किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना झांझ कलां का सुरेश
अपनी सुझबुझ से सुरेश ने तैयार की गेहूं की अनोखी किस्म
किसान सुरेश रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए देशी पद्धति से करता है खेती
जींद। वैसे तो किसान को अन्नदाता का दर्जा दिया गया है लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरित हो चले हैं। सब्सिडी पर बीज, खाद इत्यादि खरीदने के लिए देश का यह अन्नदाता बाजार में हाथ फैलाए खड़ा रहता है। यदि किसान स्वयं अपने खेत में ही बीज, खाद तैयार करने लगे तो उसे छोटी-छोटी सब्सिडी के लिए बाजार में हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। यह मानना है झांझ कलां गांव निवासी किसान सुरेश ङ्क्षसहमार का। महज दसवीं पास सुरेश ङ्क्षसहमार पांच एकड़ में खेतीबाड़ी का कामकाज कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। सुरेश की एक खूबी है जो उसे अन्य किसानों से अलग करती है। सुरेश समय-समय पर अपने खेत में तैयार हो रही फसलों पर अकसर नए-नए प्रयोग करता रहता है और अपनी इसी आदत के कारण सुरेश ने गेहूं की एक अनोखी किस्म तैयार कर दी है। सुरेश द्वारा अपने खेत में तैयार किए गए गेहूं के इस बीज की किस्म सामान्य गेहूं से अलग है। सामान्य गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की लंबाई लगभग दो गुणा तक ज्यादा है और इस गेहूं की बालियां भी सामान्य गेहूं की बालियों से लगभग डेढ़ गुणा ज्यादा लंबी है। सामान्य गेहूं के पौधों की बजाय इस गेहूं के पौधो भी काफी मजबूत हैं। अपनी इसी खूबी के कारण यह गेहूं दूर से अलग ही दिखाई देता है। दूसरे गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की बालियां लंबी तथा मोटी होने के कारण इसका उत्पादन भी दूसरे गेहूं की किस्मों से लगभग दो गुणा ज्यादा होता है। सुरेश को यह बीज तैयार करने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा है। अब सुरेश के पास दस एकड़ का गेहूं का बीज तैयार है, जिसे सुरेश मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने दूसरे किसान साथियों को बिजाई के लिए देगा। ताकि अधिक से अधिक किसान इस बीज की बिजाई कर कम खर्च में अच्छा उत्पादन ले सकें। सुरेश की एक खास बात यह भी है कि वह दूसरे किसानों की तरह अपने खेत में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करता है। सुरेश पूरी तरह से कूदरती तरीके से खेती करता है और अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की बजाए देशी खाद का प्रयोग करता है। कम खर्च से अधिक पैदावर लेने के कारण खेती सुरेश के लिए घाटे का सौदा नहीं बल्कि आमदनी का मुख्य साधन बनी हुई है।
ऐसे तैयार हुआ बीज
झांझ कलां निवासी सुरेश कुमार ने अपने खेतों में ही घर बनाया हुआ है। लगभग तीन वर्ष पहले सुरेश अपने खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था। इसी दौरान सुरेश की नजर खेत में खड़े गेहूं के एक पौधे पर गई, जो उस गेहूं से पूरी तरह से अलग दिखाई दे रहा था। सुरेश ने उस गेहूं की बाली को तोड़कर घर पर सुरक्षित रख लिया। अगले वर्ष गेहूं की बिजाई के दौरान उस गेहूं की बाली से गेहूं निकालकर उसकी अलग से बिजाई कर दी। उस एक बाली से 100 के करीब दाने निकले। अच्छे तरीके से बिजाई किए जाने के कारण उस गेहूं का फुटाव भी अच्छा हुआ। सुरेश हर वर्ष इस गेहूं को सुरक्षित रखकर अगले वर्ष इसी तरीके से इसकी बिजाई कर देता। इस तरह सुरेश की तीन वर्ष की मेहनत के बाद आज सुरेश के पास लगभग दस एकड़ का बीज तैयार हो चुका है। सुरेश का कहना है कि वह दस एकड़ के इस बीज को अनाज मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने साथी किसानों को बीज के तौर पर देगा, ताकि इस किस्म की अधिक से अधिक बिजाई कर अधिक से अधिक यह बीज तैयार किया जा सके। यह गेहूं की किस्म कौनसी है इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सुरेश कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग भी लेगा।क्या है इस गेहूं की किस्म की खूबी
तैयार की गई नई किस्म के गेहूं की बालियों को दिखाता किसान। |
अखिल भारतीय किसान मोर्चा करेगा सुरेश को प्रोत्साहित
इस तरह के प्रगतिशील किसानों को प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा विशेष अभियान चलाए हुए है। अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चे का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद कर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है। उन्हें जब इस किसान के बारे में पता चला तो उन्होंने इस किसान को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। मोर्चा इस किसान को साथ लेकर अन्य किसानों को भी जागरूक करेगा तथा इस किसान को सरकार से प्रोत्साहन दिलवाने के लिए प्रयास करेगा। ताकि इस तरह के किसानों को रोल मॉडल बनाकर दूसरे किसानों को प्रेरित किया जा सके।सुनील कंडेला, प्रदेशाध्यक्ष
अखिल भारतीय किसान जागरूक मोर्चा
खेत में खड़ी नई किस्म की गेहूं को दिखाता किसान सुरेश। |
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