Monday, 27 May 2013

डा. दलाल ने ता उम्र किसानों के लिए किया संघर्ष

प्रदेशभर के गणमान्य लोगों, खाप प्रतिनिधियों, कर्मचारी संगठनों तथा किसानों ने दी कीट साक्षरता के अग्रदूत को भावभीन श्रद्धांजलि


जींद। कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रविवार को रैडक्रास भवन के पास स्थित पटवार भवन में शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में प्रदेशभर के गणमान्य लोगों के अलावा 100 से अधिक खापों के बड़े-बड़े प्रतिनिधियों, पंजाब के प्रगतिशील किसानों तथा जिले के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के कीट कमांडो पुरुष तथा महिला किसानों ने शामिल होकर स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित की।
कामरेड फूल सिंह श्योकंद ने स्व. डा. दलाल के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डा. दलाल ने प्लांट ब्रिङ्क्षडग से पी.एच.डी. करने के बाद कीट साक्षरता पर रिसर्च कर एक प्रकार से लीक से हटकर काम किया है। उन्होंने निडाना गांव में 18 सप्ताह तक चली किसान खेत पाठशाला में 96 से अधिक खाप प्रतिनिधियों की उपस्थित दर्ज करवाकर खाप प्रतिनिधियों को भी राह दिखाने का काम किया था। कामरेड वीरेंद्र सिंह ने कहा कि डा. दलाल ने ता उम्र किसानों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने विकट परिस्थितियों का डट कर सामना किया लेकिन कभी भी अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया। शोक सभा की अध्यक्षता करते हुए बराह कलां तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. दलाल ने फसलों पर अपने सफल प्रयोग से यह सिद्ध करके दिखा दिया था कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती कतई संभव नहीं है, क्योंकि कीट फसलों में पर परागन में अहम भूमिका निभाते हैं। पंजाब से आए प्रगतिशील किसानों ने कहा कि पंजाब में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोगों के दूष्परिणाम अब वहां की जनता के सामने आने लगे हैं। वहां कैंसर तथा अन्य जानलेवा बीमारियां अपने पैर पसार चुकी हैं। उन्होंने अभी हाल ही में हुई एक रिसर्च के परिणाम के बारे में जानकारी देते हुए पंजाब के लोगों के खून 6 से 15 किस्म के कीटनाशकों के कण दौड़ रहे हैं। निडाना तथा ललितखेड़ा से आई महिला किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के जनहित के कार्यों को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत स्टेट अवार्ड देने की मांग की। इस अवसर पर पूर्व विधायक आई.जी. शेर सिंह, जगबीर ढिगाना, राममेहर नम्बरदार और प्रदेशभर के तमाम कर्मचारी संगठनों तथा एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी अपने विचार रखे।
 कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि देने पहुंचे खाप प्रतिनिधि तथा महिलाएं। 

अब किसानों को कीट साक्षरता का पाठ पढ़ाएंगी खापें

कीटनाशक रहित खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए शुरू करेंगी अभियान


 
जींद। भले ही आज कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल हमारे बीच नहीं रहे हों लेकिन डा. दलाल द्वारा जिले में शुरू की गई जहरमुक्त खेती के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए रविवार को हरियाणा की खाप पंचायतों ने एक बड़ा ऐलान कर दिया है। रविवार को डा. दलाल की शोक सभा में पहुंचे प्रदेशभर की बड़ी-बड़ी खापों के प्रतिनिधियों ने जहरमुक्त खेती की इस मुहिम को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है। इस तरह की सामाजिक मुहिम में खाप चौधरियों की आहुति से एक बार फिर से खाप पंचायतों का एक नया चेहरा समाज के सामने आया है। इससे पहले खाप पंचायतें कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को मिटाने के लिए अभियान चलाने का संकल्प भी ले चुकी हैं। 
काबिलेगौर है कि थाली को जहरमुक्त करने की मुहिम में जुटे कीटों के मित्र डा. सुरेंद्र दलाल पिछले 3 महीने तक संघन कौमा में रहने के बाद गत 18 मई को दुनिया से विदा हो गए थे। 19 मई को उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। रविवार को जींद के पटवार भवन में डा. दलाल को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया था। डॉ. दलाल को श्रद्धाजंलि देने के लिए प्रदेशभर की 100 से अधिक  बड़ी-बड़ी खापों के प्रतिनिधि यहां पहुंचे थे। शोक सभा में डा. दलाल को श्रद्धांजलि अपॢत करते हुए पालम नई दिल्ली खाप के प्रधान रामकरण ङ्क्षसह सोलंकी ने कहा कि कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम डा. दलाल ने निडाना गांव के खेतों से शुरू की थी उसको आगे बढ़ाना अब खाप पंचायतों की जिम्मेदारी है। क्योंकि पिछले लगभग 4 दशकों से कीटों तथा किसानों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करवाने के लिए यह मामला 26 जून 2012 को खाप पंचायत की अदालत में आ चुका है और खाप प्रतिनिधियों ने इस विवाद के समझौते के लिए इसे स्वीकार भी किया है। समझौते के प्रयास को लेकर मामले की तहत तक जाने के लिए खुद उनकी खापों के प्रतिनिधियों ने निडाना के खतों में आकर इस विवाद की गहराई से जांच की थी। बराह बाहरा के प्रधान कुलदीप सिंह ढांडा ने कहा कि उन्होंने डा. दलाल को कीटों पर शोध करते हुए बड़ी बारीकी से देखा था। उन्होंने बताया कि डॉ. दलाल ने अपने घर में कीटों की रक्षा के लिए प्रयोगशाला बना रखी थी। ढांडा ने कहा कि दलाल को सही मायने में खापें तभी श्रद्धाजंलि दें सकेगी, जब उनके मिशन को खापें आगे बढ़ाएंगी। इसके बाद कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, ढुल के खाप इंद्र सिंह ढुल, बिनैन खाप के प्रवक्ता सूबेसिंह नैन, नंदगढ़ बारहा के होशियार सिंह दलाल, सांगवान खाप के कटार सिंह सांगवान, मान खाप के ओमप्रकाश मान, सतरोल खाप के  सूबेदार इंद्र सिंह समेत अनेक खापों के प्रधानों व प्रतिनिधियों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि डॉ. दलाल के मिशन को आगेे बढ़ाने की जिम्मेदारी खापें अपने ऊपर लें। मिशन की जिम्मेदारी खापें अपने ऊपर किस तरह से लेगी। इसका प्रस्ताव शोकसभा शुरू होने के करीब 3 घंटे बाद सर्वजाति सर्वखाप हरियाणा के प्रधान दादा नफेसिंह नैन लेकर आए। उन्होंने खाप प्रतिनिधियों को कहा कि आज भरी सभा में जो फैसला डॉ. सुरेंद्र दलाल को लेकर खापें करेंगी। उन पर खापों को खरा उतरना होगा। नैन की बातों पर सहमति जताते हुए पालम खाप नई दिल्ली के प्रधान रामकरण सिंह सोलंकी ने कहा कि दिल्ली प्रदेश में उनकी खाप सबसे बड़ी खाप है, और वे इस बात की जिम्मेदारी लेते हैं कि डॉ. सुरेंद्र के मिशन को आगे बढ़ाएगें। उन्होंने कहा कि डॉ. दलाल व्यक्ति नहीं विचार थे और विचार कभी भी मरते नहीं। उन्होंने कहा कि इन विचारों को ङ्क्षजदा रखने के लिए अब खापें अपना सहयोग देंगी। फरीदकोट पंजाब से आए खेती विरासत मिशन के अध्यक्ष उमेद दत्त ने कहा कि हरियाणा सरकार ने डा. दलाल के अमूल्य योगदान को देखते हुए कृषि विभाग में एक प्रयोगशाला बनानी चाहिए, जिसमें डा. दलाल द्वारा कीटों पर किए शोध के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। इंदिरा गांधी ओपन विश्वविद्यालय नई दिल्ली में शोध कर रहे छात्र धर्मबीर शर्मा ने बताया उनका गांव निडाना है और इसी गांव को डा. दलाल ने प्रयोगशाला बनाया हुआ था। इसलिए उनका डा. दलाल से कई बार कीटों के बारे में गहन विश्लेषण हुआ है। धर्मबीर ने बताया कि डॉ. दलाल उनके अप्रत्यक्ष रूप से गाइड बने रहे हैं। 

डा. दलाल के जीवन पर एक नजर

डा. सुरेंद्र दलाल का जन्म वर्ष 1960 में जींद जिले के गांव नंदगढ़ में किसान परिवार में हुआ। अपने बहन-भाइयों में सबसे बड़े सुरेंद्र के पिता सेवानिवृत्त सैनिक थे। 9वीं कक्षा तक गांव के ही स्कूल में पढ़ाई करने के बाद डा. दलाल हाई स्कूल की शिक्षा के लिए सोनीपत के हिंदू हाई स्कूल चले गए। चौधरी चरण कृषि विश्वविद्यालय हिसार से बी.एस.सी. आनर्स किया। इसके बाद पौध प्रजनन में एम.एस.सी. व पी.एच.डी. की। इसके बाद वर्ष 2007 से राजपुरा तथा 2008 में निडाना गांव में किसानों के साथ मिलकर फसलों में पाए जाने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों पर शोध किया। 
 शोक सभा में डा. दलाल की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए विचार-विमर्श करते खाप प्रतिनिधि।

Sunday, 19 May 2013

......ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए


दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश दे गए कीट क्रांति के जन्मदाता

जींद। 'जब तुम दुनिया में पैदा हुए जग हंसा तुम रोए, ऐसी करणी कर चले तुम हंसे जग रोए'। ऐसी ही करणी कर कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल करके दुनिया से विदा हो गए। उनकी पूर्ति समाज भले ही न कर पाए लेकिन वो जिस काम के लिए दुनिया में आए थे उसे पूरा कर गए। डा. सुरेंद्र दलाल के जीवन का मकसद दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाकर दुनिया को कीटनाशक रहित खेती का संदेश देना था और यह संदेश उन्होंने दुनिया को दे दिया। डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने सफल प्रयोगों से यह साबित करके दिखा दिया कि बिना कीटनाशकों के खेती हो सकती है और इससे उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसका प्रमाण उन्होंने दुनिया के सामने रख दिया। डा. दलाल के प्रयासों से वर्ष 2008 में निडाना के खेतों से शुरू हुई कीट क्रांति की इस मुहिम का असर अकेले जींद जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी नजर आने लगा है। इसी का परिणाम है कि दूसरे प्रदेशों से भी किसान यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आने लगे हैं। डा. दलाल की इस मुहिम की सबसे खास बात यह है कि आज तक जो महिलाएं खेतों में सिर्फ पुरुषों का हाथ बटाती थी आज वो महिलाएं कीटों की मास्टरनी बनकर फसलों में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों पर प्रयोग कर रही हैं। 
 डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में ललितखेड़ा में चल रही महिला किसान पाठशाला का फोटो।

खाप पंचायतों को दिखाई राह 

आनर किलिँग तथा तुगलकी फरमान सुनाने के नाम से बदनाम हो चुकी उत्तर भारत की खाप पंचायतों को डा. सुरेंद्र दलाल ने राह दिखाने का काम किया है। डा. दलाल ने वर्ष 2012 में दशकों से चले आ रहे किसान-कीट विवाद को सुलझाने के लिए खाप पंचायतों को किसानों की तरफ से फरियाद भेजी। किसानों की फरियाद को स्वीकार करने के बाद खाप प्रतिनिधियों को इस मसले पर फैसला करने के लिए लगातार 18 सप्ताह तक निडाना गांव के खेतों में जाकर किसानों के बीच बैठकर कक्षाएं लगानी पड़ी थी। इन कक्षाओं के बाद इस विवाद का फैसला करने के लिए खाप प्रतिनिधियों द्वारा जनवरी 2013 माह में निडाना में एक बड़ी खाप पंचायत बुलाकर इस पर फैसला सुनाना था लेकिन दिसम्बर माह में जाट आरक्षण के बाद यह पंचायत नहीं हो पाई। इस विवाद का फैसला अभी भी खाप पंचायतों के पास है। खाप पंचायतें इस विवाद पर क्या फैसला सुनाती हैं यह भले ही अभी भविष्य के गर्भ में हो लेकिन खाप पंचायतों को इस मुहिम में शामिल कर डा. दलाल ने खाप पंचायतों को राह दिखाने का काम किया। 

2002 में हुई कृषि विभाग की फजिहत से लिया सबक

डा. सुरेंद्र दलाल कृषि विभाग में ए.डी.ओ. के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2002 में कपास की फसल में अमेरीकन सूंडी के प्रकोप ने किसानों की नींद हराम कर दी थी। अमेरीकन सूंडी के प्रकोप से बचने के लिए किसानों से कपास की फसल में कीटनाशकों के 40-40 स्प्रे किए थे लेकिन इसके बाद भी उत्पादन बढऩे की बजाए कम हुआ। उत्पादन कम तथा लागत बढऩे के कारण किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। कृषि विभाग की इस असफलता पर इसी वर्ष एक इंगलिस न्यूज़ पेपर में कृषि विभाग के खिलाफ एक लेख प्रकाशित हुआ था और इस लेख से देश में कृषि विभाग की खूब फजिहत हुई थी। इस लेख से सबक लेकर डा. सुरेंद्र दलाल ने फसलों पर अपने प्रयोग शुरू कर कीट ज्ञान की मशाल जलाई। इस मुहिम में डा. सुरेंद्र दलाल के गुरु बने जिले के रुपगढ़ गांव के राजेश नामक किसान। 

महिलाओं को सिखाया फसलों पर प्रयोग करना

वर्ष 2008 में निडाना में किसान खेत पाठशाला शुरू हुई और यहां किसानों ने कीट ज्ञान हासिल करना शुरू किया। इसके बाद 2010 में निडाना में पहली महिला किसान पाठशाला की शुरूआत की गई। इस पाठशाला के सफल आयोजन के बाद 2012 में ललितखेड़ा में दूसरी महिला किसान पाठशाला चलाई गई। इस तरह कीटनाशक रहित खेती की इस मुहिम से आज निडाना, निडानी, ललितखेड़ा गांवों की लगभग 65 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। जिन महिलाओं को पहले खेतों में पुरुषों का हाथ बटाते देखा जाता था आज वे महिलाएं कीट ज्ञान हासिल कर फसलों पर प्रयोग कर रही हैं। फसलों पर अपने सफल प्रयोगों के कारण ही कीटों की यह मास्टरनी पूरे वर्ष मीडिया की सुर्खियां बनी रही। 

ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी दिया कीटनाशक रहित खेती का संदेश  

कीट क्रांति के जन्मदाता डा. सुरेंद्र दलाल ने ब्लाग के माध्यम से विदेशों में भी कीटनाशक रहित खेती का संदेश दिया है। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा कीट साक्षरता केंद्र, अपना खेत अपनी पाठशाला, महिला खेत पाठशाला, प्रभात कीट पाठशाला ब्लाग पर कीटों के क्रियाकलापों तथा फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव की पूरी जानकारी दी जाती थी। डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा लिखे गए इन ब्लागों को विदेशों में बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा जाता है। आज लाखों लोग इन ब्लागों से जानकारी हासिल कर रहे हैं। 

मुहिम को संभालना किसानों के लिए बना चुनौती 

डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीटनाशक रहित खेती की मुहिम को संभालना इस मुहिम से जुड़े कीट कमांडो किसानों के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल किसानों को एकजुट करना है। कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, महाबीर पूनिया, महिला किसान अंग्रेजो, मीना, गीता, राजवंती का कहना है कि डा. सुरेंद्र दलाल के चले जाने से उनकी इस मुहिम को बड़ा झटका लगा है। उनका यह अभियान नेतृत्व विहिन हो गया है। कीट कमांडो किसानों का कहना है कि डा. दलाल की इस मुहिम को संभालने के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि ये मुहिम अकेले उनकी नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति की है। इसलिए सभी को इसमें सहयोग करने की जरुरत है।  

कीट क्रांति के जन्मदाता को नम आंखों से दी विदाई


पंचतत्व में विलिन हुए डा. सुरेंद्र दलाल, अंतिम संस्कार में उमड़ा जनसैलाब

26 मई को जाट धर्मशाला में होगी शोक सभा


जींद। लोगों की थाली को जहर मुक्त बनाने के लिए कीट क्रांति की मशाल जलाने वाले डॉ. सुरेंद्र दलाल का अंतिम संस्कार रविवार सुबह साढ़े 10 बजे उनके पैतृक गांव नंदगढ़ में किया गया। डा. सुरेंद्र दलाल के छोटे भाई विजय दलाल ने चिता को मुखाग्रि दी। नम आंखों के साथ लोगों ने डा. दलाल को अंतिम विदाई दी। उनके अंतिम संस्कार में आसपास के गांवों तथा दूर-दराज से आए किसानों सहित शहर के गणमान्य लोग शामिल हुए। डा. दलाल की अंतिम यात्रा में शामिल लोगों के साथ-साथ पूरा नंदगढ़ गांव अपने इस लाल की याद में फफक-फफक कर रो रहा था। दुनिया को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए किसान-कीट की जंग को खत्म करने की मुहिम में अपनी जान गंवाने वाले डा. सुरेंद्र दलाल के अंतिम संस्कार में जींद प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा खुलकर दिखाई दी। अन्य जिलों से तो प्रशासनिक अधिकारिय उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए लेकिन जींद जिले का कोई भी आला अधिकारी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने नहीं पहुंचा। डा. सुरेंद्र दलाल की शोक सभा 26 मई को जाट धर्मशाला में की जाएगी। 
गौरतलब है कि डा. सुरेंद्र दलाल 7 फरवरी से बीमार चल रहे थे और शनिवार को उन्होंने हिसार के जिंदल अस्पताल में अंतिम सांस ली। कृषि जगत में डा. सुरेंद्र दलाल का अपना अलग से योगदान रहा है और उन्होंने अपना जीवन कीटनाशक रहित खेती को तो समर्पित किया ही साथ ही उन्होंने फसल में मौजूद कीटों के बचाव के लिए गांव निडाना में किसान कीट विवाद सुलझाने के लिए हर सप्ताह खाप पंचायत के प्रतिनिधियों को बुलाकर किसानों व कीटों में हुए विवाद को सुलझाने की मुहिम चलाई हुई थी। इससे पहले उन्होंने लगभग 5 वर्ष तक गांव निडाना में किसान खेत पाठशाला चलाकर कीटनाशक रहित खेती को नया आयाम दिया था, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे थे और प्रदेश से ही नहीं अन्य प्रदेशों से भी लोग कीटनाशक रहित खेती सीखने के लिए महिला खेत पाठशाला में आने लगे थे। 7 फरवरी को स्वायन फ्लू की चपेट में आने वाले डा. सुरेंद्र दलाल पिछले 3 महीनों से जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और लगातार कोमा में थे। उनके अंतिम संस्कार में जहां आसपास के दर्जनों गांवों के किसानों ने शामिल होकर उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी, वहीं शहर के गणमान्य लोगों ने भी उनके अंतिम संस्कार में पहुंचकर उन्हें अंतिम विदाई दी। अंतिम संस्कार में पहुंचने वालों में बराह तपा के अध्यक्ष कुलदीप ढांडा, हांसी के तहसीलदार रामफल कटारिया, पंचकूला की पी.ओ. राजबाला कटारिया, हिसार के कृषि उप-निदेशक रोहताश, डी.एच.ओ. डॉ. बलजीत भ्याण, खंड कृषि अधिकारी जयप्रकाश शर्मा, एस.डी.ओ. सुरेंद्र मलिक, ए.डी.ओ. कमल सैनी, ए.डी.ओ. सुनील, बलजीत लाठर, नंदगढ के पूर्व सरपंच जयसिंह दलाल, राजबीर कटारिया, शमशेर अहलावत, कामरेड फूल ङ्क्षसह श्योकंद, रमेशचंद्र, सुरेंद्र मलिक, वीरेंद्र मलिक, महावीर नरवाल, कामरेड प्रकाश, ताराचंद बागड़ी, कर्मचारी नेता सतपाल सिवाच, रामफल दलाल, सुनील आर्य तथा कीट कमांडो किसान भी मौजूद थे।
 डा. सुरेंद्र दलाल की अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब। 


 डा. सुरेंद्र दलाल की चिता को मुखाग्रि देते छोटे भाई विजय दलाल। 

Saturday, 18 May 2013

डा. सुरेंद्र दलाल हारे जिंदगी की जंग


जिंदल अस्पताल में तोड़ा दम
जींद। जहर मुक्त थाली का सपना संजो कर संघर्ष करने वाले कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल जिंदगी व मौत की लड़ाई में जिंदगी की जंग हार गए हैं और उन्होंने शनिवार दोपहर हिसार के जिंदल अस्पताल में दम तोड़ दिया है। डा. सुरेंद्र दलाल गत सात फरवरी से कोमा में थे और उनका दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में इलाज चला था। उसके बाद उन्हें हिसार के जिंदल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उन्होंने शनिवार दोपहर को अंतिम सांसें ली। गौरतलब है कि डा. सुरेंद्र दलाल पिछले दस वर्षों से कीटनाशक रहित खेती करने की मुहिम चलाए हुए थे और उनकी इस मुहिम में जहां जिले के दर्जनों गांवों में महिला खेत पाठशाला शुरू हुई वहीं उनकी यह मुहिम कई अन्य राज्यों में भी फैल गई थी और अन्य राज्यों से किसान तथा अधिकारी कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखने डा. सुरेंद्र दलाल के पास आते थे। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहां पिछले पांच वर्षों से गांव निडाना में महिला खेत पाठशाला शुरू कर महिलाओं को कीटों की जानकारी दे रहे थे वहीं पिछले दो साल से वे कीटों को बचाने के लिए एक सर्वखाप पंचायत भी चलाए हुए थे। जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को कीट मित्रों की जानकारी हो सके। यही नहीं डा. सुरेंद्र दलाल ने अपने इस अभियान से गांव निडाना, चाबरी, निडानी, सिंध्वीखेड़ा, खरकरामजी, ईगराह आदि गांवों में लगभग ८० प्रतिशत खेती कीटनाशक रहित शुरू करवा दी थी और उसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे थे। 
बाबा रामदेव भी थे डा. दलाल के प्रशंसक
योग गुरु बाबा रामदेव भी डा. सुरेंद्र दलाल की कीटनाशक रहित खेती के कायल थे और उन्होंने वर्ष २०१२ में देश से कीटनाशक रहित खेती के विशेषज्ञों को अपने हरिद्वार स्थित पतंजलि योग पीठ आश्रम में बुलाया था और वहां उनके साथ अपने विचार सांझा किए थे। यही नहीं योग गुरु बाबा रामदेव ने जब भी जहर मुक्त थाली की बात चलाई तो उन्होंने डा. सुरेंद्र दलाल को इस मुहिम का योद्धा बताया था। 
मुख्यमंत्री राहत कोष से भी मिली थी सहायता
डा. सुरेंद्र दलाल की लगन व लहरों के विपरित चलने के हौंसले की चर्चाएं गांव निडाना के आसपास के किसानों में लगातार हुआ करती थी और उनके कीटनाशक रहित खेती से आसपास के गांव के हजारों किसान उनसे जुड़ गए थे और जब डा. सुरेंद्र दलाल अस्पताल में उपचाराधीन थे तब जिले के सैंकड़ों किसानों ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिल कर उनकी आर्थिक सहायता की मांग की थी और मुख्यमंत्री ने किसानों की बात को ध्यान से सुन कर उन्हें अपने मुख्यमंत्री कोष से डेढ़ लाख रुपये का चैक दिया था। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने किसानों से यह भी कहा था कि जिस 
अस्पताल में कहोगे वहां डा. सुरेंद्र दलाल का इलाज करवाया जाएगा और इसके लिए मुख्यमंत्री ने अलग से एक स्पेशल केस बना कर पहली बार किसी सरकारी कर्मचारी के लिए अनुदान दिया था। 

Wednesday, 1 May 2013

विदेशियों को भाया हरियाणा का पनीर



 पिज्जा के लिए मुर्राह भैंस के दूध से तैयार होगा मोजरिला चीज 
ब्राजील से आया मुर्राह को देखने आया दल
जींद। विदेशियों को हरियाणा का पनीर इस कदर पसंद आ रहा है की पिज्जा के लिए खास  मुर्राह भैंस के दूध से मोजरिला चीज की मांग की जा रही है। मुर्राह के चर्चे सुन कर ब्राजील से हरियाणा पहुंचे विदेशी पशुपालक एटेक्नीशियन ए दूध उत्पादकों ने जींद के डेयरी फार्मों का दौर किया और यहां की भैंसों के दूध उत्पादन देख कर हैरान रह गए। ब्राजील के पशु पालकों का कहना है की भारत की जलवायु और तापमान उन के देश से मिलता जुलता है और यहां की मुर्राह नस्ल के दूध में सर्वाधिक फैट पाया जाता है जो दुग्ध उत्पादों के लिए वरदान से कम नहीं है। अगर दोनों देशों की सरकारें चाहें तो ब्राजील के पिज़्ज़ा प्रेमी यहां के दूध से बने मोजरिला चीज का स्वाद ले सकेंगे। 
मुर्राह के मुरीदों की बढ़ रही है तादाद
हरियाणा की मुर्राह भैंसों के मुरीदों की तादाद दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अपनी दूध उत्पादन क्षमता और भरपूर फैट के कारण यह नस्ल  दुनियां भर के पशुपालकों की पसंद बन गयी है। बुधवार को ब्राजील से पशु पालकों ए डैरी टेक्नीशियन और प्रोफेसरों का 12 सदसीय दल हरियाणा दौरे पर  पंहुचा। मुर्राह नस्ल की भैंसों को  देखने के लिए खास तौर पर यहां आए इस दल ने  जींद के लक्ष्य मिल्क प्लांट के डेयरी फार्मों का दौरा किया और  मुर्राह रिसर्च सेंटर में इक_ा किये जा आकड़ों का अध्ययन किया। इस दल के केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान नाभा के अधिकारी भी शामिल थे।
ब्राजील में भैंसें प्रतिदिन देती हैं एक से सात लीटर दूध
ब्राजीलियन बुफेलो एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवर्डो ने बताया की उन के देश में भी भैसें पाली जाती हैं। लेकिन वे एक दिन में सात से साढ़े सात लीटर तक ही दूध देती हैं। जब की उन की कीमत अढ़ाई से दस लाख रुपये तक होती है। वे लक्ष्य डेयरी फार्म में 25 लीटर तक दूध देने वाली भैंसों को देख कर हैरान रह गए हैं। 
ब्राजील में पनीर की है काफी मांग
वहीं डेयरी फार्म चलाने वाले फ्रांसिस्को ने बताया कि ब्राजील की दो करोड़ की आबादी में पनीर की काफी मांग है वे अपने देश की एम्बैसी से भारत में बने  दुग्ध उत्पाद आयात करने की मांग रखेंगे। दल के साथ आई प्रोफेसर सेसिलिया ने कहा की वे अपने देश में पिज्जा के लिए यहां का  मोजरिला चीज मंगाना चाहती हैं। इस के लिए वे हर संभव प्रयास करेगें। 
विदेशों में भी मुर्राह बन रही आकर्षण का केंद्र
लक्ष्य मिल्क प्लांट के मैनेजिंग डायरेक्टर बलजीत रेढू ने बताया की मुर्राह  भैंस पूरे विश्व के दूध उत्पादकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। विदेशों से लगातार आ रही मांग को देखते हुए वे अपने प्लांट में मोजरिला चीज का उत्पादन शुरू करने की योजना बना रहें हैं और अगर देश और प्रदेश की  सरकारों ने अनुमति दी तो अगले दो सालों में किसी भी देश में मोजरिला चीज निर्यात करने में सक्षम होंगे।


खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...