Thursday, 3 July 2014

जहरीले हो रहे खान-पान व दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव हो रहा प्रभावित

दुनिया को जहर से मुक्ति दिलानी है तो किसानों को कीटों की तरफ बढ़ाना होगा दोस्ती का हाथ

निडाना में शुरू हुई महिला किसान खेत पाठशाला


जींद। राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम), कृषि विभाग तथा कीट कमांडो किसानों के सौजन्य से सोमवार को निडाना गांव में पहली महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला का शुभारंभ कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी मैडम कुसम दलाल ने किया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कृषि विभाग के उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, खंड कृषि अधिकारी राजेंद्र शर्मा, एडीओ डॉ. कमल सैनी, डॉ. रवि कादयान, डॉ. शलैंद्र चहल भी विशेष रूप से मौजूद रहे।

मैडम कुसम दलाल ने पाठशाला में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम अब एक क्रांति का रूप ले चुकी है। क्योंकि जहरीले हो रहे खान-पान तथा दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि शुद्ध भोजन तथा स्वच्छ वातावरण प्रत्येक जीव की पहली जरूरत है और यह जरूरत तभी पूरी हो सकती है जब किसान फसल में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों की तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाकर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देगा। डॉ. रामप्रताप सिहाग तथा कुलदीप ढांडा ने कहा कि इस धरती पर जितने भी जीव हैं उन सबका इस सृष्टि को चलाने में अहम योगदान है। इसलिए फसल में मौजूद कीटों का भी फसल के लिए बहुत महत्व है। जब तक हम कीटों को पहचान कर कीटों के क्रियाकलापों को नहीं समझेंगे तब तक हम इनका महत्व नहीं समझ पाएंगे। पाठशाला के पहले दिन कीटाचार्य महिलाओं ने अन्य महिला किसानों के साथ ग्रुप बनाकर फसल का अवलोकन किया और कपास के छोटे-छोटे पौधों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की। फसल के अवलोकन के दौरान महिला किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरा तेला नमक कीट दिखाई दिये लेकिन अभी तक यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से काफी नीचे थे। मास्टर ट्रेनर महिला किसान मीना, सुषमा, प्रमिला, मनीषा, सविता तथा शीला ने अन्य महिला किसानों को सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरे तेले के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

मांसाहारी कीटों के नाम पर बनाए महिलाओं के ग्रुप


पाठशाला में आने वाली महिला किसानों को कीटों के बारे में बारीकी से जानकारी देने के लिए पांच-पांच महिलाओं के 6 ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के साथ एक-एक मास्टर ट्रेनर महिला किसान की ड्यूटी लगाई गई। महिलाओं के गु्रप के नाम मांसाहारी कीट हथजोड़ा, लेडी बिटल, क्राइसोपा, परभक्षी बुगड़े, भिरड़-ततैये तथा परमेटिया के नाम से रखे गए।

20 सप्ताह तक चलेगी पाठशाला

सोमवार से निडाना गांव में शुरू हुई महिला किसानों की पाठशाला 20 सप्ताह तक चलेगी। सप्ताह के हर सोमवार को निडाना गांव के बस स्टॉप के पास स्थित खेत में इस पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में ललितखेड़ा, निडाना, निडानी तथा रधाना की महिला किसान भाग लेंगी।

डेढ़ एकड़ में कपास की फसल पर होगा शोध

महिला किसान खेत पाठशाला के दौरान राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) की टीम द्वारा कीटों से फसल पर पडऩे वाले प्रभाव पर शोध भी किया जाएगा। इसके लिए एनसीआईपीएम की टीम ने यहां पर डेढ़ एकड़ जमीन पर अपनी निगरानी में फसल की बिजाई करवाई है। यहां आधा एकड़ में एनसीआईपीएम की टीम अपने तरीके से कपास की खेती करवाएगी, आधा एकड़ में कीट कमांडो किसान अपने तरीके से खेती करेंगे तथा आधा एकड़ में किसान अपने तरीके से खेती करेगा। फसल की कटाई के बाद फसल के उत्पादन की समीक्षा की जाएगी और उसके परिणामों पर भी गहन मंथन किया जाएगा।




फसल के अवलोकन के बाद चार्ट पर आंकड़े एकत्रित करती महिला किसान।  

कपास की फसल में सुक्ष्मदर्शी की सहायता से कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

........मंजिलें उन्हें ही मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है

जींद की बेटी ने वेट लिफ्टिंग में मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

६ साल के ब्रेक के बाद मैदान में उतरकर लहराया परचम
सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में दो बार जीत चुकी है गोल्ड मैडल 
अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल जीतने के लिए उतरेगी मैदान पर 


जींद। सपने उन्हीं के पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है। यह पंक्तियां जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता देवी पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। अपने खेल के कॅरियर पर लगे 6 साल के लंबे ब्रेक के बाद भी कविता ने कठिन परिश्रम और मजबूत इरादों के बल पर दोबारा से मैदान में उतरकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। वर्ष 2008 में वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने के बाद वर्ष 2014 में दोबारा फिर से कविता ने सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर इंडिया कैंप में अपना स्थान बनाया है। ३१ वर्ष की उम्र में भी कविता के हौंसले बुलंद हैं। कविता वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को गोल्ड मैडल दिलाने का सपना अपनी आंखों में संजो कर पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में जमकर पसीना बहा रही है। जुलाई में स्काटलैंड ग्लास्को में होने वाले कॉमनवैल्थ गेम्स तथा सितम्बर माह में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स के लिए कविता का चयन हो चुका है।

यह है कविता के जीवन का सफर

कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2007 में उड़ीसा में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप के लिए कविता का चयन हुआ। इस प्रतियोगिता में कविता ने गोल्ड मैडल जीतकर पूरे देश में जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया। वर्ष 2008 में कविता का चयन इंडिया कैंप के लिए हुआ। इसी दौरान जापान में आयोजित एशियन चैम्पिशनशिप में प्रतिभागिता करते हुए कविता एक राजनीति का शिकार हुई और यहां कविता को डोपिंग टेस्ट में पॉजीटिव दिखाकर कविता के खेल पर चार साल तक का प्रतिबंध और पांच हजार डॉलर का जुर्माना लगा दिया। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और वालीबाल का अच्छा खिलाड़ी है। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। ससुराल के लोगों ने कविता को खेलने के लिए प्रेरित किया और नवंबर 2013 में कविता ने फिर से तैयारी शुरू कर दी। महज चार माह के प्रशिक्षण के दौरान कविता ने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर फिर से अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। अब कविता पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में रहकर जुलाई में स्काटलैंड ग्लासको में आयोजित होने वाले कॉमनवैल्थ तथा सितम्बर में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स की तैयारी कर रही है। 
गोल्ड जीतने के बाद कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।

6 साल बाद दोबारा मैदान पर उतर कर मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

कविता का कहना है कि वर्ष 2008 में जब वह जापान में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप में प्रतिभागिता कर रही थी तो इसी दौरान वह अपनी ही कोच की राजनीति का शिकार हो गई। कविता ने बताया कि उसकी कोच उससे रंजिश रखती थी और उसने अपनी रंजिश निकालने के लिए एक दिन पीछे से उसके खाने में कोई केमिकल डाल दिया। इससे वह डोपिंग के आरोप में फंस गई और उसके खेलने पर चार साल का प्रतिबंध तथा 5 हजार डालर (लगभग साढ़े तीन लाख) रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। इसके बावजूद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और वह निरंतर परिश्रम करती रही। आखिरकार ६ साल बाद उसे एक बार फिर से मौका मिला और उसने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। 
पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में तैयारी करती कविता दलाल। 

ससुराल से मिला पूरा सहयोग

कविता का कहना है कि उसकी हर कठिन परिस्थितियों में उसके ससुराल के लोगों ने उसका पूरा सहयोग किया। उसके पति गौरव ने उस पर लगे साढ़े तीन लाख रुपये की डोपिंग के जुर्माने की राशि भरी। इसके बाद वर्ष 2010 में जब उसने नौकरी छोड़ी तो उसके ससुराल के लोगों ने उसे हौंसला दिया और फिर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यमुनानगर भेजा। ससुराल से मिलने अथक सहयोग के कारण ही कविता के कदम तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।

डोपिंग के दाग को धोने के लिए ममता की दे दी कुर्बानी

वर्ष 2010 में कविता नौकरी छोड़ ससुराल चली गई थी। वर्ष 2012 में कविता ने एक पुत्र को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद कविता अपनी घर-गृहस्ती में व्यस्त हो गई लेकिन वर्ष 2008 में कविता के माथे पर लगे डोपिंग के दाग से कविता अंदर ही अंदर घूट रही थी। इस दाग को धोने के लिए कविता ने अपनी ममता की भी कुर्बानी दे दी। महज दो वर्ष के बेटे अभिजीत को ससुराल में अपनी ननद के जिम्मे छोड़कर कविता यमुनानगर में आकर फिर से खेल की तैयारियों में जुट गई। कविता की मेहनत रंग लाई और मार्च 2014 में कविता ने नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर अपने ऊपर लगे डोपिंग के दाग को धो दिया।   

देश के लिए खेलने वाली कविता को गांव के लोगों से है नाराजगी

कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।
वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता के पूरा ही कॅरियर का सफर काफी कठिनाइयों से भरा रहा है। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कविता को कांटों भरे मार्ग से गुजरना पड़ा लेकिन फिर भी उसका हौंसला नहीं टूटा लेकिन उसके परिवार के साथ हुई एक घटना ने कविता के दिल में गांव के लोगों के प्रति नाराजगी जरूर पैदा कर दी। कविता का कहना है कि वर्ष 2010 में उसके परिवार में एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उसके परिवार को मुसीबत में डाल दिया लेकिन उसके गांव मालवी के लोगों ने इस मुसीबत की घड़ी में उसके परिवार का साथ नहीं दिया। कविता का कहना है कि वह अपने लिये नहीं बल्कि अपने गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेलती है। कविता का कहना है कि जो व्यक्ति अपने निजी हित को छोड़कर गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेल रहा है और मुसीबत के समय में यदि उसके गांव के लोग ही उसका साथ छोड़ दें तो ऐसे में गांव के लोगों के प्रति दिल में थोड़ी नाराजगी तो होती ही है।

कीटनाशक नहीं कीट ज्ञान ही फसलों को कीटों से बचाने का सबसे बड़ा हथियार

मांसाहारी कीट करते हैं फसल में कूदरती कीटनाशी का काम 


जींद। कपास खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है जिसका रकबा साल दर साल बढ़ता चला आ रहा है। जिस प्रकार नकदी फसलों में कपास की फसल अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है ठीक उसी प्रकार कीटों के लिहाज से भी कपास की फसल की अपनी एक पहचान रही है, क्योंकि हमारी फसलों में सबसे ज्यादा कीट कपास की फसल पर ही आते हैं। हमारे कीट वैज्ञानिकों के अनुसार कपास की फसल के सीजन में समय-समय पर लगभग 1300 प्रकार के कीट आते हैं। इसलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक नहीं बल्कि कीट की पहचान करना तथा कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करना ही एक कारगर हथियार है। क्योंकि कीट की कीट का दुश्मन होता है। 

बीटी कपास कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं

आमतौर पर हम ये मान लें कि बीटी कपास आने से एक तरफ कपास के चार महत्वपूर्ण कीटों जैसे अमेरिकन सुंडी, गुलाबी सुंडी, चितकबरी सुंडी एवं तम्बाकू वाली सुंडी जहां  कम हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ कपास की फसल में बहुत सारे माईनर कहे जाने वाले कीट मुख्य श्रेणी में आ खड़े हुए हैं। इसलिए हम कपास की फसल में बीटी तकनीक को पूर्ण रूप से कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं मान सकते। 
कपास की फसल में पाया जाने वाला हथजोड़ा (प्रेंगमेंटिस)नामक मांसाहारी कीट।

कपास की फसल में रस चूसक कीटों की भूमिका 

रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल रस चूसक कीटों के लिए स्वर्ग की तरह होती है, जिसमें बिजाई से लेकर कटाई तक रस चूसक कीटो की भरमार रहती है जो समय-समय पर कपास की फसल में आते रहते हैं। रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल में तीन मुख्य श्रेणी जैसे चूरड़ा, सफेद मक्खी और हरा तेला कीट आते हैं तथा पांच द्वितीय श्रेणी जैसे मिलीबग, माईट, लाल बाणिया, काला बाणिया व चेपा नामक कीट आते हैं। इनके साथ-साथ कुछ अन्य श्रेणी के रस चूसक कीट जैसे मिरिड बग, मकसरा बग, स्टिलट बग आदि भी आते हैं। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं।
कपास के पौधे पर मौजूद अल नामक शाकाहारी कीट को खाता सिरफड मक्खी का बच्चा।

कपास में कीटों की रोकथाम कैसे करें

आमतौर पर जब कीटों की रोकथाम की बात आती है तो हमारे दिमाक मेंं केवल एक ही विकल्प सुझता है कि कीटनाशकों का छिड़काव लेकिन हम आमतौर पर देखते हैं कि किसान कीटनाशक का प्रयोग कर लेते हैं जो कि आज कल शायद शुरू भी हो गया होगा क्योंकि नरमा की फसल का सीजन शुरू हो चुका है। फिर भी कीटों की रोकथाम नहीं हो पाती और हमारी जेब पर निरंतर कीटनाशकों का खर्च बढ़ता ही जाता है। दूसरी तरफ यदि हम कीटों के प्रबंधन के लिए दूसरे विकल्पों की तरफ सोचें तो वो बहुत ज्यादा किफायती एवं सस्ते साबित होते हैं जैसे इस समय कपास की फसल में चूरड़ा नामक रस चूसक कीट आ चुका है जो कि अधिक तापमान पर ही आता है, जिस पर कोई भी कीटनाशक सही तरीके से किफायती नहीं लेकिन फिर भी किसान चूरड़े पर कंट्रोल करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं। यदि इस समय किसान कपास की फसल में कसोले (फावड़े) से गुडाई करके तथा 250 ग्राम जिंक, एक किलो यूरिया तथा एक किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में छिड़काव करें तो कपास के पौधों को चूरड़े नामक रस चूसक कीटों से बचा सकते हैं। इसके साथ-साथ सफेद मक्खी एवं हरे तेला नामक कीट के लिए भी हम समय-समय पर जिंक, यूरिया तथा डीएपी के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। 
बरिस्टल बिटल का शिकार करती मकड़ी।

कपास की फसल में सफेद मक्खी एवं मिलीबग की रोकथाम

कपास की फसल में यदि सफेद मक्खी एवं मिलीबग नामक कीटों की बात करें तो ये दो कीट ऐसे हैं जिन्होंने कीटनाशकों के ग्राफ को दोबारा से ऊंचा उठा दिया है। सफेद मक्खी और मिलीबग ने कई बार तो किसानों के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिये हैं कि किसानों को खड़ी बीटी कपास जोतनी पड़ी है। यह दोनों कीट हैं जिनकी रोकथाम के लिए दर्जनों कीटनाशकों की लिस्ट समय-समय पर आती रहती है लेकिन कीट कमांडो किसानों की मानें तो हम उपरोक्त दोनों ही कीटों पर जितने ज्यादा कीटनाशकों के विकल्प प्रयोग करते हैं, इनकी संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है। इसलिए मिलीबग एवं सफेद मक्खी नामक कीटों के लिए यदि हम बाजारी विकल्पों को छोड़कर प्राकृतिक विकल्पों को अपनाएं तो ज्यादा किफायती एवं फायदेमंद साबित होते हैं। प्राकृतिक विकल्पों से हमारा मतलब है कपास में आने वाले मांसाहारी कीट जैसे लेडी बर्ड बीटल, मांसाहारी बुगड़े (बग) क्राइसोपा, दिखोड़ी, परपेटिये एवं मकडिय़ां जो कि सभी के सभी मिलीबग एवं सफेद मक्खी के लिए कपास के पौधों पर आते हैं और इनके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता यह हमारी फसल में काफी संख्या में मिल जाते हैं, बशर्त यह है कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया गया हो। दूसरी तरफ स्प्रे के तौर पर हम जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करे सकते हैं, जिससे पौधों को पर्याप्त उर्वरा शक्ति मिलती है। कीटनाशकों के खर्च को यदि कम करना है तो किसानों को कपास में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान करनी होगी। कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को जानकर ही हम कीटों की रोकथाम कर सकते हैं क्योंकि जिस संख्या में हमारी फसल पर शाकाहारी कीट आते हैं, उससे कहीं ज्यादा संख्या में मांसाहारी कीट आते हैं। कपास की फसल में निरंतर १०-१५ दिन के अंतराल में जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करें। फसल की बढ़वार के साथ ही जिंक, यूरिया तथा डीएपी की मात्रा में बढ़ौतरी कर आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें। 
कपास की फसल में मौजूद बिटल नामक मांसाहारी कीट।





कपास की फसल में मौजूद सुंदरो नामक मांसाहारी कीट। 

मक्खी का शिकार करती मांसाहारी डायन मक्खी। 

कपास की फसल में शाकाहारी कीट का खून चूसता बिंदुआ बुगड़ा।


कपास की फसल में पाए जाने वाली रस चूसक कीट सफेद मक्खी का फोटो।

अब प्रदेश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

हरियाणा किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से मांगे सुझाव

30 जून को गुडग़ांव में होगी किसानों और किसान आयोग के अधिकारियों की बैठक

जींद। जिले के निडाना गांव से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाकर थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले के कीट कमांडो किसानों ने एक योजना तैयार की है। उनकी इस योजना को आगे बढ़ाने में हरियाणा किसान आयोग इनका माध्यम बनेगा। कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए हरियाणा किसान आयोग ने इन किसानों से इनके सुझाव मांगे हैं। किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से सुझाव लेने के लिए गत 30 जून को गुडग़ांव बुलाया है। 30 जून को हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस प्रौधा की अध्यक्षता में गुडग़ांव में होने वाली बैठक में कीट कमांडो किसान अधिकारियों को अपने सुझाव देंगे। ताकि इस मुहिम को जींद जिले से बाहर निकालकर पूरे प्रदेश में फैलाकर प्रदेश के सभी किसानों को इस मुहिम के साथ जोड़ा जा सके।

मीटिंग में कीट कमांडो किसानों द्वारा यह रखा जाएगा सुझाव

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू का कहना है कि सरकार ने जिस तरह से अनपढ़ता को खत्म करने के लिए देश व प्रदेश में साक्षरता मिशन चलाया था उसी मिशन की तर्ज पर कीट साक्षरता मिशन चलाया जाए। कीट साक्षरता मिशन के माध्यम से प्रदेश के सभी किसानों को कीट ज्ञान की मुहिम से बारीकी से अवगत करवाया जाए। किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में बताया जाए। शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है और उससे किसान को कितना नुकसान या फायदा होता है उसके बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जाए। जब तक किसानों को जागरूक नहीं किया जाएगा और किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं होगा तब तक खान-पान में बढ़ते जहर को रोकना संभव नहीं है। क्योंकि आज किसान जागरूकता के अभाव में ही फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं।

यह-यह महिला किसान लेंगी बैठक में भाग

निडाना से मिनी मलिक, अंग्रेजो, कमलेश, बिमला, राजवंती, गीता। ललितखेड़ा से सविता, सुषमा, जसवंती, शीला तथा रधाना से प्रमीला, अचिम, शकुंतला व मुकेश बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगी। इसके अलावा कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, बराह कलां खाप प्रधान कुलदीप ढांडा तथा निडाना के डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय भी बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगे।

स्कूल स्तर बच्चों को भी किया जा सकता है जागरूक

निडाना डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय का कहना है कि महिला किसानों ने 2010 में उनके स्कूल के बच्चों की अलग से पाठशाला शुरू कर बच्चों को फसलों में मौजूद कीटों का ज्ञान दिया था। अगर हम बच्चों को ही शुरू से कीटों का ज्ञान देंगे तो इस मुहिम को काफी बल मिलेगा। इसलिए स्कूल स्तर पर भी बच्चों के लिए एक सलेबस तैयार कर उनको कीट ज्ञान दिया जा सकता है।

फसल में कीटों की पहचान करती महिला किसानों का फोटो।

देश-प्रदेश में फैलेगी कीट ज्ञान की क्रांति

जींद। अकेले चले थे सफर में मन में एक ख्वाब लेकर लोग जुड़ते गए कारवां जुड़ता गया यह शब्द कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल ने बुधवार को निडाना गांव में आयोजित की गई महिला किसान खेत पाठशाला के उद्घाटन अवसर पर कीटाचार्य महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग बतौर मुख्यातिथि तथा बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, प्रगतिशील किसान राजबीर कटारिया भी विशेष रूप से मौजूद रहे। डॉ. रामप्रताप सिहाग ने रिबन काटकर पाठशाला का उद्घाटन किया। मैडम कुसुम दलाल ने  पैड, पैन व लैंस महिला किसानों को वितरित किये। महिला किसानों ने बुके भेंटकर पाठशाला में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया के अब यह पाठशाला सप्ताह के हर शनिवार को लगेगी और यह 18 सप्ताह तक चलेगी ।

मैडम कुसुम दलाल ने कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जो पौधा लगाया था आज वह वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस मुहिम को प्रदेश तथा प्रदेश से बाहर के किसानों तक फैलाने का जो प्रयास किया है वह वास्तव में काबिले तारीफ है। डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम जहरमुक्त खेती की एक अनोखी पहल शुरू की है। आरंभ में तो कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम को तवज्जो नहीं दी थी लेकिन अब कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम पर शोध शुरू कर दिया है। जल्द ही इस काम पर कृषि वैज्ञानिकों की स्वीकृति की मोहर भी लग जाएगी। बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि किसानों और कीटों के बीच सदियों से चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करवाने के लिए खाप पंचायतें भी पिछले तीन सालों से इस मुहिम का बारीकी से अध्यनन कर रही हैं। कीटों और किसानों की इस लड़ाई को सुलझाने के लिए इस साल के अंत तक सभी खापों की एक महापंचायत का आयोजन कर इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ठोस निर्णय लिया जाएगा। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों ने 5-5 के समूह में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन किया और बाद में चार्ट पर शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का आंकड़ा तैयार किया। महिलाओं द्वारा तैयार किये गए आंकड़े में शाकाहारी कीटों की तुलना में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा थी।

मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

हथजोड़ा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर महिला किसान शीला, राजवंती, सीता, शांति, बीरमति, असीम ने बताया कि कपास की फसल में कीटों के अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले तथा चूरड़े का बारीकी से अवलोकन किया और प्रति पत्ता उनकी संख्या नोट की। उनके द्वारा तैयार किये गए आंकड़े के अनुसार सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 1.2, हरे तेले की 0.3 तथा चूरड़े की 2.2 है जबकि कृषि वैज्ञानिकों के ईटीएल लेवल के अनुसार यह कीट नुकसान पहुंचाने के स्तर तक उस समय पहुंचते हैं जब फसल में प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 6, हरे तेले की औसत 2 तथा चूरड़े की औसत 10 हो लेकिन अभी तक फसल को नुकसान पहुंचाने वाले यह मेजर कीट नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से कोसों दूर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस दौरान उन्होंने फसल में शाकाहारी कीटों में टिड्डे तथा मांसाहारी कीटों में डाकू बुगड़ा, मकड़ी, दखोड़ी, क्राइसोपा के अंडे भी दिखाई दिये। उन्होंने बताया कि डाकू बुगड़ा तथा मकड़ी शाकाहारी कीटों का खून चूसकर शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं, वहीं दखोड़ी नामक मांसाहारी कीट का पैशाब शाकाहारी कीटों पर तेजाब की तरह काम करता है और इस तरह से यह मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

क्यों पड़ी कीट ज्ञान क्रांति की जरूरत

रिबन काटकर पाठशाला का शुभारंभ करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग।
 फसलों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत की। इस दौरान देखने में आया कि अकसर किसान जानकारी के अभाव में फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि किसानों को तो कीटों की पहचान ही नहीं है। इसलिए किसानों को जागरूक करने के लिए इस मुहिम की जरूरत पड़ी।
पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग।
 पाठशाला के प्रथम स्तर में फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।
पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों को लैंस व पैड भेंट करती मैडम कुसुम दलाल।

पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर अतिथिगणों के साथ मौजूद महिला किसान।

पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे जींद के किसान

4 जुलाई को मानसा में आयोजित होने वाले समारोह में भाग लेंगे जींद के किसान

पंजाब कृषि विभाग ने सम्मेलन के लिए जींद के किसानों को भेजा निमंत्रण


जींद।
 जींद जिले के कीट कमांडो किसान हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेश के किसानों के लिए भी रोल मॉडल बन चुके हैं। कीट ज्ञान हासिल करने के लिए इन किसानों को अब दूसरे प्रदेशों से भी निमंत्रण मिलने लगा है। गत चार जुलाई को पंजाब कृषि विभाग द्वारा मानसा (पंजाब) में आयोजित करवाए जा रहे सम्मेलन में यह कीट कमांडो किसान पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे। इसके लिए पंजाब कृषि विभाग ने इन किसानों को सम्मेलन में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा है। चार जुलाई को होने वाले इस सम्मेलन में यह कीट कमांडो किसान अपने लेक्चर के माध्यम से फसल में मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
फसलों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण बिना वजह मारे जा रहे कीटों तथा दूषित हो रहे खान-पान को देखते हुए जींद जिले के किसानों ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत की थी। इस दौरान यहां के किसानों ने फसलों में मौजूद कीटों पर अनोखे ढंग से अपने शोध किये। कीटों के क्रियाकलापों के कारण फसलों पर पडऩे वाले प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पर गहन मंथन किया। कीट कमांडो किसानों द्वारा पिछले लगभग 6-7 वर्षों से कीटों पर किये जा रहे इस अनोखे शोध का यह परिणाम निकलकर सामने आया कि अब यहां के किसान हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेश के किसानों के लिए भी रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। पंजाब कृषि विभाग द्वारा गत 4 जुलाई को मानसा में आयोजित किये जा रहे कृषि सम्मेलन में यहां के किसानों को पंजाब के किसानों के मार्ग दर्शन के लिए बुलाया गया है। ताकि पंजाब के किसान भी कीट ज्ञान की मुहिम को अपनाकर कीटनाशकों के कारण थाली में बढ़ते जहर के स्तर को कम कर सकें। पंजाब के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने के लिए बुधवार को यहां के किसान मानसा के लिए रवाना 
होंगे।

जींद के किसानों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है

पंजाब के मानसा क्षेत्र में कपास का उत्पादन अधिक होता है। यहां के किसान जानकारी के अभाव में कपास में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण यहां अब गंभीर परिणाम सामने आने लगे हैं। फसलों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग को रोकने के लिए पंजाब कृषि विभाग द्वारा यहां पर किसानों को जागरूक करने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इस सम्मेलन में जींद के किसानों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है ताकि वह पंजाब के किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा कर सकें और पंजाब के किसान कीट कमांडो किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर कीटनाशकों के प्रयोग को बंद कर सकें। 
अशोक कुमार, एसडीओ
पंजाब स्टेट ट्रांसमिशन कार्पोरेशन लिमिटेड, पंजाब

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...