बीमारियों की चपेट में आने लगी कपास व धान की फसल
बीमारी को लेकर किसान कृषि विज्ञान केंद्र पिंडारा में कर रहे फोन
कृषि विज्ञान केंद्र किसानों की कर रहा है हर संभव मदद
जींदपिछले एक पखवाड़े में मौसम में उतार-चढ़ाव से फसलों में बीमारियों के फैलने का खतरा पैदा हो गया है। जिला में कभी रूक-रूक कर बारिश हो रही है तो कभी तेज धूप निकल रही है जिससे तापमान में एकदम से गिरावट आ रही है और फिर एकदम से बढ़ जा रहा है जो किसानों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। मौसम के इसी उतार-चढ़ाव से अब धान तथा कपास की फसल में कहीं-कहीं बीमारी की सूचनाएं भी आ रही हैं। इसको लेकर किसानों द्वारा गांव पांडू पिंडारा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में फोन भी किए जा रहे हैं और उन्हें हर संभव सहायता भी उपलब्ध करवाई जा रही है। किसानों द्वारा इस बार जिला में लगभग 70 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की हुई है जबकि लगभग सवा लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई की हुई है। इसके अलावा, बाजरा, ज्वार, ग्वार तथा सब्जियों की भी खेती की हुई है। हालांकि शुरू-शुरू में मौसम फसलों के बिल्कुल अनुकूल रहा है किसानों की जरूरत के अनुसार बारिश भी हुई लेकिन अब मौसम में पिछले एक माह से परिवर्तन होने लगा और लगातार हुई बारिश ने भी किसानों की चिंता बढ़ाई। बारिश से फसल में आया फूल खराब हो रहा है और नमी बढऩे के कारण सफेद मक्खी का भी प्रकोप बढ़ गया है। जिससे फसल में काफी नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही तापमान 28 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने वह आद्रता 70 प्रतिशत तक रहने के चलते अब धान और कपास की फसलें बीमारी की चपेट में आने लगी हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र में किसान कर रहे हैं फोन
गांव पांडू पिंडारा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में कपास में धान तथा फसल
बीमारी को लेकर किसान फोन भी करने लगे हैं। किसानों द्वारा यहां फोन कर बताया जा रहा है कि उनकी फसल में बीमारी लग रही है जिससे उन्हें बीमारी से फसल बर्बाद न हो जाए, इसका डर सताने लगा है। कृषि विज्ञान केंद्र में आने वाले फोन के अनुरूप ही यहां मौजूद कृषि विशेषज्ञों द्वारा फसल को बीमारी से बचाने के लिए हर संभव उपचार भी बताए जा रहे हैं। ज्यादातर किसान चेपा, झुलसा रोग, धान में चेपा रोग आदि लगने की बात कह रहे हैं।
खूब मेहरबान रहा मानसून, पिछले साल से ज्यादा बारिश
वर्ष 2016 जिले में सितंबर माह तक औसतन 355 एमएम बारिश हुई थी। खास बात यह है कि इस दौरान सितंबर माह में कोई बारिश नहीं हुई। जबकि इस बार दो सितंबर तक जिले में औसतन 42 एमएम ज्यादा बारिश हुई। मानसून के शुरूआती दौर में जुलाना व पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में तो बाद में जिले के नरवाना व उचाना क्षेत्र में खूब बारिश हुई। जिले में सबसे ज्यादा बारिश जून माह में 143 एमएम दर्ज की गई।
जिले में पहले ही डूब चुकी है करीब 20 हजार एकड़ फसल
मानसून की शुरूआत में ही जुलाना व पिल्लूखेड़ा क्षेत्र के कई गावों में पहले ही करीब 20 हजार एकड़ से ज्यादा में खड़ी खरीफ की धान, कपास, ज्वार की फसलें जलमग्र हो चुकी हैं। किसानों को इससे काफी नुकसान हुआ है। अब भी खेतों में कई-कई फीट पानी खड़ा है। हो रही बारिश से पानी का स्तर बढ़ रहा है। इससे किसानों को चिंता सता रही है कि रबी फसल की बिजाई आगे वे कर पाएंगे या नहीं।
जिले में पिछले दो दिनों में हो हुई बारिश का ब्यौरा
ब्लॉक 1 सितंबर को 2 सितंबर को कुल
जींद 15 05 20
जुलाना 14 ०2 16
नरवाना 70 02 72
उचाना 50 00 50
सफीदों 12 11 23
पिल्लूखेड़ा 08 07 15
नोट- उक्त बारिश का ब्यौरा एमएम में हैं और 2 सितंबर को सुबह 8 बजे तक का है।
पिछले व इस साल जिले में हुई बारिश का ब्यौरा
महीना वर्ष 2016 वर्ष 2017
जनवरी 00 46
फरवरी 02 00
मार्च 19 08
अप्रैल 00 01
मई 51 65
जून 40 143
जुलाई 143 65
अगस्त 100 41
सितंबर 00 36 अब तक
कुल 355 397
नोट- जिले में हुई यह औसत बारिश एमएम में हैं और पिछले साल से अब तक 42 एमएम ज्यादा बारिश हुई है।
ऐसा ही मौसम रहा तो कपास को होगा नुकसान : मलिक
पांडू-पिंडारा कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक ने बताया कि मौसम में उतार-चढ़ाव वाला यह मौसम फसलों में बीमारी लगाने वाला है। कृषि विज्ञान केंद्र में इसको लेकर किसानों ने फोन भी किया है। बारिश से जहां कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ गया है वहीं मौसम में नमी तथा आद्रता धान फसल में भी रोग ला सकती है। इसके लिए किसानों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। रोग से बचाने के लिए किसान कपास फसल में स्टैक्टोसिलिन दवा की छह ग्राम तथा बलाइटोसोर की 400 ग्राम मात्रा लें और दोनों को मिला कर खेत में छिड़काव करें। इसके साथ ही पोटाशियम नाइट्रेट की एक किलोग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में मिला कर खेत में छिड़काव करें। इसके साथ ही अपनी फसल को बीमारी से बचाने के लिए किसान कभी भी कृषि विज्ञान केंद्र पर फोन कर सहायता ले सकते हैं।
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