भगवान परशुराम ने क्षत्रियों के खून से भर दिया था तीर्थ तालाबों का
तीर्थ पर पितरों का तर्पण करने से मिलता है पुण्य
रामहृद तीर्थ पर तर्पण करने से स्वर्ग की होती है प्राप्ति
वैशाख, श्रावण तथा कार्तिक माह की पूर्णिमा पर लगता है मेला
जींद
ऐतिहासिक नगर जींद की अपनी ही एक अलग महत्ता है और महाभारत की कई कथाएं जींद से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा वामन पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी जींद का उल्लेख मिलता है। यह कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां पर विजय की देवी जयंती देवी के मंदिर का निर्माण किया था। युद्ध में कौरवों को हराने के लिए उन्होंने इसी मंदिर में पूजा की थी। देवी के नाम पर ही इसका नाम जयंतापुरी रखा गया था। समय के साथ इसका नाम जयंतापुरी से बदल कर जींद हो गया। जींद में महाभारतकालीन पौराणिक तीर्थ हैं जिनमें गांव रामराये स्थित रामहृद तीर्थ अपनी अलग ही महत्ता रखता है।
ये है पौराणिक कथा
गांव रामराये स्थित रामहृद तीर्थ के बारे में पौराणिक मान्यता है कि महर्षि परशुराम द्वारा निर्मित होने से ही इस तीर्थ का नाम रामहृद तीर्थ पड़ा था। यह तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र से 140 किलोमीटर दूर है और जींद से इसकी दूरी लगभग दस किलोमीटर है। यह पवित्र तीर्थ स्थल महर्षि जमदग्रि के पुत्र महर्षि परशुराम से संबंधित है। जिनकी गणना भगवान विष्णु के दस (मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम कृष्ण, बुद्धादि) प्रमुख अवतारों में की जाती है। महर्षि परशुराम ने क्षत्रियों के अन्यायपूर्ण व्यवहार से क्रोधित होकर क्षत्रियों का विनाश कर उनके रक्त से इस स्थल पर पांच सरोवरों को भर दिया था। इस तीर्थ से संबंधित आख्यान लगभग सभी ग्रंथों में से एक है। महर्षि परशुराम ने क्षत्रियों का विनाश कर समन्तपंचक नामक क्षेत्र में उनके रक्त से पांच सरोवरों (रामहृद, सन्निहित, सूर्य, कल्याणी, गोविंद) का निर्माण कर उन्हीं सरोवरों में रक्तांजलि द्वारा अपने पितरों का तर्पण किया था। तब उनके पितरों ने प्रसन्नता से प्रकट होकर उन्हें क्षत्रियों के विनाश रूपी कृत्य से उन्हें माफ किया और उनके द्वारा तीर्थ को संसार में प्रसिद्ध करने व उनकी तपोवृद्धि होने का वरदान दिया था।
रामहृद तीर्थ पर तर्पण करने से स्वर्ग की होती है प्राप्ति
रामहृद तीर्थ स्थित मंदिर पुजारी रतन सिंह ने बताया कि जो भी व्यक्ति इन सरोवरों में स्नान करके श्रद्धायुक्त चित्त से पितरों का तर्पण करेगा, उसके पितर उससे संतुष्ट होकर उसे संसार में दुर्लभ पदार्थ प्रदान करेंगे एवं उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इसके अलावा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए तथा पवित्र एवं श्रद्धायुक्त चित्त से इन सरोवरों में स्नान करने वाला व्यक्ति सुवर्ण (आपार धन, वैभव) को प्राप्त करता है। फिलहाल इस तीर्थ में कपिल यक्ष, यक्षिणी तथा महर्षि परशुराम के मंदिर बने हुए हैं।
वैशाख, श्रावण तथा कार्तिक माह की पूर्णिमा पर लगता है मेला
श्रद्धालु राजेश, विजय शर्मा ने बताया कि इस तीर्थ पर वैशाख, श्रावण तथा कार्तिक माह की पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही यहां ऐसी मान्यता भी है कि दोपहर बारह बजे यहां सभी तीर्थ इक_े हो जाते हैं। लोगों में ऐसा भी विश्वास है कि यहां यक्षिणी देवी के मंदिर में स्थित प्रस्तर निर्मित प्रतिमा पर निरंतर सात शनिवार तक नमक चढ़ाने से चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
20 एकड़ तीर्थ में फैला है तीर्थ
श्रद्धालु फूल कुमार शर्मा, विरेंद्र ने बताया कि यह तीर्थ लगभग 20 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। प्राचीन काल से ही इस तीर्थ पर पक्के घाटों के निर्माण मिलते हैं। यहां पर कुल 27 घाट हैं। यहां गर्भगृह में महर्षि जमदग्रि, माता रेणुका और भगवान परशुराम की प्रतिमाएं हैं।
रामहृद तीर्थ का होगा विकास
डीसी अमित खत्री ने बताया कि गांव रामराये स्थित रामहृद तीर्थ को विकसित करने के लिए कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा लगभग एक करोड़ 64 लाख रुपये की राशि जारी की गई है। इस राशि से तीर्थ स्थल को विकसित करने के लिए अनेक विकास कार्य करवाए जाएंगे। तीर्थ स्थल पर आने वाले श्रद्धालुओं को तमाम प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए यहां तीर्थ परिक्रमा, वाहनों के लिए पार्किंग स्थल, दो सार्वजनिक शौचालय, तीन स्नान घाट, रोपित होने वाले वृक्षों के लिए ट्री-गार्ड की व्यवस्था, घाटों की मुरम्मत, घाटों के रिटर्निंग वार्ड, बिजली की समुचित व्यवस्था, तीर्थ स्थल को सफेदी करना, स्ट्रीट लाइटें, घाटों पर चेन की व्यवस्था, चार महिला घाट के निर्माण समेत कई विकास कार्य करवाये जाएंगे। काम शुरू होने के बाद ये सभी विकास कार्य नौ माह में पूरा करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अलावा कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा जींद जिला में पौंकर खेड़ी गांव स्थित पुष्कर तीर्थ तथा आसन गांव के अश्वनी कुमार तीर्थ का भी विकास करवाया जाएगा।
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