आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा नहीं निर्धारित की गई गाइड लाइन
होमगार्ड की पर्ची से लेकर लाइसैंस बनवाने तक पैसे व सिफारिश के बिना नहीं बनता काम
आर्म्स डीलर की मनमर्जी पर भी नकेल नहीं डाल पा रहा प्रशासन
जींद। आर्म्स लाइसैंस बनवाकर पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (पी.एस.ओ.) तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की चाह रखने वाले बेरोजगारों के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। इसके लिए बेरोजगार युवाओं को होमगार्ड की पर्ची से लेकर आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए या तो दलालों का सहारा लेना पड़ता है या फिर किसी बड़े अधिकारी के दरवाजे की धूल चाटनी पड़ती है। अब तो हालत यह हो गए हैं कि आर्म्स लाइसैंस बनवाने वाले जरूरतमंद व बेरोजगार युवाओं को आर्म्स लाइसैंस की फाइल जमा करवाने के लिए भी अपरोच की जरुरत पडऩे लगी। जिला प्रशासन द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए किसी तरह की कोई गाइड लाइन जारी नहीं किए जाने के कारण आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले आवेदकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि शौक के लिए हथियार खरीदने वाले बड़े-बड़े डीलरों के लाइसैंस आसानी से बन जाते हैं।
सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं होने के चलते बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं का रूझान आर्म्स लाइसैंस की तरफ काफी बढ़ रहा है लेकिन हथियार की सहायता से पी.एस.ओ. तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में इंट्री करने के इच्छुक युवाओं के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना एक सपना बनाकर रह गया है। आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए कई माह से डी.सी. कार्यालय तथा होमगार्ड कार्यालय के चक्कर काट रहे सतीश मलिक, मनोज सोनी, नरेंद्र निडानी, बिट्टू शर्मा, अजीत पूनिया, विक्रम भैण का कहना है कि आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई गाइड लाइन जारी नहीं की गई हैं। इसके चलते सरकारी कार्यालयों में बैठे कुछेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया को अपनी आमदनी का जरिया बना लिया है। आर्म्स लाइसैंस की आड़ में पैसा कमाने वाले इन चुनिंदा अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए खुद के नियम तय किए हुए हैं और ऐसे में आर्म्स लाइसैंस के आवेदन के लिए आने वाले उम्मीदवारों पर यह खुद के नियमों का भार डालकर उनकी जेबें तराशने का काम करते हैं। आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले युवाओं को होमगार्ड की पर्ची बनवाने से लेकर फाइल जमा करवाने तक अपरोच करवानी पड़ती है। खेल यहीं पर खत्म नहीं होता। इसके बाद पुलिस वैरिफिकेशन से लेकर फाइल को एक अधिकारी की टेबल से दूसरे अधिकारी की टेबल तक पहुंचाने के लिए या तो फाइल पर पैसों के पंख लगाने पड़ते हैं या फिर बड़े अधिकारी की सिफारिश करवानी पड़ती है। इस प्रकार सिक्योरिटी के क्षेत्र में हथियार की सहायता पर नौकरी की इच्छा रखने वाले युवाओं को आर्म्स लाइसैंस बनवाने से लेकर हथियार खरीदने तक लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यदि किसी आवेदक के पास पैसा या अपरोच नहीं है तो उसे प्रशासनिक अधिकारियों के नियमों की चक्की में पिसना पड़ता है।
वह युवा जिनसे बातचीत की गई। |
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