मैडम कुसुम दलाल ने कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जो पौधा लगाया था आज वह वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस मुहिम को प्रदेश तथा प्रदेश से बाहर के किसानों तक फैलाने का जो प्रयास किया है वह वास्तव में काबिले तारीफ है। डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम जहरमुक्त खेती की एक अनोखी पहल शुरू की है। आरंभ में तो कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम को तवज्जो नहीं दी थी लेकिन अब कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम पर शोध शुरू कर दिया है। जल्द ही इस काम पर कृषि वैज्ञानिकों की स्वीकृति की मोहर भी लग जाएगी। बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि किसानों और कीटों के बीच सदियों से चली आ रही इस लड़ाई को समाप्त करवाने के लिए खाप पंचायतें भी पिछले तीन सालों से इस मुहिम का बारीकी से अध्यनन कर रही हैं। कीटों और किसानों की इस लड़ाई को सुलझाने के लिए इस साल के अंत तक सभी खापों की एक महापंचायत का आयोजन कर इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ठोस निर्णय लिया जाएगा। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों ने 5-5 के समूह में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन किया और बाद में चार्ट पर शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का आंकड़ा तैयार किया। महिलाओं द्वारा तैयार किये गए आंकड़े में शाकाहारी कीटों की तुलना में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा थी।
मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।
हथजोड़ा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर महिला किसान शीला, राजवंती, सीता, शांति, बीरमति, असीम ने बताया कि कपास की फसल में कीटों के अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले तथा चूरड़े का बारीकी से अवलोकन किया और प्रति पत्ता उनकी संख्या नोट की। उनके द्वारा तैयार किये गए आंकड़े के अनुसार सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 1.2, हरे तेले की 0.3 तथा चूरड़े की 2.2 है जबकि कृषि वैज्ञानिकों के ईटीएल लेवल के अनुसार यह कीट नुकसान पहुंचाने के स्तर तक उस समय पहुंचते हैं जब फसल में प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 6, हरे तेले की औसत 2 तथा चूरड़े की औसत 10 हो लेकिन अभी तक फसल को नुकसान पहुंचाने वाले यह मेजर कीट नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से कोसों दूर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस दौरान उन्होंने फसल में शाकाहारी कीटों में टिड्डे तथा मांसाहारी कीटों में डाकू बुगड़ा, मकड़ी, दखोड़ी, क्राइसोपा के अंडे भी दिखाई दिये। उन्होंने बताया कि डाकू बुगड़ा तथा मकड़ी शाकाहारी कीटों का खून चूसकर शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं, वहीं दखोड़ी नामक मांसाहारी कीट का पैशाब शाकाहारी कीटों पर तेजाब की तरह काम करता है और इस तरह से यह मांसाहारी कीट फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।
क्यों पड़ी कीट ज्ञान क्रांति की जरूरत
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रिबन काटकर पाठशाला का शुभारंभ करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग। |
फसलों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत की। इस दौरान देखने में आया कि अकसर किसान जानकारी के अभाव में फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि किसानों को तो कीटों की पहचान ही नहीं है। इसलिए किसानों को जागरूक करने के लिए इस मुहिम की जरूरत पड़ी।
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पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिला कृषि उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग। |
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पाठशाला के प्रथम स्तर में फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान। |
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चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान। |
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पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर महिला किसानों को लैंस व पैड भेंट करती मैडम कुसुम दलाल। |
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पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर अतिथिगणों के साथ मौजूद महिला किसान। |
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