंगल गीत गाती हैं। इस दिन महिलाएं घर में गूलगूले, सुवहाली, पूड़े तथा अन्य मीठे पकवान भी तैयार करती हैं। पूरे प्रदेश में महिलाएं इसी तरीके से तीज का पर्व मनाती हैं लेकिन कीट ज्ञान की क्रांति से जुड़ी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा की वीरांगनाओं ने शुक्रवार को तीज का पर्व बिल्कुल अलग अंदाज में मनाया। यह सभी वीरांगनाएं सुबह-सुबह सजधज कर ललीतखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची और यहां पर पेड़ों पर झूल डाली। तीज की शुरूआत महिलाओं ने मांसाहारी कीट हथजोड़े को झूला झुलाकर की। इस अवसर पर महिलाओं ने कीटों के जीवनचक्र से जुड़े गीत 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं, देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं', 'मैं बीटल हूं मैं कीटल हूं, तुम समझो मेरी मैहता को', हे बीटल म्हारी मदद करो हमनै तेरा एक 

सहारा है, जमीदार का खेत खा लिया तमनै आकै बचाना सै' आदि गीत सुनाए। महिला किसान सुनीता, अनिता, मीनी, अंग्रेजो, राजवंती, बिमला, यशवंती, पूजा, गीता, कमलेश ने बताया कि तीज का त्यौहार सावन के महीने में आता है। इस त्यौहार का हरियाणा की संस्कृति में विशेष महत्व है। यह त्यौहार सीधे-सीधे हरियाली का प्रतिक है और पर्यावरण के साथ हरियाली का विशेष संबंध है लेकिन आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है। पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मनुष्य लगातार गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने बताया कि किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर तथा अज्ञानता के कारण इस कीटनाशक रूपी दलदल में फंसा हुआ है। किसान अपनी अज्ञानता के कारण ही बेजुबान कीटों को मार रहा है। जबकि खेती में कीटों का विशेष महत्व होता है। महिलाओं ने बताया कि त्यौहार एक तरह से खुशियों का प्रतिक होता है लेकिन आज मनुष्य के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आने और पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य की यह खुशियां भी बिखरती जा रही हैं। अगर हमें अपनी खुशियां बरकरार रखनी हैं और अपने त्यौहारों की परम्परा को बचाए रखना है तो हमें सबसे पहले अपने पर्यावरण को बचाना होगा लेकिन यह तभी संभव है जब हम सभी मिलकर कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त

खेती की तरफ अपने कदम बढ़ाएंगे। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे वर्षों से कीटों के साथ चली आ रही इस अंतहीन लड़ाई को खत्म कर कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। क्योंकि बिना कीट ज्ञान के जहरमुक्त खेती संभव नहीं है। निडाना, निडानी और ललीतखेड़ा की महिलाओं ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को पर्यावरण को बचाने के लिए जहरमुक्त खेती का संदेश दिया। 

Thursday, 8 August 2013

'कपास के खेत में कीडों के बीच लगी विद्यार्थियों की क्लाश'

किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने ली कीट ज्ञान की तालीम

अब स्कूल की बजाए सप्ताह के हर बुधवार को खेतों में लगेगी विद्यार्थियों की पाठशाला 

जींद। बुधवार को निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों की क्लाश स्कूल के बजाए कपास के खेत में कीडों के बीच लगी। स्कूल में मिल रहे किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने बुधवार को कपास के खेत में पहुंचकर कीट ज्ञान की तालीम ली। निडानी स्कूल के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थी अब सप्ताह के हर बुधवार को इसी तरह खेतों में पहुंचकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे। स्कूली बच्चों को कीट ज्ञान की इस मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को जहरमुक्त खेती के गुर सिखाकर खेती के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करना है, ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेती कार्य में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और लोगों की थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। पाठशाला का शुभारंभ विद्यार्थियों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर किया गया। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग की तरफ से कृषि विकास अधिकारी यशपाल, रमेश, शैलेंद्र तथा डा. कमल सैनी भी मौजूद थे।
 विद्यार्थियों को राइटिंग पैड व पैन देते कृषि विकास अधिकारी।
किसानों को जागरुक कर कीटों और किसानों के बीच लगभग 4 दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग को खत्म करवाने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम में अब एक नया अध्याय जुड़ गया है। किसानों के साथ-साथ अब विद्यार्थियों ने भी इस मुहिम में रुचि दिखाई है। निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों ने बुधवार को स्कूल की बजाए

 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते विद्यार्थी। 
निडानी गांव के खेतों में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर क्लाश लगाई और यहां कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल के खेत में खड़े होकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा। स्कूली विद्यार्थियों ने सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया और उनके जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। कीटाचार्य किसान महाबीर पूनिया, रमेश, जयभगवान, रणबीर, पवन, जयभगवान, जसबीर, पालेराम ने विद्यार्थियों को बताया कि पिछले सप्ताह तक कपास की फसल में मेजर कीटों के नाम से जाने जाने वाले सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़े की उपस्थिति दर्ज की गई थी। इन कीटों के साथ-साथ इन्हें खाने वाले मांसाहारी कीट हथजोड़ा, अंगीरा, लेडी बिटल, बुगड़े, भिरड़, ततहीए, मकडिय़ां, लोपा मक्खी सहित कई प्राकृति कीटनाशी भी काफी संख्या में मौजूद थे। फसल में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस बार कपास के इस खेत में शाकाहारी कीटों का पूरा सुपड़ा साफ हो चुका है। इससे यह बात साफ होती है कि शाकाहारी कीटों को खत्म करने के लिए कीटनाशकों किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है।

विद्यार्थियों में खेती के  प्रति रुचि पैदा करना है मुख्य उद्देश्य

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है और इससे मानव के स्वास्थ्य पर भी दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में पढऩे वाले ज्यादातर विद्यार्थियों के अभिभावकों का व्यवसाय खेतीबाड़ी है। पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को कीट ज्ञान की मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में खेती के प्रति रुचि पैदा करना है, ताकि विद्यार्थी खेतीबाड़ी के काम में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और उनको भी कीट ज्ञान की मुहिम से जोड़कर थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। विद्यालय के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थियों को अब सप्ताह के हर बुधवार को किसान खेत पाठशाला में भेजा जाएगा, ताकि विद्यार्थी भी कीट ज्ञान की तालीम हासिल करे सकें।
शिवनारायण शर्मा, मुख्याध्यापक 
राजकीय हाई स्कूल, निडानी

Tuesday, 6 August 2013

...यहां चलती हैं देश की अनोखी पाठशालाएं

ककहर की बजाए दी जाती है कीट ज्ञान की तालीम


जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां चारदीवारी के अंदर बैठाकर देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां खुले आसमान के नीचे लगने वाली कक्षाओं में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले में चल रहे कीट साक्षरता केंद्रों की। यहां प्रति दिन अलग-अलग गांवों में किसान पाठशालाओं का आयोजन किया जाता है। कीट ज्ञान की मुहिम को जिले में फैलाने के लिए फिलहाल जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है और इन आधा दर्जन पाठशालाओं में 2 दर्जन से भी ज्यादा गांवों के किसान कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए आते हैं। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट कमांडो किसानों द्वारा पाठशाला में आने वाले अनट्रेंड किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाकर जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। इन पाठशालाओं में किसानों को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों तथा फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव और कीटों के जीवनचक्र के बारे में पूरी बारिकी से जानकारी दी जाती है। अपने आप में यह अजीब तरह की पाठशालाएं है। इन पाठशालाओं में एक पेड पर बोर्ड लगाकर किसानों को कीटों ज्ञान के साथ-साथ कीट बही खाता तैयार करने, फसल में लागत को कम कर अधिक उत्पादन लेने तथा अपने खेत की मेढ़ पर बैठकर अपने फैसले खुद लेने की शिक्षा दी जाती है। खुले आसमान के नीचे लगने वाली इन पाठशालाओं में किसान खेत की मेढ़ पर बैठकर एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव सांझा करते हैं। इन पाठशालाओं की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडैंट है। यह पाठशालाएं किसानों द्वारा किसानों के लिए ही आयोजित की जाती हैं। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडैंट हैं। इन पाठशालाओं में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। इन पाठशालाओं में किसान फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों पर खुलकर बहस करते हैं और फिर उस बहस से जो निष्कर्ष निकल कर सामने आता है किसान उस निष्कर्ष को ही अपना हथियार बनाकर फसल पर उसके प्रयोग करते हैं। इन पाठशालाओं में किसानों द्वारा कीटों पर शोध करने का मुख्य उद्देश्य फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना तथा बेवहज मारे जा रहे बेजुबान कीटों रक्षा कर नष्ट हो रही प्रकृति को बचना है। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम देश में सबसे अनोखी मुहिम है। आज इसके चर्च प्रदेश ही नहीं बल्कि देश से बाहर भी चलने लगे हैं। इसका जीता-जागता प्रमाण यह है कि इंटरनैट पर ब्लाग के माध्यम से विदेशों के किसान भी इनके साथ जुड़ रहे हैं और यहां के किसानों द्वारा ब्लाग पर डाली जा रही जानकारी को पूरी रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। देश के दूसरे प्रदेशों के किसान तथा कृषि अधिकारी भी इन किसानों से कीट ज्ञान के टिप्स लेने के लिए समय-समय पर इनके पास आते रहते हैं। यहां के किसानों के प्रयोगों को देखकर पंजाब के कई जिलों के किसान तो इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर इनके पदचिह्नों पर चलते हुए जहरमुक्त खेती का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।  

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी

किसान खेत पाठशालाओं में आने वाले किसान किसी भी प्रयोग को उसके अंतिम चरण तक पहुंचाने के लिए पूरी लग्र व मेहनत से उस पर कार्य करते हैं तथा हर पहलु से उस प्रयोग पर बहस करते हैं। प्रयोग में किसी प्रकार की चूक न रहे इसके लिए यह किसान 5-5 किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप बनाकर खेत में अपना शोध शुरू करते हैं। यह किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों व टहनियों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में बारिक से बारिक जानकारी जुटाते हैं। कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करने के बाद फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर उतारा जाता है। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी का लेखाजोखा खेलकर रखदेते हैं। कीटों पर अगर चर्चा की जाए तो बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का जवाब नहीं है।  

                                                                                       पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान

डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित इन किसानों ने इंटरनैट पर एक दर्जन के लगभग ब्लाग बनाए हुए हैं और इन ब्लागों पर ये किसान ठेठ हरियाणवी तथा हिंदी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन किसानों द्वारा संचालित इन ब्लागों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लाग व फेसबुक के माध्यम से इन किसानों से अपने सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। 

कीट वैज्ञानिक भी लगा चुके हैं इनके अनोखे शोध पर सहमती की मोहर

कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की लौ आज इतनी तेजी से देश में फैलने लगी है कि प्रदेश से बाहर भी इनके चर्चे शुरू हो चुके हैं। इन किसानों की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जो कीट वैज्ञानिक आज से पहले कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव देते थे आज वही वैज्ञानिक इन किसानों के बीच पहुंचकर इनके अनोखे शोध की सराहना कर कीटों को नियंत्रित करने की नहीं, बल्कि कीटों को पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की नसीहत देते हैं। 

Saturday, 3 August 2013

किसानों ने तोड़ी मरोडिय़े की मरोड़

किसान कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए बनाएं डाक्यूमैंट्री  : डा. सांगवान

जींद। शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता किसान खेत पाठशाला में किसानों ने कृषि विशेषज्ञों के साथ मरोडिय़े की बीमारी पर गहन मंथन किया। इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय हिसार से काटन विभाग के मुखिया डा. आर.एस. सांगवान, काटन वैज्ञानिक डा. उमेंद्र सांगवान तथा कीट वैज्ञानिक डा. कृष्णा भी भाग लेने के लिए पहुंचे थे। कृषि विश्वविद्यालय हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान ने कहा कि किसानों ने कीटों पर जो शोध किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। किसानों को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों पर एक डाक्यूमैंट्री बनानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक किसानों को इस मुहिम से जोड़ा जा सके।
किसानों के साथ कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते कृषि अधिकारी।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि मरोडिया एक लाइलाज बीमारी है। यह जैमनी वायरस है और इस वायरस को खत्म करने के लिए आज तक कोई भी दवाई नहीं बनी है। क्योंकि यह वायरस न तो जीवित है और न ही मृत। अगर  किसी वस्तु या पौधे में इसका प्रवेश करवा दिया जाता है तो यह जीवित हो जाता है और अगर इसे बाहर निकाल दिया जाता है तो यह मृत अवस्था में चला जाता है। इस लिए इसका इलाज संभव नहीं है। मरोडिये के लक्षण दिखाने में पौधे को 30-40 दिन लग जाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि इस वायर को फैलाने में सफेद मक्खी एक वाहक का काम करती है। सफेद मक्खी जब वायरस युक्त पौधे का रस चूसकर दूसरे पौधे पर जाकर रस चूसती है तो सफेद मक्खी के डंक के माध्यम से यह स्वस्थ पौधे में प्रेवश कर जाता है। अगर खेत में एक सफेद मक्खी भी है तो वह भी पूरे खेत में इस वायरस को फैला सकती है। इसलिए किसानों को कीटनाशकों में इसका विकल्प ढूंढऩे की बजाए पौधे की ताकत को बनाए रखने पर जोर देना चाहिए। क्योंकि यह वायरस पौधे से कार्बोहाइड्रेट को कम करता है। डा. सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसानों को एक एकड़ में लगाए गए कपास के पौधे को ताकत देने के लिए 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो डी.ए.पी. तथा अढ़ाई किलो यूरिया का घोल तैयार कर उसका छिड़काव करना चाहिए। मरोडिया के कारण पौधों में जो कार्बोहाइड्रेट की कमी होगी, वह कमी यह घोल पूरी करता रहेगा। डा. सैनी ने कहा कि कीट साक्षरता की मुहिम से जुड़े किसानों ने इसी तहर सीमित मात्रा में उर्वरकों का यह घोल तैयार कर इस मरोडिये की मरोड़ निकाली है।
एच.ए.यू.  हिसार से आए डा. आर.एस. सांगवान को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।

किसान कीड़ों के साथ न करें छेडख़ानी 

किसान खेत पाठशाला में भाग लेने आए मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, रामदेवा, बलवान, जोगेंद्र अलेवा, जयभगवान ने कहा कि किसानों को कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, राजपुरा भैण, ईंटल कलां, ईगराह आदि गांवों के किसान जो पिछले कई वर्षों से इस मुहिम के साथ जुड़े हुए हैं, उन्होंने अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष भी अपनी फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया है और उनके खेतों में सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े तथा अन्य शाकाहारी कीटों की संख्या कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आॢथक कगार से अभी भी काफी दूर है। उन्होंने किसानों द्वारा की गई कीटों की साप्ताहिक कीट समीक्षा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सफेद मक्खी की संख्या 1.06, हरे तेले की 1.2 और चूरड़े की संख्या 1.4 तक पहुंची है, जो की नुक्सान के सत्र से कोसों दूर है।

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...