Tuesday, 19 February 2013
पानी सप्लाई लाइन में भ्रूण मिलने से मचा हड़कंप
जाजवान गांव के पास जल घर की पानी सप्लाई लाइन में भ्रूण मिलने से हड़कंप मच गया। घटना की सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलने पर सदर थाना पुलिस मौके पर पहुच गई और भ्रूण को कब्जे में लेकर सिविल अस्पताल ले आई। आशका जताई जा रही है कि भ्रूण पीछे माइनर से बहकर जलघर की पानी सप्लाई लाइन में आया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। सींसर और जाजवान गांव के मध्य से गुजर रही माइनर से जल घर जाजवान की तरफ जा रही पानी सप्लाई लाइन में मंगलवार दोपहर को भ्रूण पड़ा दिखाई दिया। भ्रूण की दशा से साफ जाहिर हो रहा था कि समय से पूर्व प्रसव कराया गया है। आशका यह भी जताई जा रही है कि किसी महिला ने कुकृत्य को छुपाने के लिए भ्रूण को माइनर में फेंका गया है और भ्रूण बहकर जलघर की पानी सप्लाई लाइन में आ गया।
Friday, 15 February 2013
स्कूलों में मनाया जाएगा हैंड वॉश डे
जींद : स्वच्छता के प्रति बच्चों को जागृत करने के लिए सरकारी स्कूलों में 16 फरवरी को हैंडवॉश डे मनाया जाएगा। इसके लिए सभी सरकारी स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके लिए राज्य परियोजना निदेशक ने सभी जिला परियोजना संयोजकों, जिला शिक्षा अधिकारियों व जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। जारी निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि बच्चों को स्वच्छता के प्रति जागरूकता करने के लिए 16 फरवरी को सभी सरकारी स्कूलों में हैंड वॉश डे मनाया जाएगा। बाकायदा बच्चों के हाथ धुलाए जाएंगे और उन्हें शिक्षकों द्वारा हाथ धोने के गुणों के बारे में बताया जाएगा ताकि हाथ न धोने से होने वाली बीमारियों से बच्चे बच सके। निर्देशों में कहा गया है कि बच्चों को जागरूक करने के लिए बाकायदा सभा का आयोजन स्कूलों में किया जाएगा। कार्यक्रम आयोजित करने के बाद उसकी पूर्ण रिपोर्ट बनाकर स्कूल मुखियाओं को खंड शिक्षा अधिकारियों को भेजनी होगी। खंड शिक्षा अधिकारी यह रिपोर्ट मुख्यालय को भेजेंगे। सभी स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित करने अनिवार्य होंगे।
बच्चे होते हैं जागरूक
हैंड वाश डे पिछले डेढ़ वर्ष से सरकारी स्कूलों में मनाया जा रहा है। शिक्षकों का मानना है कि इससे बच्चे जागरूक होते हैं। प्राचार्य रमेश चंद्र मलिक, सतबीर बूरा का कहना है कि हैंड वाश डे मनाने से बच्चों को स्वच्छता के प्रति जानकारी मिलती है और बच्चे जागरूक होते हैं। कुछ खाने से पहले और बाद में बच्चों को हाथ अवश्य धोने चाहिए। इससे बच्चे कई बीमारियों से बच सकते हैं।
आगामी 16 फरवरी को सरकारी स्कूलों में हैंड वाश डे मनाने के निर्देश मिल चुके हैं। इस बारे में सभी स्कूल मुखियाओं को सूचना भेजी जा चुकी है। कार्यक्रम आयोजित करने जरूरी हैं और इसकी रिपोर्ट बीईओ को भेजनी होगी।
भीमसैन भारद्वाज, जिला परियोजना संयोजक, एसएसए
Sunday, 3 February 2013
जहरमुक्त खेती को बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन तैयार कर रहा एक्शन प्लान
प्रदेश के किसानों के लिए रोल माडल बनेंगे जींद जिले के किसान
निडाना तथा ललितखेड़ा के किसान पढ़ाएंगे कीटों की पढ़ाई
जींद। कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने में जींद जिला प्रदेश के किसानों के लिए रोल मॉडल के रूप में उभरेगा। किसानों तथा कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से चल रही जंग को समाप्त करने में निडाना और ललितखेड़ा गांव के किसान अहम भूमिक निभाएंगे। निडाना तथा ललित के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने अब इन किसानों का हाथ थाम लिया है। लोगों की थाली को जहरमुक्त करने तथा बेजुबान कीटों को बचाने के लिए अब जिला प्रशासन के सहयोग से निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के मास्टर ट्रेनर किसान पूरे जिले में कीटनाशक रहित खेती की अलख जाएंगे। जहरमुक्त खेती की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने कृषि विभाग तथा बागवानी विभाग के अधिकारियों के हाथों में इस मुहिम की कमान सौंपने का निर्णय लिया है। किसानों के इस अभियान को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है। जिला प्रशासन जल्द ही इस प्लान पर अमल शुरू करने जा रहा है।
जींद ब्लॉक से होगी मुहिम की शुरूआत
जिले के किसानों को कीटनाशक रहित खेती का पाठ पढ़ाने के लिए जल्द ही जिला प्रशासन द्वारा निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों के सहयोग से एक विशेष मुहिम शुरू की जाएगी। निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के मास्टर ट्रेनर जिले के अन्य गांवों में पाठशाला लगाकर किसानों को शाकाहारी तथा मासाहारी कीटों की पहचान के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों के बारे में भी विस्तार से जानकारी देंगे। जिले के सभी गांवों में पाठशाला लगाने के लिए जिला प्रशासन मास्टर ट्रेनर किसानों को हर सुविधा मुहैया करवाएगा। सबसे पहले इस अभियान की शुरूआत जींद ब्लाक से की जाएगी।
जिला प्रशासन किसानों का करेगा पूरा सहयोग
डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद
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आज किसान अधिक उत्पादन की चाह में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण हमारा खान-पान जहरीला हो रहा है। लोगों की थाली को जहर मुक्त बनाने के लिए निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों ने अपना खुद का कीट ज्ञान पैदा कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यहां के किसानों ने मासाहारी तथा शाकाहारी कीटों एक अच्छा शोध किया है। अपने इस कीट ज्ञान के बूते ही ये किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए ही अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के सहयोग से इस अभियान की शुरूआत की है। इनकी इस मुहिम को पूरे जिले में फैलाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा इनका सहयोग किया जाएगा। बागवानी तथा कृषि विभाग के अधिकारियों को इस मुहिम को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके लिए प्रशासन द्वारा एक एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है। सोमवार को कृषि तथा बागवानी विभाग के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस एक्शन प्लान पर अमल किया जाएगा।
प्रशासन के सहयोग से अभियान को मिलेगा बल
किसान जानकारी के अभाव में बेजुबान कीटों को मार रहे हैं। पिछले लगभग 4 दशकों से किसानों तथा कीटों
डा. सुरेंद्र दलाल
पाठशाला के संचालक
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के बीच यह जंग चली आ रही है लेकिन निडाना तथा ललितखेड़ा गांव के किसानों ने खुद का कीट ज्ञान पैदा किया है। यहां के किसानों ने मासाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की और उनके क्रियाकलापों के बारे में पूरी जानकारी जुटाई है। ना तो कीट हमारे मित्र हैं और ना ही हमारे दुश्मन। कीट तो अपना जीवन यापन करने के लिए फसल में आते हैं। कीट पौधों के परागन में विशेष भूमिका निभाते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंध छोड़कर कीटों को आकॢषत करते हैं। इसलिए हमें कीटों तथा पौधों की भाषा तथा कीटों के क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। जिला प्रशासन द्वारा इस मुहिम में किसाानों का सहयोग करने से इस अभियान को काफी बल मिलेगा और सभी लोगों को इस मुहिम में अपना योगदान देना चाहिए, क्योंकि यह किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय की समस्या नहीं, बल्कि पूरे समाज की समस्या है।
डा. सुरेंद्र दलाल
पाठशाला के संचालक
बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति असंभव : डी.सी.
राजपुरा भैण में किसानों ने मनाया किसान खेत दिवस
जींद। उपायुक्त डा. युद्धबीर सिंह ख्यालिया ने कहा कि फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी और मासाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों की जानकारी जुटाकर ही थाली को जहरमुक्त बनाया जा सकता है। बिना कीटों की पहचान के जहर से मुक्ति पाना असंभव है। जींद जिले के लगभग एक दर्जन गांवों के किसानों ने कीट ज्ञान की जो मशाल जलाई है आज उसका प्रकाश जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर भी पहुंचने लगा है। इसकी बदौलत ही आज पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसान भी जींद जिले में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए आ रहे हैं। उपायुक्त जींद जिले के राजपुरा भैण गांव में किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।
उपायुक्त ने कहा कि जींद जिले में पिछले कई वर्षो से किसान खेत पाठशालाएं चलाई जा रही हैं। इन पाठशालाओं में किसानों ने अपने बलबुते शाकाहारी और मांसाहारी कीटों की खोज कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। शाकाहारी कीट पौधों की फूल-पतियां खा कर अपना जीवनचक्र चलाते हैं, तो मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर वंशवृद्धि करते हैं। प्रकृति ने जीवों के बीच संतुलन बनाने के लिए यह एक अजीब चक्र बनाया है। इसलिए हमें कभी भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। डी.सी. ने कहा कि किसानों की इस अद्वितीय खोज को पूरे जिला के किसानों को अपनाने के लिए कार्य योजना तैयार की है। इसके लिए कई गांवों में इस प्रकार की किसान खेत दिवसों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने किसानों की मांग पर गांवों में प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए किसानों को कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा और उसके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाने की बात कही। उप कृषि निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने उपायुक्त का स्वागत किया। अपनी तरह के इस किसान खेत दिवस के मौके पर उपायुक्त ने कृषि विभाग के ए.डी.ओ. डा. सुरेन्द्र दलाल के प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। किसान बलवान सिंह ने बताया कि उनके ये कीट कमांडो किसान भले ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हों, लेकिन इन्होंने खेत पाठशालाओं में 163 किस्म के मासाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इनमें 104 किस्म के परभक्षी, 21 परपेटिए, 6 किस्म के परअंडिए, 4 किस्म के परप्यूपिए, 2 किस्म के परजीवी, 21 किस्म की मकड़ी, 5 किस्म के रोगाणु हैं। इसके अलावा 43 किस्म के शाकाहारी कीट हैं। मासाहारी कीट फसल में प्राकृतिक तौर पर स्प्रे का काम करते हैं। मानव द्वारा निॢमत स्प्रे में मिलावट हो सकती है, जिस कारण उनके अच्छे परिणाम की संभावनाएं कम हो जाती हैं लेकिन प्रकृति के कीट स्प्रे के परिणामों शत प्रतिशत सही होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और जरूरत पूरी होने के बाद भिन्न-प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मासाहारी कीटों को बुलाते हैं। निडाना गांव की महिला किसान अंग्रेजो ने कार्यक्रम में अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने 4 साल से खेत में कोई स्प्रे नहीं किया है ,फिर भी अच्छी पैदावार ले रहे हैं। मिनी मलिक नामक महिला किसान ने कहा कि उसने 148 मांसाहारी तथा 43 शाकाहारी कीटों की पहचान की है। जब पौधे को जरूरत होती है तो वह कीटों की अपनी ओर स्वत: ही आकर्षित कर लेते हंै। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग करके हम प्राकृतिक सिस्टम से छेड़छाड करते हंै। पाठशाला में ईंटलकलों के कृष्ण, ललित खेड़ा की मनीषा, हसनपुर के रविन्द्र, निडानी के जयभगवान ने भी अपने विचार सांझा किए। इस अवसर पर कार्यक्रम में कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कुलदीप ढांडा भी मौजूद थे।
2001 में कपास में हुए थे सबसे ज्यादा स्प्रे का प्रयोग
कार्यक्रम के दौरान कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाती महिलाएं। |
90 प्रतिशत आमदनी विदेशों में जाता है।
ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी ने बताया कि राजपुरा भैण गांव में कुल 1330 हैक्टेयर जमीन है। इसमें से 1205 हैक्टेयर में कास्तकार होती है। इसमें से 290 हैक्टेयर में कपास, 650 हैक्टेयर में धान, 240 हैक्टेयर में गन्ना तथा लगभग 50 हैक्टेयर में गवार की फसल की बिजाई की जाती है। डा. सैनी ने बताया कि अकेले राजपुरा भैण में 6 माह में कीटनाशकों पर कपास की फसल में 11 लाख, धान की फसल में 29 लाख, गन्ने की फसल में 13 लाख रुपए खर्च होते है। डा. सैनी ने बताया कि पूरे भारत में 90 लाख हैक्टेयर में कपास और 100 लाख हैक्टेयर में धान की खेती होती है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे देश में फसलों पर
कीटों के चित्र देखते किसान। |
कीटनाशकों पर कितना खर्च होता है। कीटनाशकों पर हम जितना खर्च करते हैं, उसका 90 प्रतिशत भाग विदेशों में जाता है।
पंजाब के किसानो ने भी अर्जित किया कीट ज्ञान
कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। |
कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं। |
क्या केवल फांसी या कठोर कानून से रूक जाएंगे बलात्कार के मामले?
लोगों को भी समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी और महिलाओं के प्रति अपने नजरिए में लाना होगा बदलाव
जींद। आज देश में बढ़ रही रेप तथा गैंगरेप की घटनओं के कारण विश्व में देश का सिर शर्म से झुक गया है। दिल्ली गैंगरेप की घटना ने तो महिलाओं की अंतरआत्मा को बुरी तरह से जख्मी कर सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। चारों तरफ घटना की पूर जोर ङ्क्षनदा हो रही है। देश का हर नागरिक इस घटना से आहत है। देश की राजधानी में घटीत इस घिनौने कांड के बाद जनता में आक्रोष की लहर दौड़ गई है। इस घटना के लिए देश का हर नागरिक सरकार को कोस रहा है। विपक्षी दलों ने भी बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों की आंच पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम किया है। दूसरों को जगाने वाली दामिनी जिंदगी की जंग हार कर खुद हमेशा के लिए सो गई है। आज देश का हर व्यक्ति दामिनी को मौत की नींद सुलाने वालों के लिए फांसी की सजा तथा रेप की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून की मांग कर रहा है लेकिन जरा सोचिए क्या बलात्कारियों को फांसी देने या बलात्कारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने मात्र से ही देश में बलात्कार की घटनाएं रूक जाएंगी? शायद नहीं। किसी को मौत का डर दिखाने से इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगापाना संभव नहीं है। क्योंकि मौत किसी समस्या का समाधान नहीं है। मृत्युदंड देकर हम पापी को मार सकते हैं पाप को नहीं। इस बुराई को अगर जड़ से उखाडऩा है तो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और इस बुराई को जड़ से कुरेदने के लिए इस मसले पर गंभीरता से विचार करना होगा लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी कहां समझ रहे हैं। क्योंकि किसी ने भी इस बुराई को जड़ से खत्म करने पर विचार-विमर्श करने की बजाए दोषियों को फांसी देने और कठोर कानून की ही मांग की है या फिर विरोध प्रदर्शन कर या कैंडल मार्च निकाल कर अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर ली है। केवल सड़कों पर केंडल मार्च निकालना, प्रदर्शन करना या सरकार को इन सब के लिए दोषी ठहराना हमारी जिम्मेदारी नहीं है। इस तरह की घटनाओं के लिए सरकार और हम बराबर के दोषी हैं, क्योंकि हम खुद ही इस तरह के अपराधों को बढ़ावा देने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और इसमें सरकार हमारा सहयोग कर रही है। आज टी.वी. चैनलों तथा अन्य प्रचार-प्रसार के माध्यम से खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है और हम सब मिलकर बड़े मजे से इसका आनंद ले रहे हैं। सरकार भी इस तरह के कार्यक्रमों को रोकने में किसी तरह की सख्ती नहीं दिखा रही है। आज हमारी संस्कृति और मनोरंजन के साधन पूरी तरह से अश्लीलता की भेंट चढ़ चुके हैं। हमारे प्रचार-प्रसार के साधनों के माध्यम से हमारी प्रजनन क्रियाओं के अंगों को हमारे सामने मनोरंजन के साधन के रूप में पेश किया जा रहा है। इससे युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर प्रजनन क्रियाओं के अंगों को मनोरंजन का साधन समझकर इस तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित हो रही है। इसलिए कहीं ना कहीं हमारे मनोरंजन के साधन भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
किसी को फांसी देना या कठोर कानून किसी समस्या का समाधान नहीं है। जरा सोचिए क्या 302 के अपराधी यानि किसी की हत्या करने वाले व्यक्ति को कानून में फांसी देने का प्रावधान नहीं है। जब हत्यारे को कानून में फांसी देने का प्रावधान है और इस कानून के तहत मुजरिमों को फांसी की सजा दी भी जा चुकी है तो क्या देश में हत्या होनी बंद हो गई हैं, नहीं। तो फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि बलात्कारियों को फांसी देने से देश में बलात्कार रूक जाएंगे। मैं बलात्कारियों को फांसी नहीं देने या इस तरह के अपराधियों के लिए कठोर कानून नहीं बनाने का पक्षधर नहीं हूं लेकिन यह भी तो सच है कि केवल फांसी देने या कठोर कानून से इस तरह की घटनाओं को रोक पाना संभव नहीं है। मैं तो अगर पक्षधर हूं तो केवल इस बात का कि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए इन घटनाओं की तह तक जाने की जरूरत है। क्योंकि हमारी कानून प्रणाली काफी लचिली है और कठोर कानून बनाने के बाद जहां उसका सद्उपयोग होगा, उससे कहीं ज्यादा उसका दुरुपयोग भी होगा। जैसा की दहेज उन्मूलन कानून में हो रहा है।
हमारे लिए कितने दुख की बात है कि भारत जैसे देश में हर 18 मिनट में एक बलात्कार की घटना घट रही है। इसका मुख्य कारण अश्लीलता की भेंट चढ़ रहे हमारे मनोरंजन के साधन हैं। आज हमारे पास मनोरंज के अच्छे साधन होने के बावजूद भी हमारे पास मनोरंजन की अच्छी सामग्री नहीं है। बढ़ रही अश्लीलता तथा दूषित हो रहे हमारे खान-पान से हमारी मानसिक प्रवृति में काफी परिर्वतन हो चुका है। नैतिक मूल्य में काफी गिरावट हुई है। हम अपने प्रजनन के अंगों को मनोरंजन के रूप में देखने लगे हैं। हमारा रहन-सहन काफी बदल गया है, हमारा पहनावा काफी उतेजक हो चुका है। हमारी शिक्षा प्रणाली सही नहीं है, जिससे किशोर अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के दौरान किशोरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता और वे अपने पथ से भटक जाते हैं।
किस तरह हो सकता है समस्या का समाधान
अगर बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगानी है तो केवल फांसी या कठोर कानून का सहारा लेने की बजाए इसकी जड़ों को कुरेदना होगा। हमें सबसे पहले तो अपने मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन करना होगा। हमें अपने मनोरंजन के साधनों में अश्लीलता गीतों की बजाए देशभक्ति गीत, हमारी संस्कृति से जुड़े गीत, हमारी दिनचर्या से जुड़े गीत, वीरता, बहादुरी के किस्सों से ओत-प्रोत नाटक, फिल्मों को शामिल करना होगा। ताकि खाली समय में हम इस तरह के गीत या फिल्में देखकर अपने मनोरंजन के साथ-साथ इससे प्रेरणा ले सकें और हमारा दिमाक गलत दिशा में जाने से बच सके। इसके बाद बात आती है दंड की, तो दंड कठोर होने के साथ-साथ सामाजिक तौर पर निष्पक्ष रूप से दिया जाए, जैसा की कई बार पंचायतों द्वारा दिया जाता है। क्योंकि इस तरह का दंड अपराधियों को सबक सिखाने में काफी कारगर सिद्ध होता है और समाज में बेज्जती के भय से लोग गलत काम को अंजाम देने से हिचकते हैं। हमें हमारे रहन-सहन तथा पहनावे में भी थोड़ा परिवर्तन करना चाहिए। हमें उतेजक पहनावे से परहेज करना चाहिए। हमारी शिक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन की जरूरत है। नैतिक शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा पर भी जोर दिया जाना चाहिए। खासकर किशोर अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन तथा उससे पैदा होने वाली समस्याएं और उनके समाधान के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जाए। हमें अपने बच्चों के साथ कठोर व्यवहार की बजाए नर्म तथा दोस्ताना रवैया अपना चाहिए तथा उनकी परेशानियों, समस्याओं को नजर अंदाज करने की बजाए उन्हें उसके समाधान के बारे में बताना चाहिए। इसके अलावा राजनेताओं को भी चाहिए कि वे किसी भी प्रकार की सामाजिक समस्या को सत्तासीन पार्टी के खिलाफ हथियार बनाने की बजाए उसके समाधान के लिए सरकार की मदद करे। और इस समस्या के समाधान में सबसे अहम योगदान समाज का हो सकता है। समाज को लड़कियों और महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा।
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