Saturday, 21 December 2013

कीट ज्ञान में कृषि वैज्ञानिकों को भी मात दे रहे कीट कमांडो किसान

आज से पहले कीटों पर नहीं हुआ इस तरह का कोई शोध : डी.सी.

निडानी गांव में किया जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन


जींद। जींद जिले के किसानों ने कीटों पर जो अनोखा शोध किया है वह वास्तव में काबिले तारिफ है और आज से पहले कीटों पर कहीं भी इस तरह का शोध नहीं हुआ है। कीटों के बारे में जितनी जानकारी कीट कमांडों किसानों को है उतनी तो शायद कृषि वैज्ञानिकों को भी नहीं है। यह बात उपायुक्त राजीव रत्तन ने वीरवार को कृषि विभाग तथा कीट साक्षरता सोसायटी निडानी द्वारा आयोजित खेत दिवस पर निडानी गांव में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, स्व. डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, विजय दलाल, रोहतक एम.डी.यू. से डा. राजेंद्र चौधरी, पी.जी.आई. रोहतक से सर्जन डा. रणबीर दहिया, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, जाट धर्मशाला जींद के प्रधान रामचंद्र, होशियार सिंह दलाल, दलीप चहल, प्राचार्य रमेश मलिक, समाजसेवी राधेश्याम, निडानी गांव के सरपंच अशोक, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी सहित कृषि विभाग के अन्य अधिकारी भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मौजूद लोग। 
कार्यक्रम का शुभारंभ उपायुक्त राजीव रत्तन ने कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। डी.सी. ने कहा कि आज जींद जिले के लगभग 14 गांव के अनेकों किसान इस मुहिम से जुड़े हैं। राजपुरा, ईंटल, ईगराह, निडानी, निडाना, ललितखेड़ा, रधाना, चाबरी, भैराखेड़ा, ईक्कस, जलालपुरा कलां समेत कई गांवों के किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए कपास, धान जैसी फसलें पैदा करने लगे हैं। कार्यक्रम में किसानों ने अपने अनुभव रखते हुए बताया कि कीटों और किसानों के बीच जो लड़ाई चल रही है वह आधारहीन है। कीटों को नियंत्रण करने के लिए तो कीट ही सबसे बड़ा शस्त्र है। इसलिए कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो इनकी पहचान करने की। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देखकै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़क हो' तथा 'सबतै बढिय़ा हो सै बिना जहर की खेती' गीतों के माध्यम से किसानों की नब्ज को टटोलने का काम किया और कीटनाशकों पर कटाक्ष किए। एम.डी.यू. से आए डा. राजेंद्र चौधरी ने किसानों को गोबर की खाद तैयार करने तथा कुदरती खेती के  बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिला उद्यान 
अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि उन्होंने सब्जियों में जहर के स्तर की जांच के लिए जो भी सैम्पल लिए उन सभी सब्जियों में जहर की मात्रा शरीर को नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी ज्यादा पाई गई है। 
कार्यक्रम के दौरान कीटों पर आधारित गीत प्रस्तुत करती महिला किसान।
इससे यह अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है कि हमारा खान-पान कितना शुद्ध है। जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जो मुहिम शुरू की थी आज वह पूरी गति से प्रदेश में फैल रही है। पूरे कृषि विभाग को डा. सुरेंद्र दलाल पर फकर है। डा. सुरेंद्र दलाल की मौत के बाद इस मुहिम से जुड़े लोगों को बड़ी निराशा हुई थी और किसानों को इस मुहिम के खत्म होने का डर सता रहा था लेकिन डा. सुरेंद्र दलाल के बाद डा. कमल सैनी ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और वह बड़े अच्छे तरीके से इस मुहिम को सफल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। 
डी.सी. को सम्मानित करते किसान व विभाग के अधिकारी ।

रक्त में फैले जहर को निकालने के लिए नहीं बनी कोई मशीन

रोहतक पी.जी.आई. से आए सर्जन डा. रणबीर सिंह दहिया ने कहा कि आज तक कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो खाने के माध्यम से हमारे खून में फैले जहर को बाहर निकाल सके। डा. दहिया ने कहा कि रोहतक पी.जी.आई. में भी ऐसे टैस्ट की सुविधा नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि मरीज के शरीर में जहर का स्तर कितना बढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए आज से लगभग 20 वर्ष पहले विधानसभा में यह मुद्दा उठा था और विधानसभा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी तैयार किया गया लेकिन आज तक यह सुविधा शुरू नहीं हो पाई है। डा. दहिया ने सरकारी अस्पतालों में इस टैस्ट को शुरू करवाने के लिए खाप पंचायतों को लड़ाई शुरू करने का आह्वान किया। डा. दहिया ने कहा कि आज लोगों में हड्डियों व पेट के रोगों के फैलेने का मुख्य कारण पेस्टीसाइड के कारण दूषित 
होता हमारा खान-पान है।  

कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास करेंगी खाप पंचायतें

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई थाली को जहर मुक्त बनाने की इस मुहिम को जींद के अलावा पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए खाप पंचायतें हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि किसान-कीट की लड़ाई का मामला खाप की अदालत में है और खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पिछले 2 वर्ष से इन पाठशालाओं में जाकर अपना रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। खाप पंचायतें अगले वर्ष एक बड़ी पंचायत का आयोजन कर इसके खिलाफ लड़ाई की अगली रणनीति तैयार करेंगी। 

घूंघट के पीछे से किसानों को दिया जहरमुक्त खेती का संदेश

देश की हर क्रांति में पुरुषों के बराबर रही है महिलाओं की भागीदारी : मैडम दलाल


जींद। इतिहास गवाह है, जब-जब देश में क्रांति हुई है, तब-तब उस क्रांति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर रही है। यह बात मैडम कुसुम दलाल ने वीरवार को गांव रधाना में आयोजित महिला किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोलते हुए कही। कार्यक्रम में कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग के एस.डी.ओ. डा. युद्धवीर सिंह, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रवि, डा. राजेंद्र शर्मा तथा डा. युद्धवीर सिंह भी विशेष रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान महिला कीट कमांडों किसानों ने हरियाणवी संस्कृति को निभाते हुए घूंघट के पीछे से किसानों को जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने का संदेश दिया और अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा किए। इस अवसर पर किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से डायरी का विमोचन भी किया। 
महिला कीट कमांडो किसान अंग्रेजो, कमलेश, कविता, नारो, राजवंती ने कहा कि आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान के कारण बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले मां के दूध में भी अब जहर की मात्रा मिलने लगी है, जो पूरी मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरे की दस्तक है। उन्होंने कहा कि 10 हजार साल पहले खेती की शुरूआत हुई थी और तभी से किसानों, कीटों और पौधों का आपस में गहरा रिश्ता था लेकिन लगभग 30 साल पहले इस रिश्ते को खत्म करने की साजिश रची गई और किसानों को गुमराह करते हुए बताया गया कि कीटों से फसल को 22 प्रतिशत नुक्सान होता है। इसके बाद 

 महिलाओं को सम्बोधित करती मैडम कुसुम दलाल। 

कृषि वैज्ञानिकों ने इस 22 प्रतिशत नुक्सान की रिकवरी के लिए पहले किसानों को कीटों को नियंत्रण करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना तथा फिर कीटों का प्रबंधन करना सिखाया लेकिन इसके बाद भी कीटों पर 
डा. सुरेंद्र दलाल पर आधारित डायरी का विमोचन करते अधिकारी। 
काबू नहीं पाया जा सका। उन्होंने कहा कि अब खुद कृषि वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार चुके हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से मात्र 7 प्रतिशत ही रिकवरी होती है। मात्र 7 प्रतिशत की रिकवरी के लिए किसान अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर फसल खर्च तो बढ़ा रहा है, साथ-साथ खाने को भी जहरीला बना कर अपने तथा दूसरों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस अवसर पर महिला किसानों ने 'खेतैं में खड़ी ललकारुं तू जहर ना लाइए, लैइए खाद का घोल कीडय़ां की जान बचाइए', 'खेती चौपट, कर्जा भारी दिखै घोर अंधेरा' आदि गीतों के माध्यम से कीटनाशकों पर कटाक्ष किए और किसानों को जहरमुक्त खेती कर कीटों को बचाने का आह्वान किया। किसानों ने कार्यक्रम में मौजूद सभी अतिथिगणों को पगड़ी तथा शाल भेंट कर स्वागत किया। महिलाओं के कार्यों को देखते हुए मैडम कुसुम दलाल ने निडाना, निडानी व रधाना गांव की महिलाओं को 1100-1100 रुपए और कुलदीप ढांडा ने 500 रुपए पुरस्कार  स्वरूप दिए। 

163 किस्म के मांसाहारी कीटों की खोज की



महिला किसानों को पुरस्कृत करती मैडम कुसुम दलाल। 
महिला कीट कमांडो किसानों ने बताया कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पत्ते खाने वाले कीट, 4 किस्म के फूल खाने वाले कीट तथा 3 किस्म के फल खाने वाले कीटों की खोज की है। इसके अलावा इनको कंट्रोल करने के लिए 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान भी की जा चुकी है। 

हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से भयभीत न हो किसान

कीट कमांडों महिला किसानों ने बताया कि जब तक उन्हें कीटों की पहचान नहीं हुई थी, तब तक उन्हें कपास की फसल में मौजूद हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से डर लगता था। क्योंकि यह तीनों कीट कपास की फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मेजर कीटों में शुमार हैं लेकिन जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तथा इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है, तब से इनके प्रति इनका भय पूरी तरह से निकल चुका है। 
कार्यक्रम में अपने अनुभव सांझा करती महिला किसान

किसी जंग जीतने से कम नहीं आर्म्स लाइसैंस हासिल करना

आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा नहीं निर्धारित की गई गाइड लाइन 

होमगार्ड की पर्ची से लेकर लाइसैंस बनवाने तक पैसे व सिफारिश के बिना नहीं बनता काम
आर्म्स डीलर की मनमर्जी पर भी नकेल नहीं डाल पा रहा प्रशासन 


जींद। आर्म्स लाइसैंस बनवाकर पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (पी.एस.ओ.) तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की चाह रखने वाले बेरोजगारों के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। इसके लिए बेरोजगार युवाओं को होमगार्ड की पर्ची से लेकर आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए या तो दलालों का सहारा लेना पड़ता है या फिर किसी बड़े अधिकारी के दरवाजे की धूल चाटनी पड़ती है। अब तो हालत यह हो गए हैं कि आर्म्स लाइसैंस बनवाने वाले जरूरतमंद व बेरोजगार युवाओं को आर्म्स लाइसैंस की फाइल जमा करवाने के लिए भी अपरोच की जरुरत पडऩे लगी। जिला प्रशासन द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए किसी तरह की कोई गाइड लाइन जारी नहीं किए जाने के  कारण आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले आवेदकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि शौक के लिए हथियार खरीदने वाले बड़े-बड़े डीलरों के लाइसैंस आसानी से बन जाते हैं।
सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं होने के चलते बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं का रूझान आर्म्स लाइसैंस की तरफ काफी बढ़ रहा है लेकिन हथियार की सहायता से पी.एस.ओ. तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में इंट्री करने के इच्छुक युवाओं के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना एक सपना बनाकर रह गया है। आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए कई माह से डी.सी. कार्यालय तथा होमगार्ड कार्यालय के चक्कर काट रहे सतीश मलिक, मनोज सोनी, नरेंद्र निडानी, बिट्टू शर्मा, अजीत पूनिया, विक्रम भैण का कहना है कि आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई गाइड लाइन जारी नहीं की गई हैं। इसके चलते सरकारी कार्यालयों में बैठे कुछेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया को अपनी आमदनी का जरिया बना लिया है। आर्म्स लाइसैंस की आड़ में पैसा कमाने वाले इन चुनिंदा अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए खुद के नियम तय किए हुए हैं और ऐसे में आर्म्स लाइसैंस के आवेदन के लिए आने वाले उम्मीदवारों पर यह खुद के नियमों का भार डालकर उनकी जेबें तराशने का काम करते हैं। आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले युवाओं को होमगार्ड की पर्ची बनवाने से लेकर फाइल जमा करवाने तक अपरोच करवानी पड़ती है। खेल यहीं पर खत्म नहीं होता। इसके बाद पुलिस वैरिफिकेशन से लेकर फाइल को एक अधिकारी की टेबल से दूसरे अधिकारी की टेबल तक पहुंचाने के लिए या तो फाइल पर पैसों के पंख लगाने पड़ते हैं या फिर बड़े अधिकारी की सिफारिश करवानी पड़ती है। इस प्रकार सिक्योरिटी के क्षेत्र में हथियार की सहायता पर नौकरी की इच्छा रखने वाले युवाओं को आर्म्स लाइसैंस बनवाने से लेकर हथियार खरीदने तक लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यदि किसी आवेदक के पास पैसा या अपरोच नहीं है तो उसे प्रशासनिक अधिकारियों के नियमों की चक्की में पिसना पड़ता है।
 वह युवा जिनसे बातचीत की गई। 

खिलाडिय़ों को प्राथमिकता के आधार पर जारी किया जाए आर्म्स लाइसैंस

पिस्टल शूटर सुरेश पूनिया ने कहा कि आज बढ़ती बेरोजगारी के कारण रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं लेकिन सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। रिवाल्वर, पिस्टल या गन की सहायता से पी.एस.ओ. या किसी कंपनी में 10 से 30 हजार रुपए मासिक की सिक्योरिटी की नौकरी आसानी से मिल सकती है। इसलिए सरकार व जिला प्रशासन को चाहिए कि आम्र्स लाइसैंस के नियमों में सरलीकरण लाया जाए और जरूरतमंदों की अच्छी तरह से वैरिफिकेशन करवाकर उन्हें जल्द से जल्द आर्म्स लाइसैंस मुहैया करवाया जाए, ताकि वह अपना तथा अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। खाली शौक या प्रतिष्ठा के लिए हथियार रखने वालों के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाई जाए।

गन हाऊस के संचालकों पर भी शिकांजा कसने की जरुरत

जिले में महज कुछेक गिने चुने गन हाऊस हैं। इसके चलते इनमें कम्पीटिशन भी ना के बराबर है। आर्म्स डीलर इस बात का खूब फायदा उठा रहे हैं। यह आर्म्स डीलर अपने मनमाने रेटों पर हथियार के कारतूस बेचते हैं। कारतूस के वास्तविक रेट से कई-कई गुणा ज्यादा रेटों पर कारतूसों की बिक्री की जा रही है। यदि कोई इनसे कारतूस के बिल की मांग करता है तो यह बिल देना से साफ मना कर देते हैं। यदि बिल के लिए कोई लाइसैंस धारक ज्यादा दबाब बनाता है तो उसे कम रेट का बिल बनाकर थमा दिया जाता है। इस प्रकार आर्म्स डीलरों की मनमर्जी से भी आर्म्स लाइसैंस काफी हद तक परेशान हैं। आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि जिला प्रशासन को आर्म्स डीलरों पर भी शिकंजा कसने की जरुरत है।

ऑल इंडिया या 3 स्टेट लाइसैंस की प्रक्रिया हो सरल

आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने आम्र्स लाइसैंस के नियमों में जो फेरबदल कर आल इंडिया के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाकर 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया शुरू की है, उस प्रक्रिया में भी काफी खामी हैं। जो व्यक्ति पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में नौकरी करना चाहता है, उसे एक स्टेट की बजाए कई स्टेट के लाइसैंस की जरुरत होती है। हरियाणा में ज्यादा बड़ी इंडस्ट्री नहीं होने के कारण यहां पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार कम हैं। इसलिए हथियार खरीदने के बाद नौकरी के लिए युवाओं को दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है लेकिन हरियाणा से बाहर का लाइसैंस नहीं होने के कारण वह मन मसोस कर रह जाते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह या तो ऑल इंडिया के लाइसैंस शुरू करे या 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया को सरल करे, ताकि लाखों रुपए कीमत का हथियार खरीदने के बाद कोई भी जरूरतमंद दूसरे प्रदेश में जाकर अपना रोजगार तलाश कर सके।

रोडवेज की बसों में छात्राओं को मुफ्त यात्रा से जींद डिपू को हर वर्ष झेलना पड़ेगा 33 लाख का घाटा

रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राओं को नहीं मिल पाएगा पूरा लाभ

 जींद। नए वर्ष पर रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना लागू होने जा रही है। इस योजना के अमल में आने के बाद हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 33 लाख का नुक्सान उठाना पड़ेगा। हरियाणा रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने के बाद हर वर्ष लगभग 24 करोड़ का घाटा झेल रहे जींद डिपू का यह नुक्सान बढ़कर 24 करोड़ 33 लाख हो जाएगा। वहीं रोडवेज बेड़े में घटती बसों की संख्या के कारण छात्राओं के लिए सरकार की यह योजना सफेद हाथी बनकर रह जाएगी। रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राएं पूरी तरह से इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाणा रोडवेज की बसों की सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की छात्राओं को सरकार की इस योजना का कोई खास लाभ नहीं मिल पाएगा। इस योजना के शुरू होने के बाद रोडवेज की आय का एक ओर स्त्रोत कम हो जाएगा। इस योजना के शुरू होने से पहले रोडवेज के पास 26 ऐसी कैटेगरी हैं जो रोडवेज में पूरी तरह से फ्री यात्रा करती हैं और 7 ऐसी कैटेगरी हैं जो रियायत पर रोडवेज की बसों में यात्रा कर रही हैं। 
 जींद बस स्टैंड पर खड़ी बसों का फोटो। 

महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को कैसे मिलेगी मुफ्त सफर की सुविधा 

इस समय जींद जिले के रोडवेज बेड़े में कुल 174 बसें हैं। इसमें जींद डिपू में कुल 114 बसें, नरवाना डिपू में 24 और सफीदों डिपू के पास 36 बसें हैं। इसके अलावा इस बेड़े में से भी हर माह लगभग 10 बसें कंडम हो जाती हैं और कंडम होने वाली बसों के स्थान पर कम संख्या में नई बसें वापिस बेड़े में शामिल होती हैं। इन 174 बसों में से हर रोज महज 130 बसें ही मुश्किल से सड़कों पर दौड़ पाती हैं। बाकि बसें ड्राइवरों की कमी से वर्कशॉप में धूल फांकती रहती हैं। जबकि जींद जिले में बसों में सफर कर स्कूल, कालेजों व अन्य शिक्षण संस्थानों में जाने वाली छात्राओं की संख्या लगभग 5 हजार के करीब है। इस प्रकार महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को सरकार किसी प्रकार से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की सुविधा मुहैया करवा पाएगी। 

सिर्फ 60 किलोमीटर तक ही मिल पाएगा छात्राओं को मुफ्त सफर का लाभ 

प्रदेश सरकार द्वारा 10 नवम्बर को गोहाना रैली में की गई छात्राओं को रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की घोषणा पर 1 जनवरी 2014 से अमल शुरू हो जाएगा। इसके लिए रोडवेज विभाग के महानिदेशक द्वारा सभी डिपुओं को पत्र जारी किए जा चुके हैं। सरकार की घोषणा के अनुसार छात्राएं सिर्फ 60 किलोमीटर तक की रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी। 60 किलोमीटर से ज्यादा सफर करने वाली छात्राओं को आगे के सफर के लिए टिकट लेनी होगी। 

कैंसर के मरीजों को मिलेगा लाभ

छात्राओं के साथ-साथ कैंसर पीडि़त मरीजों को भी एक जनवरी से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की योजना का लाभ मिलेगा। इसके लिए कैंसर के मरीजों को सामान्य अस्पताल के सिविल सर्जन कार्यालय से लिखित में पत्र लेकर आना होगा। सिविल सर्जन कार्यालय से जारी पत्र के आधार पर रोडवेज विभाग द्वारा कैंसर पीडि़त मरीज को उपचार के दौरान रोडवेज की बसों में सफर के लिए मुफ्त यात्रा का कार्ड जारी किया जाएगा।  

स्टूडैंट पास से जींद डिपू को हर वर्ष होती है 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी

स्टूडैंट पास से हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी होती है। इस वर्ष जींद डिपू द्वारा लगभग 7400 विद्यार्थियों को पास जारी किए गए हैं। इनमें 5500 छात्र तथा 1900 छात्राएं पास होल्डर हैं। इस प्रकार जींद में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आने वाले विद्यार्थी जींद डिपू की आमदनी का एक बड़ा स्त्रोत हैं लेकिन जनवरी 2014 से रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने से जींद डिपू को हर वर्ष लगभग 33 लाख रुपए का नुक्सान उठाना पड़ेगा।

अब तक रोडवेज द्वारा लड़कियों से ली जाने वाली पास की फीस की सूची 

किलोमीटर      एक वर्ष का किराया

1 से 5  180
6 से 10  360
11 से 15          540
16 से 20          720
21 से 25          900
26 से 30         1080
31 से 40         1440
41 से 50         1800
51 से 60         2160

रोडवेज के पास पहले से हैं 26 फ्री तथा 7 रियायत पर सफर करने वाली कैटेगरी

रोडवेज विभाग के पास पहले ही 26 कैटेगरी ऐसी हैं, जो सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहत रोडवेज की बसों में फ्री यात्रा का लाभ ले रही हैं तथा 7 ऐसी कैटेगरी हैं, जो रोडवेज की बसों में रियायत पर सफर करती हैं। इस प्रकार अब रोडवेज की यह सूचि 26 से बढ़कर 28 हो जाएगी। 

सरकार निजी बसों में भी लागू करे मुफ्त यात्रा की योजना

प्रदेश सरकार द्वारा रोडवेज की बसों में छात्रओं के मुफ्त सफर की जो योजना लागू की गई है, वह सरकार की एक अच्छी पहल है लेकिन रोडवेज की बसों के साथ-साथ सरकार को यह योजना निजी बसों में भी लागू करनी चाहिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्र से निजी बसों में आने वाली छात्राएं भी सरकार की इस योजना का लाभ ले सकें। वहीं सरकार द्वारा किसी भी कैटेगरी को रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा का लाभ देने पर उस कैटेगरी से रोडवेज को होने वाली आमदनी के बदले में सरकार को आॢथक सहायता भी देनी चाहिए ताकि रोडवेज विभाग को घाटे से बचाया जा सके। 
बलराज देशवाल, राज्य प्रधान
हरियाणा रोडवेज मिनिस्ट्रीयल स्टाफ एसोसिएशन
बलराज देशवाल का फोटो।











अलग तरह का होगा छात्राओं के बस पास का फार्मेट

एक जनवरी से छात्राओं के लिए रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की योजना लागू हो जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा सभी स्कूलों, कालेजों व शिक्षण संस्थानों से पास होल्डर छात्राओं की सूची मांगी जाएगी, ताकि इस योजना के  लागू होने से जींद डिपू को होने वाले घाटे का अंकलन लगाया जा सके। वहीं रोडवेज विभाग द्वारा छात्राओं को जारी किए जाने वाले पास का फार्मेट भी अलग तरह का होगा, ताकि कोई लड़की नकली पास बनवाकर मुफ्त सफर की योजना की आड़ में रोडवेज को चूना न लगा सके। 
राहुल जैन, महाप्रबंधक का फ़ोटो 


राहुल जैन, महाप्रबंधक
हरियाणा रोडवेज, जींद डिपू 


खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...