Sunday, 24 September 2017

अंधेर नगरी चौपट राजा नाटक ने मोहा दर्शकों का मन



नाटक के माध्यम से अज्ञानी राजा पर किए कटाक्ष
कलाकारों के हास्य व्यंग पर दर्शकों ने भी लगाए ठहाके 
 जींद 


एक्टिव थियेटर एंड वेल्फेयर सोसायटी द्वारा हरियाणा कला परिषद व हरियाणा संस्कृत अकादमी के तत्वावधान में चल रहे 11 दिवसीय नवरस राष्ट्रीय नाट्य उत्सव के तीसरे दिन अंधेर नगरी चौपट राजा का मंचन प्रसिद्ध रंगकर्मी रमेश कुमार के निर्देशन में किया। कार्यक्रम का शुभारंभ डा. रमेंद्र व डॉ. केएस गोयल तथा धनराज सिंगला ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। नाटक की कहानी कुछ इस प्रकार है कि बहुत दिन पहले की बात है काशी तीर्थ यात्रा की वापसी में एक गुरु शिष्य किसी नगरी में पहुंचे, उसका नाम अंधेर नगरी था। शिष्य बाजार में सौदा खरीदने पहुंचा तो वहां हर चीज एक ही भाव मिलती है। टके सेर भाजी टके सेर खाजा। एक टके का सेर भर खाजा खरीद लाया और बहुत खुश होकर अपने गुरुजी से बोला गुरुजी वहां तो बड़ा मजा है खूब मस्ती है। चीजें सब टका सेर। देखिये एक टका में ये सेर भर खाजा लाया हूं। हम तो अब कुछ दिन यही मौज करेंगे। छोडिय़े तीर्थ यात्रा, यह सुख और कहां मिलेगा। गुरु समझदार थे बोले बच्चा जिसका नाम ही अंधेर नगरी वहां रहना अच्छा नहीं जल्दी भाग निकलना चाहिए यहां से। साधु रमता चला पानी बहता भला। पर शिष्य को गुरु की बात नहीं भाई और शिष्य ने कहा कि गुरु जी में कुछ दिन यही रहूंगा। गुरुजी समझदार थे उन्होंने कहा कि अगर मेरी जरुरत पड़े तो मुझे याद कर लेना, मैं हाजिर हो जाऊंगा और गुरुजी चले गए। और इसी बीच एक महिला की बकरी मर जाती है। वह राजा के दरबार में फरियाद लेकर जाती है कि महाराज मेरा न्याय करें। चौपट राजा जोकि एक मूर्ख राजा है, वह कहता है कि हमारे राज्य में बकरी मरी है, उसका न्याय तो होगा और आखिरी में ऐलान करता है कि कोतवाल को फांसी चढ़ाया जाए लेकिन कोतवाल बच जाता है। अब किसी को तो फांसी देनी थी। सैनिकों ने चुपके से चेले के गले में फंासी का फंदा डालकर देखा तो फांसी का फंदा फिट बैठा। चेले को राजा के दरबार में पेश किया गया और राजा ने आदेश दिया कि इसको फांसी दे दी जाए। चेला रोया, गिड़गिड़ाया और कहा कि मेरे साथ अन्याय है और उसने अपने गुरु को याद किया। गुरुजी हाजिर हो गए। चेले ने कहा कि बकरी के मारे जाने से मुझे फांसी दी जा रही है। गुरुजी ने समझाया और एक नाटक रचा और सब में होड़ मच गई कि पहले फांसी में चढूंगा। इसी बीच मूर्ख राजा वहां आता है और सबको खामोश करता है और गुरु जी से पूछता है कि यह क्या गोलमाल है गुरुजी। गुुरुजी कहते हैं जो इस समय फांसी पर चढ़ेगा, वह सीधा स्वर्ग में जाएगा। तो राजा कहता है कि हम यहां के राजा हैं तो पहले फांसी हम चढ़ेंगे और राजा फांसी चढ़ जाता है और मर जाता है। सारी प्रजा चैन की सांस लेती है। दर्शकों ने यह नाटक बारिश में खड़े होकर खूब आनंद लिया, व खूब तालियां बजाई। कलाकारों की प्रशंसा की। मुख्यातिथि डॉ. रमेेंद्र कालीरमण ने कहा कि यह संस्था का प्रयास हम जैसे लोगों को कलाओं के प्रति संवेदनशील बनाना है व इस क्षेत्र में कलाकारों को आगे बढ़ाना है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. केएस गोयल ने कहा कि इस संस्था को हम हर संभव सहायता मुहैया करवाने का पूरा प्रयास करेंगे और इस मुहिम को लगातार आगे बढ़ाते रहेंगे। मंच का संचालन मंगतराम शास्त्री ने किया। इस अवसर पर सुभाष श्योराण, सुभाष ढिगाना, प्रवीन परुथी, रंगकर्मी रमेश कुमार, सुनीता मलिक, प्रवीन दुग्गल, कृष्ण नाटक, प्रवेश त्यागी, डॉ. बनीश, मुकेश सिंगला भी मौजूद थे। 


No comments:

Post a Comment

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...