Monday, 24 November 2014

बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए महिला किसानों ने लिया अच्छा उत्पादन

जींद। निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कीटों का अवलोकन करने के साथ-साथ पैदावार का आंकड़ा भी तैयार किया। कीटों के अवलोकन के दौरान देखने को मिला की इस समय फसल में बिनोलों का रस चूसने वाले कीट लाल व काला बानिया काफी संख्या में फसल में मौजूद हैं। वहीं फसल के उत्पादन के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया उनकी पैदावार अन्य किसानों से काफी अच्छी रही।

लोपा मक्खी ग्रुप की कीटाचार्या मुकेश रधाना, कृष्णा निडाना, राजबाला निडाना, प्रमीला रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि कपास की फसल में इस बार पूरे प्रदेश में सफेद मक्खी ने तबाही मचाकर रख दी। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण इस बार सैंकड़ों एकड़ कपास की फसल खराब हो गई लेकिन जिन-जिन किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया, वहां-वहां सफेद मक्खी नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की औसत 3.4 प्रति पत्ता रही है। जबकि चूरड़ा व हरा तेला बिल्कुल नहीं के बराबर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस बार उनकी फसल में शाकाहारी कीट मस्करा बग, भूरिया बग, सलेटी भूंड, मिरड बग, झोटिया बग तथा टिड्डे मौजूद हैं। फूल खाने वालों में पुष्पक बीटल देखी गई है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर कीट लाल व काला बानिया, माइट, मिलीबग व चेपा इस समय भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट पत्तों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं इन कीटों को नियंत्रित करने वाले मांसाहारी कीट अंगीरा, चपरो बीटल, हथजोड़ा, मकड़ी, क्राइसोपे के अंडे, सुनहरी, फौजन, इनो, दीदड़, कालो बीटल, कटीया, लोपा मक्खी, लपरो, सिरफड़ो मक्खी के बच्चे, भीरड़, डाकू बुगड़े भी मौजूद हैं। महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी तथा मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं और इसके बावजूद भी उनकी फसल अभी तक कीटों व बीमारी से होने वाले नुकसान से पूरी तरह से सुरक्षित है।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

महिला किसानों ने फसल के उत्पादन पर की चर्चा 

निडाना निवासी कमलेश ने बताया कि उसकी आधा एकड़ में अभी तक 10 मण कपास की चुगाई हो चुकी है जबकि अभी ओर चुगाई होनी बाकी है। उसके आधा एकड़ में इस बार लगभग 14 मण कपास के उत्पादन की उम्मीद है। कृष्णा निडाना ने बताया कि उसकी एक एकड़ में 22 से 25 मण तक कपास का उत्पादन होने की उम्मीद है। उसने फसल में पूरे सीजन में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाए जिंक, डीएपी व यूरिया खाद के घोल के तीन छिड़काव ही किए हैं। अनिता ललितखेड़ा ने बताया कि इस बार उसके खेत में कपास की फसल पौधों के मामले में बिल्कुल कमजोर थी लेकिन फिर भी उसे एक एकड़ में 18 मण की पैदावार मिली है। रधाना निवासी विजय ने बताया कि उसने खाद के घोल का एक छिड़काव किया था लेकिन इसके बावजूद भी उसे आधा एकड़ में 19 मण कपास का उत्पादन मिला है। निडाना निवासी बिमला ने बताया कि इस बार उसने अपने एक एकड़ में देशी कपास की बिजाई थी और खाद के घोल के दो छिड़काव किए थे। उसे एकड़ में देशी कपास का 20 मण का उत्पादन मिला है। निडाना के पूर्व सरपंच रतन सिंह ने बताया कि वह भी कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ा हआ है और उसने बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए अढ़ाई एकड़ में 60 मण कपास का उत्पादन लिया है। जबकि कीटनाशक का प्रयोग करने वाले किसानों का उत्पादन काफी कम हुआ है।


कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

कपास की फसल में मौजूद रस चूसक लाल बानिया नामक कीट।

कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।




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