Wednesday, 16 April 2014

बाजार में गैर प्रमाणिक बीटी की किस्मों की भरमार, किसान परेशान

कृषि विभाग नहीं कर पा रहा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश

कृषि विश्वविद्यालय की नहीं मंजूरी, पर्यावरण मंत्रालय का सहारा


जींद। गेहूं की फसल की कटाई के बाद कपास की बिजाई का सीजन शुरू होने जा रहा है। किसान गेहूं की कटाई की तैयारियों के साथ-साथ कपास की बिजाई की तैयारियों में भी जुटे हुए हैं लेकिन बीटी कॉटन के बीज की किस्म के चयन को लेकर किसान पूरी तरह से असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि बाजार में बीटी के भिन्न-भिन्न किस्मों के बीजों की भरमार है। इस समय बाजार में 600 से भी ज्यादा बीटी की किस्में बाजार में आ चुकी हैं, लेकिन हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार इनमें से किसी की सिफरिश नहीं कर रहा है। बीटी के बीज के चयन को लेकर किसान विकट परिस्थितियों में फंसा हुआ है कि आखिरकार वह अपने खेत में बीटी की किस किस्म की बिजाई करें। इसमें सबसे खास बात यह है कि आज बाजार में बीटी की जितनी भी किस्में हैं, उनमें से कोई भी किस्म कृषि विश्वविद्याल द्वारा प्रमाणित नहीं है। इस कारण कृषि विभाग के अधिकारी भी किसानों को बीटी की किसी भी किस्म की बिजाई की सिफारिश नहीं कर पा रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश नहीं किए जाने तथा बीटी के बीज को लेकर किसानों के पास विभिन्न विकल्प होने के कारण आज किसान कपास के उत्पादन तथा इसमें आने वाली बीमारियों की तरफ से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है।  बीटी बीज निर्माणता कंपनियों ने पर्यावण मंत्रालय की मंजूरी तो ले ली है, लेकिन इससे किसानों का भ्रम जस का तस बना हुआ है। किसान किस किस्म और कंपनी के बिज का चुनाव करें इस पर स्थिति साफ नहीं है।

बीटी के कारण बाजार में आई कीटनाशकों की बाढ़

कपास के क्षेत्र में बीटी की भिन्न-भिन्न किस्मों के साथ-साथ कीटनाशकों की बाढ़ भी आ गई है। बीटी की बिजाई से कपास में सुंडियों से बचाव के लिए होने वाले कीटनाशकों का प्रयोग कम हुआ हो लेकिन दूसरी तरफ पिछले तीन-चार साल से अन्य कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

हरियाणा में 200 करोड़ का कारोबार

इसमें कोई शक नहीं है कि बीटी से कपास के युग में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है और इससे उत्पादन में काफी बढ़ौतरी हुई है लेकिन बीटी अपने साथ बीज और कीटनाशकों का एक बहुत बड़ा बाजार भी लेकर आई है। कृषि विभाग के अनुसार बीज और कीटनाशकों के क्षेत्र में अकेले हरियाणा प्रदेश में 200 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार होता है। क्योंकि हरियाणा में लगभग 5.5 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में कपास की खेती होती है, जिसमें लगभग 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी की बिजाई होती है और बीटी की सभी किस्में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन हैं। आज दो दर्जन से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां बीटी का बीज तैयार कर रही हैं और बीटी की 600 से ज्यादा किस्में बाजार में उपलब्ध हैं।

एक किस्म तैयार करने में लगता है 9-10 वर्ष का समय

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसी भी बीज की सिफारिश करने से पहले उस बीज पर लगभग 9-10 साल तक रिसर्च होता है। इस 9-10 साल के लंबे सत्र के दौरान कृषि वैज्ञानिक नई किस्म के उत्पादन तथा फसल में आने वाली बीमारियों व नुकसान पर गहन रिसर्च करते हैं। इसके बाद ही वह कृषि विभाग को बीज की सिफारिश करते हैं। 9-10 साल के लंबे रिसर्च के बाद एक किस्म ईजाद हो पाती हैं। जबकि बाजार में आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां आए दिन लुभान्वित नामों से नई-नई किस्में उतार रही हैं।
बीटी के बीज की खरीदारी करने के दौरान बीज विक्रेता से विचार-विमर्श करते किसान। 

बीटी के बीज पर विश्वास करना संभव नहीं 

जितनी भी बीटी की किस्में आई हुई हैं किसी भी किस्म की कृषि विश्वविद्यालय सिफारिश नहीं करता है, क्योंकि बीटी का बीज कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित नहीं है। बीटी के बीज तैयार करने वाली कंपनियों द्वारा कृषि विश्वविद्यालय से बीज की बिक्री की अनुमति लेने की बजाए उत्तर भारत पर्यावरण मंत्रालयों से सीधी अनुमति ली जाती है। इसलिए बीटी के बीजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता और इसके नुकसान या फायदे के बारे में भी कुछ कह पाना संभव नहीं है। बीटी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को अपने सभी खेतों में बीटी की अलग-अलग किस्मों की बिजाई करनी चाहिए या बीटी के साथ-साथ बीच-बीच से देशी कपास की भी बिजाई किसान कर सकते हैं।
डॉ. यशपाल मलिक, कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र, पांडू पिंडारा, जींद

स्टाफ ना अधिकारी कैसे बुझेगी आग

 दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का भारी टोटा

 जींद में दमकल विभाग के पास महज एक शिफ्ट का स्टाफ
 कर्मचारियों के अभाव में खड़ी हैं दमकल विभाग की गाडिय़ां


जींद। गेहूं की कटाई का सीजन शुरू होने के कारण आगजनी की घटनाएं बढऩे का अंदेशा भी बना रहता है। ऐसे में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी दमकल विभाग के कंधों पर होती है लेकिन स्टाफ की कमी के कारण जींद के दमकल विभाग का दम निकल चुका है। दमकल विभाग के पास गाडिय़ां तो हैं लेकिन स्टाफ नहीं है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि बिना कर्मचारियों के आखिरी दमकल विभाग आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटेगा। यही नहीं जींद में तो दमकल विभाग के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की भी कोई व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि आगजनी की घटना घटने के बाद घटना स्थल पर पहुंचने में दमकल विभाग की गाडिय़ों को अकसर देरी हो जाती है। क्योंकि गाडिय़ों में पानी भरने की प्रक्रिया में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय खराब हो जाता है। इतना ही नहीं जींद जिले में पूरे दमकल विभाग के पास एक भी फायर स्टेशन अधिकारी नहीं है। सभी स्टेशनों पर फायर स्टेशन अधिकारी का पद खाली है।

गाडिय़ां चार स्टाफ एक का भी पूरा नहीं 

जींद दमकल विभाग के पास आगजनी से निपटने के लिए चार गाडिय़ां हैं लेकिन स्टाफ एक गाड़ी का भी पूरा नहीं है। इस समय यहां पर एक एएफएसओ तथा 15  कर्मचारियों का स्टाफ है। इसमें 5 चालक तथा 10 फायरमैन हैं। एक गाड़ी के साथ एक चालक, एक लीडिंग फायरमैन तथा चार फायरमैन की ड्यूटी होती है। इस तरह यहां पर 24 कर्मचारियों के स्टाफ की जरूरत है। स्टाफ की कमी के चलते यहां पर ड्यूटीरत कर्मचारियों को 12 -12 घंटे ड्यूटी देनी पड़ती है। इस बीच यदि किसी कर्मचारी को कोई एमरजैंसी हो जाती है तो यहां तैनात कर्मचारियों को 24 घंटे भी ड्यूटी करनी पड़ती है। यहां पर कर्मचारियों की कमी के बावजूद भी नगर परिषद द्वारा दमकल विभाग के 5 कर्मचारियों को यहां से हटाकर नगर परिषद का काम लिया जा रहा है। इस प्रकार बिना स्टाफ के आखिरी आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटा जा सकता है।

स्माल फायर वाटर इंजन की भी नहीं व्यवस्था

जींद दमकल विभाग के पास इस वक्त चार बड़ी गाडिय़ां हैं लेकिन स्माल फायर वाटर इंजन नहीं है। शहर के बाजार की गलियां काफी तंग हैं और बाजार में अकसर भीड़-भड़ाका रहता है। ऐसे में आगजनी की घटना घटने के बाद बड़ी गाडिय़ां बाजार में नहीं जा पाती। बाजार में आगजनी की घटना से निटपने के लिए दमकल विभाग को स्माल फायर वाटर इंजन की जरूरत है लेकिन पिछले काफी लंबे समय से दमकल विभाग के पास यह व्यवस्था नहीं है।

बिना पानी के कैसे बुझेगी आग

फायर ब्रिगेड के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण आगजनी की घटना के वक्त गाडिय़ों में पम्प इत्यादि से पानी भरने में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय बर्बाद हो जाता है। दमकल विभाग के पास पानी के स्टॉक के लिए कोई टैंक नहीं होने के कारण दमकल विभाग की गाडिय़ां पानी के लिए ज्यादातर लाइट पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में अगर आगजनी की घटना के समय शहर में लाइट व्यवस्था जवाब दे जाती है तो दमकल विभाग के कर्मचारियों के पास लाइट का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

नगर परिषद के दमकल विभाग की सबसे बुरी हालत

जींद जिले में दमकल विभाग दो भागों में बंटा हुआ है। जींद तथा नरवाना में मार्केट कमेटी तथा नगर परिषद दोनों के दमकल विभाग के अलग-अलग कार्यालय हैं। इसके अलावा जुलाना, उचाना तथा सफीदों में दमकल विभाग मार्केट कमेटी के अधीन है। जींद तथा नरवाना में नगर परिषद के अधीन आने वाले दमकल विभाग का सबसे बुरा हाल है। जींद के दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का टोटा है तो नरवाना के दमकल विभाग के पास गाड़ी का अभाव है। नरवाना के दमकल विभाग के पास दो गाडिय़ां हैं। इनमें से एक गाड़ी चालू हालत में है तो दूसरी गाड़ी कल-पुर्जों के अभाव में खस्ता हालत में खड़ी है।

कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है सफीदों का भार

सफीदों में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है। सफीदों में दमकल विभाग के पास कुल 15 कर्मचारियों का स्टाफ है। इनमें 9 फायरमैन, 3 लीडिंग फायरमैन तथा 3 चालक हैं। यह सभी कर्मचारी कच्चे कर्मचारी हैं। सफीदों में दमकल विभाग के पास एक भी पक्का कर्मचारी नहीं है। यहां तो स्थित यह है कि पिछले कई वर्षों से फायर स्टेशन अधिकारी (एफएसओ) ही नहीं है।

उचाना में नहीं एक भी गाड़ी

उचाना में दमकल विभाग के पास एक भी गाड़ी नहीं है। ऐसे में यदि उचाना या अलेवा में आगजनी की कोई घटना घटती है तो उससे निपटने के लिए जींद या नरवाना से गाड़ी बुलानी पड़ेगी। वहीं उचाना में स्टाफ की भी कमी है। इस वक्त उचाना में सिर्फ चार कर्मचारियों का ही स्टाफ है।
बॉक्स
स्थान का नाम गाडिय़ों की संख्या गाडिय़ों की जरुरत
जींद     4  2
नरवाना     2   0
उचाना कोई गाड़ी  नहीं 2
जुलाना     1  1
सफीदों     1  1
 दमकल विभाग के कार्यालय में खड़ी गाडिय़ां।


कर्मचारियों की कमी को देखते हुए लगभग 2 -3  माह पहले डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रोजल तैयार कर जिला प्रशासन को भेजा गया था लेकिन अभी तक डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जैसे ही प्रशासन की तरफ से डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश मिलेंगे उसके तुरंत बाद नए कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।
जगदीशचंद
एएफएसओ, जींद  

जहरीले पानी से मुक्ति दिलवाने की तैयारी

नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने तैयार किया प्रारुप

पानी में बढ़ते फ्लोराइड व टीडीएस के कारण लिया फैसला 


जींद। अंधाधुंध भूजल दोहन के कारण जहरीले हो रहे पेयजल से शहर के लोगों को मुक्ति दिलवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के लोगों को नहरी पानी सप्लाई की योजना तैयार की जा रही है। शहर के लोगों को नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के बीचोंबीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसका प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू कर दिया जाएगा। शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू होने पर शहर के लोगों को पानी में बढ़ रहे फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिल जाएगी। 
इस समय शहर की आधी से अधिक आबादी को पेयजल मुहैया करवाने का जिम्मा जन स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर है। खुलेआम हो रही जल की बर्बादी तथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती पानी की मांग के कारण हो रहे भूजल के दोहन के कारण भूमिगत पानी लगातार जहरीला हो रहा है। पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढऩे के कारण भूमिगत जल पीने लायक नहीं बचा है। इसी कारण लोगों में हड्डियों तथा जोड़ों की बीमारियां बढऩे के मामले भी लगातार सामने आने लगे हैं। पानी में बढ़ती फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा के कारण भविष्य में पेयजल से होने वाले खतरे को भांपते हुए अब जन स्वास्थ्य विभाग शहर के लोगों को इस जहरीले पानी से निजात दिलाने की कवायद में जुट गया है।  जन स्वास्थ्य विभाग अब शहर में नहरी पानी की सप्लाई की योजना तैयार कर रहा है। इसके लिए विभाग द्वारा शहर के बीचों-बीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। बूस्टिंग स्टेशन से अंडर ग्राऊंड पाइप लाइन के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही योजना को अमल में लाने के लिए विभाग ग्रांट की मंजूरी के लिए इसे उच्चाधिकारियों के पास भेजेगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू किया जाएगा। 

47 ट्यूब्वैल और 13 हजार कनैक्शन

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में पेयजल की सप्लाई के लिए 47 ट्यूब्वैल लगाए गए हैं। इस समय जन स्वास्थ्य विभाग के पास शहर में कुल 13 हजार कनैैक्शन हैं। इन 47 ट्यूब्वैल के सहारे शहर के दो लाख से अधिक लोगों को पानी की सप्लाई किया जा रहा है। खुलेआम पानी की बर्बादी तथा पानी की अधिक मांग के कारण भूमिगत पानी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। इससे जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढ़ रही है और पानी पीने लायक नहीं बचा है।  

पेयजल में बढ़ते फ्लोराइड और टीडीएस से मिलेगी निजात

जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे जमीनी पानी पीने योग्य नहीं बचा है। इसको देखते हुए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। योजना के सिरे चढऩे के बाद शहर के लोगों को फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिलेगी। 

यह है पानी में फ्लोराइड व टीडीएस की मात्रा 

पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। जबकि शहर में इसकी मात्रा चार से पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है। शहर में पानी का टीडीएस भी ज्यादा है। 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे अधिक टीडीएस के पानी से बीमारियां होने का खतरा बन जाता है। जबकि शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से 800 से तक है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय का फोटो।

बढ़ जाते हैं पेट व हड्डियों के रोग

सामान्य रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश भोला का कहना है कि पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस (टोटल डिजोलड सालट) की मात्रा बढऩे से पेट के रोग बढ़ जाते हैं। इससे पत्थरी तथा पेट में इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यदि पानी में फ्लोराइड ज्यादा मात्रा में होता है तो इससे हड्डियों व दांतों के रोग भी हो जाते हैं। हड्डियां कमजोर होने के कारण जोड़ों के दर्द हो जाते हैं और दांत कमजोर तथा पीले पडऩे लगते हैं। पीने लायक पानी में टीडीएस की मात्रा 80 से 100 के बीच होती है। 

गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक 

शहर के गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक हैं। इस क्षेत्र में पानी में टीडीएस की मात्रा दो से ढाई हजार टीडीएस तक पहुंच चुकी है। जबकि 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे यहां पर बीमारियों के ज्यादा फैलने का खतरा बन रहा है। 

पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लोगों को इससे निजात दिलवाने के लिए विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों के पास भेजा जाएगा। प्रारूप के अनुसार हांसी ब्रांच नहर के पास ही 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार करने की योजना है। 
दलबीर सिंह दलाल
एक्सईएन, जन स्वास्थ्य विभाग, जींद

हांसी ब्रांच नहर का फोटो, जिसके पास बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण किया जाना है।

Monday, 7 April 2014

बालिकाएं आज भी बन रही हैं वधू

बाल विवाह का चलन जारी

लड़कियों के प्रति नहीं बदल रही लोगों की सोच 


जींद। 21वीं सदी में भी बाल विवाह जैसी कूप्रथा रह-रहकर सिर उठा रही है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए बाल विवाह अधिनियम के बावजूद भी बाल विवाह का चलन रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से प्राप्त हुए एक वर्ष के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो बाल विवाह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास अब तक 9 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मामले पुलिस के माध्यम से तो एक मामला इस कूप्रथा का शिकार होने वाली नाबालिग की सूझबुझ से पहुंचा है। जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से मिले आंकड़ों से यह साफ हो रहा है कि आज भी जागरूकता के अभाव या मजबूरी में बालिकाएं वधू बन रही हैं।
देश में सदियों से चली आ रही बाल विवाह जैसी परम्परा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सख्त कदम उठाते हुए बाल विवाह अधिनियम बनाया गया है। इस कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं लेकिन सरकार तथा विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाह का चलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे जागरूकता का अभाव कहा जाए या लोगों की मजबूरी जिस कारण 21वीं सदी में भी बालिकाएं वधू बन रही हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय में अप्रैल 2013 से दिसम्बर 2013 तक बाल विवाह के 4 मामले सामने आए हैं। वहीं जनवरी 2014 में 2 और फरवरी 2014 में कुल 3 मामले महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं। 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे मामलों में 8 मामले तो पुलिस के माध्यम से पहुंचे हैं और एक मामला खुद इस कूप्रथा का शिकार हो रही बालिका द्वारा दिया गया है।

लड़की को आज भी समझा जाता है जिम्मेदारी

समाज में लड़कियों को लड़कों के बराबर का दर्जा दिलवाने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के बाद भी लोगों की सोच में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो रहा है। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास पहुंच रहे बाल विवाह के ज्यादातर मामलों में यह सामने आया है कि परिवार के लोगों ने लड़की को जिम्मेदारी समझ कर बाल अवस्था में ही लड़की को विवाह के बंधन में बांधा जाता है।

दो साल की सजा का है प्रावधान

बाल विवाह अधिनियम के तहत बाल विवाह करवाने के आरोप में दो साल की सजा का प्रावधान है।
लड़कियों के प्रति लोगों की सोच नहीं बदली है। आज भी लोग लड़की को एक जिम्मेदारी समझते हैं और इस जिम्मेदारी को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए ही वह बाल विवाह जैसी कूप्रथा के चलन को जारी रखे हुए हैं। लोगों को सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। बिना सोच बदले इस कूप्रथा को रोक पाना संभव नहीं है। लोगों को जागरूक करने के लिए उनके द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी, जींद
फोटो कैप्शन
जिला महिला संरक्षण अधिकारी व पुलिस टीम। 

स्टाफ ना अधिकारी कैसे बुझेगी आग

दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का भारी टोटा

 जींद में दमकल विभाग के पास महज एक शिफ्ट का स्टाफ
 कर्मचारियों के अभाव में खड़ी हैं दमकल विभाग की गाडिय़ां


जींद। गेहूं की कटाई का सीजन शुरू होने के कारण आगजनी की घटनाएं बढऩे का अंदेशा भी बना रहता है। ऐसे में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी दमकल विभाग के कंधों पर होती है लेकिन स्टाफ की कमी के कारण जींद के दमकल विभाग का दम निकल चुका है। दमकल विभाग के पास गाडिय़ां तो हैं लेकिन स्टाफ नहीं है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि बिना कर्मचारियों के आखिरी दमकल विभाग आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटेगा। यही नहीं जींद में तो दमकल विभाग के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की भी कोई व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि आगजनी की घटना घटने के बाद घटना स्थल पर पहुंचने में दमकल विभाग की गाडिय़ों को अकसर देरी हो जाती है। क्योंकि गाडिय़ों में पानी भरने की प्रक्रिया में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय खराब हो जाता है। इतना ही नहीं जींद जिले में पूरे दमकल विभाग के पास एक भी फायर स्टेशन अधिकारी नहीं है। सभी स्टेशनों पर फायर स्टेशन अधिकारी का पद खाली है।

गाडिय़ां चार स्टाफ एक का भी पूरा नहीं 

जींद दमकल विभाग के पास आगजनी से निपटने के लिए चार गाडिय़ां हैं लेकिन स्टाफ एक गाड़ी का भी पूरा नहीं है। इस समय यहां पर एक एएफएसओ तथा 15  कर्मचारियों का स्टाफ है। इसमें 5 चालक तथा 10 फायरमैन हैं। एक गाड़ी के साथ एक चालक, एक लीडिंग फायरमैन तथा चार फायरमैन की ड्यूटी होती है। इस तरह यहां पर 24 कर्मचारियों के स्टाफ की जरूरत है। स्टाफ की कमी के चलते यहां पर ड्यूटीरत कर्मचारियों को 12 -12 घंटे ड्यूटी देनी पड़ती है। इस बीच यदि किसी कर्मचारी को कोई एमरजैंसी हो जाती है तो यहां तैनात कर्मचारियों को 24 घंटे भी ड्यूटी करनी पड़ती है। यहां पर कर्मचारियों की कमी के बावजूद भी नगर परिषद द्वारा दमकल विभाग के 5 कर्मचारियों को यहां से हटाकर नगर परिषद का काम लिया जा रहा है। इस प्रकार बिना स्टाफ के आखिरी आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटा जा सकता है।

स्माल फायर वाटर इंजन की भी नहीं व्यवस्था

जींद दमकल विभाग के पास इस वक्त चार बड़ी गाडिय़ां हैं लेकिन स्माल फायर वाटर इंजन नहीं है। शहर के बाजार की गलियां काफी तंग हैं और बाजार में अकसर भीड़-भड़ाका रहता है। ऐसे में आगजनी की घटना घटने के बाद बड़ी गाडिय़ां बाजार में नहीं जा पाती। बाजार में आगजनी की घटना से निटपने के लिए दमकल विभाग को स्माल फायर वाटर इंजन की जरूरत है लेकिन पिछले काफी लंबे समय से दमकल विभाग के पास यह व्यवस्था नहीं है।

बिना पानी के कैसे बुझेगी आग

फायर ब्रिगेड के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण आगजनी की घटना के वक्त गाडिय़ों में पम्प इत्यादि से पानी भरने में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय बर्बाद हो जाता है। दमकल विभाग के पास पानी के स्टॉक के लिए कोई टैंक नहीं होने के कारण दमकल विभाग की गाडिय़ां पानी के लिए ज्यादातर लाइट पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में अगर आगजनी की घटना के समय शहर में लाइट व्यवस्था जवाब दे जाती है तो दमकल विभाग के कर्मचारियों के पास लाइट का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

नगर परिषद के दमकल विभाग की सबसे बुरी हालत

जींद जिले में दमकल विभाग दो भागों में बंटा हुआ है। जींद तथा नरवाना में मार्केट कमेटी तथा नगर परिषद दोनों के दमकल विभाग के अलग-अलग कार्यालय हैं। इसके अलावा जुलाना, उचाना तथा सफीदों में दमकल विभाग मार्केट कमेटी के अधीन है। जींद तथा नरवाना में नगर परिषद के अधीन आने वाले दमकल विभाग का सबसे बुरा हाल है। जींद के दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का टोटा है तो नरवाना के दमकल विभाग के पास गाड़ी का अभाव है। नरवाना के दमकल विभाग के पास दो गाडिय़ां हैं। इनमें से एक गाड़ी चालू हालत में है तो दूसरी गाड़ी कल-पुर्जों के अभाव में खस्ता हालत में खड़ी है।

कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है सफीदों का भार

सफीदों में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है। सफीदों में दमकल विभाग के पास कुल 15 कर्मचारियों का स्टाफ है। इनमें 9 फायरमैन, 3 लीडिंग फायरमैन तथा 3 चालक हैं। यह सभी कर्मचारी कच्चे कर्मचारी हैं। सफीदों में दमकल विभाग के पास एक भी पक्का कर्मचारी नहीं है। यहां तो स्थित यह है कि पिछले कई वर्षों से फायर स्टेशन अधिकारी (एफएसओ) ही नहीं है।

उचाना में नहीं एक भी गाड़ी

उचाना में दमकल विभाग के पास एक भी गाड़ी नहीं है। ऐसे में यदि उचाना या अलेवा में आगजनी की कोई घटना घटती है तो उससे निपटने के लिए जींद या नरवाना से गाड़ी बुलानी पड़ेगी। वहीं उचाना में स्टाफ की भी कमी है। इस वक्त उचाना में सिर्फ चार कर्मचारियों का ही स्टाफ है।
बॉक्स
स्थान का नाम गाडिय़ों की संख्या गाडिय़ों की जरुरत
जींद     4  2
नरवाना     2   0
उचाना कोई गाड़ी  नहीं 2
जुलाना     1  1
सफीदों     1  1
 दमकल विभाग के कार्यालय में खड़ी गाडिय़ां।


कर्मचारियों की कमी को देखते हुए लगभग 2 -3  माह पहले डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रोजल तैयार कर जिला प्रशासन को भेजा गया था लेकिन अभी तक डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जैसे ही प्रशासन की तरफ से डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश मिलेंगे उसके तुरंत बाद नए कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।
जगदीशचंद
एएफएसओ, जींद  

जहरीले पानी से मुक्ति दिलवाने की तैयारी

नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने तैयार किया प्रारुप

पानी में बढ़ते फ्लोराइड व टीडीएस के कारण लिया फैसला 


जींद। अंधाधुंध भूजल दोहन के कारण जहरीले हो रहे पेयजल से शहर के लोगों को मुक्ति दिलवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के लोगों को नहरी पानी सप्लाई की योजना तैयार की जा रही है। शहर के लोगों को नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के बीचोंबीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसका प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू कर दिया जाएगा। शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू होने पर शहर के लोगों को पानी में बढ़ रहे फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिल जाएगी। 
इस समय शहर की आधी से अधिक आबादी को पेयजल मुहैया करवाने का जिम्मा जन स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर है। खुलेआम हो रही जल की बर्बादी तथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती पानी की मांग के कारण हो रहे भूजल के दोहन के कारण भूमिगत पानी लगातार जहरीला हो रहा है। पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढऩे के कारण भूमिगत जल पीने लायक नहीं बचा है। इसी कारण लोगों में हड्डियों तथा जोड़ों की बीमारियां बढऩे के मामले भी लगातार सामने आने लगे हैं। पानी में बढ़ती फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा के कारण भविष्य में पेयजल से होने वाले खतरे को भांपते हुए अब जन स्वास्थ्य विभाग शहर के लोगों को इस जहरीले पानी से निजात दिलाने की कवायद में जुट गया है।  जन स्वास्थ्य विभाग अब शहर में नहरी पानी की सप्लाई की योजना तैयार कर रहा है। इसके लिए विभाग द्वारा शहर के बीचों-बीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। बूस्टिंग स्टेशन से अंडर ग्राऊंड पाइप लाइन के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही योजना को अमल में लाने के लिए विभाग ग्रांट की मंजूरी के लिए इसे उच्चाधिकारियों के पास भेजेगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू किया जाएगा। 

47 ट्यूब्वैल और 13 हजार कनैक्शन

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में पेयजल की सप्लाई के लिए 47 ट्यूब्वैल लगाए गए हैं। इस समय जन स्वास्थ्य विभाग के पास शहर में कुल 13 हजार कनैैक्शन हैं। इन 47 ट्यूब्वैल के सहारे शहर के दो लाख से अधिक लोगों को पानी की सप्लाई किया जा रहा है। खुलेआम पानी की बर्बादी तथा पानी की अधिक मांग के कारण भूमिगत पानी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। इससे जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढ़ रही है और पानी पीने लायक नहीं बचा है।  

पेयजल में बढ़ते फ्लोराइड और टीडीएस से मिलेगी निजात

जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे जमीनी पानी पीने योग्य नहीं बचा है। इसको देखते हुए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। योजना के सिरे चढऩे के बाद शहर के लोगों को फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिलेगी। 

यह है पानी में फ्लोराइड व टीडीएस की मात्रा 

पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। जबकि शहर में इसकी मात्रा चार से पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है। शहर में पानी का टीडीएस भी ज्यादा है। 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे अधिक टीडीएस के पानी से बीमारियां होने का खतरा बन जाता है। जबकि शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से 800 से तक है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय का फोटो।

बढ़ जाते हैं पेट व हड्डियों के रोग

सामान्य रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश भोला का कहना है कि पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस (टोटल डिजोलड सालट) की मात्रा बढऩे से पेट के रोग बढ़ जाते हैं। इससे पत्थरी तथा पेट में इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यदि पानी में फ्लोराइड ज्यादा मात्रा में होता है तो इससे हड्डियों व दांतों के रोग भी हो जाते हैं। हड्डियां कमजोर होने के कारण जोड़ों के दर्द हो जाते हैं और दांत कमजोर तथा पीले पडऩे लगते हैं। पीने लायक पानी में टीडीएस की मात्रा 80 से 100 के बीच होती है। 

गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक 

शहर के गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक हैं। इस क्षेत्र में पानी में टीडीएस की मात्रा दो से ढाई हजार टीडीएस तक पहुंच चुकी है। जबकि 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे यहां पर बीमारियों के ज्यादा फैलने का खतरा बन रहा है। 

पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लोगों को इससे निजात दिलवाने के लिए विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों के पास भेजा जाएगा। प्रारूप के अनुसार हांसी ब्रांच नहर के पास ही 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार करने की योजना है। 
दलबीर सिंह दलाल
एक्सईएन, जन स्वास्थ्य विभाग, जींद

हांसी ब्रांच नहर का फोटो, जिसके पास बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण किया जाना है।

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