Monday, 25 September 2017

आवारा पशु मुक्ति में तामझाम बौने

गौशालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश
अस्थायी नंदीशाला में भी सुविधाओं का टोटा
जगह, संसाधन, आर्थिक पहलू सबसे बड़ी समस्या

 जींद
जिले को आवारा पशु मुक्त करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा किया गया तामझाम अब तक बौना साबित हुआ है। 30 सितम्बर तक जिले को आवारा पशु मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। जिले में गौशालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश पहुंच चुका है। जिसके चलते गौशालाओं को भी आर्थिक तथा स्थान की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। क्षमता के अधिक गोवंश होने के कारण गौशालाओं की स्थिति भी खराब है। अस्थायी तौर पर बनाई गई जिले में तीन नंदीशाला भी उन्हीं हालातों से गुजर रही हैं। अस्थायी नंदीशाला के लिए स्थान तो उपलब्ध है लेकिन उनमे धूप, छांव तथा बारिश से बचने के लिए शैड नहीं है। जिसके चलते गोवंश को बैठने में दिक्कत हो रही है और गोवंश बीमार होकर भी मर रहा है। पिछले दो माह में गोवंश की मौत का आंकड़ा 100 के लगभग पहुंच चुका है। बावजूद इसके अब भी गोवंश सड़कों पर दिखाई दे रहा है। अधिकारियों का दावा है कि जिलेभर में लगभग 1500 से 1700 तक गोवंश बाहर है। जिसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा। 
तीन अस्थायी नंदीशाला, 21 गौशालाओं पर निर्भर गोवंश
जिले में आवारा पशुओं के लिए तीन अस्थायी नंदीशाला बनाई गई हैं इसके अलावा 21 गौशालाएं हैं। जो लगभग 35 हजार गोवंश की शरण स्थली बनी हुई हैं। जींद नंदीशाला में तीन हजार, जुलाना में 600, सफीदों में 650 नंदी हैं। जींद में श्री गौशाला, हांसी रोड गौशाला, बालाजी गौशाला, सोमनाथ गौशाला, पिंडारा में श्रीकृष्ण गौशाला, गावं ढाणी गौशाला, धड़ौली गौशाला, ढाठरथ गौशाला, नगूरां गौशाला, सफीदों गौशाला, जुलाना गौशाला, उचाना फूल्लूसाध गौशाला, छात्तर गौशाला, नरवाना में कृष्णा गौशाला, सतपाल गौशाला, राधेश्याम गौशाला, ढाकल रोड गौशाला, जींद के रोहतक रोड तथा कैथल रोड और धमतान में भी छोटे स्तर की उपचार देने वाली गौशाला हैं। 
जगह, संसाधनों की कमी, गोवंश ज्यादा
जिले की कोई भी ऐसी गौशाला नहीं है जिसमे क्षमता से अधिक गोवंश न हो। जिसके चलते गोवंश को तो परेशानी का सामना करना ही पड़ता है साथ में संचालकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। श्री गौशाला, सोमनाथ गौशाला, श्रीकृष्ण गौशाला, उचाना गौशाला, छातर गौशाला, धड़ौली गौशाला को छोड़कर किसी भी गौशाला के पास अपनी जमीन है। जिनकी जरूरते कुछ हद तक पूरी हो जाती हैं। बावजूद इसके गौशालाएं दानी सज्जनों पर निर्भर हैं। सभी गौशालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश हैं। क्षमता एक हजार की है तो उसमे 1500 से 1700 तक गोवंश है। जिसके चलते संसाधनों तथा आर्थिक समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। 
धूप, छांव, बारिश से बचने के लिए नहीं शैड
जिले में अस्थायी तौर पर तीन नंदीशालाएं बनाई गई हैं। जिसमे जींद, जुलाना तथा सफीदों शामिल हैं। उचाना, नरवाना, पिल्लूखेड़ा तथा अलेवा में जगह उपलब्ध नहीं हो पाई है। जिन स्थानों पर अस्थायी नंदीशाला बनी हुई है उन्हीं ब्लॉकों में स्थायी नंदीशालाओं का निर्माण किया जा रहा है। अस्थायी नंदीशालाओं में लगभग छह हजार के लगभग गोवंश है। तीनों अस्थायी नंदीशालाओं में धूप, छांव तथा बारिश से बचने के लिए कोई छप्पर नहीं डाला गया है। बारिश मौसम के दौरान नंदियों के हालात दयनीय हो जाते हैं। नंदियों को भिडऩे से रोकने, बीमार, कमजोर, लाचार नंदियों को अन्य नंदियों से अलग रखने के लिए कोई स्थायी प्रबंध नहीं है।
संख्या नियंत्रित करने की कोशिश
आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए उनकी संख्या को नियंत्रित करने की कोशिश जिला प्रशासन द्वारा की गई है। पकड़े गए गोवंश को बधिया कर संख्या पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है। पशुपालन विभाग द्वारा लगभग दो हजार नंदियों को बधिया किया जा चुका है। विभाग के अधिकारियों को कहना है कि बधिया करने से न तो नंदी उग्र होता और न ही संख्या बढ़ाने की क्षमता रहती। 
गौशालाओं का आत्म निर्भर न होना परेशानी का मुख्य कारण

अन्ना टीम तथा अस्थायी नंदीशाला के सदस्य सुनील वशिष्ठ ने बताया कि गऊशालाओं के पास जगह तथा आत्मनिर्भता न होने के कारण गऊशाला आवारा पशुओं को लेने से कतरा रही हैं। जिसके पीछे मुख्य कारण गऊशाला, दूध, देशी खाद या गोवंश से जुड़े प्रोडेक्टों को तैयार नहीं कर रही है। ज्यादतर गोवंश लाचार तथा बीमार है और दूध की मात्रा तथा गुणवत्ता पर भी खरी नहीं है। गोवंश का कृषि में भी प्रयोग नहीं हो रहा है, जिसके चलते नंदियों की संख्या भी अच्छी खासी बढ़ती चली गई। उत्तम नस्ल का गोवंश होना जरूरी है। जिसके लिए आवश्यक कदम उठाए जाने जरूरी हैं। 

गौशालाओं में क्षमता से अधिक है गोवंश
बालाजी गौशाला के संरक्षक राजेश गौत्तम ने बताया कि आधा दर्जन के लगभग गौशाला कुछ हद तक आत्मनिर्भर है। अन्य गौशालाएं जनता के सहयोग से चल रही है। सभी गौशालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश है। जिसके चलते संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और गोवंश को भी परेशान होना पड़ रहा है। गोवंश की संख्या क्षमता अधिक होने के कारण जगह का भी अभाव बना हुआ है। गांव स्तर पर प्रबंध कर आवारा पशुओं से मुक्ति दिलाई जा सकती है। 
क्या कहते हैं डीसी
डीसी अमित खत्री ने बताया कि जिले को निर्धारित समयाविधि में आवारा पशु मुक्त कर लिया जाएगा। पिछले कुछ दिनों से अधिकारी लगातार आवारा पशुओं को पकडऩे की मुहिम में जुटे हुए हैं। तीन हजार से ज्यादा आवारा पशुओं को पकड़ा जा चुका है। उन्होंने माना कि जिले में 1500 के लगभग आवारा पशु पकडऩे बाकि हैं। जिनकी धर पकड़ की जा रही है। फिलहाल तीन अस्थायी नंदीशालाओं में आवारा पशुओं को छोड़ा जा रहा है। तीन स्थायी नंदीशाओं का निर्माण कार्य जोरों पर है। जिले को आवारा पशु मुक्त करने के लिए जनसहयोग मिल रहा है। गौशालाओं को दिशा निर्देश दिए गए हैं। 

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