फलहारी बुगडे ने दी कपास की फसल में दस्तक
जींद। कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने कीटों पर शोध का जो कार्य शुरू किया है, वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। आज तक पूरे देश में कीटों पर इस तरह से कहीं भी शोध नहीं हुआ है। डा. सिहाग शनिवार को राजपुरा गांव के खेतों में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला के तीसरे सत्र में बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ कामरेड फूलकुमार श्योकंद, ए.डी.ओ. डा. कमल सैनी भी विशेष रूप से मौजूद थे। पाठशाला में आसपास के 12 गांवों के किसानों ने अपनी अनुपस्थिति दर्ज करवाई।
पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. आर.पी. सिहाग। |
कामरेड फूलकुमार श्योकंद ने कहा कि अगर किसानों को जहर से निजात हासिल करनी है तो उन्हें डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा दिखाए गए कीट ज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़कर कीटों के जीवनचक्र पर गहराई से अध्ययन करना होगा। श्योकंद ने कहा कि देश में जब हरित क्रांति ने दस्तक दी थी तो उसके साथ ही फसलों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी तेजी से होने लगा था। इसके चलते 1975-76 में वैज्ञानिकों ने रासायनिक उर्वरकों से मनुष्य के स्वास्थ्य पर होने वाले कूप्रभाव पर खोज शुरू की थी। उस समय इस खोज पर लगभग 1900 वैज्ञानिक कार्य कर रहे थे लेकिन समय के साथ-साथ आज यह खोज बंद होती चली गई। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कीट अवलोकन किया और इसके बाद कीट बही खाता तैयार किया। किसानों ने बताया कि कपास के इस खेत में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 2.7, हरे तेले की 1.7 और चूरड़े की 3.3 की औसत है। उन्होंने कहा कि अगर आंकड़े पर नजर डाली जाए तो इस वक्त सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा फसल को नुक्सान पहुंचाने के सत्र से काफी नीचे है। किसानों ने बताया कि उन्होंने कीट अवलोकन के दौरान क्राइसोपा के अंडे, बच्चे और प्रौढ़ नजर आया। इसके अलावा फलहरी बुगड़ा, लेडी बर्ड बीटल, हंडेर बीटल, अंगीरा नामक मांसाहारी कीट भी फसल में मौजूद थे। किसान बलवान, रमेश, महाबीर, सुरेश ने बताया कि फलहरी बुगड़ा लाल रंग का होता है डेढ़ मिनट में 1 कीड़े का काम तमाम कर देता है। अगर हमारी फसल में फलहरी बुगड़ा मौजूद है तो हमें सफेद मक्खी से डरने की जरुरत नहीं है। लेडी बर्ड बीटल 17-18 किस्मों की होती हैं तथा अपने शरीर के बराबर तक के कीटों का मांस खा कर गुजारा करती हैं। अंगीरा एक मांसाहारी कीट है तथा मिलीबग के पेट में अपने अंडे देता है। अंगीरा के बच्चे मिलीबग को अंदर से खाना शुरू करते हैं। इससे मिलीबग का रंग गहरा लाल होना शुरू हो जाता है और धीरे-धीर वह नष्ट हो जाती है। एक अंगीरा अपनी ङ्क्षजदगी में लगभग 100 मिलीबग का काम तमाम कर देता है। हंडेर बीटल जमीन के अंदर रहकर जमीन को खोदती हैं। हंडेर बीटल एक प्रकार से फसल में निराई-गुडाई का काम करती हैं तथा बरसात के दिनों में जमीन में पानी अधिक होने के कारण यह जमीन से बाहर निकलती हैं। जमीन के बाहर आकर यह शाकाहारी कीटों को अपना शिकार बनाती हैं।
सही होनी चाहिए जमीन की पी.एच.
डा. कमल सैनी ने कहा कि फसल की पैदावार जमीन की पी.एच. पर निर्भर करती है। अगर जमीन की पी.एच. 6.5 से 7.5 के बीच है तो वह जमीन कृषि के लिए सबसे उपयुक्त होती है। इस तरह की जमीन में किसी भी तरह का उर्वरक डालने की जरुरत नहीं होती। अगर जमीन की पी.एच. ज्यादा हो तो पौधा फासफोरस तथा सल्फर को तो जमीन से आसानी से ले लेगा लेकिन बाकी पोषक तत्वों का वह प्रयोग करने में सक्ष्म नहीं होगा।
कपास के पौधों पर कीटों का अवलोकन करते किसान। |
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