Tuesday, 12 September 2017

सात दिवसीय मधुमक्खी पालन शिविर आयोजित

25 मधुमक्खी पालकों को सिखाए मधुमक्खी पालन के गुर
सिंधु ग्रामोद्योग समिति द्वारा लगाया गया है शिविर

 जींद
सिंधु ग्रामोद्योग समिति द्वारा मधुमक्खी पालन की सात दिवसीय वैज्ञानिक विधि से प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन प्रदेश के 25 मधुमक्खी पालकों, किसानों को वैज्ञानिक विधि द्वारा मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ प्रदेश के पूर्व ज्वायंट डायरेक्टर डा. जेएस गुलिया ने किया। किसानों को संबोधित करते हुए डा. जेएस गुलिया ने बताया कि शहद क्या है शहद प्राकृतिक तौर पर लगभग समान मात्रा में ग्लूकोज, फुरूटोस, सुक्रीश व पानी का मीठा तरल पदार्थ होता है। शहद के अंदर 180 विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं। जिनमें 18 तरह के एसिड, 12 तरह के मिनरल, 12 तरह के अमोनों एसीड, पांच तरह के एंजाईस, 18 तरह के बॉयो प्लोवर नाईड, 26 तरह के एरोमा कम्पाडड, 17 तरह के ट्रैस एलीमेट, 6 तरह के विटामिन, 8 तरह के लिपिड होते हैं। शहद विभिन्न प्रकार का व विभिन्न स्वाद का होता है। यह फूल पर निर्भर करता है। जिससे मधुमक्खी ने रस इक्_ा किया है। शहद उन्हीं क्षेत्रों से एकत्रित किया जाता है। जहां न तो रासायनिक उव्र्रक का प्रयोग होता है और न ही खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग होता है। उन्होंने कहा कि शहद अत्याधिक मात्रा का रस मिश्रण है। इसके अन्दर 82: रस तथा 18: से भी कम पानी होता है। और पानी की कम मात्रा के कारण रस मिश्रण जम जाता है। शहद का जमना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। क्योंकि यह अत्याधिक मात्रा वाला एक मिश्रण है। शहद में फ्रूक्टोस और ग्लूकोज नामक दो मुख्य रस होते हैं। इनकी मात्रा ही शहद को दूसरे शहद से भिन्न करती है। आमतौर पर फ्रूक्टोस की मात्रा 30: से 44: तक तथा ग्लूकोज की मात्रा 25: से 40: तक होती है। और इन्हीं दो मुख्य रसों के संतुलन के कारण ही शहद जमता है। ग्लूकोज पानी में बहुत कम घुलता है और फ्रूक्टोस बहुत जल्द घुल कर गाढ़ा द्रव बन जाता है। और जब ग्लूकोज जमने लगता है तो यह पानी से अलग हो जाता है। और छोटी-छोटी डलियों का रूप ले लेता है। और इस प्रकार क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया में ज्यादा मात्रा में ग्लूकोज की डलिया बन जाती हैं। और सारे शहद में फैल जाती हैं। और इस तरह शहद ठोस स्थिति में आ जाता है और इसका आकार घना व डलीनुमा हो जाता है। जमे हुए शहद का रंग तरह शहद की अपेक्षा फीका पड़ जाता है। प्राकृतिक रूप से ग्लूकोज के क्रिस्टल का रंग शुद्ध सफेद होता है जिसकी वजह से शहद भूरा रंग का हो जाता है। महेंद्रगढ़ कृषि विभाग से सेवानिवृत कृषि विशेषज्ञ डा. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि मधुमक्खियों के द्वारा किए जाने वाले पर-परागण से कृषि-बागवानी, वनों आदि में मधुमक्खियों के द्वारा किए जा रहे पर-परागण द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी एवं गुणवत्ता से जबरदस्त विकास की संभावनाएं हैं। मधुमक्खी पालक मधुमक्खी परिवार को भिन्न-भिन्न स्थानों पर रखकर फसलों पर-परागण में सहायता प्रदान करता है। जिससे फसलों में बढ़ोतरी के साथ-साथ फसलों की क्वालिटी भी उन्नत किस्म की हो जाती है। 
क्या कहते हैं सिंधु ग्रामोद्योग समिति के प्रधान
सिंधु ग्रामोद्योग समिति के प्रधान अनिल सिंधु ने बताया कि 90 प्रतिशत शहद एक्सपोर्ट किया जाता है। इसमें पारदर्शिता लाने के लिए नेशनल बी. बोर्ड मधुमक्खी पालकों का रजिस्ट्रेशन कर रहा है। जिससे हमारे देश का शहद उच्च श्रेणी में आ जाएगा व हमें शहद का अच्छा रेट मिलेगा। क्योंकि जिस-जिस देश में हमारा शहद जाता है वे देश एक्सपोर्टरों से इसका श्रोत जानना चाहते हैं। मधुमक्खी पालकों का सही रिकॉर्ड हमारी सरकार व एक्सपोर्टरों के पास नहीं है। नेशनल बी. बोर्ड रजिस्टे्रशन करके सभी मधुमक्खी पालकों को वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षित करके उन्हें शहद के अतिरिक्त मधुमक्खी पालन से मिलने वाले अन्य उत्पादों मोम, पोलन, रॉयल जैली, प्रोपांलिस, मधुमक्खियों का जहर आदि प्राप्त करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खियों से केवल शहद न लेकर अन्य उत्पादों को प्राप्त करने के लिए कार्य करना चाहिए। इसलिए मैं सभी प्रशिक्षणार्थियों व मधुमक्खी पालकों से निवेदन है कि सभी नैशनल बी बोर्ड से रजिस्टे्रशन अवश्य करवाएं। इच्छूक मधुमक्खी पालक अनिल सिंह सिंधु से संपर्क कर अपना रजिस्टे्रशन नैशनल बी बोर्ड में करवा सकते हैं। नैशनल बी. बोर्ड अपने रजिस्ट्रड मधुमक्खी पालकों को वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षित करेगा, जिससे मधुमक्खी पालकों की आय सात गुणा तक बढ़ जाएगी। प्रकृति हमारे लिए हर वर्ष करोड़ों रुपये की अपार सम्पदा (शहद के रूप में) लेकर आती है। अज्ञानतावश यह सम्पदा यों ही नष्ट हो जाती है, लेकिन शहद मानव के लिए प्रकृति की अनुपम भेंट है। इस अपार सम्पदा को मधुमक्खियों से एकत्रित करवाकर अपने देश की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सकता है। प्रशिक्षण शिविर में अनिल सिंह सिंधु के साथ नवीन कुमार बी-कीपर व अन्य 25 किसान एवं मधुमक्खी पालकों ने भी भाग लिया।

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