Monday, 24 November 2014

बारिश के बाद फसल में कम हुई कीटों की संख्या

फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक कगार से काफी दूर हैं शाकाहारी कीट 


जींद। पिछले कई दिनों से हो रही भारी बारिश भी कीटाचार्या महिला किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाई। गत रात्रि तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी निडाना, ललितखेड़ा और रधाना गांव की कीटाचार्या महिला किसान सामान्य दिनों की भांति निडाना गांव में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला में शामिल होने के लिए पहुंची। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने फसल में कीटों का आंकलन कर कीटों का रिकार्ड तैयार किया। इस अवसर पर निडाना गांव के पूर्व सरपंच रामभगत ने पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि तथा अनिल नंबरदार ने विशिष्ठ अतिथि के तौर पर शिरकत की। पूर्व सरपंच रामभगत ने इस मुहिम की तारिफ करते हुए कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए चलाई गई इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छी पहल की है। कीटाचार्या महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। 
 फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्या सुषमा, सुमन, ब्रह्मी व कमला ने बताया कि बरसात के बाद फसल में कीटों की संख्या में काफी कमी आई है। उन्होंने बताया कि इस सप्ताह प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 1.4, हरे तेले की औसत 0.5 तथा चूरड़े की 0.2 है। इसलिए यह अब नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से काफी दूर हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा फसल में सूबेदार मेजर लाल बानिया, काला बानिया, चेपा, लाल माइट तथा मिलीबग भी फसल में मौजूद हैं। कीटाचार्या कमल, जसबीर कौर व संतोष ने बताया कि इन कीटों के अलावा फसल में तितली, सलेटी भूंड, टिड्डे, हरा गुबरेला, मधू मक्खी, पुष्पा बीटल, तेलन, होपर, फूदका, नगीना बग, मस्करा बग तथा सड़ांधला बग भी मौजूद हैं लेकिन यहां के किसान इन कीटों की गिनती आल-गोल में करते हैं। क्योंकि यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। 

यह-यह मांसाहारी कीट भी देखे गए  

 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती कीटाचार्या महिला किसान ईश्वंती। 
फसल में कुदरती कीटनाशी के तौर पर भांत-भांत की मकडिय़ां, रतना मक्खी, लोपा मक्खी, इनो, लाल माइट, दखोड़ी, आफियाना बीटल, क्राइसोपे का बच्चा, लम्बड़ो, टिकड़ो, हथजोड़ा, दिदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, भिरड़, इंजनहारी, हथजोड़ा भी मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि फसल में मांसाहारी कीट मौजूद होने के कारण फसल में किसी प्रकार के कीटनाशी के प्रयोग की जरूरत नहीं है। पाठशाला के समापन पर महिला किसानों ने 'बिना बाप कै बेटा दुखिया, बिन माता कै बेटी, सबतै बढिय़ा हो सै पिया बिना जहर की खेती' गीत से पाठशाला का समापन किया। 

कीटों के बारे में मास्टर ट्रेनर किसानों के साथ विचार-विमर्श करती महिला किसान।

 चार्ट पर कीटों का रिकार्ड दर्ज करती महिला किसान।

अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें महिला किसान

कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी फसल में बढ़ रही है सफेद मक्खी की संख्या


जींद। जिला बाल कल्याण अधिकारी अनिल मलिक ने कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। कीट ज्ञान की इस मुहिम में यहां के पुरुष किसानों द्वारा महिलाओं को साथ जोडऩा एक सकारात्मक पहल है। क्योंकि पुरुष के शिक्षित होने से एक परिवार को फायदा होता है और महिला के शिक्षित होने से दो परिवारों को फायदा होता है। मलिक ने कहा कि मनुष्य की जिंदगी में अनुभव सबसे ज्यादा काम आता है और कीट ज्ञान में कीटाचार्या महिलाओं का अनुभव बहुत ज्यादा है। 
चार्ट पर महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान। 
इसलिए वह अपने इस अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें और अपने इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैलाएं। मलिक शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न देकर मुख्यातिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर सिरसा जिले से भी कुछ किसान कीट ज्ञान लेने के लिए किसान खेत पाठशाला पहुंचे। 
कीटाचार्या नवीन रधाना, प्रमीला रधाना, सीता व शीला ललितखेड़ा ने कहा कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, उन-उन फसलों में कीट की संख्या ईटीएल लेवल का आंकड़ा पार कर चुकी है। सबसे ज्यादा प्रकोप सफेद मक्खी का देखने को मिल रहा है। आज जींद जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में यह स्थिति हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसलें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के बाद भी सफेद मक्खी पर काबू नहीं पाया जा सका है। अंग्रेजो व राजवंती निडाना ने कहा कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है वहां सफेद मक्खी अभी तक नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर है। अंग्रेजो व राजवंती ने कहा कि उन्होंने फसल में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाय खाद के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम किया है। इसलिए उनकी फसल कीड़ों और बीमारियों से पूरी तरह से सुरक्षित है। 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

खत्म होने के कागार पर है फसल

किसान भानीराम
मैं पिछले 20 वर्षों से खेती कर रहा हूं और हर वर्ष मेरा कीटनाशकों का खर्च लगातार बढ़ रहा है। कीटनाशकों पर खर्च बढऩे तथा उत्पादन कम होने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस बार भी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कपास की फसल में कीटनाशकों के 10-12 स्प्रे कर चुका हूं लेकिन कीटों की संख्या नियंत्रित होने की बजाय बढ़ रही है। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बिल्कुल खत्म होने के कागार पर पहुंच चुकी है।
भानीराम, किसान
ऐलनाबाद (सिरसा)

किसानों की मुहिम से मिली प्रेरणा

किसान पवन
हमारे क्षेत्र के किसानों द्वारा हर वर्ष कीटों से फसल को बचाने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इससे खेती पर उनका खर्च तो लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन उत्पादन कम हो रहा है। कपास की फसल में अकेले कीटनाशकों पर किसान का 10 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है। इसके अलावा अन्य खर्च अलग से रह जाते हैं लेकिन 10-10 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग करने के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं होते हैं। किसानों की मुहिम से प्रेरित होकर वह निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे हैं। ताकि हम भी कीटनाशकों पर बढ़ते अपने खर्च को कम कर सकें। 
पवन, किसान 
ऐलनाबाद (सिरसा)

तीन एमएम के कीट ने निकाला कीट वैज्ञानिकों व किसानों का पसीना

सफेद मक्खी के प्रकोप से हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ फसल तबाह

चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिक भी नहीं ढूंढ़ पा रहे सफेद मक्खी का तोड़


जींद। महज तीन मिलीमीटर के कीट सफेद मक्खी ने बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों व किसानों के पसीने निकाल कर रख दिये हैं। चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कीट वैज्ञानिक भी इस कीट का तोड़ नहीं ढूंढ़ पाए हैं। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों के लिए सफेद मक्खी नामक यह कीट चुनौती बनी हुई है। क्योंकि किसान इस कीट को नियंत्रित करने के लिए जितना भी कीटनाशकों का प्रयोग फसल में कर रहे हैं, सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ रहा है। हिसार कृषि विश्वविद्यालय की ठीक नाक के नीचे हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी के प्रकोप से तबाह हो चुकी हैं। जहां-जहां इस कीट को नियंत्रित करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है, वहां-वहां पर इसके उल्टे परिणाम सामने आ रहे हैं। हिसार, भिवानी व जींद के किसानों के सामने ऐसे हालात पैदा हो चुके हैं कि किसान फसलों की हालत को देखकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं लेकिन हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों को शायद तीन मिलीमीटर के इस सफेद कीट के काले कारनामे नजर नहीं आ रहे हैं।
सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद खराब हो चुकी कपास की फसल।

2001 में अमेरिकन सूंडी और 2005 में मिलीबग ने मचाई थी तबाही

जब-जब भी कीटनाशकों की सहायता से कीटों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए हैं, तब-तब यह कीट बेकाबू हुए हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग द्वारा मचाई गई तबाही इसका प्रमाण हैं। 2001 में अमेरिकन सूंडी को काबू करने के लिए किसानों ने कपास की फसलों में 30 से 40 स्प्रे किए थे लेकिन उसके बाद भी यह कीट काबू नहीं हुआ और परिणाम शून्य रहे। इस तीन सेंटीमीटर के कीट ने पूरी की पूरी फसलों को तबाह कर दिया था। यही हालात 2005 में किसानों के सामने पैदा हुए थे। 2005 में मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन महज चार सेंटीमीटर के इस कीट ने उस दौरान कीट वैज्ञानिकों की खूब फजिहत करवाई थी। मिलीबग से प्रकोपित फसलों को किसानों ट्रैक्टर की सहायता से खेत में जोत दिए थे।

नहीं नियंत्रित हो रही सफेद मक्खी

कपास को सफेद मक्खी से बचाने के लिए चार बार कीटनाशक का प्रयोग कर चुका हूं लेकिन सफेद मक्खी का प्रकोप कम होने की बजाये लगातार बढ़ रहा है। पूरी फसल सूख कर काली हो चुकी है। कपास की फसल में बिजाई से लेकर अभी तक खाद तथा पेस्टीसाइड पर लगभग 19000 रुपये खर्च कर हो चुके हैं। अगर फसल की हालात को देखा जाए तो कपास की फसल से महज ८ हजार रुपये की आमदनी की उम्मीद है। यही हालात पिछले वर्ष भी हुए थे। इस प्रकार खेती किसान के लिए लगातार घाटे का सौदा बन रही है। क्योकि खर्च लगातार बढ़ रहा है और उत्पादन कम हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों पूछने पर भी कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिल रहा है।
जगविंद्र सिंह, किसान
बरवाला, हिसार 

सफेद मक्खी से परेशान हैं पूरे क्षेत्र के किसान

पिछले वर्ष की तरह इस बार भी कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा है। पूरे क्षेत्र में सफेद मक्खी का प्रकोप है। मेरे पास ६ एकड़ में कपास की फसल है लेकिन 6 की 6 एकड़ की फसल खत्म होने की कगार पर है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए चार बार हिसार की मान्यता प्राप्त दुकान से कीटनाशक खरीदकर स्प्रे कर चुका हूं लेकिन सभी स्प्रे बेअसर साबित हो रहे हैं। अगर फसल के हालात को देखा जाए तो इस समय चार क्विंटल कपास भी मुश्किल से मिल पाएगी।
विवेकानंद, किसान 
बरवाला, हिसार 

सूख रही हैं फसलें

सफेद मक्खी के कारण कपास की फसलें तबाह हो रही हैं। फसलों को तबाह होते देख किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो चुका है। कृषि अधिकारी भी इसका समाधान नहीं बता पा रहे हैं। सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास के पत्ते काले पडऩे लगते हैं और उसके बाद फसल सूखने लगती है।
जोरा सिंह, किसान
जींद

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ रहा है सफ़ेद मक्खी का प्रकोप 

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ रहा है लेकिन इसके साथ जितनी छेडख़ानी की जाती है यह उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। इससे पहले 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग ने भी इसी तरह तबाही मचाई थी। अब उनका स्थान सफेद मक्खी ने ले लिया है। पिछले तीन वर्षों से लगातार यही परिणाम सामने आ रहे हैं लेकिन जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया, वहां इसका कोई दुष्प्रभाव नजर नहीं आया है। इसलिए किसानों को चाहिये कि वह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों पर जिंक, डीएपी व यूरिया के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम करें।
डॉ. महावीर शर्मा
कृषि सलाहकार 

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं नियंत्रित 

सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है और यह अपने जीवनकाल में 100 से 125 अंडे देती है। यह पौधे से रस चूसती है। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता काला हो जाता है और भोजन बनाना बंद कर देता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं है। इनो, इरो, बीटल नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह खुद ही इसे नियंत्रित कर लेते हैं। जिस-जिस खेत में कीटनाशक का प्रयोग नहीं हुआ है, वह खेत में सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है लेकिन जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट इसे खुद ही नियंत्रित कर लेते हैं। किसानों को कीटों को मारने की नहीं, कीटों की पहचान करने की जरूरत है।

रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान
जींद।  

सफेद मक्खी के कारण खराब हो रही फसल को दिखाता बरवाला का एक किसान। 

जींद जिले की राह पर बरवाला के किसान

कीटनाशकों से निजात पाने के लिए अपनाई कीट ज्ञान की पद्धति

हर बृहस्पतिवार को किया जाता है किसान खेत पाठशाला का आयोजन
बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं जींद के किसान 


जींद। बरवाला के किसान भी अब जींद जिले के किसानों की राह पर चल पड़े हैं। जींद जिले से लगभग 6 वर्ष पहले शुरू हुई कीट ज्ञान की पद्धति को बरवाला के किसानों ने अपना लिया है। कीट ज्ञान हासिल करने के लिए बरवाला के किसानों द्वारा जींद के किसानों की तर्ज पर किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की गई है। हर बृहस्पतिवार को बरवाला के जेवरा गांव के खेतों में यहां के किसानों द्वारा किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाता है। इस पाठशाला में बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान देने के लिए जींद से कुछ मास्टर ट्रेनर किसान जाते हैं। जेवरा में लगने वाली इस पाठशाला में बरवाला के कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ उद्यान विभाग के अधिकारी भी भाग लेंगे।
फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए वर्ष 2008 में जींद जिले के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत कर कीटों पर शोध का काम शुरू किया था। इस पाठशाला में कीटों पर चले शोध में यह बात निकलकर सामने आई थी कि कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। कीटों को नियंत्रित करने के लिए तो फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं, जो शाकाहारी कीटों को खाकर उन्हें नियंत्रित कर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। इस शोध के दौरान डॉ. दलाल ने इस बात को साबित कर दिया था कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है। इसके बाद से ही यहां के किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया था।

इस बार से बंद कर दिया कीटनाशकों का प्रयोग

फसलों को कीटों से बचाने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों पर काफी रुपये खर्च होते हैं लेकिन उसके बाद भी कीट नियंत्रित होने की बजाए उनकी संख्या ओर बढ़ जाती है। इस बार उसके खेत में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई है, जिस खेत में पाठशाला चल रही है उस खेत में अभी तक एक भी छंटाक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। अभी तक उसकी फसल कीटों और बीमारी दोनों से सुरक्षित है लेकिन आस-पास के क्षेत्र में जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग हुआ है, उन-उन खेतों में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ा है और हालात ऐसे हो गए हैं कि फसल नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जींद से आने वाले मास्टर ट्रेनर किसान खेत पाठशाला में मौजूद अन्य किसानों को कीटों की पहचान करना तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। इसके चलते अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष कीटनाशकों के प्रति किसानों की सोच भी बदल रही है।
दलजीत, किसान
गांव जेबरा, बरवाला

जींद के मास्टर ट्रेनर किसान देतें हैं प्रशिक्षण 

जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को दूसरे जिलों में फैलाने के लिए बरवाला में भी इस बार किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की है। यहां के किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए हर सप्ताह जींद के मास्टर ट्रेनर किसान यहां आते हैं। कीट ज्ञान की पद्धति के बारे में जानकारी लेने के लिए यहां के किसान काफी उत्सुक हैं। इससे किसानों को काफी फायदा पहुंच रहा है।
डॉ. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी, हिसार
 बरवाला के जेवरा गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी लेते किसान।

कीटों पर शोध करेगी यूनिवर्सिटी : वीसी

शाकाहारी कीटों के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं मांसाहारी कीट



जींद। निडाना गांव में शनिवार को  महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। इस पाठशाला में चौ. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। इस अवसर पर पाठशाला में राममेहर नंबरदार भी विशेष रूप से मौजूद रहे। राममेहर नंबरदार ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। पाठशाला के आरंभ में महिलाओं ने कीटों का अवलोकन किया और फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के आंकड़े एकत्रित किए।
उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने महिला किसानों के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां की महिलाओं ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए एक अनोखी मुहिम की शुरूआत की है। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वह विश्वविद्यालय की तरफ से भी इस पर शोध करवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यातिथि ने महिलाओं से बच्चों में नैतिक मूल्यों का बीजारोपण कर बच्चों को संस्कारवान बनाने का आह्वान किया। क्राइसोपा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर मनीषा ललितखेड़ा, केला निडाना, सुमित्रा ललितखेड़ा, रामरती रधाना तथा प्रमिला रधाना ने मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान। 
मांसाहारी तथा शाकाहारी। इसलिए कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। पौधे जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को आकर्षित करते हैं लेकिन जब किसान फसल में कीटनाशक का प्रयोग कर देता है तो इससे उनकी सुगंध छोडऩे की क्षमता गड़बड़ा जाती है और इससे पौधों और कीटों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है।

मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के लिए करेंगे कुदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्य महिला किसानों ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को काबू करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की संख्या ईटीएल लेवल के पार पहुंच गई है लेकिन अभी तक उनकी फसल सफेद मक्खी से पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि इस समय उनकी फसल में सफेद मक्खी के बच्चे न के बराबर हैं और प्रौढ़ों की संख्या काफी ज्यादा है। फसल को प्रौढ़ की बजाय बच्चों से ज्यादा नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इस समय उनकी फसल में दीदड़ बुगड़े, बिंदुआ बुगड़ा,
माइक्रोसोप पर कीटों की पहचान करती महिला किसान। 
कातिल बुगड़ा, मटकू बुगड़ा, भिन्न-भिन्न किस्म की बीटल, सिरफड़ मक्खी, लोपा मक्खी, डायन मक्खी, लंबड़ो मक्खी, टिकड़ो मक्खी, श्यामो मक्खी तथा परपेटिये अंगीरा व इनो मौजूद हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने सींगू बुगड़े के अंडे से बच्चे निकलते, हथजोड़े द्वारा लाल बानिये का शिकार करते हुए तथा मकड़ी द्वारा टिड्डे व मक्खी का शिकार करते हुए भी दिखे।



मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते राममेहर नंबरदार। 

एक दिन पूरे देश में फैलेगी जींद के किसानों की कीट ज्ञान की मुहिम : खटकड़

जींद । निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। महिला पाठशाला में समाजसेवी रघुबीर खटकड़ ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला में पहुंचने पर महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया तथा कीट ज्ञान की मुहिम से मुख्यातिथि को बारिकी से जानकारी दी। 

रघुबीर खटकड़ ने महिला किसानों की मुहिम की तारीफ करते हुए कहा कि देश से अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी देश में है। देश में किसानों के हित के लिए जो योजनाएं बनाई जाती हैं उनमें किसान के हित को ध्यान में रखने की बजाए निजी कंपनियों के हितों को ध्यान में रखा जाता है। इसके चलते किसानों उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। खटकड़ ने कहा कि देश में जब भी कोई व्यक्ति लीक से
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
हटकर किसी काम को करता है तो उसके सामने कठिनाइयां आती हैं लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी जो अपना हौंसला बुलंद रखता है वह एक दिन जरूर सफल होता है। इसी प्रकार जींद जिले के किसानों ने भी लीक से हटकर कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की है। बहुत जल्द उनकी यह मुहिम भी दूर तक फैलेगी। भिरड़-ततैया ग्रुप की मास्टर ट्रेनर सुषमा, संतोष, सुमन, कमल तथा जसबीर कौर ने बताया कि दो सप्ताह पहले फसल में सफेद मक्खी की संख्या बढ़ गई थी लेकिन फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों ने बढ़ रही सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित कर लिया है। इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 4.4, हरे तेले की संख्या 0.05 तथा चूरड़े की संख्या शून्य है। उन्होंने बताया कि यहां के किसानों द्वारा फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किए जाने के कारण ही सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई लेकिन पूरे प्रदेश में जहां-जहां पर कीटनाशकों का प्रयोग किया गया, वहां-वहां सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बुरी तरह से तबाह हो गई।
चार्ट पर गेहूं पर आने वाले खर्च का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।

एक किलो गेहूं के उत्पादन पर आता है 15.27 रुपये का खर्च



 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए महिला किसानों ने लिया अच्छा उत्पादन

जींद। निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कीटों का अवलोकन करने के साथ-साथ पैदावार का आंकड़ा भी तैयार किया। कीटों के अवलोकन के दौरान देखने को मिला की इस समय फसल में बिनोलों का रस चूसने वाले कीट लाल व काला बानिया काफी संख्या में फसल में मौजूद हैं। वहीं फसल के उत्पादन के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया उनकी पैदावार अन्य किसानों से काफी अच्छी रही।

लोपा मक्खी ग्रुप की कीटाचार्या मुकेश रधाना, कृष्णा निडाना, राजबाला निडाना, प्रमीला रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि कपास की फसल में इस बार पूरे प्रदेश में सफेद मक्खी ने तबाही मचाकर रख दी। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण इस बार सैंकड़ों एकड़ कपास की फसल खराब हो गई लेकिन जिन-जिन किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया, वहां-वहां सफेद मक्खी नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की औसत 3.4 प्रति पत्ता रही है। जबकि चूरड़ा व हरा तेला बिल्कुल नहीं के बराबर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस बार उनकी फसल में शाकाहारी कीट मस्करा बग, भूरिया बग, सलेटी भूंड, मिरड बग, झोटिया बग तथा टिड्डे मौजूद हैं। फूल खाने वालों में पुष्पक बीटल देखी गई है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर कीट लाल व काला बानिया, माइट, मिलीबग व चेपा इस समय भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट पत्तों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं इन कीटों को नियंत्रित करने वाले मांसाहारी कीट अंगीरा, चपरो बीटल, हथजोड़ा, मकड़ी, क्राइसोपे के अंडे, सुनहरी, फौजन, इनो, दीदड़, कालो बीटल, कटीया, लोपा मक्खी, लपरो, सिरफड़ो मक्खी के बच्चे, भीरड़, डाकू बुगड़े भी मौजूद हैं। महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी तथा मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं और इसके बावजूद भी उनकी फसल अभी तक कीटों व बीमारी से होने वाले नुकसान से पूरी तरह से सुरक्षित है।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

महिला किसानों ने फसल के उत्पादन पर की चर्चा 

निडाना निवासी कमलेश ने बताया कि उसकी आधा एकड़ में अभी तक 10 मण कपास की चुगाई हो चुकी है जबकि अभी ओर चुगाई होनी बाकी है। उसके आधा एकड़ में इस बार लगभग 14 मण कपास के उत्पादन की उम्मीद है। कृष्णा निडाना ने बताया कि उसकी एक एकड़ में 22 से 25 मण तक कपास का उत्पादन होने की उम्मीद है। उसने फसल में पूरे सीजन में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाए जिंक, डीएपी व यूरिया खाद के घोल के तीन छिड़काव ही किए हैं। अनिता ललितखेड़ा ने बताया कि इस बार उसके खेत में कपास की फसल पौधों के मामले में बिल्कुल कमजोर थी लेकिन फिर भी उसे एक एकड़ में 18 मण की पैदावार मिली है। रधाना निवासी विजय ने बताया कि उसने खाद के घोल का एक छिड़काव किया था लेकिन इसके बावजूद भी उसे आधा एकड़ में 19 मण कपास का उत्पादन मिला है। निडाना निवासी बिमला ने बताया कि इस बार उसने अपने एक एकड़ में देशी कपास की बिजाई थी और खाद के घोल के दो छिड़काव किए थे। उसे एकड़ में देशी कपास का 20 मण का उत्पादन मिला है। निडाना के पूर्व सरपंच रतन सिंह ने बताया कि वह भी कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ा हआ है और उसने बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए अढ़ाई एकड़ में 60 मण कपास का उत्पादन लिया है। जबकि कीटनाशक का प्रयोग करने वाले किसानों का उत्पादन काफी कम हुआ है।


कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

कपास की फसल में मौजूद रस चूसक लाल बानिया नामक कीट।

कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।




Thursday, 3 July 2014

जहरीले हो रहे खान-पान व दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव हो रहा प्रभावित

दुनिया को जहर से मुक्ति दिलानी है तो किसानों को कीटों की तरफ बढ़ाना होगा दोस्ती का हाथ

निडाना में शुरू हुई महिला किसान खेत पाठशाला


जींद। राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम), कृषि विभाग तथा कीट कमांडो किसानों के सौजन्य से सोमवार को निडाना गांव में पहली महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला का शुभारंभ कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी मैडम कुसम दलाल ने किया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कृषि विभाग के उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, खंड कृषि अधिकारी राजेंद्र शर्मा, एडीओ डॉ. कमल सैनी, डॉ. रवि कादयान, डॉ. शलैंद्र चहल भी विशेष रूप से मौजूद रहे।

मैडम कुसम दलाल ने पाठशाला में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम अब एक क्रांति का रूप ले चुकी है। क्योंकि जहरीले हो रहे खान-पान तथा दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि शुद्ध भोजन तथा स्वच्छ वातावरण प्रत्येक जीव की पहली जरूरत है और यह जरूरत तभी पूरी हो सकती है जब किसान फसल में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों की तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाकर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देगा। डॉ. रामप्रताप सिहाग तथा कुलदीप ढांडा ने कहा कि इस धरती पर जितने भी जीव हैं उन सबका इस सृष्टि को चलाने में अहम योगदान है। इसलिए फसल में मौजूद कीटों का भी फसल के लिए बहुत महत्व है। जब तक हम कीटों को पहचान कर कीटों के क्रियाकलापों को नहीं समझेंगे तब तक हम इनका महत्व नहीं समझ पाएंगे। पाठशाला के पहले दिन कीटाचार्य महिलाओं ने अन्य महिला किसानों के साथ ग्रुप बनाकर फसल का अवलोकन किया और कपास के छोटे-छोटे पौधों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की। फसल के अवलोकन के दौरान महिला किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरा तेला नमक कीट दिखाई दिये लेकिन अभी तक यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से काफी नीचे थे। मास्टर ट्रेनर महिला किसान मीना, सुषमा, प्रमिला, मनीषा, सविता तथा शीला ने अन्य महिला किसानों को सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरे तेले के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

मांसाहारी कीटों के नाम पर बनाए महिलाओं के ग्रुप


पाठशाला में आने वाली महिला किसानों को कीटों के बारे में बारीकी से जानकारी देने के लिए पांच-पांच महिलाओं के 6 ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के साथ एक-एक मास्टर ट्रेनर महिला किसान की ड्यूटी लगाई गई। महिलाओं के गु्रप के नाम मांसाहारी कीट हथजोड़ा, लेडी बिटल, क्राइसोपा, परभक्षी बुगड़े, भिरड़-ततैये तथा परमेटिया के नाम से रखे गए।

20 सप्ताह तक चलेगी पाठशाला

सोमवार से निडाना गांव में शुरू हुई महिला किसानों की पाठशाला 20 सप्ताह तक चलेगी। सप्ताह के हर सोमवार को निडाना गांव के बस स्टॉप के पास स्थित खेत में इस पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में ललितखेड़ा, निडाना, निडानी तथा रधाना की महिला किसान भाग लेंगी।

डेढ़ एकड़ में कपास की फसल पर होगा शोध

महिला किसान खेत पाठशाला के दौरान राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) की टीम द्वारा कीटों से फसल पर पडऩे वाले प्रभाव पर शोध भी किया जाएगा। इसके लिए एनसीआईपीएम की टीम ने यहां पर डेढ़ एकड़ जमीन पर अपनी निगरानी में फसल की बिजाई करवाई है। यहां आधा एकड़ में एनसीआईपीएम की टीम अपने तरीके से कपास की खेती करवाएगी, आधा एकड़ में कीट कमांडो किसान अपने तरीके से खेती करेंगे तथा आधा एकड़ में किसान अपने तरीके से खेती करेगा। फसल की कटाई के बाद फसल के उत्पादन की समीक्षा की जाएगी और उसके परिणामों पर भी गहन मंथन किया जाएगा।




फसल के अवलोकन के बाद चार्ट पर आंकड़े एकत्रित करती महिला किसान।  

कपास की फसल में सुक्ष्मदर्शी की सहायता से कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

........मंजिलें उन्हें ही मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है

जींद की बेटी ने वेट लिफ्टिंग में मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

६ साल के ब्रेक के बाद मैदान में उतरकर लहराया परचम
सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में दो बार जीत चुकी है गोल्ड मैडल 
अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल जीतने के लिए उतरेगी मैदान पर 


जींद। सपने उन्हीं के पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है। यह पंक्तियां जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता देवी पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। अपने खेल के कॅरियर पर लगे 6 साल के लंबे ब्रेक के बाद भी कविता ने कठिन परिश्रम और मजबूत इरादों के बल पर दोबारा से मैदान में उतरकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। वर्ष 2008 में वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने के बाद वर्ष 2014 में दोबारा फिर से कविता ने सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर इंडिया कैंप में अपना स्थान बनाया है। ३१ वर्ष की उम्र में भी कविता के हौंसले बुलंद हैं। कविता वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को गोल्ड मैडल दिलाने का सपना अपनी आंखों में संजो कर पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में जमकर पसीना बहा रही है। जुलाई में स्काटलैंड ग्लास्को में होने वाले कॉमनवैल्थ गेम्स तथा सितम्बर माह में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स के लिए कविता का चयन हो चुका है।

यह है कविता के जीवन का सफर

कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2007 में उड़ीसा में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप के लिए कविता का चयन हुआ। इस प्रतियोगिता में कविता ने गोल्ड मैडल जीतकर पूरे देश में जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया। वर्ष 2008 में कविता का चयन इंडिया कैंप के लिए हुआ। इसी दौरान जापान में आयोजित एशियन चैम्पिशनशिप में प्रतिभागिता करते हुए कविता एक राजनीति का शिकार हुई और यहां कविता को डोपिंग टेस्ट में पॉजीटिव दिखाकर कविता के खेल पर चार साल तक का प्रतिबंध और पांच हजार डॉलर का जुर्माना लगा दिया। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और वालीबाल का अच्छा खिलाड़ी है। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। ससुराल के लोगों ने कविता को खेलने के लिए प्रेरित किया और नवंबर 2013 में कविता ने फिर से तैयारी शुरू कर दी। महज चार माह के प्रशिक्षण के दौरान कविता ने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर फिर से अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। अब कविता पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में रहकर जुलाई में स्काटलैंड ग्लासको में आयोजित होने वाले कॉमनवैल्थ तथा सितम्बर में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स की तैयारी कर रही है। 
गोल्ड जीतने के बाद कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।

6 साल बाद दोबारा मैदान पर उतर कर मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

कविता का कहना है कि वर्ष 2008 में जब वह जापान में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप में प्रतिभागिता कर रही थी तो इसी दौरान वह अपनी ही कोच की राजनीति का शिकार हो गई। कविता ने बताया कि उसकी कोच उससे रंजिश रखती थी और उसने अपनी रंजिश निकालने के लिए एक दिन पीछे से उसके खाने में कोई केमिकल डाल दिया। इससे वह डोपिंग के आरोप में फंस गई और उसके खेलने पर चार साल का प्रतिबंध तथा 5 हजार डालर (लगभग साढ़े तीन लाख) रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। इसके बावजूद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और वह निरंतर परिश्रम करती रही। आखिरकार ६ साल बाद उसे एक बार फिर से मौका मिला और उसने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। 
पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में तैयारी करती कविता दलाल। 

ससुराल से मिला पूरा सहयोग

कविता का कहना है कि उसकी हर कठिन परिस्थितियों में उसके ससुराल के लोगों ने उसका पूरा सहयोग किया। उसके पति गौरव ने उस पर लगे साढ़े तीन लाख रुपये की डोपिंग के जुर्माने की राशि भरी। इसके बाद वर्ष 2010 में जब उसने नौकरी छोड़ी तो उसके ससुराल के लोगों ने उसे हौंसला दिया और फिर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यमुनानगर भेजा। ससुराल से मिलने अथक सहयोग के कारण ही कविता के कदम तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।

डोपिंग के दाग को धोने के लिए ममता की दे दी कुर्बानी

वर्ष 2010 में कविता नौकरी छोड़ ससुराल चली गई थी। वर्ष 2012 में कविता ने एक पुत्र को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद कविता अपनी घर-गृहस्ती में व्यस्त हो गई लेकिन वर्ष 2008 में कविता के माथे पर लगे डोपिंग के दाग से कविता अंदर ही अंदर घूट रही थी। इस दाग को धोने के लिए कविता ने अपनी ममता की भी कुर्बानी दे दी। महज दो वर्ष के बेटे अभिजीत को ससुराल में अपनी ननद के जिम्मे छोड़कर कविता यमुनानगर में आकर फिर से खेल की तैयारियों में जुट गई। कविता की मेहनत रंग लाई और मार्च 2014 में कविता ने नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर अपने ऊपर लगे डोपिंग के दाग को धो दिया।   

देश के लिए खेलने वाली कविता को गांव के लोगों से है नाराजगी

कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।
वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता के पूरा ही कॅरियर का सफर काफी कठिनाइयों से भरा रहा है। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कविता को कांटों भरे मार्ग से गुजरना पड़ा लेकिन फिर भी उसका हौंसला नहीं टूटा लेकिन उसके परिवार के साथ हुई एक घटना ने कविता के दिल में गांव के लोगों के प्रति नाराजगी जरूर पैदा कर दी। कविता का कहना है कि वर्ष 2010 में उसके परिवार में एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उसके परिवार को मुसीबत में डाल दिया लेकिन उसके गांव मालवी के लोगों ने इस मुसीबत की घड़ी में उसके परिवार का साथ नहीं दिया। कविता का कहना है कि वह अपने लिये नहीं बल्कि अपने गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेलती है। कविता का कहना है कि जो व्यक्ति अपने निजी हित को छोड़कर गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेल रहा है और मुसीबत के समय में यदि उसके गांव के लोग ही उसका साथ छोड़ दें तो ऐसे में गांव के लोगों के प्रति दिल में थोड़ी नाराजगी तो होती ही है।

कीटनाशक नहीं कीट ज्ञान ही फसलों को कीटों से बचाने का सबसे बड़ा हथियार

मांसाहारी कीट करते हैं फसल में कूदरती कीटनाशी का काम 


जींद। कपास खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है जिसका रकबा साल दर साल बढ़ता चला आ रहा है। जिस प्रकार नकदी फसलों में कपास की फसल अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है ठीक उसी प्रकार कीटों के लिहाज से भी कपास की फसल की अपनी एक पहचान रही है, क्योंकि हमारी फसलों में सबसे ज्यादा कीट कपास की फसल पर ही आते हैं। हमारे कीट वैज्ञानिकों के अनुसार कपास की फसल के सीजन में समय-समय पर लगभग 1300 प्रकार के कीट आते हैं। इसलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक नहीं बल्कि कीट की पहचान करना तथा कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करना ही एक कारगर हथियार है। क्योंकि कीट की कीट का दुश्मन होता है। 

बीटी कपास कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं

आमतौर पर हम ये मान लें कि बीटी कपास आने से एक तरफ कपास के चार महत्वपूर्ण कीटों जैसे अमेरिकन सुंडी, गुलाबी सुंडी, चितकबरी सुंडी एवं तम्बाकू वाली सुंडी जहां  कम हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ कपास की फसल में बहुत सारे माईनर कहे जाने वाले कीट मुख्य श्रेणी में आ खड़े हुए हैं। इसलिए हम कपास की फसल में बीटी तकनीक को पूर्ण रूप से कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं मान सकते। 
कपास की फसल में पाया जाने वाला हथजोड़ा (प्रेंगमेंटिस)नामक मांसाहारी कीट।

कपास की फसल में रस चूसक कीटों की भूमिका 

रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल रस चूसक कीटों के लिए स्वर्ग की तरह होती है, जिसमें बिजाई से लेकर कटाई तक रस चूसक कीटो की भरमार रहती है जो समय-समय पर कपास की फसल में आते रहते हैं। रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल में तीन मुख्य श्रेणी जैसे चूरड़ा, सफेद मक्खी और हरा तेला कीट आते हैं तथा पांच द्वितीय श्रेणी जैसे मिलीबग, माईट, लाल बाणिया, काला बाणिया व चेपा नामक कीट आते हैं। इनके साथ-साथ कुछ अन्य श्रेणी के रस चूसक कीट जैसे मिरिड बग, मकसरा बग, स्टिलट बग आदि भी आते हैं। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं।
कपास के पौधे पर मौजूद अल नामक शाकाहारी कीट को खाता सिरफड मक्खी का बच्चा।

कपास में कीटों की रोकथाम कैसे करें

आमतौर पर जब कीटों की रोकथाम की बात आती है तो हमारे दिमाक मेंं केवल एक ही विकल्प सुझता है कि कीटनाशकों का छिड़काव लेकिन हम आमतौर पर देखते हैं कि किसान कीटनाशक का प्रयोग कर लेते हैं जो कि आज कल शायद शुरू भी हो गया होगा क्योंकि नरमा की फसल का सीजन शुरू हो चुका है। फिर भी कीटों की रोकथाम नहीं हो पाती और हमारी जेब पर निरंतर कीटनाशकों का खर्च बढ़ता ही जाता है। दूसरी तरफ यदि हम कीटों के प्रबंधन के लिए दूसरे विकल्पों की तरफ सोचें तो वो बहुत ज्यादा किफायती एवं सस्ते साबित होते हैं जैसे इस समय कपास की फसल में चूरड़ा नामक रस चूसक कीट आ चुका है जो कि अधिक तापमान पर ही आता है, जिस पर कोई भी कीटनाशक सही तरीके से किफायती नहीं लेकिन फिर भी किसान चूरड़े पर कंट्रोल करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं। यदि इस समय किसान कपास की फसल में कसोले (फावड़े) से गुडाई करके तथा 250 ग्राम जिंक, एक किलो यूरिया तथा एक किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में छिड़काव करें तो कपास के पौधों को चूरड़े नामक रस चूसक कीटों से बचा सकते हैं। इसके साथ-साथ सफेद मक्खी एवं हरे तेला नामक कीट के लिए भी हम समय-समय पर जिंक, यूरिया तथा डीएपी के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। 
बरिस्टल बिटल का शिकार करती मकड़ी।

कपास की फसल में सफेद मक्खी एवं मिलीबग की रोकथाम

कपास की फसल में यदि सफेद मक्खी एवं मिलीबग नामक कीटों की बात करें तो ये दो कीट ऐसे हैं जिन्होंने कीटनाशकों के ग्राफ को दोबारा से ऊंचा उठा दिया है। सफेद मक्खी और मिलीबग ने कई बार तो किसानों के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिये हैं कि किसानों को खड़ी बीटी कपास जोतनी पड़ी है। यह दोनों कीट हैं जिनकी रोकथाम के लिए दर्जनों कीटनाशकों की लिस्ट समय-समय पर आती रहती है लेकिन कीट कमांडो किसानों की मानें तो हम उपरोक्त दोनों ही कीटों पर जितने ज्यादा कीटनाशकों के विकल्प प्रयोग करते हैं, इनकी संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है। इसलिए मिलीबग एवं सफेद मक्खी नामक कीटों के लिए यदि हम बाजारी विकल्पों को छोड़कर प्राकृतिक विकल्पों को अपनाएं तो ज्यादा किफायती एवं फायदेमंद साबित होते हैं। प्राकृतिक विकल्पों से हमारा मतलब है कपास में आने वाले मांसाहारी कीट जैसे लेडी बर्ड बीटल, मांसाहारी बुगड़े (बग) क्राइसोपा, दिखोड़ी, परपेटिये एवं मकडिय़ां जो कि सभी के सभी मिलीबग एवं सफेद मक्खी के लिए कपास के पौधों पर आते हैं और इनके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता यह हमारी फसल में काफी संख्या में मिल जाते हैं, बशर्त यह है कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया गया हो। दूसरी तरफ स्प्रे के तौर पर हम जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करे सकते हैं, जिससे पौधों को पर्याप्त उर्वरा शक्ति मिलती है। कीटनाशकों के खर्च को यदि कम करना है तो किसानों को कपास में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान करनी होगी। कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को जानकर ही हम कीटों की रोकथाम कर सकते हैं क्योंकि जिस संख्या में हमारी फसल पर शाकाहारी कीट आते हैं, उससे कहीं ज्यादा संख्या में मांसाहारी कीट आते हैं। कपास की फसल में निरंतर १०-१५ दिन के अंतराल में जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करें। फसल की बढ़वार के साथ ही जिंक, यूरिया तथा डीएपी की मात्रा में बढ़ौतरी कर आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें। 
कपास की फसल में मौजूद बिटल नामक मांसाहारी कीट।





कपास की फसल में मौजूद सुंदरो नामक मांसाहारी कीट। 

मक्खी का शिकार करती मांसाहारी डायन मक्खी। 

कपास की फसल में शाकाहारी कीट का खून चूसता बिंदुआ बुगड़ा।


कपास की फसल में पाए जाने वाली रस चूसक कीट सफेद मक्खी का फोटो।

अब प्रदेश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

हरियाणा किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से मांगे सुझाव

30 जून को गुडग़ांव में होगी किसानों और किसान आयोग के अधिकारियों की बैठक

जींद। जिले के निडाना गांव से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाकर थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले के कीट कमांडो किसानों ने एक योजना तैयार की है। उनकी इस योजना को आगे बढ़ाने में हरियाणा किसान आयोग इनका माध्यम बनेगा। कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए हरियाणा किसान आयोग ने इन किसानों से इनके सुझाव मांगे हैं। किसान आयोग ने कीट कमांडो किसानों से सुझाव लेने के लिए गत 30 जून को गुडग़ांव बुलाया है। 30 जून को हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन डॉ. आरएस प्रौधा की अध्यक्षता में गुडग़ांव में होने वाली बैठक में कीट कमांडो किसान अधिकारियों को अपने सुझाव देंगे। ताकि इस मुहिम को जींद जिले से बाहर निकालकर पूरे प्रदेश में फैलाकर प्रदेश के सभी किसानों को इस मुहिम के साथ जोड़ा जा सके।

मीटिंग में कीट कमांडो किसानों द्वारा यह रखा जाएगा सुझाव

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू का कहना है कि सरकार ने जिस तरह से अनपढ़ता को खत्म करने के लिए देश व प्रदेश में साक्षरता मिशन चलाया था उसी मिशन की तर्ज पर कीट साक्षरता मिशन चलाया जाए। कीट साक्षरता मिशन के माध्यम से प्रदेश के सभी किसानों को कीट ज्ञान की मुहिम से बारीकी से अवगत करवाया जाए। किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में बताया जाए। शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है और उससे किसान को कितना नुकसान या फायदा होता है उसके बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जाए। जब तक किसानों को जागरूक नहीं किया जाएगा और किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं होगा तब तक खान-पान में बढ़ते जहर को रोकना संभव नहीं है। क्योंकि आज किसान जागरूकता के अभाव में ही फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं।

यह-यह महिला किसान लेंगी बैठक में भाग

निडाना से मिनी मलिक, अंग्रेजो, कमलेश, बिमला, राजवंती, गीता। ललितखेड़ा से सविता, सुषमा, जसवंती, शीला तथा रधाना से प्रमीला, अचिम, शकुंतला व मुकेश बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगी। इसके अलावा कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, बराह कलां खाप प्रधान कुलदीप ढांडा तथा निडाना के डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय भी बैठक में भाग लेने के लिए जाएंगे।

स्कूल स्तर बच्चों को भी किया जा सकता है जागरूक

निडाना डैफोडिल स्कूल के प्राचार्य विजय का कहना है कि महिला किसानों ने 2010 में उनके स्कूल के बच्चों की अलग से पाठशाला शुरू कर बच्चों को फसलों में मौजूद कीटों का ज्ञान दिया था। अगर हम बच्चों को ही शुरू से कीटों का ज्ञान देंगे तो इस मुहिम को काफी बल मिलेगा। इसलिए स्कूल स्तर पर भी बच्चों के लिए एक सलेबस तैयार कर उनको कीट ज्ञान दिया जा सकता है।

फसल में कीटों की पहचान करती महिला किसानों का फोटो।

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...