Thursday, 21 September 2017

...पॉलिथिन के प्रयोग पर लगे रोक


नगर परिषद ने पॉलिथिन की रोक पर उठाया विशेष कदम
अस्थायी नंदीशाला में भी पॉलिथिन खाने से हुई थी पशुओं की मौत
पॉलिथिन सीवरेज ब्लॉक होने का सबसे बड़ा कारण बन रहा

जींद 
सख्ती से पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाए जाने से हिमाचल प्रदेश की गिनती आज स्वच्छ प्रदेशों में होती है वहीं इसके विपरित हरियाणा प्रदेश में पॉलीथिन पर बैन न होने के चलते यहां रहने वाले लोगों को पर्यावरण तथा अन्य समस्याएं तो झेलनी ही पड़ रही हैं वहीं हजारों निरीह बेजुबान पशुओं को भी मौत का कारण पॉलीथिन बन रहा है। ऐसा नहीं है कि जींद शहर में पॉलीथिन पर बैन न लगाया गया हो लेकिन दुकानदार पॉलीथिन का प्रयोग करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में अब नगर परिषद ने पॉलीथिन का प्रयोग करने वाले और इसे बेचने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया है। शीघ्र ही नगर परिषद कर्मचारी पॉलीथिन का प्रयोग करने वाले दुकानदारों और इसके कारोबारियों पर छापेमारी करेगी ताकि पॉलीथिन पर जींद में बैन लगाया जा सके। 
शहर के पर्यावरण में जहर घोल रहा प्लास्टिक 
प्लास्टिक मूल रूप से विषैला या हानिप्रद नहीं होता है परंतु प्लास्टिक के थैले रंग और रंजक धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। जिससे यह विषैला हो जाता है और इसका निष्पादन भी मुश्किल हो जाता है या यूं कहा जाए कि पॉलिथिन अनबायोगे्रडेबल है और प्रकृति में विलय नहीं हो पाता और इसका एक बार प्रयोग करने के बाद दोबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है लेकिन आज यही प्लास्टिक की थैलियां आज मानव के साथ-साथ पशुओं के लिए भी घातक सिद्ध हो रहा है। आज शहर में कोई ऐसी जगह नहीं है  जहां पॉलिथिन पड़ा न मिले। खेत-खलिहान यह जहां भी होगा, वहां भूमि की उर्वरता शक्ति कम करेगा। मजबूरन इसे जलाना पड़ता है जिससे इससे उठने वाला धुआं पर्यावरण को विषैला बनाता है। 
शहर में सीवरेज बाधित करने का सबसे बड़ा कारण पॉलिथिन 
प्लास्टिक थैलियों का निपटान यदि सही ढंग से नहीं किया जाता है तो वे जल निकास (नाली) प्रणाली में अपना स्थान बना लेती हैं जिसके फलस्वरूप नालियों में अवरोध पैदा होकर पर्यावरण को अस्वास्थ्य कर बना देती हैं। आज शहर में जहां भी सीवरेज समस्या है वहां पॉलिथिन ही इसका सबसे बड़ा कारण है। लोग अपने घरों में पॉलिथिन का प्रयोग करने के बाद बाहर फैंक देते हैं जो नालियों के माध्यम से सीवरेज समस्या को ब्लॉक कर देता है और लोगों की परेशानी का सबब बनता है। 
हजारों निरीह पशुओं की मौत का काल बन रहा पॉलिथिन 

प्लास्टिक की कुछ थैलियों जिनमें बचा हुआ खना पड़ा होता है अथवा जो अन्य प्रकार के कचरे में जाकर पड़ा होता है, उन्हें प्राय: पशु अपना आहार बना लेते हैं, जो उनकी मौत का कारण बनता है। पिछले दिनों जींद-हांसी ब्रांच नहर के निकट बनाई गई अस्थायी नंदीशाला में 10 से 20 पशुओं की मौत का कारण भी यही पॉलीथिन था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि जिन पशुओं की मौत हुई थी उन्होंने अधिक मात्रा में पॉलीथिन खाया हुआ था, जो अपाच्य था और यही उनकी मौत का कारण बना। 

प्लास्टिक उत्पादों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने की मांग
समाजसेवी सुनील, सुभाष, वासदेव ने कहा कि पूरी दुनिया में प्लास्टिक उत्पादों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने की लगातार मांग उठ रही हैं। नए अध्ययनों में प्लास्टिक के इस्तेमाल से कैंसर तक होने की आशंका जताई जा रही है। हालत यह है कि जीवन से जुड़ी हर जरूरत के सामान में प्लास्टिक ने जड़ जमा ली है। भारत के 60 बड़े शहर रोजाना 3500 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकाल रहे हैं। प्लास्टिक से बने पॉलिथीन से इंसान और जानवरों समेत प्रकृति के लिए भी घातक सिद्ध हो रहे हैं। ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि वो पॉलीथिन पर बैन लगाने के लिए ठोस कदम उठाए। 
नगर परिषद चलाएगी अभियान 
नगर परिषद प्रधान पूनम सैनी ने कहा कि शहर में सीवरेज ब्लॉक होने का सबसे बड़ा कारण पॉलीथिन बन रहा है। इसके साथ ही कचरे में भी सबसे ज्यादा पॉलीथिन ही पाया जा रहा है। ऐसे में इसका निष्पादन कर पाना मुश्किल हो रहा है। नगर परिषद द्वारा अब पॉलीथिन पर बैन लगाने के लिए सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया है। नगर परिषद कर्मचारी पॉलीथिन का प्रयोग करने वाले दुकानदारों और इसके कारोबारियों पर छापेमारी करेगी ताकि पॉलीथिन पर जींद में बैन लगाया जा सके। 
खुले में नहीं फैंकना चाहिए पॉलीथिन : डा. मलिक 
पशु उपनिदेशक डा. आरएस मलिक ने कहा कि लोगों द्वारा खुले में पॉलिथिन की थैलियां फैंक दी जाती हैं। जिसे खुले में घूम रहे पशु भूखा होने के चलते खा लेते हैं। जैसे ही यह पॉलीथिन पशुओं के पेट में पहुंचता है तो उनके पेट में जाकर फंस जाता है और उनके लिए हानिकारक साबित होता है। पॉलीथिन की अधिक मात्रा होने के कारण पशुओं की मौत भी हो जाती है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट और कपड़े से बनी थैलियों और कागज की थैलियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। 


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