Monday, 24 November 2014

कीटों पर शोध करेगी यूनिवर्सिटी : वीसी

शाकाहारी कीटों के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं मांसाहारी कीट



जींद। निडाना गांव में शनिवार को  महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। इस पाठशाला में चौ. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। इस अवसर पर पाठशाला में राममेहर नंबरदार भी विशेष रूप से मौजूद रहे। राममेहर नंबरदार ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। पाठशाला के आरंभ में महिलाओं ने कीटों का अवलोकन किया और फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के आंकड़े एकत्रित किए।
उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने महिला किसानों के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां की महिलाओं ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए एक अनोखी मुहिम की शुरूआत की है। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वह विश्वविद्यालय की तरफ से भी इस पर शोध करवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यातिथि ने महिलाओं से बच्चों में नैतिक मूल्यों का बीजारोपण कर बच्चों को संस्कारवान बनाने का आह्वान किया। क्राइसोपा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर मनीषा ललितखेड़ा, केला निडाना, सुमित्रा ललितखेड़ा, रामरती रधाना तथा प्रमिला रधाना ने मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान। 
मांसाहारी तथा शाकाहारी। इसलिए कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। पौधे जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को आकर्षित करते हैं लेकिन जब किसान फसल में कीटनाशक का प्रयोग कर देता है तो इससे उनकी सुगंध छोडऩे की क्षमता गड़बड़ा जाती है और इससे पौधों और कीटों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है।

मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के लिए करेंगे कुदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्य महिला किसानों ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को काबू करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की संख्या ईटीएल लेवल के पार पहुंच गई है लेकिन अभी तक उनकी फसल सफेद मक्खी से पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि इस समय उनकी फसल में सफेद मक्खी के बच्चे न के बराबर हैं और प्रौढ़ों की संख्या काफी ज्यादा है। फसल को प्रौढ़ की बजाय बच्चों से ज्यादा नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इस समय उनकी फसल में दीदड़ बुगड़े, बिंदुआ बुगड़ा,
माइक्रोसोप पर कीटों की पहचान करती महिला किसान। 
कातिल बुगड़ा, मटकू बुगड़ा, भिन्न-भिन्न किस्म की बीटल, सिरफड़ मक्खी, लोपा मक्खी, डायन मक्खी, लंबड़ो मक्खी, टिकड़ो मक्खी, श्यामो मक्खी तथा परपेटिये अंगीरा व इनो मौजूद हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने सींगू बुगड़े के अंडे से बच्चे निकलते, हथजोड़े द्वारा लाल बानिये का शिकार करते हुए तथा मकड़ी द्वारा टिड्डे व मक्खी का शिकार करते हुए भी दिखे।



मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते राममेहर नंबरदार। 

No comments:

Post a Comment

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...