Monday, 24 November 2014

अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें महिला किसान

कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी फसल में बढ़ रही है सफेद मक्खी की संख्या


जींद। जिला बाल कल्याण अधिकारी अनिल मलिक ने कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। कीट ज्ञान की इस मुहिम में यहां के पुरुष किसानों द्वारा महिलाओं को साथ जोडऩा एक सकारात्मक पहल है। क्योंकि पुरुष के शिक्षित होने से एक परिवार को फायदा होता है और महिला के शिक्षित होने से दो परिवारों को फायदा होता है। मलिक ने कहा कि मनुष्य की जिंदगी में अनुभव सबसे ज्यादा काम आता है और कीट ज्ञान में कीटाचार्या महिलाओं का अनुभव बहुत ज्यादा है। 
चार्ट पर महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान। 
इसलिए वह अपने इस अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें और अपने इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैलाएं। मलिक शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न देकर मुख्यातिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर सिरसा जिले से भी कुछ किसान कीट ज्ञान लेने के लिए किसान खेत पाठशाला पहुंचे। 
कीटाचार्या नवीन रधाना, प्रमीला रधाना, सीता व शीला ललितखेड़ा ने कहा कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, उन-उन फसलों में कीट की संख्या ईटीएल लेवल का आंकड़ा पार कर चुकी है। सबसे ज्यादा प्रकोप सफेद मक्खी का देखने को मिल रहा है। आज जींद जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में यह स्थिति हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसलें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के बाद भी सफेद मक्खी पर काबू नहीं पाया जा सका है। अंग्रेजो व राजवंती निडाना ने कहा कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है वहां सफेद मक्खी अभी तक नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर है। अंग्रेजो व राजवंती ने कहा कि उन्होंने फसल में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाय खाद के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम किया है। इसलिए उनकी फसल कीड़ों और बीमारियों से पूरी तरह से सुरक्षित है। 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

खत्म होने के कागार पर है फसल

किसान भानीराम
मैं पिछले 20 वर्षों से खेती कर रहा हूं और हर वर्ष मेरा कीटनाशकों का खर्च लगातार बढ़ रहा है। कीटनाशकों पर खर्च बढऩे तथा उत्पादन कम होने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस बार भी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कपास की फसल में कीटनाशकों के 10-12 स्प्रे कर चुका हूं लेकिन कीटों की संख्या नियंत्रित होने की बजाय बढ़ रही है। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बिल्कुल खत्म होने के कागार पर पहुंच चुकी है।
भानीराम, किसान
ऐलनाबाद (सिरसा)

किसानों की मुहिम से मिली प्रेरणा

किसान पवन
हमारे क्षेत्र के किसानों द्वारा हर वर्ष कीटों से फसल को बचाने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इससे खेती पर उनका खर्च तो लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन उत्पादन कम हो रहा है। कपास की फसल में अकेले कीटनाशकों पर किसान का 10 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है। इसके अलावा अन्य खर्च अलग से रह जाते हैं लेकिन 10-10 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग करने के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं होते हैं। किसानों की मुहिम से प्रेरित होकर वह निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे हैं। ताकि हम भी कीटनाशकों पर बढ़ते अपने खर्च को कम कर सकें। 
पवन, किसान 
ऐलनाबाद (सिरसा)

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