संध्या छाया नाटक का हुआ मंचन
व्यवहारिक जीवन की घटनाओं की कड़ी से कड़ी जोड़ता रहा नाटक
नाटक के निदेशक सुदेश शर्मा रहे मुख्य भूमिका में
जींद
दिवान बाल कृष्ण रंगशाला में जिला सांस्कृतिक समन्वय समिति द्वारा आयोजित संध्या छाया नाटक जींद के लोगों के मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ गया। जीवन की असली हकीकतों का ब्यान करता यह नाटक एक एकल परिवार में वृद्धों की असली जिंदगी को चरितार्थ करता नजर आया। एडीसी धीरेन्द्र खडगटा ने सायं आठ बजे दीप प्रज्जलित कर नाटक का शुभारम्भ किया। उन्होनें कहा कि नाटक विधा में रंगमंच कर्मी अपनी भावक भंगिमाओं के माध्यम से ऐसा दृश्य बना देता है जिसका मानस पटल पर अमिट चित्र अंंंंकित हो जाता है। कई बार सामाजिक बुराइयों पर रंगकर्मी इतने प्रभावी तरीके से अपनी कला का प्रदर्शन करता है कि दर्शक उसे किसी भी तरह भुला नहीं पाते और ऐसी स्मृतियां मनुष्य को बुराई करने से रोकने में कारगर साबित होती हंै। उन्होंने कहा कि हमें भाग दौड़ की इस जिंदगी में कुछ समय अपने लिए तथा समाज के लिए निकालना चाहिए। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को बताया कि जिला प्रशासन द्वारा हर महिने के दूसरे व चौथे शनिवार को इस रंगशाला में कोई न कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने का कैलेंडर तैयार किया है। जयवंत दलवी द्वारा लिखित नाटक में निदेशक सुदेश शर्मा ने विशेष पात्र की भूमिका निभाई। सुदेश शर्मा हरियाणा कला परिषद के वाइस चेयरमैन भी हैं। संवाद शैली एवं भाव भंगिमाओं का अनोखा मिश्रण कर अपनी प्रस्तुति रखने में माहिर सुदेश शर्मा ने एक वृद्ध की भूमिका निभाई। परिवार के युवा सदस्य बाहर चले जाते है। वृद्ध माता-पिता अपने आप को अकेला पाते हैं। वे पोते-पोतियों के साथ खेलना चाहते हैं लेकिन अच्छी नौकरी का लालसा में परिवार के युवा सदस्य बाहर चले जाते हैं। वहीं पर जाकर जीवन संगीनी का चयन कर लेते हैं। मां -बाप एक अच्छी वधु की लालसा में कई प्रकार के सपने संजोते हैं। उनके सपने उस वक्त टूट जाते हैं जब उन्हे पता लगता है कि उनकी संतान ने उन्हे पूछे बिना ही शादि के बंधन में अपने आप को बांध लिया है। बेटे सिर्फ पैसे कमाने की होड में मां-बाप को भुला कर विदेश में ही आबाद हो जाते हैं। मां -बाप पारिवारिक खुशी के लिए पेइंग गैस्ट को रख कर उसमें भी खुशी ढूंढने का प्रयास क रते हैं। अपने पोते-पोतियों से लाड प्यार पाने के लिए वे अन्य बच्चों को ही अपना समझने की कौशिश करते हैं। नौकर के बच्चों में खुशी तलाशते हैं। आखिरकार अकेलापन उन्हें इतना तोड़ देता है कि दोनों नशे की गोलियां खाकर मरने का निर्णय ले लेते है। इस वन एक्ट प्ले में भले ही पात्र थोड़े रहे हो उनकी भाव भंगिमाएं दर्शकों को अनायास ही जीवन के यथार्थ को समझा रही थी। एक एक संवाद में गहरा अर्थ छिपा था। एकांकी जीवन कैसे मनुष्य की जिंदगी को निराशा में बदल देता है, इसका हूबहू चित्रण कलाकारों ने बखूबी तरीकेे से किया। नाटक के प्रत्येक किरदार ने अपने रोल के साथ न्याय किया। जब बेटा विदेश में चला जाता है, कैसे मां-बाप अपने सपनों को पूरा करने के लिए मन मसोस कर रह जाते हैं, इसका चित्रण रंगकर्मियों ने जीवंत कर दिखाया। जैसे-जैसे नाटक के दृश्य अगले पायदान पर पहुंचते हैं, दर्शकों की तालियां इस बात को इंगित कर रही थी कि दर्शक शुरू से आखिर तक नाटक की विषय वस्तु से जुड़े रहे। पत्नी की भूमिका में मधुबाला, दादा की भूमिका शौर्य शर्मा ने निभाई। पात्र अभिनय में जसपाल सिंह का नौकर का रोल भी हंसाने वाला रहा। नाटक की साज सज्जा नवदीप सिंह बावेजा व सह निदेशक हरविंद्र सिंह की नाटक में भूमिका सराहनीय रही। इस मौके पर मुकेश सिंगला, रमेश सिंगला, प्रो. वजीर खटकड़, जयवीर ढांडा, ऑन थियेटर ग्रुप के डा. पवन आर्य, हनीफ खान समेत अनेक रंगकर्मी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
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