जींद की बेटी ने वेट लिफ्टिंग में मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा
६ साल के ब्रेक के बाद मैदान में उतरकर लहराया परचम
सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में दो बार जीत चुकी है गोल्ड मैडल
अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल जीतने के लिए उतरेगी मैदान पर
जींद। सपने उन्हीं के पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है। यह पंक्तियां जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता देवी पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। अपने खेल के कॅरियर पर लगे 6 साल के लंबे ब्रेक के बाद भी कविता ने कठिन परिश्रम और मजबूत इरादों के बल पर दोबारा से मैदान में उतरकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। वर्ष 2008 में वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने के बाद वर्ष 2014 में दोबारा फिर से कविता ने सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर इंडिया कैंप में अपना स्थान बनाया है। ३१ वर्ष की उम्र में भी कविता के हौंसले बुलंद हैं। कविता वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को गोल्ड मैडल दिलाने का सपना अपनी आंखों में संजो कर पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में जमकर पसीना बहा रही है। जुलाई में स्काटलैंड ग्लास्को में होने वाले कॉमनवैल्थ गेम्स तथा सितम्बर माह में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स के लिए कविता का चयन हो चुका है।
यह है कविता के जीवन का सफर
कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2007 में उड़ीसा में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप के लिए कविता का चयन हुआ। इस प्रतियोगिता में कविता ने गोल्ड मैडल जीतकर पूरे देश में जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया। वर्ष 2008 में कविता का चयन इंडिया कैंप के लिए हुआ। इसी दौरान जापान में आयोजित एशियन चैम्पिशनशिप में प्रतिभागिता करते हुए कविता एक राजनीति का शिकार हुई और यहां कविता को डोपिंग टेस्ट में पॉजीटिव दिखाकर कविता के खेल पर चार साल तक का प्रतिबंध और पांच हजार डॉलर का जुर्माना लगा दिया। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और वालीबाल का अच्छा खिलाड़ी है। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। ससुराल के लोगों ने कविता को खेलने के लिए प्रेरित किया और नवंबर 2013 में कविता ने फिर से तैयारी शुरू कर दी। महज चार माह के प्रशिक्षण के दौरान कविता ने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर फिर से अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। अब कविता पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में रहकर जुलाई में स्काटलैंड ग्लासको में आयोजित होने वाले कॉमनवैल्थ तथा सितम्बर में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स की तैयारी कर रही है।
गोल्ड जीतने के बाद कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो। |
6 साल बाद दोबारा मैदान पर उतर कर मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा
कविता का कहना है कि वर्ष 2008 में जब वह जापान में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप में प्रतिभागिता कर रही थी तो इसी दौरान वह अपनी ही कोच की राजनीति का शिकार हो गई। कविता ने बताया कि उसकी कोच उससे रंजिश रखती थी और उसने अपनी रंजिश निकालने के लिए एक दिन पीछे से उसके खाने में कोई केमिकल डाल दिया। इससे वह डोपिंग के आरोप में फंस गई और उसके खेलने पर चार साल का प्रतिबंध तथा 5 हजार डालर (लगभग साढ़े तीन लाख) रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। इसके बावजूद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और वह निरंतर परिश्रम करती रही। आखिरकार ६ साल बाद उसे एक बार फिर से मौका मिला और उसने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया।
पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में तैयारी करती कविता दलाल। |
ससुराल से मिला पूरा सहयोग
कविता का कहना है कि उसकी हर कठिन परिस्थितियों में उसके ससुराल के लोगों ने उसका पूरा सहयोग किया। उसके पति गौरव ने उस पर लगे साढ़े तीन लाख रुपये की डोपिंग के जुर्माने की राशि भरी। इसके बाद वर्ष 2010 में जब उसने नौकरी छोड़ी तो उसके ससुराल के लोगों ने उसे हौंसला दिया और फिर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यमुनानगर भेजा। ससुराल से मिलने अथक सहयोग के कारण ही कविता के कदम तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।
डोपिंग के दाग को धोने के लिए ममता की दे दी कुर्बानी
वर्ष 2010 में कविता नौकरी छोड़ ससुराल चली गई थी। वर्ष 2012 में कविता ने एक पुत्र को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद कविता अपनी घर-गृहस्ती में व्यस्त हो गई लेकिन वर्ष 2008 में कविता के माथे पर लगे डोपिंग के दाग से कविता अंदर ही अंदर घूट रही थी। इस दाग को धोने के लिए कविता ने अपनी ममता की भी कुर्बानी दे दी। महज दो वर्ष के बेटे अभिजीत को ससुराल में अपनी ननद के जिम्मे छोड़कर कविता यमुनानगर में आकर फिर से खेल की तैयारियों में जुट गई। कविता की मेहनत रंग लाई और मार्च 2014 में कविता ने नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर अपने ऊपर लगे डोपिंग के दाग को धो दिया।
देश के लिए खेलने वाली कविता को गांव के लोगों से है नाराजगी
कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो। |
वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता के पूरा ही कॅरियर का सफर काफी कठिनाइयों से भरा रहा है। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कविता को कांटों भरे मार्ग से गुजरना पड़ा लेकिन फिर भी उसका हौंसला नहीं टूटा लेकिन उसके परिवार के साथ हुई एक घटना ने कविता के दिल में गांव के लोगों के प्रति नाराजगी जरूर पैदा कर दी। कविता का कहना है कि वर्ष 2010 में उसके परिवार में एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उसके परिवार को मुसीबत में डाल दिया लेकिन उसके गांव मालवी के लोगों ने इस मुसीबत की घड़ी में उसके परिवार का साथ नहीं दिया। कविता का कहना है कि वह अपने लिये नहीं बल्कि अपने गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेलती है। कविता का कहना है कि जो व्यक्ति अपने निजी हित को छोड़कर गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेल रहा है और मुसीबत के समय में यदि उसके गांव के लोग ही उसका साथ छोड़ दें तो ऐसे में गांव के लोगों के प्रति दिल में थोड़ी नाराजगी तो होती ही है।
No comments:
Post a Comment