Sunday, 27 October 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं किसान : डा. सिहाग


विधिवत रूप से हुआ साप्ताहिक बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला का समापन

कहा, रंग लाने लगी डा. सुरेंद्र दलाल की मुहिम 


जींद। कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम शुरू की थी कीट कमांडों किसान उस मुहिम को सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी है और जींद जिले के साथ-साथ दूसरे जिलों के किसान भी इन किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहरमुक्त थाली का जो सपना देखा था बहुत जल्द वह सपना साकार होगा और जहरयुक्त भोजन से होने वाली शारीरिक बीमारियों से लोगों को छुटकारा मिलेगा, वहीं कीटनाशकों पर अनावश्यक रूप से बढ़ते खर्च से भी किसानों को निजात मिलेगी। डा. सिहाग वीरवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच टेकराम ने डा. सिहाग को पगड़ी पहनाकर तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किसानों को दिए जा रहे योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनके साथ बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के उप-प्रधान बिल्लू खांडा, जिला प्रधान महेंद्र घीमाना, ईश्वर भी मौजूद थे।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि 22 जून से इस पाठशाला का शुभारंभ हुआ था और हर सप्ताह के शनिवार को पाठशाला का आयोजन किया जाता था। 18 सप्ताह तक चलने वाली इस पाठशाला में दूसरे जिलों के किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस पाठशाला का भ्रमण कर किसानों की मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। डा. सैनी ने पाठशालाओं में किसानों द्वारा किए गए कार्यों तथा पौधों का कीट के साथ क्या रिश्ता है और कीट फसल में क्यों आते हैं आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। डा. सैनी ने कहा किकीटों को काबू करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीटों को पहचाने और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करने की और यह काम किसानों को खुद ही करना होगा। राजपुरा भैण के किसान रामस्वरूप ने पाठशाला में अपना अनुभव रखते हुए बताया कि उसने कपास का एक एकड़ पाठशाला को समॢपत किया हुआ है और कीट कमांडों किसानों की मानकर उसने अपने इस एक एकड़ में एक छटांक भी जहर का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उसके साथ लगते कपास की 2 एकड़ फसल में उसने कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन आज भी बिना जहर की कपास की फसल से दूसरी फसलों के बराबर का उत्पादन मिल रहा तथा इस एक एकड़ पर उसका दूसरी फसलों से खर्च भी काफी कम हुआ है। पाठशाला के समापन पर बाहर से आए सभी गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सभी किसानों को अपनी खेती का लेखा-जोखा रखने के लिए डायरी तथा पैन भी भेंट किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई किसानों की मुहिम पर मोहर

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने एक अंग्रेजी न्यूज पेपर का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कीट कमांडों की मुहिम पर अपनी मोहर लगाई है। ढांडा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जहर रहित खाना उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरफ प्रयास करने की जरुरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में पेस्टीसाइड एक्ट की पालना नहीं हो रही है और इस सब के लिए सरकार जिम्मेदार है। ढांडा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साबित हो गया है कि जींद के किसान जिस मुहिम को पिछले 6 वर्षों से अपने बलबूते पर चला रहे हैं, वह एक दिन बहुत बड़ी क्रांति की शुरूआत है और देश को इसकी बहुत जरुरत है।

भैंस बेच कर उतारा कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज

पाठशाला में अपने अनुभव किसानों के साथ सांझा करते हुए गांव निडाना के किसान सुरेंद्र ने भावूक होते हुए कहा कि एक वह समय था जब उसने अपनी भैंस बेचकर कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज उतारा था। सुरेंद्र ने बताया कि वह पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। वर्ष 2002 में एक एकड़ कपास की फसल में उसका खर्च 16 हजार था लेकिन इतने ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी उसकी पैदावार महज 10 से 12 मण की होती थी। फसल में अधिक खर्च होने तथा पैदावार कम होने के कारण उस पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रही था। इसी से परेशान होकर उसने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ दिया था। सुरेंद्र ने बताया कि वर्ष 2012 में वह कीट कमांडों किसानों के संपर्क में आया। अब वह पूरी तरह से जहरमुक्त खेती करता है और उसकी पैदावार भी लगातार बढ़ रही है।

याद आए डा. सुरेंद्र दलाल

पाठशाला के समापन अवसर पर किसान डा. सुरेंद्र दलाल को याद कर भावूक हो गए थे। किसानों ने बताया कि जिस कीट ज्ञान की बदौलत आज उन्होंने जहरमुक्त खेती को अपना कर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से मुक्ति पाई है, उस कीट ज्ञान की खोज डा. सुरेंद्र दलाल ने की थी। सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपनी नौकरी और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर किसानों को कीट ज्ञान की तालीम देकर उन्हें जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया और आज उनकी यह मेहनत रंग ला रही है।
 पाठशाला के समापन अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग।

 डा. कमल सैनी को पगड़ी पहनाकर तथा किसान को डायरी पैन देकर सम्मानित करते बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। 

Monday, 7 October 2013

शौक पूरा के लिए सरकारी नौकरी को मार दी ठोकर

आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है सिवाहा का रोहताश


जींद। महंगाई व बेरोजगारी के इस दौर में लोग जहां नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और अपने शौक के विपरित भी जाकर काम करने को मजबूर हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ही ठोकर मार दी। जींद जिले के सिवाहा गांव निवासी रोहताश ने मूर्ति कला के अपने शौक को पूरा करने के लिए आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ दी। 
मूर्ति कला के क्षेत्र में रोहताश का आज कोई शानी नहीं है। अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ रोहताश अपनी कला के दम पर ही अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और रोहताश द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज जींद जिले ही नहीं बल्कि जींद जिले से बाहर के मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।   
गांव सिवाहा निवासी रोहताश को पढ़ाई के  दौरान मूर्ति निर्माण का शौक लगा था। रोहताश के अंदर छिपे एक मूर्ति कलाकार को निखाकर बाहर निकालने में उसकी मदद की उसके ड्राइंग अध्यापक महेंद्र भनवाला ने। रोहताश ने छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान अपने गुरु महेंद्र भनवाला से ड्राइंग की बारीकियों को सीखा और अपने अंदर के कलाकार को पहचान कर कागज के टुकड़ों पर मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। कागज के टुकड़ों के बाद रोहताश ने कच्चे रंगों से मूर्तियों का निर्माण शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली और मिट्टी का स्थान सीमैंट ने लेना शुरू किया तो रोहताश ने भी अपने कार्य में परिवर्तन करते हुए सीमैंट से मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया। 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में रोहताश ने आई.टी.बी.पी. में सिपाही के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन रोहताश के अंदर बैठे मूर्ति कलाकार को यह रास नहीं आया। आई.टी.बी.पी. में एक साल तक देश सेवा करने के बाद 1990 में रोहताश ने नौकरी छोड़ दी। सरकारी नौकरी छोडऩे के बाद रोहताश ने अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहा है लेकिन इस दौरान रोहताश को कभी भी अपने 
मूर्ति को अंतिम रुप देता मूर्ति कलाकार रोहताश सिंह।

मूर्ति कलाकार रोहताश द्वारा निर्मित शिव की मूॢतयां।
नौकरी छोडऩे के फैसले पर रतीभर भी अफशोस नहीं हुआ। रोहताश अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ आज अपनी इसी कला के दम पर अपने परिवार का पालन-पोषण भी अच्छे तरीके से कर रहा है। इतना ही नहीं रोहताश हर किस्म की मूर्तियां बनाने का एक्सपर्ट है। 

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। 

मुनाफे के नहीं लागत के आधार पर तय होती है कीमत 

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि वह मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्तियों का निर्माण करता है। रोहताश का कहना है कि शौक की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए वह अपनी मूर्तियों की कीमत मुनाफा लेने के लिए नहीं सिर्फ लागत पूरी करने के लिए लागत के आधार पर ही मूर्ति की कीमत तय करता है। 

अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह

कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार  

कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग


जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे। 
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल 
 कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान।
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। 

राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज


पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान

डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।

पंजाब बना कैंसर की राजधानी

किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।  

कपास में यह-यह कीट थे मौजूद 

पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी। 

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...