Saturday, 21 December 2013

कीट ज्ञान में कृषि वैज्ञानिकों को भी मात दे रहे कीट कमांडो किसान

आज से पहले कीटों पर नहीं हुआ इस तरह का कोई शोध : डी.सी.

निडानी गांव में किया जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन


जींद। जींद जिले के किसानों ने कीटों पर जो अनोखा शोध किया है वह वास्तव में काबिले तारिफ है और आज से पहले कीटों पर कहीं भी इस तरह का शोध नहीं हुआ है। कीटों के बारे में जितनी जानकारी कीट कमांडों किसानों को है उतनी तो शायद कृषि वैज्ञानिकों को भी नहीं है। यह बात उपायुक्त राजीव रत्तन ने वीरवार को कृषि विभाग तथा कीट साक्षरता सोसायटी निडानी द्वारा आयोजित खेत दिवस पर निडानी गांव में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, स्व. डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, विजय दलाल, रोहतक एम.डी.यू. से डा. राजेंद्र चौधरी, पी.जी.आई. रोहतक से सर्जन डा. रणबीर दहिया, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, जाट धर्मशाला जींद के प्रधान रामचंद्र, होशियार सिंह दलाल, दलीप चहल, प्राचार्य रमेश मलिक, समाजसेवी राधेश्याम, निडानी गांव के सरपंच अशोक, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी सहित कृषि विभाग के अन्य अधिकारी भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मौजूद लोग। 
कार्यक्रम का शुभारंभ उपायुक्त राजीव रत्तन ने कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। डी.सी. ने कहा कि आज जींद जिले के लगभग 14 गांव के अनेकों किसान इस मुहिम से जुड़े हैं। राजपुरा, ईंटल, ईगराह, निडानी, निडाना, ललितखेड़ा, रधाना, चाबरी, भैराखेड़ा, ईक्कस, जलालपुरा कलां समेत कई गांवों के किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए कपास, धान जैसी फसलें पैदा करने लगे हैं। कार्यक्रम में किसानों ने अपने अनुभव रखते हुए बताया कि कीटों और किसानों के बीच जो लड़ाई चल रही है वह आधारहीन है। कीटों को नियंत्रण करने के लिए तो कीट ही सबसे बड़ा शस्त्र है। इसलिए कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो इनकी पहचान करने की। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देखकै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़क हो' तथा 'सबतै बढिय़ा हो सै बिना जहर की खेती' गीतों के माध्यम से किसानों की नब्ज को टटोलने का काम किया और कीटनाशकों पर कटाक्ष किए। एम.डी.यू. से आए डा. राजेंद्र चौधरी ने किसानों को गोबर की खाद तैयार करने तथा कुदरती खेती के  बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिला उद्यान 
अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि उन्होंने सब्जियों में जहर के स्तर की जांच के लिए जो भी सैम्पल लिए उन सभी सब्जियों में जहर की मात्रा शरीर को नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी ज्यादा पाई गई है। 
कार्यक्रम के दौरान कीटों पर आधारित गीत प्रस्तुत करती महिला किसान।
इससे यह अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है कि हमारा खान-पान कितना शुद्ध है। जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जो मुहिम शुरू की थी आज वह पूरी गति से प्रदेश में फैल रही है। पूरे कृषि विभाग को डा. सुरेंद्र दलाल पर फकर है। डा. सुरेंद्र दलाल की मौत के बाद इस मुहिम से जुड़े लोगों को बड़ी निराशा हुई थी और किसानों को इस मुहिम के खत्म होने का डर सता रहा था लेकिन डा. सुरेंद्र दलाल के बाद डा. कमल सैनी ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और वह बड़े अच्छे तरीके से इस मुहिम को सफल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। 
डी.सी. को सम्मानित करते किसान व विभाग के अधिकारी ।

रक्त में फैले जहर को निकालने के लिए नहीं बनी कोई मशीन

रोहतक पी.जी.आई. से आए सर्जन डा. रणबीर सिंह दहिया ने कहा कि आज तक कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो खाने के माध्यम से हमारे खून में फैले जहर को बाहर निकाल सके। डा. दहिया ने कहा कि रोहतक पी.जी.आई. में भी ऐसे टैस्ट की सुविधा नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि मरीज के शरीर में जहर का स्तर कितना बढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए आज से लगभग 20 वर्ष पहले विधानसभा में यह मुद्दा उठा था और विधानसभा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी तैयार किया गया लेकिन आज तक यह सुविधा शुरू नहीं हो पाई है। डा. दहिया ने सरकारी अस्पतालों में इस टैस्ट को शुरू करवाने के लिए खाप पंचायतों को लड़ाई शुरू करने का आह्वान किया। डा. दहिया ने कहा कि आज लोगों में हड्डियों व पेट के रोगों के फैलेने का मुख्य कारण पेस्टीसाइड के कारण दूषित 
होता हमारा खान-पान है।  

कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास करेंगी खाप पंचायतें

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई थाली को जहर मुक्त बनाने की इस मुहिम को जींद के अलावा पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए खाप पंचायतें हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि किसान-कीट की लड़ाई का मामला खाप की अदालत में है और खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पिछले 2 वर्ष से इन पाठशालाओं में जाकर अपना रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। खाप पंचायतें अगले वर्ष एक बड़ी पंचायत का आयोजन कर इसके खिलाफ लड़ाई की अगली रणनीति तैयार करेंगी। 

घूंघट के पीछे से किसानों को दिया जहरमुक्त खेती का संदेश

देश की हर क्रांति में पुरुषों के बराबर रही है महिलाओं की भागीदारी : मैडम दलाल


जींद। इतिहास गवाह है, जब-जब देश में क्रांति हुई है, तब-तब उस क्रांति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर रही है। यह बात मैडम कुसुम दलाल ने वीरवार को गांव रधाना में आयोजित महिला किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोलते हुए कही। कार्यक्रम में कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग के एस.डी.ओ. डा. युद्धवीर सिंह, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रवि, डा. राजेंद्र शर्मा तथा डा. युद्धवीर सिंह भी विशेष रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान महिला कीट कमांडों किसानों ने हरियाणवी संस्कृति को निभाते हुए घूंघट के पीछे से किसानों को जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने का संदेश दिया और अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा किए। इस अवसर पर किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से डायरी का विमोचन भी किया। 
महिला कीट कमांडो किसान अंग्रेजो, कमलेश, कविता, नारो, राजवंती ने कहा कि आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान के कारण बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले मां के दूध में भी अब जहर की मात्रा मिलने लगी है, जो पूरी मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरे की दस्तक है। उन्होंने कहा कि 10 हजार साल पहले खेती की शुरूआत हुई थी और तभी से किसानों, कीटों और पौधों का आपस में गहरा रिश्ता था लेकिन लगभग 30 साल पहले इस रिश्ते को खत्म करने की साजिश रची गई और किसानों को गुमराह करते हुए बताया गया कि कीटों से फसल को 22 प्रतिशत नुक्सान होता है। इसके बाद 

 महिलाओं को सम्बोधित करती मैडम कुसुम दलाल। 

कृषि वैज्ञानिकों ने इस 22 प्रतिशत नुक्सान की रिकवरी के लिए पहले किसानों को कीटों को नियंत्रण करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना तथा फिर कीटों का प्रबंधन करना सिखाया लेकिन इसके बाद भी कीटों पर 
डा. सुरेंद्र दलाल पर आधारित डायरी का विमोचन करते अधिकारी। 
काबू नहीं पाया जा सका। उन्होंने कहा कि अब खुद कृषि वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार चुके हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से मात्र 7 प्रतिशत ही रिकवरी होती है। मात्र 7 प्रतिशत की रिकवरी के लिए किसान अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर फसल खर्च तो बढ़ा रहा है, साथ-साथ खाने को भी जहरीला बना कर अपने तथा दूसरों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस अवसर पर महिला किसानों ने 'खेतैं में खड़ी ललकारुं तू जहर ना लाइए, लैइए खाद का घोल कीडय़ां की जान बचाइए', 'खेती चौपट, कर्जा भारी दिखै घोर अंधेरा' आदि गीतों के माध्यम से कीटनाशकों पर कटाक्ष किए और किसानों को जहरमुक्त खेती कर कीटों को बचाने का आह्वान किया। किसानों ने कार्यक्रम में मौजूद सभी अतिथिगणों को पगड़ी तथा शाल भेंट कर स्वागत किया। महिलाओं के कार्यों को देखते हुए मैडम कुसुम दलाल ने निडाना, निडानी व रधाना गांव की महिलाओं को 1100-1100 रुपए और कुलदीप ढांडा ने 500 रुपए पुरस्कार  स्वरूप दिए। 

163 किस्म के मांसाहारी कीटों की खोज की



महिला किसानों को पुरस्कृत करती मैडम कुसुम दलाल। 
महिला कीट कमांडो किसानों ने बताया कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पत्ते खाने वाले कीट, 4 किस्म के फूल खाने वाले कीट तथा 3 किस्म के फल खाने वाले कीटों की खोज की है। इसके अलावा इनको कंट्रोल करने के लिए 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान भी की जा चुकी है। 

हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से भयभीत न हो किसान

कीट कमांडों महिला किसानों ने बताया कि जब तक उन्हें कीटों की पहचान नहीं हुई थी, तब तक उन्हें कपास की फसल में मौजूद हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से डर लगता था। क्योंकि यह तीनों कीट कपास की फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मेजर कीटों में शुमार हैं लेकिन जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तथा इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है, तब से इनके प्रति इनका भय पूरी तरह से निकल चुका है। 
कार्यक्रम में अपने अनुभव सांझा करती महिला किसान

किसी जंग जीतने से कम नहीं आर्म्स लाइसैंस हासिल करना

आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा नहीं निर्धारित की गई गाइड लाइन 

होमगार्ड की पर्ची से लेकर लाइसैंस बनवाने तक पैसे व सिफारिश के बिना नहीं बनता काम
आर्म्स डीलर की मनमर्जी पर भी नकेल नहीं डाल पा रहा प्रशासन 


जींद। आर्म्स लाइसैंस बनवाकर पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (पी.एस.ओ.) तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की चाह रखने वाले बेरोजगारों के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। इसके लिए बेरोजगार युवाओं को होमगार्ड की पर्ची से लेकर आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए या तो दलालों का सहारा लेना पड़ता है या फिर किसी बड़े अधिकारी के दरवाजे की धूल चाटनी पड़ती है। अब तो हालत यह हो गए हैं कि आर्म्स लाइसैंस बनवाने वाले जरूरतमंद व बेरोजगार युवाओं को आर्म्स लाइसैंस की फाइल जमा करवाने के लिए भी अपरोच की जरुरत पडऩे लगी। जिला प्रशासन द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए किसी तरह की कोई गाइड लाइन जारी नहीं किए जाने के  कारण आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले आवेदकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि शौक के लिए हथियार खरीदने वाले बड़े-बड़े डीलरों के लाइसैंस आसानी से बन जाते हैं।
सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं होने के चलते बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं का रूझान आर्म्स लाइसैंस की तरफ काफी बढ़ रहा है लेकिन हथियार की सहायता से पी.एस.ओ. तथा सिक्योरिटी के क्षेत्र में इंट्री करने के इच्छुक युवाओं के लिए आर्म्स लाइसैंस बनवाना एक सपना बनाकर रह गया है। आर्म्स लाइसैंस बनवाने के लिए कई माह से डी.सी. कार्यालय तथा होमगार्ड कार्यालय के चक्कर काट रहे सतीश मलिक, मनोज सोनी, नरेंद्र निडानी, बिट्टू शर्मा, अजीत पूनिया, विक्रम भैण का कहना है कि आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई गाइड लाइन जारी नहीं की गई हैं। इसके चलते सरकारी कार्यालयों में बैठे कुछेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया को अपनी आमदनी का जरिया बना लिया है। आर्म्स लाइसैंस की आड़ में पैसा कमाने वाले इन चुनिंदा अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा आर्म्स लाइसैंस बनाने के लिए खुद के नियम तय किए हुए हैं और ऐसे में आर्म्स लाइसैंस के आवेदन के लिए आने वाले उम्मीदवारों पर यह खुद के नियमों का भार डालकर उनकी जेबें तराशने का काम करते हैं। आर्म्स लाइसैंस की चाह रखने वाले युवाओं को होमगार्ड की पर्ची बनवाने से लेकर फाइल जमा करवाने तक अपरोच करवानी पड़ती है। खेल यहीं पर खत्म नहीं होता। इसके बाद पुलिस वैरिफिकेशन से लेकर फाइल को एक अधिकारी की टेबल से दूसरे अधिकारी की टेबल तक पहुंचाने के लिए या तो फाइल पर पैसों के पंख लगाने पड़ते हैं या फिर बड़े अधिकारी की सिफारिश करवानी पड़ती है। इस प्रकार सिक्योरिटी के क्षेत्र में हथियार की सहायता पर नौकरी की इच्छा रखने वाले युवाओं को आर्म्स लाइसैंस बनवाने से लेकर हथियार खरीदने तक लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यदि किसी आवेदक के पास पैसा या अपरोच नहीं है तो उसे प्रशासनिक अधिकारियों के नियमों की चक्की में पिसना पड़ता है।
 वह युवा जिनसे बातचीत की गई। 

खिलाडिय़ों को प्राथमिकता के आधार पर जारी किया जाए आर्म्स लाइसैंस

पिस्टल शूटर सुरेश पूनिया ने कहा कि आज बढ़ती बेरोजगारी के कारण रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं लेकिन सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। रिवाल्वर, पिस्टल या गन की सहायता से पी.एस.ओ. या किसी कंपनी में 10 से 30 हजार रुपए मासिक की सिक्योरिटी की नौकरी आसानी से मिल सकती है। इसलिए सरकार व जिला प्रशासन को चाहिए कि आम्र्स लाइसैंस के नियमों में सरलीकरण लाया जाए और जरूरतमंदों की अच्छी तरह से वैरिफिकेशन करवाकर उन्हें जल्द से जल्द आर्म्स लाइसैंस मुहैया करवाया जाए, ताकि वह अपना तथा अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। खाली शौक या प्रतिष्ठा के लिए हथियार रखने वालों के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाई जाए।

गन हाऊस के संचालकों पर भी शिकांजा कसने की जरुरत

जिले में महज कुछेक गिने चुने गन हाऊस हैं। इसके चलते इनमें कम्पीटिशन भी ना के बराबर है। आर्म्स डीलर इस बात का खूब फायदा उठा रहे हैं। यह आर्म्स डीलर अपने मनमाने रेटों पर हथियार के कारतूस बेचते हैं। कारतूस के वास्तविक रेट से कई-कई गुणा ज्यादा रेटों पर कारतूसों की बिक्री की जा रही है। यदि कोई इनसे कारतूस के बिल की मांग करता है तो यह बिल देना से साफ मना कर देते हैं। यदि बिल के लिए कोई लाइसैंस धारक ज्यादा दबाब बनाता है तो उसे कम रेट का बिल बनाकर थमा दिया जाता है। इस प्रकार आर्म्स डीलरों की मनमर्जी से भी आर्म्स लाइसैंस काफी हद तक परेशान हैं। आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि जिला प्रशासन को आर्म्स डीलरों पर भी शिकंजा कसने की जरुरत है।

ऑल इंडिया या 3 स्टेट लाइसैंस की प्रक्रिया हो सरल

आर्म्स लाइसैंस धारकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने आम्र्स लाइसैंस के नियमों में जो फेरबदल कर आल इंडिया के लाइसैंसों पर पाबंदी लगाकर 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया शुरू की है, उस प्रक्रिया में भी काफी खामी हैं। जो व्यक्ति पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में नौकरी करना चाहता है, उसे एक स्टेट की बजाए कई स्टेट के लाइसैंस की जरुरत होती है। हरियाणा में ज्यादा बड़ी इंडस्ट्री नहीं होने के कारण यहां पी.एस.ओ. या सिक्योरिटी के क्षेत्र में रोजगार कम हैं। इसलिए हथियार खरीदने के बाद नौकरी के लिए युवाओं को दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है लेकिन हरियाणा से बाहर का लाइसैंस नहीं होने के कारण वह मन मसोस कर रह जाते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह या तो ऑल इंडिया के लाइसैंस शुरू करे या 3 स्टेट के लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया को सरल करे, ताकि लाखों रुपए कीमत का हथियार खरीदने के बाद कोई भी जरूरतमंद दूसरे प्रदेश में जाकर अपना रोजगार तलाश कर सके।

रोडवेज की बसों में छात्राओं को मुफ्त यात्रा से जींद डिपू को हर वर्ष झेलना पड़ेगा 33 लाख का घाटा

रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राओं को नहीं मिल पाएगा पूरा लाभ

 जींद। नए वर्ष पर रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना लागू होने जा रही है। इस योजना के अमल में आने के बाद हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 33 लाख का नुक्सान उठाना पड़ेगा। हरियाणा रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने के बाद हर वर्ष लगभग 24 करोड़ का घाटा झेल रहे जींद डिपू का यह नुक्सान बढ़कर 24 करोड़ 33 लाख हो जाएगा। वहीं रोडवेज बेड़े में घटती बसों की संख्या के कारण छात्राओं के लिए सरकार की यह योजना सफेद हाथी बनकर रह जाएगी। रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के चलते छात्राएं पूरी तरह से इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाणा रोडवेज की बसों की सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की छात्राओं को सरकार की इस योजना का कोई खास लाभ नहीं मिल पाएगा। इस योजना के शुरू होने के बाद रोडवेज की आय का एक ओर स्त्रोत कम हो जाएगा। इस योजना के शुरू होने से पहले रोडवेज के पास 26 ऐसी कैटेगरी हैं जो रोडवेज में पूरी तरह से फ्री यात्रा करती हैं और 7 ऐसी कैटेगरी हैं जो रियायत पर रोडवेज की बसों में यात्रा कर रही हैं। 
 जींद बस स्टैंड पर खड़ी बसों का फोटो। 

महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को कैसे मिलेगी मुफ्त सफर की सुविधा 

इस समय जींद जिले के रोडवेज बेड़े में कुल 174 बसें हैं। इसमें जींद डिपू में कुल 114 बसें, नरवाना डिपू में 24 और सफीदों डिपू के पास 36 बसें हैं। इसके अलावा इस बेड़े में से भी हर माह लगभग 10 बसें कंडम हो जाती हैं और कंडम होने वाली बसों के स्थान पर कम संख्या में नई बसें वापिस बेड़े में शामिल होती हैं। इन 174 बसों में से हर रोज महज 130 बसें ही मुश्किल से सड़कों पर दौड़ पाती हैं। बाकि बसें ड्राइवरों की कमी से वर्कशॉप में धूल फांकती रहती हैं। जबकि जींद जिले में बसों में सफर कर स्कूल, कालेजों व अन्य शिक्षण संस्थानों में जाने वाली छात्राओं की संख्या लगभग 5 हजार के करीब है। इस प्रकार महज 174 बसों के सहारे 5 हजार छात्राओं को सरकार किसी प्रकार से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की सुविधा मुहैया करवा पाएगी। 

सिर्फ 60 किलोमीटर तक ही मिल पाएगा छात्राओं को मुफ्त सफर का लाभ 

प्रदेश सरकार द्वारा 10 नवम्बर को गोहाना रैली में की गई छात्राओं को रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की घोषणा पर 1 जनवरी 2014 से अमल शुरू हो जाएगा। इसके लिए रोडवेज विभाग के महानिदेशक द्वारा सभी डिपुओं को पत्र जारी किए जा चुके हैं। सरकार की घोषणा के अनुसार छात्राएं सिर्फ 60 किलोमीटर तक की रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी। 60 किलोमीटर से ज्यादा सफर करने वाली छात्राओं को आगे के सफर के लिए टिकट लेनी होगी। 

कैंसर के मरीजों को मिलेगा लाभ

छात्राओं के साथ-साथ कैंसर पीडि़त मरीजों को भी एक जनवरी से रोडवेज की बसों में मुफ्त सफर की योजना का लाभ मिलेगा। इसके लिए कैंसर के मरीजों को सामान्य अस्पताल के सिविल सर्जन कार्यालय से लिखित में पत्र लेकर आना होगा। सिविल सर्जन कार्यालय से जारी पत्र के आधार पर रोडवेज विभाग द्वारा कैंसर पीडि़त मरीज को उपचार के दौरान रोडवेज की बसों में सफर के लिए मुफ्त यात्रा का कार्ड जारी किया जाएगा।  

स्टूडैंट पास से जींद डिपू को हर वर्ष होती है 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी

स्टूडैंट पास से हर वर्ष अकेले जींद डिपू को 1 करोड़ 25 लाख की आमदनी होती है। इस वर्ष जींद डिपू द्वारा लगभग 7400 विद्यार्थियों को पास जारी किए गए हैं। इनमें 5500 छात्र तथा 1900 छात्राएं पास होल्डर हैं। इस प्रकार जींद में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आने वाले विद्यार्थी जींद डिपू की आमदनी का एक बड़ा स्त्रोत हैं लेकिन जनवरी 2014 से रोडवेज की बसों में छात्राओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना शुरू होने से जींद डिपू को हर वर्ष लगभग 33 लाख रुपए का नुक्सान उठाना पड़ेगा।

अब तक रोडवेज द्वारा लड़कियों से ली जाने वाली पास की फीस की सूची 

किलोमीटर      एक वर्ष का किराया

1 से 5  180
6 से 10  360
11 से 15          540
16 से 20          720
21 से 25          900
26 से 30         1080
31 से 40         1440
41 से 50         1800
51 से 60         2160

रोडवेज के पास पहले से हैं 26 फ्री तथा 7 रियायत पर सफर करने वाली कैटेगरी

रोडवेज विभाग के पास पहले ही 26 कैटेगरी ऐसी हैं, जो सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहत रोडवेज की बसों में फ्री यात्रा का लाभ ले रही हैं तथा 7 ऐसी कैटेगरी हैं, जो रोडवेज की बसों में रियायत पर सफर करती हैं। इस प्रकार अब रोडवेज की यह सूचि 26 से बढ़कर 28 हो जाएगी। 

सरकार निजी बसों में भी लागू करे मुफ्त यात्रा की योजना

प्रदेश सरकार द्वारा रोडवेज की बसों में छात्रओं के मुफ्त सफर की जो योजना लागू की गई है, वह सरकार की एक अच्छी पहल है लेकिन रोडवेज की बसों के साथ-साथ सरकार को यह योजना निजी बसों में भी लागू करनी चाहिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्र से निजी बसों में आने वाली छात्राएं भी सरकार की इस योजना का लाभ ले सकें। वहीं सरकार द्वारा किसी भी कैटेगरी को रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा का लाभ देने पर उस कैटेगरी से रोडवेज को होने वाली आमदनी के बदले में सरकार को आॢथक सहायता भी देनी चाहिए ताकि रोडवेज विभाग को घाटे से बचाया जा सके। 
बलराज देशवाल, राज्य प्रधान
हरियाणा रोडवेज मिनिस्ट्रीयल स्टाफ एसोसिएशन
बलराज देशवाल का फोटो।











अलग तरह का होगा छात्राओं के बस पास का फार्मेट

एक जनवरी से छात्राओं के लिए रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की योजना लागू हो जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा सभी स्कूलों, कालेजों व शिक्षण संस्थानों से पास होल्डर छात्राओं की सूची मांगी जाएगी, ताकि इस योजना के  लागू होने से जींद डिपू को होने वाले घाटे का अंकलन लगाया जा सके। वहीं रोडवेज विभाग द्वारा छात्राओं को जारी किए जाने वाले पास का फार्मेट भी अलग तरह का होगा, ताकि कोई लड़की नकली पास बनवाकर मुफ्त सफर की योजना की आड़ में रोडवेज को चूना न लगा सके। 
राहुल जैन, महाप्रबंधक का फ़ोटो 


राहुल जैन, महाप्रबंधक
हरियाणा रोडवेज, जींद डिपू 


Sunday, 27 October 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं किसान : डा. सिहाग


विधिवत रूप से हुआ साप्ताहिक बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला का समापन

कहा, रंग लाने लगी डा. सुरेंद्र दलाल की मुहिम 


जींद। कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम शुरू की थी कीट कमांडों किसान उस मुहिम को सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी है और जींद जिले के साथ-साथ दूसरे जिलों के किसान भी इन किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहरमुक्त थाली का जो सपना देखा था बहुत जल्द वह सपना साकार होगा और जहरयुक्त भोजन से होने वाली शारीरिक बीमारियों से लोगों को छुटकारा मिलेगा, वहीं कीटनाशकों पर अनावश्यक रूप से बढ़ते खर्च से भी किसानों को निजात मिलेगी। डा. सिहाग वीरवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच टेकराम ने डा. सिहाग को पगड़ी पहनाकर तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किसानों को दिए जा रहे योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनके साथ बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के उप-प्रधान बिल्लू खांडा, जिला प्रधान महेंद्र घीमाना, ईश्वर भी मौजूद थे।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि 22 जून से इस पाठशाला का शुभारंभ हुआ था और हर सप्ताह के शनिवार को पाठशाला का आयोजन किया जाता था। 18 सप्ताह तक चलने वाली इस पाठशाला में दूसरे जिलों के किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस पाठशाला का भ्रमण कर किसानों की मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। डा. सैनी ने पाठशालाओं में किसानों द्वारा किए गए कार्यों तथा पौधों का कीट के साथ क्या रिश्ता है और कीट फसल में क्यों आते हैं आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। डा. सैनी ने कहा किकीटों को काबू करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीटों को पहचाने और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करने की और यह काम किसानों को खुद ही करना होगा। राजपुरा भैण के किसान रामस्वरूप ने पाठशाला में अपना अनुभव रखते हुए बताया कि उसने कपास का एक एकड़ पाठशाला को समॢपत किया हुआ है और कीट कमांडों किसानों की मानकर उसने अपने इस एक एकड़ में एक छटांक भी जहर का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उसके साथ लगते कपास की 2 एकड़ फसल में उसने कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन आज भी बिना जहर की कपास की फसल से दूसरी फसलों के बराबर का उत्पादन मिल रहा तथा इस एक एकड़ पर उसका दूसरी फसलों से खर्च भी काफी कम हुआ है। पाठशाला के समापन पर बाहर से आए सभी गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सभी किसानों को अपनी खेती का लेखा-जोखा रखने के लिए डायरी तथा पैन भी भेंट किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई किसानों की मुहिम पर मोहर

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने एक अंग्रेजी न्यूज पेपर का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कीट कमांडों की मुहिम पर अपनी मोहर लगाई है। ढांडा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जहर रहित खाना उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरफ प्रयास करने की जरुरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में पेस्टीसाइड एक्ट की पालना नहीं हो रही है और इस सब के लिए सरकार जिम्मेदार है। ढांडा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साबित हो गया है कि जींद के किसान जिस मुहिम को पिछले 6 वर्षों से अपने बलबूते पर चला रहे हैं, वह एक दिन बहुत बड़ी क्रांति की शुरूआत है और देश को इसकी बहुत जरुरत है।

भैंस बेच कर उतारा कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज

पाठशाला में अपने अनुभव किसानों के साथ सांझा करते हुए गांव निडाना के किसान सुरेंद्र ने भावूक होते हुए कहा कि एक वह समय था जब उसने अपनी भैंस बेचकर कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज उतारा था। सुरेंद्र ने बताया कि वह पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। वर्ष 2002 में एक एकड़ कपास की फसल में उसका खर्च 16 हजार था लेकिन इतने ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी उसकी पैदावार महज 10 से 12 मण की होती थी। फसल में अधिक खर्च होने तथा पैदावार कम होने के कारण उस पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रही था। इसी से परेशान होकर उसने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ दिया था। सुरेंद्र ने बताया कि वर्ष 2012 में वह कीट कमांडों किसानों के संपर्क में आया। अब वह पूरी तरह से जहरमुक्त खेती करता है और उसकी पैदावार भी लगातार बढ़ रही है।

याद आए डा. सुरेंद्र दलाल

पाठशाला के समापन अवसर पर किसान डा. सुरेंद्र दलाल को याद कर भावूक हो गए थे। किसानों ने बताया कि जिस कीट ज्ञान की बदौलत आज उन्होंने जहरमुक्त खेती को अपना कर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से मुक्ति पाई है, उस कीट ज्ञान की खोज डा. सुरेंद्र दलाल ने की थी। सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपनी नौकरी और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर किसानों को कीट ज्ञान की तालीम देकर उन्हें जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया और आज उनकी यह मेहनत रंग ला रही है।
 पाठशाला के समापन अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग।

 डा. कमल सैनी को पगड़ी पहनाकर तथा किसान को डायरी पैन देकर सम्मानित करते बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। 

Monday, 7 October 2013

शौक पूरा के लिए सरकारी नौकरी को मार दी ठोकर

आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है सिवाहा का रोहताश


जींद। महंगाई व बेरोजगारी के इस दौर में लोग जहां नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और अपने शौक के विपरित भी जाकर काम करने को मजबूर हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ही ठोकर मार दी। जींद जिले के सिवाहा गांव निवासी रोहताश ने मूर्ति कला के अपने शौक को पूरा करने के लिए आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ दी। 
मूर्ति कला के क्षेत्र में रोहताश का आज कोई शानी नहीं है। अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ रोहताश अपनी कला के दम पर ही अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और रोहताश द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज जींद जिले ही नहीं बल्कि जींद जिले से बाहर के मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।   
गांव सिवाहा निवासी रोहताश को पढ़ाई के  दौरान मूर्ति निर्माण का शौक लगा था। रोहताश के अंदर छिपे एक मूर्ति कलाकार को निखाकर बाहर निकालने में उसकी मदद की उसके ड्राइंग अध्यापक महेंद्र भनवाला ने। रोहताश ने छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान अपने गुरु महेंद्र भनवाला से ड्राइंग की बारीकियों को सीखा और अपने अंदर के कलाकार को पहचान कर कागज के टुकड़ों पर मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। कागज के टुकड़ों के बाद रोहताश ने कच्चे रंगों से मूर्तियों का निर्माण शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली और मिट्टी का स्थान सीमैंट ने लेना शुरू किया तो रोहताश ने भी अपने कार्य में परिवर्तन करते हुए सीमैंट से मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया। 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में रोहताश ने आई.टी.बी.पी. में सिपाही के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन रोहताश के अंदर बैठे मूर्ति कलाकार को यह रास नहीं आया। आई.टी.बी.पी. में एक साल तक देश सेवा करने के बाद 1990 में रोहताश ने नौकरी छोड़ दी। सरकारी नौकरी छोडऩे के बाद रोहताश ने अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहा है लेकिन इस दौरान रोहताश को कभी भी अपने 
मूर्ति को अंतिम रुप देता मूर्ति कलाकार रोहताश सिंह।

मूर्ति कलाकार रोहताश द्वारा निर्मित शिव की मूॢतयां।
नौकरी छोडऩे के फैसले पर रतीभर भी अफशोस नहीं हुआ। रोहताश अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ आज अपनी इसी कला के दम पर अपने परिवार का पालन-पोषण भी अच्छे तरीके से कर रहा है। इतना ही नहीं रोहताश हर किस्म की मूर्तियां बनाने का एक्सपर्ट है। 

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। 

मुनाफे के नहीं लागत के आधार पर तय होती है कीमत 

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि वह मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्तियों का निर्माण करता है। रोहताश का कहना है कि शौक की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए वह अपनी मूर्तियों की कीमत मुनाफा लेने के लिए नहीं सिर्फ लागत पूरी करने के लिए लागत के आधार पर ही मूर्ति की कीमत तय करता है। 

अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह

कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार  

कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग


जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे। 
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल 
 कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान।
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। 

राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज


पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान

डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।

पंजाब बना कैंसर की राजधानी

किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।  

कपास में यह-यह कीट थे मौजूद 

पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी। 

Friday, 20 September 2013

कीटों की मास्टरनियों के अनुभवों को किया कैमरे में कैद

दूरदर्शन की टीम ने ललितखेड़ा के खेतों में पहुंचकर 4 घंटों तक सांझा किए महिलाओं के अनुभव 


जींद। खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम महिलाओं के क्रियाकलापों की रिकर्डिंग करने के लिए वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। दूरदर्शन की टीम ने लगभग 4 घंटे तक खेतों में बैठकर महिलाओं के क्रियाकलापों को देखा और उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान टीम के सदस्यों ने महिलाओं द्वारा कीटों पर आधारित गीतों को भी शूट किया। टीम द्वारा शूट किए गए कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर को दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में सुबह के शैड्यूल में किया जाएगा।  
दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में लगभग 1 बजे ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। इस दौरान उनके साथ प्रसारण कार्यकारी अधिकारी विकास डबास तथा कैमरामैन डी.पी. सिंह भी थे। टीम के सदस्यों ने महिलाओं से उनके क्रियाकलापों पर विस्तार से बातचीत की। कीटों की मास्टरनियां राजवंती, अंग्रेजो, नीलम, सविता, नारो, शीला, मिनी मलिक, कमलेश ने बताया कि वह 5-5 के ग्रुप बनाकर फसल में मौजूद कीटों की पहचान करती हैं और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाती हैं। कीटों का आकार काफी छोटा होता है। इसलिए वह इनकी पहचान के लिए सुक्ष्मदर्शी लैंसों का सहारा लेती हैं। इसके बाद पौधों पर मौजूद कीटों की गिनती कर उनकी समीक्षा करती हैं। इस दौरान महिलाओं ने टीम के सदस्यों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई। कीटों को नियंत्रण करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी 2 किस्म के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट पौधों, पत्तों और फल-फूल को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उसी तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं। कीट न हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुशमन। कीट किसान को हानि या लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। इस प्रकार दोनों के जीवन यापन की इस प्रक्रिया में किसान को लाभ पहुंचता है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण उन्हें कीटों के नाम याद रखने में परेशानी होती थी। इसलिए उन्होंने इनके नाम याद रखने के लिए इनके क्रियाकलापों के आधार पर इनके आम बोलचाल के नाम रख लिए हैं। अंग्रेजो ने बताया कि जब वह अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते थे तो कपास की चुगाई के वक्त उन्हें एलर्जी, सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती थी लेकिन जब से उन्होंने कीटनाशकों का प्रयोग बंद किया है, तब से उन्हें कपास की चुगाई के दौरान एलर्जी व सिरदर्द की समस्या नहीं होती है और उनके उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। कीटनाशकों का इस्तेमाल छोड़कर उन्हें 2 फायदे हुए हैं। एक तो उनकी थाली से जहर कम हुआ है और दूसरा उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहने लग है। इससे बीमारियों पर खर्च होने वाला उनका पैसा बच रहा है। रधाना से आई महिला किसान कमला व सरोज ने बताया कि उनके गांव में इस वर्ष से महिलाओं की क्लाश शुरू हुई है। ललितखेड़ा की महिलाएं उनके गांव में पढ़ाने के लिए आती हैं। इस मुहिम से जुडऩे से पहले वह इस काम से बिल्कुल अनभिज्ञ थी लेकिन अब उन्हें कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है। कीट ज्ञान के बल पर ही इस बार वह जहरमुक्त खेती कर रही हैं। जहरमुक्त खेती करने से उनका परिवार बेहद खुश हैं। कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि चूल्हे-चौके के साथ-साथ अब वह भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी का भी पूरा कार्य संभालती हैं। 
 महिलाओं के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद करती दूरदर्शन की टीम।

कीटों पर की है गीतों की रचना 

कीटों की मास्टरनियों के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुकी ललितखेड़ा की महिलाओं की मुहिम यहीं खत्म नहीं होती। इन महिलाओं ने अपने मनोरंजन के साथ-साथ दूसरे किसानों को भी इस मुहिम की तरफ आकर्षित करने के लिए कीटों पर दर्जनभर से भी ज्यादा गीतों की रचना भी की है। महिलाओं की मुहिम की कवरेज के लिए ललितखेड़ा गांव पहुंची दूरदर्शन की टीम को महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत 'हे बिटल म्हारी मदद करो, हामनै तेरा एक सहारा है। 'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़कै हो' गीत भी सुनाए। दूरदर्शन की टीम ने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किए गए इन दोनों गीतों की रिकर्डिंग भी की।
ग्रुप में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियां।

कृषि दर्शन पर देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों को शूट करने के लिए आज जींद पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम


जींद। ललितखेड़ा गांव की कीटों की मास्टरनियां अब दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम के माध्यम से देशभर के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। इस कार्यक्रम के दौरान कीटों की मास्टरनियां देशभर के किसानों को कीट ज्ञान हासिल कर खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने का संदेश देंगी। इसके लिए वीरवार को दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में ललितखेड़ा गांव में पहुंचेगी। ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंचकर टीम द्वारा कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों तथा खेती के तौर तरीकों को कैमरे में कैद किया जाएगा। इसके बाद शुक्रवार को टीम के सदस्य राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के कार्यों को भी कैमरे में शूट किया जाएगा।    
खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की वीरांगनाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर के किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम वीरवार को 2 दिन के लिए जींद के दौरे पर आ रही है। दूरदर्शन की टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के कीटाचार्य किसानों तथा कीटों की मास्टरियों के अनुभव को कैमरे में कैद किया जाएगा। इस दौरान महिलाओं द्वारा कीटों पर अधारित गीतों को भी शूट किया जाएगा। दिल्ली दूरदर्शन की टीम के प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना तथा प्रसारण कार्यकारी विकास डबास का कहना है कि आज किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण खेती में खर्च लगातार बढ़ रह है। इसलिए खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है तथा बेजुबान जीवों की हत्या भी हो रही है। खान-पान तथा दूषित होते वातावरण के कारण इंसान लगातार भिन्न-भिन्न प्रकार की लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ रहा है। देश के किसानों को इस बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ही उनकी टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के किसानों के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया जाएगा। विकास डबास का कहना है कि खेती के कार्यों में अभी तक महिलाओं का 70 प्रतिशत योगदान होता था लेकिन ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाकर चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती में अपना 100 प्रतिशत योगदान दर्ज करवाया है। इससे समाज के सामने महिलाओं का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है। महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में अपनी 100 प्रतिशत भागीदारी दर्ज करवाकर यह भी साबित कर दिया है कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। डबास ने बताया कि टीम द्वारा वीरवार को ललितखेड़ा गांव की महिलाओं तथा शुक्रवार को राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में आने वाले किसानों के अनुभवों को कैमरे में शूट किया जाएगा। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियों

15-15 मिनट के 2 कार्यक्रम होंगे शूट

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा वीरवार और शुक्रवार को महिलाओं तथा पुरुष किसानों के 15-15 मिनट के 2 अलग-अलग कार्यक्रम शूट किए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में इन कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाएगा। पहले कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर तथा दूसरे कार्यक्रम का प्रसारण 1 अक्तूबर को होगा। 

हमारी जीवनदायनी वस्तुएं हो चुकी हैं जहरीली

एक दिवसीय किसान संगोष्ठी में किसानों ने सांझा किए अपने अनुभव


जींद।  दूरदर्शन हिसार के तकनीकि डिप्टी डायरैक्टर जिले सिंह जाखड़ ने कहा कि किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए 2 चीजें सबसे ज्यादा जरुरी हैं। एक स्वच्छ वातावरण और दूसरा शुद्ध भोजन लेकिन आज हमारी ये जीवनदायनी दोनों ही वस्तुएं जहरयुक्त हो चुकी हैं। जाखड़ सोमवार को कृषि विभाग तथा ईंटल कलां के किसानों द्वारा ईंटल कलां गांव में आयोजित एक दिवसीय विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, आल इंडिया रेडियो रोहतक से सम्पूर्ण, कृषि विभाग के बी.ई.ओ. जे.पी शर्मा, ए.डी.ओ. राजेंद्र, रमेश, डा. कमल सैनी, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसुम दलाल, अक्षत दलाल, आई.पी.एम. सैंटर फरीदाबाद से डा. एस.सी. शर्मा, डा. विनोद, बी.पी. सिंह जगपाल, सुनील कंडेला तथा ईंटल कलां के सरपंच महाबीर सिंह विशेष रूप से मौजूद थे। किसानों ने अतिथिगणों को पगड़ी पहनाकर स्वागत किया।
जाखड़ ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि इंसान को पैसे देने के बावजूद भी शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा है, यानि इंसान पैसे देकर भी जहर खाने पर मजबूर है। इसका मुख्य कारण जागरूकता के अभाव में किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना है। अधिक मात्रा में फसलों में कीटनाशकों के 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान तथा कार्यक्रम में मौजूद किसान।
प्रयोग से वातावरण और खाद्य वस्तुओं का जहरयुक्त होना पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है। डा. कमल सैनी और कीटाचार्य रणबीर मलिक ने कहा कि आज खेती में खर्च ज्यादा बढऩे के कारण किसान पैदावार से संतुष्ट नहीं है। जहां पैदावार बढ़ रही है, वहीं कीटनाशकों और उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण खर्च भी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि कीटों को लेकर किसान भ्रमित है। कीटों और बीमारियों के बीच के अंतर के बारे में किसान को जानकारी नहीं है। इसलिए सबसे पहले किसानों को इस भ्रम को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि आज के दिन कपास की फसल में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मरोडिय़े (लीपकरल) की है। पूरी दुनिया में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। यह एक वायरस है और सफेद मक्खी इसको फैलाने में वाहक का काम करती है। एक सफेद मक्खी भी इस बीमारी को पूरे खेत में फैला सकती है। इसका तो सिर्फ एक ही समाधान है और वह है पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक देना। पौधे को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने से पौधा इस बीमारी से लडऩे की क्षमता पैदा कर लेता है। मलिक ने कहा कि पौधों और कीड़ों का गहरा रिश्ता है। मनबीर रेढ़ू ने कीड़ों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कीड़े न तो हमारे मित्र हैं और न हमारे दुश्मन। कीड़े तो अपना जीवन यापन करने के लिए पौधों पर आते हैं और उनके जीवन यापन के इस चक्र में किसान का फायदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि अगर किसान को 20 कीटों की पहचान भी हो जाती है तो वह कभी भी फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेगा। इस अवसर पर विभिन्न गांवों से आए किसानों ने भी अपने अनुभव रखे। जिला कृषि उप-निदेशक ने किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर किसानों ने अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया। 

 मंच पर मौजूद अतिथिगण तथा सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिले सिंह जाखड़। 

शौक को बना लिया रोजगार

मूर्ति कला के दम पर प्रदेशभर में मनवाया प्रतिभा का लोहा


जींद। आधुनिकता के इस युग में एक तरफ जहां मूर्ति कला का कार्य दम तोड़ रहा है और बड़े-बड़े मूर्ति कलाकर मूर्ति निर्माण के अपने पुस्तैनी कार्य को छोड़कर अपनी इच्छा के विपरित काम करने को मजबूर हैं, वहीं गांव बुराडहर-बुआना निवासी मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर दूर-दूर तक अपना लोहा मनवा चुका है। अजमेर जांगड़ा मूर्ति कला के क्षेत्र में आज भी अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। पूर्वजों से विरासत में मिली मूर्ति निर्माण की कला को अजमेर जांगड़ा आज भी पूरे उत्साह के साथ संजोए हुए है। अपनी मूर्ति कला के बूते आज अजमेर जांगड़ा मूर्ति निर्माण का अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार का पालन-पौषण भी ठीक तरह सेकर रहा है। 26 वर्षीय अजमेर पिछले 10 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और अजमेर द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।
गांव बुराडहर-बुआना में एक गरीब परिवार में जन्मे अजमेर जांगड़ा को बचपन से ही मूर्ति निर्माण का शौक था। अजमेर को यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। अजमेर के पड़दादा (दादा के पिता) कन्हैया राम मूर्ति निर्माण का कार्य करते थे। इसके बाद अजमेर के दादा और फिर पिता सतपाल जांगड़ा तथा अब खुद अजमेर मूर्ति निर्माण का कार्य कर अपने पूर्वजों से विरासत में मिली इस कला को आधुनिकता के इस युग में भी संजोए हुए है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से होता था लेकिन अब आधुनिकता के कारण मूर्तियों का निर्माण सीमैंट से होता है। अजमेर अपने चाचा रामपाल को अपना गुरु मानते हैं और उन्होंने अपने चाचा रामपाल से ही मूर्ति निर्माण का यह हुनर सीखा है। गांव के सरकारी स्कूल से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजमेर ने 2004 में मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया। 2004 से अब तक अजमेर कुरुक्षेत्र, जींद, पानीपत, करनाल, कैथल, फरीदाबाद, अंबाला, हिसार, सोनीपत सहित कई जिलों में अपनी मूर्ति कला का प्रदर्शन कर चुका है। इस अवधी के दौरान अजमेर ने हजारों मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें ज्यादातर मूर्तियां आराध्य देवों की हैं। धार्मिक मूर्तियों के अलावा अजमेर ने शहीदों की मूर्तियों का निर्माण भी किया है। इस तरह अजमेर द्वारा बनाई गई आराध्य देवों की मूर्तियां आज हरियाणा प्रदेश के विभिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं। अपनी कला के बूते फिलहाल अजमेर धार्मिक नगरी कुरुक्षेत्र के मंदिरों के लिए मूर्तियों का निर्माण कर रहा है। इस प्रकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार पेट भी भर रहा है।
 मूर्ति निर्माण का कार्य करता कलाकार अजमेर जांगड़ा।

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है।

सरकार को करनी चाहिए मदद

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि आज बढ़ती महंगाई तथा आधुनिकता के कारण मूर्तियों की कम होती मांग के कारण मूर्ति निर्माण का कार्य दम तोडऩे लगी है। इसके चलते कलाकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है। आर्थिक तंगी तथा सरकार द्वारा कलाकारों की कोई आर्थिक मदद नहीं दिए जाने के कारण मूर्ति कला दम तोड़ रही है। मूर्ति कलाकार आर्थिक परेशानी के चलते अपना पुस्तैनी कार्य छोडऩे को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि वे इस तरह के कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कलाकारों की आर्थिक मदद करे। ताकि लुप्त होती कला को बचाया जा सके।

मूर्ति कलाकार अजमेर द्वारा तैयार की जा रही मूर्तियां । 

Monday, 9 September 2013

कीटनाशकों से होती है महज 7 प्रतिशत ही रिकवरी

अज्ञान के कारण किसान फसलों में कर रहा है अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग

जींद। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि अगर कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसान फसलों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए अर्थार्त कीटों से फसल को होने वाले नुक्सान को रोकने के लिए जो कीटनाशकों का प्रयोग करता है, उससे महज 7 प्रतिशत की ही रिकवरी होती है लेकिन इस 7 प्रतिशत अधिक उत्पादन से जो आमदनी किसान को होती है, उससे ज्यादा पैसे तो किसान इन कीटनाशकों पर खर्च कर देता है। इस तरह बिना जानकारी के किसान को दोहरा नुक्सान होता है। एक तो किसान का पैसा बर्बाद होता है और दूसरा उसकी थाली में जहर का स्तर बढ़ रहा है। रणबीर मलिक शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी तथा मल्टीपलैक्स फर्टीलाइजर कंपनी के एस.आर. संजय कुमार भी मौजूद थे। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
रणबीर मलिक ने कहा कि किसान के पास न तो खुद का ज्ञान और न ही खुद के औजार हैं। इसलिए तो किसान और कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से यह अंतहीन जंग चली आ रही है। किसान तो दूसरों के ज्ञान और पराए हथियारों के दम पर ही किसान इस जंग को जीतने के सपने संजोए हुए है, जो कि संभव नहीं है। अगर यह लड़ाई इसी तरह चलती रही तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त मानव जाति एक गंभीर संकट में फंस कर खड़ी हो जाएगी और देश की बड़ी-बड़ी कीटनाशक कंपनियां तथा कृषि से सम्बंधित दूसरे विभाग भी इसके लिए किसानों को ही दोषी ठहराएंगे। मलिक ने कहा कि जब फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है तो फिर किसानों को कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने के लिए क्यों गुमराह किया जा रहा है। डा. कमल सैनी ने किसानों को बताया कि गांव राजपुरा भैण में किसान रामस्वरूप के जिस खेत में पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस फसल में शुरूआत से ही मरोडिय़ा (लीपकरल) का प्रकोप है और यह अब तक बरकरार है लेकिन इसके बावजूद कपास की यह फसल पूरी बढ़ौतरी कर रही है और इसमें टिंड्डे भी पूरे हैं। इस फसल में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 40-45 इस वक्त दर्ज की गई है। जबकि मरोडिय़ा के प्रकोप के चलते दूसरे जिले के किसानों ने तो कपास की खड़ी की खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुतवा दिया। इसका कारण यह है कि एक तो यहां के किसानों ने एक छटांक भी 
 एक-दूसरे के साथ अपने विचार सांझा करते किसान। 
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और दूसरा यह कि इन किसानों ने फसल को समय पर जिंक, डी.ए.पी. और यूरिया के घोल की पर्याप्त खुराक दी है। पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने के कारण मरोडिय़े से होने वाले नुक्सान की भरपाई पौधों ने इस घोल से पूर कर निरंतर अपनी वृद्धि की है और इसका परिणाम यह रहा कि यहां के किसानों को दूसरे जिलों के किसानों की तरह खेतों में खड़ी फसल को जोतने की नौबत नहीं आई। 


Wednesday, 4 September 2013

जिला प्रशासन सुस्त, सामाजिक संगठन चुस्त

डी.सी. के आदेशों के बाद भी नहीं शुरू हुआ आवारा पशुओं को पकडऩे का अभियान
शहर के सामाजिक संगठनों ने दिया अभियान को अंजाम

जींद। जींद शहर में सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को सड़कों से हटाने का जो काम जिला प्रशासन को करना था, वह काम जिला प्रशासन की बजाए शहर के कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने किया है। सामाजिक संगठन के कार्यकत्ताओं ने शनिवार को एक विशेष अभियान चलाकर शहर में घूम रहे आवारा पशुओं को एक स्थान पर एकत्रित कर शहर की गौशालाओं में छोडऩे का काम किया है। जबकि शहर के आवारा पशुओं को सड़कों से हटाकर गौशालाओं में छोडऩे का काम जिला प्रशासन द्वारा किया जाना था। इसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने नगर परिषद के अधिकारियों को सौंपी थी और 23 अगस्त से इस अभियान का श्रीगणेश किया जाना था। इस अभियान की शुरूआत के लिए खुद उपायुक्त राजीव रत्न द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश जारी किए गए थे लेकिन उपायुक्त के आदेशों के बाद भी 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई।   
शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तथा आवारा पशुओं से शहर के लोगों, दुकानदारों तथा वाहन चालकों होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए जिला प्रशासन ने आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़ कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए योजना तैयार की थी। इस योजना को अमल में लाने के लिए उपायुक्त राजीव रत्न ने प्रशासनिक अधिकारियों को 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत करने के आदेश जारी किए थे। इस अभियान को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी नगर परिषद को सौंपी गई थी। नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए एक टीम का गठन किया जाना था। अभियान को शुरू करने से पहले पशुपालकों को सूचना देने के लिए एक सप्ताह तक नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी भी करवाई जानी थी, ताकि कोई भी पशुपालक अपने पशुओं को शहर में आवारा न छोड़े। नगर परिषद द्वारा 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत की जानी थी लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों पर उपायुक्त के आदेशों को कोई प्रभाव नहीं हुआ और इसके चलते 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई। जिला प्रशासन के अधिकारियों की सुस्ती को देखते हुए शहर के सामाजिक संगठन आगे आए और सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने इस मुहिम को अंजाम दिया। गौरक्षा दल, बजरंग दल, आर्य समाज, हरियाणा तकनीकी संघ, विश्व हिंदू परिषद, अन्ना टीम तथा कई अन्य सामाजिक संगठनों ने मिलकर शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को पकड़कर रानी तालाब में एकत्रित किया। यहां से सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। इस प्रकार जो काम जिला प्रशासनिक अधिकारियों को करना चाहिए था, वह काम शहर के सामाजिक संगठनों ने किया।

पशुओं को छोडऩे वाले पशुपालकों के खिलाफ भी होनी थी कार्रवाई

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए जो योजना बनाई गई थी। उस योजना के अनुसार पशुओं का दूध दोह कर पशुओं को खुला छोडऩे वाले पशु पालकों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाने का प्रावधान था। इस योजना के अनुसार जिस पशु पालक का पशु आवारा घूमते पकड़ा जाए उस पशुपालक को पशु को छुड़वाने के लिए जुर्माना भरना पड़ेगा। जुर्माने के तौर पर पशु पालक को गौशाला में 2100 रुपए तथा चारा जुर्माने के तौर पर देने का प्रावधान किया गया था लेकिन जिला प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह योजना तय समय सीमा में शुरू नहीं हो पाई।

केवल मुनादी तक ही सिमटा अभियान 

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए जो योजना तैयार की गई थी उस योजना के अनुसार अभियान शुरू करने से पहले नगर परिषद द्वारा शहर में एक सप्ताह तक मुनादी करवाई जानी थी। मुनादी के एक सप्ताह बाद इस अभियान की शुरूआत करनी थी, ताकि कोई भी पशु पालक अपने पशुओं को आवारा छोडने की बजाए अपने घरों में बांध ले। नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी तो करवा दी गई लेकिन पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान की शुरूआत नहीं की गई। इस प्रकार जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह अभियान केवल मुनादी तक ही सिमट कर रह गया।

सड़कों से हटा मौत का सामान

शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों तथा वाहन चालकों के लिए किसी मौत के सामान से कम नहीं हैं। आवारा पशुओं के कारण रात के अंधेरे में कई बार बड़े हादसे हो चुके हैं। सड़कों पर एक दम से वाहनों के सामने आवारा पशु आने के कारण वाहन चालक के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ-साथ कई बार पशु भी चोटिल हो जाता था। इसके अलावा 24 मार्च 2012 में जींद के इनैलो विधायक डा. हरिचंद मिढ़ा भी 2 सांडों की चपेट में आने के कारण गंभीर रुप से घायल हो गए थे, वहीं कई माह पूर्व सांडों की लड़ाई के दौरान चपेट में आने के कारण वार्ड 15 के एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी है। इस प्रकार से सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों और वाहन चालकों के लिए बड़ी मुसिबत बने हुए हैं। सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशाला में छोड़े जाने का अभियान चलाने के बाद से सड़कों से मौत का सामान हट गया है। 

पशु तस्करी पर भी लगेगी रोक

शहर में आवारा पशुओं की बढ़ती तादात के कारण शहर में पशु तस्कर गिरोह भी काफी सक्रीय है। यह गिरोह रात के अंधेरे में तस्करी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान चलाए जाने के बाद शहर में बढ़ रही पशु तस्करी की घटनाओं पर भी अंकुश लगेगा।

गायों को रानी तालाब में किया गया एकत्रित

गौरक्षा दल के साथ-साथ शहर के सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए शहर में चलाए गए अभियान के दौरान पकड़े गए आवारा पशुओं तथा गायों को शहर के रानी तालाब में अस्थाई तौर पर रोका गया। यहां पर गायों तथा आवारा पशुओं के लिए पीने के पानी तथा चारे की व्यवस्था की गई। पशुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए फायर ब्रिगेड के अधिकारियों ने सामाजिक संगठनों की मदद की। फायर ब्रिगेड की गाड़ी के माध्यम से रानी तालाब में पशुओं के लिए पानी भरवाया गया। बाद में सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। अभियान की शुरूआत करने से पहले गौरक्षा संघ हरियाणा के प्रधान योगेंद्र आर्य की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन भी किया गया। बैठक में गायों को पकड़कर गौशालाओं में छोडने का निर्णय लिया गया।

जिला प्रशासन कर रहा अनदेखी

गौरक्षा दल के नगर प्रमुख संजय ने बताया कि शहर की सड़कों पर आवरा हालत में घूम रही गायों तथा अन्य आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए वह कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। उनकी मांगों पर ही उपायुक्त द्वारा 23 अगस्त से यह अभियान चलाने के निर्देश जारी किए गए थे और उनके संगठन के कार्यकत्र्ता भी जिला प्रशासन के सहयोग के लिए आगे आए थे। उन्होंने तो अपना काम कर दिया लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला। संजय ने कहा कि अब उनका संगठन जींद में गौचरण भूमि को मुक्त करवाने के लिए अभियान चलाएगा अगर जिला प्रशासन ने इस दौरान भी उनकी अनदेखी की तो वह अनशन पर बैठ कर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे।
 अभियान को शुरू करने से पहले पत्रकारों से बातचीत करते गौरक्षा दल के सदस्य। 

 रानी तालाब में गायों के लिए पानी की व्यवस्था करते सामाजिक संगठन के कार्यकत्ता । 

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...