श्राद्ध के 16 दिन पितृ पक्ष के रूप में मनाये जाते हैंश्राद्ध से ही मिलती है पितरों को मुक्ति: पुजारी
उचानाहिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में पित्रों के उद्धार के लिए पुत्र का होना भी आवश्यक बताया गया है। हमें जन्म देने वाले माता पिता को मृत्यु के बाद मनुष्य भूल न जाए इसीलिए पुराणों में श्राद्ध का नियम बनाया गया है। हर परिवार को अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना होता है। साल के 16 दिन पितृ पक्ष के के रूप में मनाये जाते है। जिसमे कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश आदि को वर्जित माना गया है। इन 16 दिनों में लोग आपने पित्रों की पूजा करते है और उन्हें भोग देकर तृप्त करते है। छह सितंबर से श्राद्ध शुरू होंगे। सत्यनारायण पुजारी ने बताया कि पितृ पक्ष भद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक की अवधि होती है जिसमे पूर्वजों को भोजन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाती है। कुछ लोग इस दौरान अपने पित्रों का पिंड दान भी करते है। जिसे उनकी आत्माओं की तृप्ति के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है।
पितृ पक्ष का महत्व
उन्होंने बताया कि ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिंदू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
क्या है श्राद्ध
पुजारी ने बताया कि ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिंड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध
पुजारी ने बताया कि सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है। पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है। पितृ पक्ष के आखिरी दिन को सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है। इस दिन सभी पित्रों का श्राद्ध किया जा सकता है।
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