मंदिरों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
मां का निरंत सिमरण करना चाहिए : आचार्य पवन
जींदनवरात्रे के चौथे दिन रविवार को माता कुष्मांडा की पूजा अर्चना के लिए मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ी। शहर के प्रसिद्ध मंदिर जयंती देवी मंदिर, भूतेश्वर मंदिर, सोमनाथ मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, रघुनाथ मंदिर में सुबह से ही भक्त माथा टेकने के लिए पहुंचना शुरू हो गए। पूजा अर्चना के लिए मंदिरों में आए श्रद्धालुओं ने मंदिरों के बाहर सजी दुकानों से बच्चों के लिए खिलौने इत्यादि की खरीददारी भी की। जयंती देवी मंंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि यदि मां का यह स्वरूप आविर्भूत नहीं होता तो संपूर्ण संसार अपने ही विषैले पदार्थों से स्वयं ही नष्टï हो जाता। पूरे जगत में चारों ओर विनाश, अंधकार एवं अज्ञानता का बोलबाला होता। मां कुष्मांडा ने ही संसार में पनपी पूरी विषैली ऊर्जा को स्वयं पीकर सृष्टिï की रक्षा की थी। उन्होंने कहा कि नवरात्र के नौ दिन मानव जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। इन दिनों में जो भी श्रद्धालु सच्चे दिल से मां भगवती की अराधना करता है मां भगवती उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करती है।
मां का निरंत सिमरण करना चाहिए : आचार्य पवन
आचार्य पवन शर्मा ने कहा कि मां का भक्त वह जो निरंतर मां का स्मरण करे, जिसके अंत:करण में प्रतिक्षण मां की ही स्मृति बनी रहे, जिसके जीवन का प्रधान लक्ष्य केवल मां हो। आचार्य पवन शर्मा नवरात्र पर्व पर माता वैष्णवी धाम में आयोजित नवार्ण महायज्ञ के दौरान उपस्थित मातृभक्तों को संबोधित कर रहे थे। घनश्याम सिंघल, केके चहल व नीरज मिगलानी एडवोकेट, विनोद भारद्वाज, जितेंद्र कौशिक, डा. अनुपम भाटिया, आरएन खटकड़, प्रमोद सोनी, मदन बतरा, रामफल सैनी, रोहित जिंदल, जसवंत पंवार, मयंक अरोड़ा, राजीव गर्ग ने सपरिवार मां चंद्रघण्टा की पूजा की व महायज्ञ में आहुति दी। आचार्य ने कहा कि मां की स्मृति केवल उसी से ही रहती है जो मां को अपना मानता है। प्रकृति का नियम है कि जिसे हम अपना समझते हैं उसे हम कभी भूलते नहीं हैं, हम उस व्यक्ति या वस्तु को ही भूलते हैं जिसे हम अपना नहीं समझते, जैसे कोई व्यक्ति अपने माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि आदि परिजनों को नहीं भूलता, तो इसका कारण यही होता है कि वह इनको अपना मानता है। इनका स्मरण करने के लिए पृथक से कोई उपाय नहीं करना पड़ता है। भगवान की स्मृति हमें इसलिए नहीं होती क्योंकि हम उसे अपना नहीं मानते, हम भगवान की दी हुई वस्तुओं को तो अपना मानते हैं लेकिन भगवान को नहीं। कैसी विचित्र बात है कि हमने सब कुछ देने वाले को तो पराया और नश्वर वस्तुओं को अपना मान लिया है। आचार्य ने कहा कि केवल परमात्मा ही नित्य है, शाश्वत है, सनातन है इसलिए वे ही हमारे अपने हो सकते हैं। इस मौके पर राजन चिल्लाना, हरबंस रल्हन, विनोद बतरा, कृष्ण गोपाल माटा, राजबीर तंवर, हरबंस मंगला, देवेंद्र शर्मा, अशोक गुलाटी, विरेन्द्र मेंहदीरत्ता, परमजीत सेठी, वेद टंडन, प्रषांत चौहान भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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