प्रशिक्षण शिविर के दौरान कीट शोध पर जानकारी लेने किसान पाठशाला में पहुंचे थे अधिकारी
जींद। कीटाचार्य किसानों ने कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाया तथा मांसाहारी और शाकाहारी कीटों की पहचान करवाकर उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जींद के किसान प्रशिक्षण केंद्र में 21 दिवसीय रिफरेश ट्रेनिंग कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कृषि विकास अधिकारियों का 30 सदस्यीय दल शनिवार को ट्रेनिंग इंचार्ज डा. बलजीत लाठर के नेतृत्व में राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर पहुंचा था। यहां पर कृषि विकास अधिकारियों ने कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल का अवलोकन कर पौधों तथा कीटों के आपसी सम्बंध पर गहनता से विचार-विमर्श किया। पाठशाला के मुख्यातिथि रहे धर्मपाल उर्फ मानू लौहान ने किसानों की जहरमुक्त खेती की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए 11 हजार रुपए की राशि भेंट की। इस अवसर पर डा. सुभाषचंद्र, डा. राजेश लाठर, डा. हरिभगवान, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा तथा सुनील कंडेला, अक्षत दलाल भी विशेष तौर पर मौजूद थे।
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते डॉ कमल सैनी |
कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू, रणबीर मलिक, बलवान, रमेश, रामदेवा, सुरेश की टीम ने कृषि विकास अधिकारियों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पौधों और कीटों के बीच एक गहरा रिश्ता है लेकिन किसान अज्ञानता के कारण इस रिश्ते को समझ नहीं पा रहा है। अगर किसान खेती को फायदे का सौदा बनाना चाहते हैं तो उन्हें खेती पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करना होगा। यह तभी संभव हो सकता है, जब किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान होगा। उन्होंने कहा कि किसान का सही मार्गदर्शन करने में एक कृषि विकास अधिकारी अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए कृषि विकास अधिकारियों को चाहिए कि वे किताबी ज्ञान के साथ-साथ धरातल से पैदा किए गए व्यवहारिक ज्ञान को हासिल कर उसे अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाएं, ताकि किसानों में जागरूकता पैदा की जा सके। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि कीट 2 प्रकार के होते हैं। एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी। फसल में सबसे पहले शाकाहारी कीट आते हैं और इसके बाद शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कृषि विभाग अधिकारियों को फसल का अवलोकन करवाया। अवलोकन के दौरान बारिश के बाद जमीन के अंदर से पौधों पर आए कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि बरसात में जमीन में पानी भर जाने के कारण जमीनी कीड़े हंडेर बीटल, गुचको, घुमंतु बीटल इत्यादि अपनी सुरक्षा के लिए पौधों पर आ जाते हैं। ऐसी अवस्था में इनकी भूख बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और इन्हें जिस भी तरह का कीट मिल जाए ये उसी को खा कर उसका काम तमाम कर देते हैं। उन्होंने बताया कि जमीनी कीड़े पौधों पर आने के कारण कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीटों की संख्या काफी कम हो गई है। फसल के अवलोकन के बाद कीटाचार्य किसान तथा कृषि विकास अधिकारियों के बीच कीटों के क्रियाकलापों और फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव पर काफी देर तक चर्चा भी की।
बरसात के बाद जमीन में पानी भर जाने के बाद पौधों पर आए मांसाहारी बीटल। |
साप्ताहिक कीट समीक्षा
गांव का नाम सफेद मक्खी हरा तेला चूरड़ा
राजपुरा 1.7 1.9 2.8
ललीतखेड़ा 1.8 1.3 5.7
रधाना 1.4 0.8 6.4
ईगराह 1.4 1.4 4.6
कुल औसत 1.5 1.35 4.8
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि उपरोक्त आंकड़ा यहां के किसानों द्वारा अलग-अलग गांव में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से एकत्रित किया गया है। सैनी ने बताया कि आंकड़े की कुल औसत को देखते हुए अभी तक कोई भी रस चूसक कीट कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के आॢथक सत्र को छू भी नहीं पाया है।
पाठशाला के दौरान कृषि विकास अधिकारियों को कीटों की जानकारी देते किसान। |
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