Sunday, 19 July 2015

भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे किसान


जींद के बाद अब बरवाला में जलाई कीट ज्ञान की अलख


बरवाला। क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला का आयोजन जेवरा गांव के किसान दलजीत के खेत में किया गया। जींद जिले की मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने जेवरा गांव की महिलाओं को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला में महिलाओं के साथ-साथ वहां के पुरुष किसानों की भी भागीदारी रही।
मास्टर ट्रेनर सविता, सुषमा, शीला, नारो तथा जसबीर कौर ने महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुश्मन हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी रक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं लेकिन किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मार रहे हैं। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों को पौधों पर मौजूद कीटों की पहचान करवाकर कीटों की गिनती कर आंकड़ा तैयार किया। एक पौधे पर मिलीबग के बच्चे भी देखे गए। महिला किसानों ने क्राइसोपे के बच्चे को कीड़े का कत्ल कर उसकी लाश को पीठ पर उठाकर घूते हुए तथा इनजनहारी द्वारा अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए मिट्टी के तोंदे में सूंडियों को रोके हुए देखा।
 इनजनहारी द्वारा मिट्टी के तोंदे में रोकी गई सूंडियां।

ईटीएल लेवल से पार पहुंची सफेद मक्खी की संख्या

पाठशाला में मेजर कीट सफेद मक्खी, हरे तेले व चूरड़े की गिनती की गई जिसमें सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 7.9, हरे तेले की संख्या 0.35, चूरड़े की संख्या 1.7 रही। किसानों ने बताया कि पिछले सप्ताह फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 2.1, हरे तेले की 0.25 तथा चूरड़े की संख्या 0.03 थी। जबकि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सफेद मक्खी का ईटीएल लेवल प्रति पत्ता छह, हरे तेले का दो और चूरड़े का 10 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन इस बार यह संख्या ईटीएल लेवल को पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मेजर कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं। इसके बाद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला किया कि इस मामले में किसी भी प्रकार का फैसला अगले सप्ताह लिया जाएगा। क्योंकि इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या बच्चों की बजाए प्रौढ़ की ज्यादा है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट इनो है। इनो एक बार में 100 से 150 अंडे देती है और एक सफेद मक्खी के पेट में एक ही अंड़ा देती है। इस अंडे से निकलने वाले इनो के बच्चे सफेद मक्खी को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।
 : पौधों पर कीटों की पहचान करती महिला किसान।

यह-यह मांसाहारी कीट भी मिले

फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट क्राइसोपा के अंडे, बच्चे, बीटल, डाकू बुगड़ा, मकड़ी, इनो, दीदड़ बुगड़ा, इनजनहारी, बिंदुआ चूरड़ा, अंगीरा, ब्रहमनो बीटल काफी संख्या में मौजूद रहे।

दो प्रकार के होते हैं कीट

मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं। एक मांसाहारी तथा दूसरे शाकाहारी। शाकाहारी कीट पौधे से रस चूसकर, पत्ते व फूलों को खाकर अपना गुजारा करते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर किसान के लिए फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। शाकाहारी कीट भी दो किस्म के होते हैं। एक रस चूसकर गुजारा करने वाले तथा दूसरे चबाकर खाने वाले कीट।
महिला किसान शकुंतला 

महिलाओं के  लिए काफी ज्ञानवर्धक सिद्ध होगी पाठशाला

मैं अपने परिवार के साथ खेतीबाड़ी का कार्य करती हूं लेकिन आज तक मुझे फसल में मौजूद कीटों के बारे में जानकारी नहीं थी। आज पाठशाला में मास्टर ट्रेनर किसानो द्वारा दी गई जानकारी से फसल में मौजूद कीटों के महत्व के बारे में जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले मुझे कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी नहीं थी। यहां लगाई गई यह पाठशाला किसानों के लिए काफी ज्ञनवर्धक साबित होगी।
शकुंतला, महिला किसान
जेवरा

पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में हुई जानकारी 

महिला किसान रानी  
मेरा पति पिछले वर्ष से कीटाचार्य किसानों के साथ जुड़ा हुआ है। हम भी पिछले वर्ष से बिना जहर की खेती कर रहे हैं। पति से ही मुझे थोड़ी बहुत कीटों के बारे में जानकारी हुई थी लेकिन इस बार हमारे यहां पाठशाला शुरू होने से कीटों के बारे में हमें काफी ज्ञान मिलेगा। मास्टर ट्रेनर महिला किसानों द्वारा काफी बारिकी से जानकारी दी गई है।
रानी, महिला किसान
जेवरा




एकत्रित किए गए अतरिक्त भोजन को बाहर निकालने के लिए शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं पौधे


बरवाला।
 क्षेत्र के जेवरा गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल ने बतौर मुख्यातिथि के तौर पर शिरकत की। पाठशाला में पंजाब के कुछ प्रगतिशील किसान भी शामिल हुए। पाठशाला के आरंभ में पौधों पर मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की गिनती कर बोर्ड पर कीटों का आंकड़ा दर्ज किया।
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो, राजवंती, बीरमती, बिमला व कमलेश ने बताया कि पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे 24 घंटे में लगभग साढ़े चार ग्राम भोजन तैयार करते हैं और इस भोजन को तीन भागों में बांटते हैं।
पाठशाला में बोर्ड पर आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।
भोजन का एक तिहाई हिस्सा जड़ों को, एक तिहाई ऊपरी भाग को देते हैं तथा एक तिहाई अपने पास रिजर्व के रूप में रखते हैं। ताकि मुसिबत के समय उस भोजन से अपना काम चला सकें। यदि पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो पौधो उस जमा किए गए अतिरिक्त भोजन को निकालने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और यह शाकाहारी कीट रस आदि चूसकर पौधे द्वारा एकत्रित किए गए भोजन को बाहर निकालकर एक तरह से पौधों की मदद करते हैं। जब तक यह शाकाहारी कीट ईटीएल लेवल तक रहते हैं तो पौधे को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यदि यह ईटीएल लेवल से ऊपर निकलते हैं तो पौधे पर इसका नुकसान आता है लेकिन शाकाहारी कीटों को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर तक पहुंचने से रोकने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधों की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने जो भी कीट बनाया है प्रकृति के लिए उसका अपना महत्व है। किसानों द्वारा तैयार किए गए कीटों के आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 11, हरे तेले की 1.2 तथा चूरड़े की संख्या 4.7 दर्ज की गई। सफेद मक्खी की बढ़ी हुई संख्या पर किसानों ने बारिकी से मंथन किया। किसानों ने सामूहिक फैसला लिया कि ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर पौधों को ताकत प्रदान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खुराक दी जाए। पंजाब से आए प्रगतिशील किसान अशोक ने बताया कि वह भी जींद जिले के किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर पिछले कई वर्षों से जहरमुक्त खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। जींद जिले के किसानों की तर्ज पर पंजाब में भी उनके द्वारा किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है।

सफेद मक्खी से भयभीत नहीं हों किसान

अच्छे उत्पादन के लिए पौधों को दें पर्याप्त खुराक 


जींद। शनिवार को जेवरा गांव में महिला पाठशाला के तीसरे सत्र का आयोजन किया गया। पाठशाला में जेवरा गांव सहित लगभग दर्जनभर गांवों के महिला व पुरुष किसानों ने भाग लिया। हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण पाठशाला में विशेष रूप से मौजूद रहे। जींद जिले से पाठशाला में पहुंची मास्टर ट्रेनर प्रमीला, मुकेश, असीम, शकुंतला व नवीन ने पाठशाला में मौजूद महिला व पुरुष किसानों को कीटों की पहचान करवाने के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों से फसलों पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। पाठशाला के आरंभ में सभी किसानों ने पौधों पर मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों की गिणती कर कीटों का आंकड़ा तैयार किया।
पाठशाला में आए किसानों ने मास्टर ट्रेनर महिला किसानों के समक्ष अपनी समस्या रखते हुए बताया कि कपास के मेजर कीटों में शुमार सफेद मक्खी का उनकी फसलों में प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। फसलों में सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह भयभीत हैं। सफेद मक्खी ईटीएल लेवल पार कर चुकी है। मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने किसानों की शंका का समाधान करते हुए बताया कि इस बार फसलों में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है लेकिन किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। फसल को सफेद मक्खी के प्रकोप से बचाने के लिए पौधों को पर्याप्त खुराक देने की जरूरत है। इसके लिए किसान डॉ. दलाल घोल का प्रयोग कर सकते हैं। पाठशाला में मौजूद सभी किसानों से सर्वसम्मति से फैसला लिया कि फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए वह पौधों को पर्याप्त खुराक देंगे। किसानों द्वारा तैयार किए गए आंकड़े में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 14.2, हरे तेले की 0.8 व चूरड़े की 5.7 थी। जबकि इटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की संख्या छह, हरे तेले की दो व चूरड़े की 10 होनी चाहिए।
कपास की फसल में कीटों की गिनती करती महिला किसान।

इस तरह तैयार करें घोल 

ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक को अलग-अलग बर्तनों में पानी में घोलें। डीएपी को छिड़काव करने से एक दिन पहले पानी में भीगो दें। खाद को घोलने के लिए किसी धातू के बर्तन की बजाए मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग करें। ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक के घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में इसका छिड़काव फसल पर करें। इससे पौधों को पर्याप्त खुराक मिलेगी और सफेद मक्खी का प्रकोप पौधों पर कम पड़ेगा। 

छह हजार खर्च के बाद भी नहीं हुआ समाधान 

पाठशाला में पहुंची जेवरा की महिला किसान रामरती ने अपना अनुभव सांझा करते हुए बताया कि पिछले वर्ष उसने चार एकड़ में कपास की बिजाई की थी। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए उसने प्रति एकड़ में लगभग छह हजार रुपये के पेस्टीसाइड के स्प्रे का प्रयोग किया था लेकिन इसके बावजूद भी सफेद मक्खी का कोई समाधान नहीं हुआ। पिछले वर्ष चार एकड़ में उसे महज 17 मण कपास का ही उत्पादन हुआ था। इसलिए पेस्टीसाइड से सफेद मक्खी को नियंत्रित करना संभव नहीं है। कुदरती कीटनाशी ही सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में किसानों की मदद कर सकते हैं।
किसान रामरती का फोटो।











Wednesday, 27 May 2015

खेत से पेट तक पहुंच रहा जहर

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों से थाली में बढ़ रहा जहर का स्तर

कैंसर के मरीज बढ़ा रहे हैं कीटनाशक


जींद। देश में हरित क्रांति के साथ ही कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों ने भी दस्तक दे दी थी लेकिन किसानों को इनके प्रयोग की सही मात्रा तथा इनके अधिक प्रयोग से होने वाले दूष्प्रभाव की जानकारी नहीं होने के कारण दिनों-दिन फसलों में इनका प्रयोग बढ़ता चला गया। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में प्रयोग किए जा रहे कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों से थाली के जहर का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। फसलों में अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग से जहर खाद्य वस्तुओं के माध्यम से खेत से हमारे पेट तक पहुंच रहा है। दूषित हो रही खान-पान, वायु व जल प्रदूषण के कारण आज भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों ने भी मनुष्य के शरीर को अपनी चपेट में ले लिया है। इसी का कारण है कि आज स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि खान-पान व वातावरण को दूषित होने से बचा लिया जाए तो बहुत सी बीमारियां तो स्वयं ही खत्म हो जाएंगी और यह तभी संभव है जब किसान इस बारे में जागरूक होंगे।
खेत में कीटनाशक का प्रयोग कर रहे किसान का फाइल फोटो।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बन रहे हैं काल का ग्रास

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा दो लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजङ्क्षनग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर जैसी बीमारी के फैलने का मुख्य कारण भी फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशक हैं। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं।

जहरीला हो रहा खान-पान, जल व वातावरण

कीटनाशियोंं के फसलों पर अधिक प्रयोग से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं बल्कि वह जमीन भी कीटनाशियों के जहरीले प्रभाव से प्रभावित होती है जहां इनका छिड़काव किया जाता है। धीरे-धीरे यह प्रभाव जमीन में गहरा होता चला जाता है और अंतत: यह उस जमीनी जल तक पहुंच जाता है। कीटनाशियों के अधिक प्रयोग से वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है।

पशुओं पर भी पड़ रहा दूष्प्रभाव

पशु चिकित्सक डॉ. राजेंद्र चहल के अनुसार कीटनाशी हरे चारे/घास को भी जहरीला बना देते हैं। इससे पशुओं के शरीर व उनका दूध भी प्रभावित हो रहा है। परिणामस्वरूप कीटनाशियों का जहरीला प्रभाव मवेशियों व पशुओं के शरीर पर पड़ता है तथा भैंसों और गायों से मिलने वाला दूध भी कीटनाशियों से प्रभावित हो जाता है। कीटनाशक पशुओं व मनुष्य के शरीर के लिए घातक हैं।

दूषित हो रहे खान-पान के कारण बढ़ रही हैं बीमारियां

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बढऩे का मुख्य कारण दूषित हो रहा खान-पान है। फसलों में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से स्तन, यकृत, लीवर, अग्राश्य, फेफड़ों के कैंसर, हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी के रोग, शुगर, लकवा, सैक्स समस्या, पेट दर्द, आंखों में परेशानी, श्वास संबंधि बीमारी, मानसिक परेशानी सहित अनेक बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। इतना ही नहीं गर्भवति महिलाओं के शरीर में कीटनाशकों के अंश पहुंचने के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसके दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इससे जन्मजात बच्चों में विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है।
डॉ. पालेराम कटारिया, डिप्टी सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 

क्या-क्या बरतें सावधानियां 

बीमारियों से बचने के लिए खान-पान में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिएं। नियमित रूप से योग, मोर्निंग वॉक, व्यायाम करने चाहिएं। रेसेदार फल व सलाद पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तली हुई चटपटी वस्तुओं से परहेज रखें, खाद्य वस्तुओं में मेदे का भी प्रयोग कम से कम करना चाहिए। बिना छाने आटे का प्रयोग करना चाहिए, पौष्टीक खाद्य पदार्थों पर विशेष जोर देना चाहिए।

किसानों में जागरूकता की कमी से बढ़ रहा कीटनाशकों का प्रयोग 

किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों में यह भ्रम फैला रखा है कि अधिक कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ता है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन जमीन की उर्वरा शक्ति, उस क्षेत्र का पानी, वातावरण, खेत में पौधों की संख्या इत्यादि संसाधनों पर निर्भर करता है। किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान कीटों को बेवजह मार रहे हैं। जबकि कीट तो उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं। किसानों को कीटों को नियंत्रित करने की नहीं कीटों की पहचान करने की जरूरत है। पौधे कीटों को अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं। जब तक किसानों को कीटों की पहचान नहीं होगी फसल में उनके क्रियाकलापों से क्या प्रभाव पड़ा है इसकी जानकारी नहीं होगी तब तक किसानों को कीटनाशकों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकालन अंसभव है।
शकुंतला रधाना, कीटाचार्य किसान
कीटाचार्य महिला किसान शकुंतला का फोटो। 








अंधेरी कोठरी में अक्षर ज्ञान का जला रहे दीप

जिला कारागार में इग्रू का सेंटर शुरू कर कैदियों व बंदियों को दिया जा रहा शिक्षा का ज्ञान

आत्म निर्भर बनने के लिए महिला कैदी भी सीख रही हाथ का हुनर 
पढ़ाई के लिए इस वर्ष 268 कैदियों ने किया आवेदन 


जींद। जेल की अंधेरी कोठरी को जेल अधीक्षक ज्ञान के दीप से उज्जवल करने में लगे हुए हैं। जिला कारागार की बैरिकों ने कक्षाओं का रूप धारण कर लिया है। जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को अक्षर ज्ञान दिया जा रहा है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी व बंदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदी व बंदी पढ़ाई कर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने में लगे हुए हैं। जेल अधीक्षक डॉ. हरिश कुमार रंगा स्वयं बैरिकों में कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। पुरुष कैदियों के साथ महिला कैदियों को भी आत्म निर्भर बनाने के लिए हाथ का हुनर सिखाया जा रहा है। ताकि यहां से निकलने के बाद पुरुष व महिला कैदी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। 
जिला कारागार का फोटो।
जाने-अनजाने में अपराध की दलदल में फंसकर जिला कारागार में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहे कैदियों को एक बार फिर से एक अच्छा नागरिक बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए जेल प्रशासन द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। जेल प्रशासन द्वारा यहां बंद कैदियों व बंदियों के लिए इग्नू, सर्व भारत शिक्षा मिशन के माध्यम से डिस्टेंश एजुकेशन की व्यवस्था की गई है। ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद यह सिर उठाकर अपना जीवन यापन कर सकें। स्वयं जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। इसके अलावा एक अन्य अध्यापक की भी यहां नियुक्ति की गई है। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदियों व बंदियों ने पढ़ाई के लिए आवेदन किया है। जेल पाठशाला के 200 कैदी-बंदी सर्व भारत शिक्षा मिशन के तहत प्राइमरी से पांचवीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं दसवीं, 12वीं करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। 33 कैदी दसवीं, 18 कैदी 12वीं, 15 कैदी बीए, दो कैदी बीपीपी की पढ़ाई कर रहे हैं। जेल में चल रही इस पाठशाला का परिणाम यह रहा कि 268 कैदी-बंदी पढ़ाई के माध्यम से अपना भविष्य संवारने में लगे हुए हैं। सामान्य स्कूल की तरह कैदियों व बंदियों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिकता व अनुशासन का पाठ भी सिखाया जा रहा है।

सीआरएसयू को भी भेजा गया है प्रपोजल

कैदियों व बंदियों को डिस्टेंस से शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए जींद के चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय से भी मदद मांगी गई है। जेल प्रशासन की तरफ से सीआरएसयू को इसके लिए प्रपोजल भेजा गया है। जिला कारागार अधीक्षक द्वारा स्वयं सीआरएसयू के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह से जेल में डिस्टेंस एजुकेशन शुरू करवाने के लिए बातचीत की गई है और उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से इस बारे में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है।

महिला कैदियों को सिखाया जा रहा है ब्यूटीशन व कटींग टेलरिंग का हुनर

जिला कारागार में बंद महिला कैदियों व बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग से कोर्स शुरू करवाया गया है। जिला कारागार में महिला कैदियों के लिए ब्यूटीशियन तथा कटींग-टेलरिंग का कोर्स करवाया जा रहा है। इसके लिए रोहतक आईटीआई का एक सेंटर जिला कारागार में स्थापित किया गया है। महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए दो महिला ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है। ब्यूटीशियन तथा कटींग टेलरिंग का प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रशिक्षु महिला कैदियों को रोहतक आईटीआई की तरफ से डिपलोमे भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। 

इच वन टीच वन के नारे को लेकर बढ़ रहे हैं आगे

सुधार गृह में बंद कैदी व बंदियों को जेल के अंधकार में उजाला हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। हम इच वन टीच वन के नारे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रयास के अंतर्गत शिक्षा का सहारा लिया है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरा करने में लगे हैं। कैदियों को पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जा रहे हैं। ताकि यहां से निकलने के बाद वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। किसी भी व्यक्ति को अपराध की दलदल से निकालने के लिए शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है। क्योंकि अज्ञानतावश ही कोई भी व्यक्ति अपराध के दलदल में कदम रखता है। कैदियों व बंदियों को सुधार ग्रह में पढ़ाई का पूरा माहौल दिया जा रहा है। सभी को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है। 
डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक
जिला कारागार, जींद  
जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा का फोटो।

जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर बनेगी कैंटीन

अब जेल में बंद कैदियों व बंदियों के लिए परिजन बाहर से नहीं पहुंचा सकेंगे सामान

पूरी तरह से कैशलैस होगी कैंटीन, प्रत्येक कैदीं व बंदीं का कैंटीन में खुलेगा खाता
बॉयोमैट्रीक सिस्टम से कैदियों को मिलेगा कैंटीन से सामान 


जींद। जिला कारागार में बंद कैदी व बंदी जल्द ही कैंटीन की सुविधा ले सकेंगे। जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। आगामी एक मई से जिला कारागार में कैंटीन की सुविधा शुरू हो जाएगी। जेल में कैंटीन की सुविधा शुरू होने के बाद यहांं बंद कैदियों व बंदियों से मुलाकात के लिए आने वाले वाले परिजन बाहर से लाया गया सामन जेल के अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। जेल प्रबंधन की तरफ से कैदियों व बंदियों के लिए परिजनों द्वारा बाहर से लेकर आने वाले सामान पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्णय लिया है। आगामी एक मई से जिला कारागार में पूरी तरह से यह नियम लागू हो जाएगा। मिल्ट्री की कैंटिन की तर्ज पर तैयार हो रही कैंटीन से उचित रेट पर कैदी व बंदी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेंगे। जिला कारागार की यह कैंटीन पूरी तरह से कैशलैस होगी। प्रत्येक कैदी व बंदी के कैंटीन में अलग-अलग खाते खोले जाएंगे। बॉयोमैट्रिक सिस्टम के जरिए कैंटीन से कैदियों व बंदियों को सामान दिया जाएगा। कैंटीन में एमआरपी सहित प्रत्येक सामान की लिस्ट लगाई जाएगी। कैंटीन से सामान खरीदते समय डिस्पले बोर्ड पर बकायदा सामान की मात्रा तथा राशि दर्शाई जाएगी। ताकि कैंटीन की बिक्री प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बनी रहे।

इस तरह चलेगी कैंटीन की प्रक्रिया 

जिला जेल प्रशासन द्वारा कैंटीन से सामान खरीदने के लिए जेल में बंद प्रत्येक कैदी व बंदी का अलग-अलग खाता खोला जाएगा। मुलाकात के लिए आने वाले कैदी के परिजन कैदी को बाहर की खाद्य वस्तुएं देने की बजाए रुपये दे सकेंगे। परिजनों की तरफ से कैदी व बंदी को मिलने वाले रुपये जेल प्रशासन द्वारा कंप्यूटर के माध्यम से उसके खाते में ट्रांसफर कर दिए जाएंगे। अपने खाते में जमा रुपयों से वह कैंटीन से अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेगा। कैंटीन की पूरी प्रक्रिया कम्प्यूटरीकृत होगी। ताकि किसी कैदी व बंदी के साथ धोखाधड़ी नहीं हो। इसके साथ-साथ कैंटीन में बॉयोमैट्रिक सिस्टम लागू होगा। कैदी व बंदी द्वारा बॉयोमैट्रिक सिस्टम पर अंगूठा लगाने के बाद कैंटीन में लगे कंप्यूटर में उसकी फोटो सहित उसका खाता खुल जाएगा और इसके बाद वह अपने खाते से सामान खरीद सकेगा। इसके लिए बकायदा एक विशेष सॉफ्टवेयर तैयार करवाया गया है। कैंटीन के निर्माण पर लगभग चार लाख रुपये की राशि खर्च की गई।

जेल में बंद होगा कूपन सिस्टम 

जिला कारागार में अभी तक रुपयों के स्थान पर कूपन सिस्टम चलता था। कैदी को जेल प्रशासन की तरफ से रुपयों के बदले कूपन मुहैया करवाए जाते थे। कैदी व बंदी इन कूपनों से ही अपनी जरुरत के अनुसार सामान खरीद सकते थे लेकिन अब कैंटीन सिस्टम शुरू होने के बाद जेल में कूपन सिस्टम बंद हो जाएगा।

एक मई के बाद अंदर नहीं जा सकेगा बाहर का सामान 



कैंटीन प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा व उप अधीक्षक सेवा सिंह।


जेल विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार जिला कारागार में मिल्ट्री की कैंटीन की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। जिला कारागार में कैंटीन शुरू होने के बाद कैदियों व बंदियों से मिलने के लिए आने वाले परिजन कपड़ों व जूते इत्यादि के अलावा बाहर से कोई अन्य सामान अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। एक मई से जिला कारागार में यह नियम पूरी तरह से लागू हो जाएगा। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कैंटीन को पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया गया है। मेरे तथा जेल उप अधीक्षक की निगरानी में कैंटीन की पूरी प्रक्रिया रहेगी। कंप्यूटर के माध्यम से हम अपने कार्यालय से ही कैंटीन की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख सकेंगे। कंप्यूटर में मौजूद साफ्टवेयर में प्रत्येक खाते का पूरा विवरण दर्ज होगा।

डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक

जिला कारागार, जींद 

किसान-कीट विवाद को सुलझाने का प्रयास

न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने खाप चौधरियों को भेजी रिपोर्ट

रिपोर्ट में कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करने का किया समर्थन

न्यायिक कमेटी के निर्णय से खाप पंचायत के फैसले को मिली मजबूती

किसान-कीट विवाद सुलझाने के लिए फरवरी माह में निडाना में हुई थी खाप पंचायत


जींद।
 किसानों और कीटों के बीच दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग में दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने के लिए गत 20 फरवरी को निडाना में आयोजित हुई सर्व खाप महापंचायत की न्यायिक कमेटी ने खाप प्रतिनिधियों को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जींद जिले के किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करवाने तथा पेस्टीसाइड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। न्यायिक कमेटी द्वारा खाप प्रतिनिधियों के पक्ष में दी गई इस रिपोर्ट से खाप पंचायत के फैसले को भी मजबूती मिली है। न्यायिक कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर अब खाप प्रतिनिधि केंद्रीय तथा प्रदेश के मंत्रियों को ज्ञापन भेजकर इस मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने की मांग करेंगे। ताकि दूषित हो रहे खान-पान को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके।
निडाना गांव में आयोजित खाप पंचायत के दौरान सेवानिवृत न्यायधीश को कीटों की जानकारी देती महिला किसान।

यह है पूरा मामला

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड के कारण दूषित हो रहे खान-पान को बचाने के लिए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की थी। इस मुहिम के तहत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के साथ मिलकर फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों पर बारिकी से शोध किया था। शोध के दौरान यह सामने आया कि कीट मांसाहारी और शाकाहारी दो प्रकार के होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। उत्पादन बढ़ाने में कीटों का अहम योगदान है लेकिन किसान अज्ञानतावश अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग कर कीटों को मार रहे हैं। जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है, वहां-वहां कीटों ने ईटीएल लेवल पार किया है। जागरूकता के अभाव में किसानों व कीटों के बीच यह जंग छिड़ी हुई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए 26 जून 2012 को कीटाचार्य किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपकर यह विवाद सुलझाने की गुहार लगाई थी। ज्ञापन के बाद खाप प्रतिनिधियों ने तीन वर्षों तक किसानों के साथ मिलकर कीटों पर शोध किया था। इसके बाद इस विवाद को सुलझाने के लिए 20 फरवरी 2015 को निडाना गांव में सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया था। विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से कोई चूक नहीं हो इसके लिए अलग से एक न्यायिक कमेटी गठित की गई थी। महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने कीटों का पक्ष रखा था। खाप प्रतिनिधियों तथा ज्यूरी ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना था। इसके बाद ज्यूरी इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए खाप प्रतिनिधियों से समय मांगा था। अब ज्यूरी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंप दी है। 

यह-यह लोग थे न्यायिक कमेटी में शामिल

महापंचायत में गठित की गई न्यायिक कमेटी में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं व्यापार नीति विश्लेषक देेवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था।  बॉक्स

यह है ज्यूरी की सिफारिश 

1. किसानों को कीटनाशियों के छिड़काव के कीटों पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। इसलिए डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जिन 183 व्यक्तियों को यह ज्ञान दिया गया है उन्हें जागरूकता फैलाने के लिए परिवर्तन एजेंट बनाया जा सकता है।
2. कीटनाशी निर्माता कंपनियां किसानों को गुमराह करती हैं। इसलिए इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
3. कृषि विश्वविद्यालयों में अनुसंधान अनुशंसित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान कर सकें और इस विचार को ओर बल मिल सके।

ज्यूरी का निष्कर्ष

ज्यूरी ने यह अनुभव किया कि 20 फरवरी 2015 को जींद जिले के निडाना गांव में विभिन्न समूहों द्वारा उनके समक्ष किए गए प्रस्तुतीकरण इस मामले में अनूठे थे कि उनसे कीटों के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ज्यूरी यह सिफारिश करता है कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को बिना किसी देरी के किसानों के बीच पहुंचाया जाना चाहिए, ताकि राज्य में जल्दी से जल्दी किसानों के हित में कीटनाशियों के उपयोग को रोका जा सके। ऐसा करके बहुत थोड़े से खर्च से राज्य एक ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने में समर्थ होगा,  जिससे राज्य को पूरे देश में विशेष सम्मान प्राप्त होगा।

खाप प्रतिनिधि चलाएंगे अभियान

खाप पंचायत में दोनों पक्षों को सुनने के बाद खाप पंचायत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि कीट बेजूबान हैं और किसान भोला है। इसलिए किसी तीसरे पक्ष ने किसानों को गुमराह कर इस अंतहिन लड़ाई की शुरूआत की है। महापंचायत के इस फैसले को वैज्ञानिक तौर पर मान्यता दिलवाने के लिए पंचायत में ज्यूरी का गठन किया गया था। ज्यूरी द्वारा पंचायत के पक्ष में रिपोर्ट देने से पंचायत के फैसले को बल मिला है। अब खाप प्रतिनिधि इस लड़ाई को खत्म करवाने के लिए गांव स्तर पर कमेटियों का गठन कर कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटाचार्य किसानों की मदद से अभियान चलाएंगे। इसके अलावा सरकार से भी इस महिम को पूरे प्रदेश में लागू कर प्रदेश को रसायनमुक्त घोषित करने की मांग की जाएगी।
कुलदीप ढांडा, संयोजक सर्व खाप महापंचायत

बीज-खाद के लिए हाथ नहीं फैलाएं अन्नदाता

किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना झांझ कलां का सुरेश

अपनी सुझबुझ से सुरेश ने तैयार की गेहूं की अनोखी किस्म
किसान सुरेश रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए देशी पद्धति से करता है खेती

जींद। वैसे तो किसान को अन्नदाता का दर्जा दिया गया है लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरित हो चले हैं। सब्सिडी पर बीज, खाद इत्यादि खरीदने के लिए देश का यह अन्नदाता बाजार में हाथ फैलाए खड़ा रहता है। यदि किसान स्वयं अपने खेत में ही बीज, खाद तैयार करने लगे तो उसे छोटी-छोटी सब्सिडी के लिए बाजार में हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। यह मानना है झांझ कलां गांव निवासी किसान सुरेश ङ्क्षसहमार का। महज दसवीं पास सुरेश ङ्क्षसहमार पांच एकड़ में खेतीबाड़ी का कामकाज कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। सुरेश की एक खूबी है जो उसे अन्य किसानों से अलग करती है। सुरेश समय-समय पर अपने खेत में तैयार हो रही फसलों पर अकसर नए-नए प्रयोग करता रहता है और अपनी इसी आदत के कारण सुरेश ने गेहूं की एक अनोखी किस्म तैयार कर दी है। सुरेश द्वारा अपने खेत में तैयार किए गए गेहूं के इस बीज की किस्म सामान्य गेहूं से अलग है। सामान्य गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की लंबाई लगभग दो गुणा तक ज्यादा है और इस गेहूं की बालियां भी सामान्य गेहूं की बालियों से लगभग डेढ़ गुणा ज्यादा लंबी है। सामान्य गेहूं के पौधों की बजाय इस गेहूं के पौधो भी काफी मजबूत हैं। अपनी इसी खूबी के कारण यह गेहूं दूर से अलग ही दिखाई देता है। दूसरे गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की बालियां लंबी तथा मोटी होने के कारण इसका उत्पादन भी दूसरे गेहूं की किस्मों से लगभग दो गुणा ज्यादा होता है। सुरेश को यह बीज तैयार करने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा है। अब सुरेश के पास दस एकड़ का गेहूं का बीज तैयार है, जिसे सुरेश मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने दूसरे किसान साथियों को बिजाई के लिए देगा। ताकि अधिक से अधिक किसान इस बीज की बिजाई कर कम खर्च में अच्छा उत्पादन ले सकें। सुरेश की एक खास बात यह भी है कि वह दूसरे किसानों की तरह अपने खेत में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करता है। सुरेश पूरी तरह से कूदरती तरीके से खेती करता है और अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की बजाए देशी खाद का प्रयोग करता है। कम खर्च से अधिक पैदावर लेने के कारण खेती सुरेश के लिए घाटे का सौदा नहीं बल्कि आमदनी का मुख्य साधन बनी हुई है।

ऐसे तैयार हुआ बीज

झांझ कलां निवासी सुरेश कुमार ने अपने खेतों में ही घर बनाया हुआ है। लगभग तीन वर्ष पहले सुरेश अपने खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था। इसी दौरान सुरेश की नजर खेत में खड़े गेहूं के एक पौधे पर गई, जो उस गेहूं से पूरी तरह से अलग दिखाई दे रहा था। सुरेश ने उस गेहूं की बाली को तोड़कर घर पर सुरक्षित रख लिया। अगले वर्ष गेहूं की बिजाई के दौरान उस गेहूं की बाली से गेहूं निकालकर उसकी अलग से बिजाई कर दी। उस एक बाली से 100 के करीब दाने निकले। अच्छे तरीके से बिजाई किए जाने के कारण उस गेहूं का फुटाव भी अच्छा हुआ। सुरेश हर वर्ष इस गेहूं को सुरक्षित रखकर अगले वर्ष इसी तरीके से इसकी बिजाई कर देता। इस तरह सुरेश की तीन वर्ष की मेहनत के बाद आज सुरेश के पास लगभग दस एकड़ का बीज तैयार हो चुका है। सुरेश का कहना है कि वह दस एकड़ के इस बीज को अनाज मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने साथी किसानों को बीज के तौर पर देगा, ताकि इस किस्म की अधिक से अधिक बिजाई कर अधिक से अधिक यह बीज तैयार किया जा सके। यह गेहूं की किस्म कौनसी है इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सुरेश कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग भी लेगा।

क्या है इस गेहूं की किस्म की खूबी

तैयार की गई नई किस्म के गेहूं की बालियों को दिखाता किसान।
सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं के पौधे की लंबाई साढ़े चार फीट है, जबकि सामान्य किस्म के पौधों की लंबाई अढ़ाई से तीन फीट होती है। इस गेहूं की बालियों की लंबाई नौ इंच है, जबकि सामान्य किस्म के गेहूं की बालियों की लंबाई महज साढ़े पांच इंच की होती है। इस गेहूं की बालियों में सामान्य गेहूं की बालियों से गेहूं के दानों की संख्या भी काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के पौधे का तना सामान्य किस्म के पौधे के तने से काफी मोटा होता है। सुरेश के अनुसार सामान्य किस्म से उसके खेत में हर वर्ष प्रति एकड़ 40 से 45 मण कि औसत निकलती है जबकि इस गेहूं की औसत 75 से 80 मण प्रति एकड़ निकल रही है। इस किस्म के पौधे सामान्य किस्म से मोटे होने के कारण इससे पशुओं का चारा भी अधिक मिलता है।

अखिल भारतीय किसान मोर्चा करेगा सुरेश को प्रोत्साहित 

इस तरह के प्रगतिशील किसानों को प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा विशेष अभियान चलाए हुए है। अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चे का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद कर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है। उन्हें जब इस किसान के बारे में पता चला तो उन्होंने इस किसान को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। मोर्चा इस किसान को साथ लेकर अन्य किसानों को भी जागरूक करेगा तथा इस किसान को सरकार से प्रोत्साहन दिलवाने के लिए प्रयास करेगा। ताकि इस तरह के किसानों को रोल मॉडल बनाकर दूसरे किसानों को प्रेरित किया जा सके।
सुनील कंडेला, प्रदेशाध्यक्ष
अखिल भारतीय किसान जागरूक मोर्चा

खेत में खड़ी नई किस्म की गेहूं को दिखाता किसान सुरेश। 


बेजुबान चित्रों में रंगों से जान फूंक रहे कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक

राष्ट्रपति भवन तथा कई म्यूजिमों में शोभा बढ़ा रही दीपक की पेंटिंगें

पेंटिंग प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं दीपक कौशिक 


जींद। भले ही रंग बेजुबान होते हैं लेकिन रंगों की भाषा के भाव पढऩे वाले या यूं कहे कि रंगों को समझने वाले कद्रदान इस भाषा को पढ़ते भी हैं और सुनते भी। शहर के रामराये गेट निवासी चित्रकार दीपक कौशिक भी कुछ इसी तरह से इन रंगों का दीवाना है। चित्रकार दीपक कौशिक चित्रकला में इतना निपूर्ण है कि वह रंगों से बेजुबान चित्रों व मूर्तियों में जान डाल देता है। दीपक कौशिक की उंगलियों में ऐसा जादू है कि उसकी उंगलियां जिस भी चित्र को छू लेती हैं वह एकदम से संजीव हो जाती है या यूं कहे की वह एक तरह से बोलने लगती है। दीपक कौशिक मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) की डिग्री हासिल करने के बाद से गोपाल स्कूल में कला अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है और यहां बच्चों को कला के गुर सिखा रहा है। दीपक कौशिक की कला का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा तराशे गए आठ बच्चे भी स्टेट गर्वनर अवार्ड हासिल कर चुके हैं। आर्टिस्ट दीपक द्वारा तैयार की गई कई पेंटिंगें आज भी कई म्यूजियमों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की शोभा बढ़ा रही हैं। दीपक द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में ऐसा जादू है कि कोई भी व्यक्ति न चाहते हुए भी अपने आप कलाकृति की तरफ आकर्षित हो जाता है। आर्टिस्ट दीपक वॉटर कलर पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, मिक्स मीडिया, कोलाज मूर्तिकला, पैंसील, चॉरकोल, पेस्टल, ड्राय पेस्टल सभी कलाओं में पारंगत है। इतना ही नहीं दीपक समय-समय पर अपनी पेंटिंगों के माध्यम से लोगों को सामाजिक कुरीतियों के बारे में भी जागृत करने का काम करता रहता है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल द्वारा शराबबंदी के दौरान लोगों को नशे के प्रति जागरूक करने के लिए भी दीपक ने काफी काम किया है। नशाखोरी पर पेंटिंगें बनाकर दीपक ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इसी के चलते दीपक को सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं दीपक एक अच्छा कार्टुनिस्ट भी है। दीपक पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, सांसद रमेश कौशिक सहित कई राजनेताओं व अन्य हस्तियों के अच्छे-अच्छे कार्टून तैयार कर उन्हें भेंट कर चुका है।

पिता से मिली पेंटिंग करने की प्रेरणा  

आर्टिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि उसे पेटिंग करने की प्रेरणा अपने पिता से मिली है। दीपक के पिता ज्योतिषी हैं और उस समय में हाथ से जन्मपत्री तैयार की जाती थी। दीपक अपने पिता की बची हुई पेंसिलों से पेंटिंग करने लगा तो पिता ने अपने बेटे की कला को परखते हुए उसे पेंटिंग करने के लिए सामान उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। इस तरह धीरे-धीरे पेंटिंग के प्रति दीपक का रूझान बढऩे लगा। १२वीं की परीक्षा पास करने के बाद दीपक ने पढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन उसके मन में कुछ सीखने की इच्छा थी। इसके बाद दीपक ने 2005 में चंडीगढ़ के राजकीय कला महाविद्यालय में मूर्ति कला में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई जारी की। इसके बाद यहीं से दीपक ने अपनी एमएफए की पढ़ाई पूरी की।
वित सचिव को पेंटिंग भेंट करते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

तीसरी कक्षा में लड़ा था पहला कम्पीटिशन

दीपक कौशिक बताते हैं कि उन्होंने तीसरी कक्षा में अपने जीवन का पहला कम्पीटिशन लड़ा था। दीपक ने बताया कि जब वह तीसरी कक्षा में था तो इसी दौरान रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा जींद के अर्जुन स्टेडियम में चित्रकला कम्पीटिशन का आयोजन किया गया था। जिस दिन कम्पीटिशन था उस दिन दीपक को बुखार हो गया लेकिन दीपक के अध्यापकों ने दीपक को कम्पीटिशन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया तो दीपक ने कम्पीटिशन में भाग लिया और इस कम्पीटिशन में दीपक को पुरस्कार भी मिला। दीपक ने बताया कि आज तक उसने जितने भी कम्पीटिशनों में भाग लिया उन सभी कम्पीटिशनों में उन्होंने अहम स्थान प्राप्त किया है।
पेंटिंग में रंग भरते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

जींद में नहीं किसी भी तरह की कला को आगे बढ़ाने का वातावरण 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक का कहना है कि जींद जिला आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। यहां किसी भी कला को आगे बढ़ाने के लिए वातावरण सही नहीं है। यहां अच्छी सुविधाएं नहीं होने के कारण कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते। इसके लिए कलाकारों को जींद को छोड़कर बाहर का रुख करना पड़ता है।

5500 फुट लंबी कलाकृति है सबसे यादगार 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि वैसे तो एक चित्रकार के लिए हर कलाकृति बेहतर व यादगार होती है। पर यूटी चंडीगढ़ द्वारा आयोजित फुड फेस्टीवल में बनाई गई 5500 फुट लंबी पेंटिंग व अन्ना हजारे के आंदोलन में बनाई गई 750 फुट लंबी पेंटिंग सबसे यादगार कलाकृतियां हैं। इन कलाकृतियों से जो अनुभव मिला वह हमेशा याद रहेगा।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पेंटिंग भेंट करते दीपक कौशिक।

यह-यह प्रमुख पुरस्कार प्राप्त किए

1. स्कूल शिक्षा के दौरान 100 से अधिक पुरस्कार प्राप्त किए।
2. सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार
3. ललित कला अकादमी अवार्ड (चंडीगढ़)
4. सुजान सिंह मैमोरियल अवार्ड
5. भारत विकास परिषद द्वारा सम्मान
6. संस्कार भारती पूणे द्वारा कला सम्मान
7. पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा सम्मान
8. पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद द्वारा सम्मान
9. पूर्व मानव संस्थान मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा सम्मान
10. हरियाणा शिक्षा मंत्री वित्त मंत्री द्वारा सम्मान
11. कला महाविद्यालय की वार्षिक कला प्रदर्शनियों में 2005, 2006, 2007, 2008  व 2011 में पुरस्कार प्राप्त किया।
12. राष्ट्रपति भवन में नवंबर 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की अपनी कलाकृति भेंट की।

यहां-यहां शोभा बढ़ा रही हैं दीपक की कलाकृतियां 

1. राष्ट्रपति भवन दिल्ली
 दीपक कौशिक द्वारा तैयार की गई पेंटिंग।
2. चंडीगढ़ म्यूजियम
3. शिमला म्यूजियम
4. कला समीक्षक वीएस गोस्वामी
5. होम सैक्टरी यूटी चंडीगढ़
6. फाइनेंस सैक्रेटरी चंडीगढ़
7. पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय
8. यूटी गेस्ट हाउस
9. यूटी टूरिजम
10. यूटी एजुकेशन
11. माऊट व्यू होटल


 पेंटिंग प्रतियोगिता में पेंटिंग करते दीपक कौशिक। 





Sunday, 1 March 2015

देश में जहरमुक्त खेती के लिए होगी तीसरी क्रांति

ऑर्गेनिक खेती और स्वास्थ्य विषय पर किया सेमिनार का आयोजन 



जींद। दूषित खान-पान के कारण बढ़ रही बीमारियों को देखते हुए जिले में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए शनिवार को जाट धर्मशाला में भारतीय जागरूक किसान मोर्चा द्वारा ओर्गेनिक खेती और स्वास्थ्य विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता मोर्चा के अध्यक्ष सुनील कंडेला ने की। सेमिनार में मुख्य रूप से अमेरिका की केलिफोरनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली तथा निकोलस विशेष रूप से मौजूद रहे। कृषि विकास अधिकारी डॉ. कमल सैनी ने किसानों को आर्गेनिक खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वहीं ओर्गेनिक खेती के अभियान से जुड़े प्रगतिशील किसानों ने भी सेमिनार में अपने विचार सांझा किए।
डॉ. कमल सैनी ने सेमिनार में मौजूद किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश में हरित तथा श्वेत क्रांति के बाद तीसरी क्रांति जहरमुक्त खेती के लिए आएगी। उन्होंने कहा कि किसान का सबसे ज्यादा खर्च कीटनाशकों पर होता है और फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण हमारा स्वास्थ्य स्तर लगातार गिर रहा है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। डॉ. सैनी ने कहा कि बड़ी-बड़ी पेस्टीसाइड कंपनियों द्वारा किसानों को गुमराह करने के लिए एक बाजार तैयार किया गया है। कीटों को मारने के लिए कीटनाशक, बीमारियों की रोकथाम के लिए फंजीसाइड तथा उत्पादन बढ़ाने के नाम पर रासायनिक उर्वरक तैयार किए जा रहे हैं। जबकि वास्तव में किसानों को इनकी जरूरत नहीं होती है। उन्होंने कहा कि अधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से हमारे साथ-साथ हमारी जमीन की सेहत भी खराब हो चुकी है। आज जमीन का पीएच आठ से ज्यादा पर पहुंच चुका है। जबकि उपजाऊ जमीन का पीएच सात के आस-पास ही रहता है। उन्होंने कहा कि अगर थाली में बढ़ते जहर को रोकना है तो किसानों को जागरूक करना होगा। किसानों को फसल में आने वाले कीटों के महत्व के बारे में बताना होगा। अमेरिका से आए शोधार्थी हैली और निकोलस ने कहा कि किसान ऑर्गेनिक खेती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं, जैसा की उनके देश के किसान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पेस्टीसाइड के अधिक प्रयोग के कारण हमारे खान-पान के साथ-साथ भू-जल तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है। उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत बीमारियां दूषित खान-पान के कारण हो रही हैं। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 20 से 25 साल के युवाओं में जो हड्डियों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं, वह सब दूषित खान-पान की ही देन है। सुनील कंडेला ने कहा कि उनका उद्देश्य लोगो को जहरमुक्त खान-पान मुहैया करवाना है और इसकी शुरूवात वह अपने जींद जिले से ही करेंगे। आने वाले समय में लोगों को ऑर्गेनिक गेहूं की 306 किस्म उपलब्ध करवाने का प्रयास किए जाएंगे। इस अवसर पर सेमिनार में ऊधम सिंह राणा, जागरूक किसान शीशपाल लाठर, अनिल कपूर, कर्मबीर श्योकंद, प्रदीप बडोदी, सुरेंद्र रेढू अधिवक्ता, आनंद ढुल अधिवक्ता, अमरजीत ढुल, राजसिंह  शाहपुर  मौजूद रहे।

सेमिनार में किसानों से बातचीत करते शोधार्थी हैली तथा निकोलस भी मौजूद रहे। 

भारत में ऑर्गेनिक उत्पाद की नहीं कोई प्रमाणिकता

अमेरिका में ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सरकार से लेना पड़ता है प्रमाण पत्र


जींद। अमेरिका की केलिफोरनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली तथा निकोलस ने कहा कि भारत में ऑर्गेनिक उत्पाद की प्रमाणिकता के लिए बिक्री केंद्रों पर कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि अमेरिका में प्रत्येक बिक्री केंद्र पर ओर्गेनिक उत्पाद की प्रमाणिकता के लिए मशीनों की व्यवस्था होती है। मशीन में ओर्गेनिक उत्पाद की जांच के बाद ही उसे प्रमाणित किया जाता है लेकिन भारत में बिक्री केंद्रों पर यह व्यवस्था नहीं होने के कारण ओर्गेनिक उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह बना रहता है। लोग ओर्गेनिक के नाम पर मिलावटी या रासायनिक उत्पादों को भी बेच देते हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग पर शोध के लिए जींद पहुंचे शोधार्थी शनिवार को जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
शोधर्थी हेली तथा निकोलस ने कहा कि अमेरिका में ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सरकार से प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। बिना प्रमाण पत्र के किसान ऑर्गेनिक खेती नहीं कर सकता। इसी के चलते भारत की बजाए अमेरिका में ऑर्गेनिक उत्पाद थोड़े महंगे हैं। अमेरिका में ऑर्गेेनिक उत्पादों की मांग काफी ज्यादा है। वहां बादाम तथा अंगूर की खेती सबसे ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में खेती का ज्यादातर काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है। जबकि भारत में मशीनों से खेती का बहुत कम काम होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत के किसानों में जो समानता है, वह यह है कि दोनों ही देशों के किसान फसल के अधिक उत्पादन की तरफ ध्यान देते हैं। उन्होंने कहा कि आज ऑर्गेनिक फार्मिंग की काफी जरूरत है। दूषित खान-पान के कारण मनुष्य लगातार बीमारियों की चपेट में आ रहा है। फसलों में अधिक रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण मनुष्य व जमीन दोनों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।
जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत करते शोधार्थी। 
उन्होंने पंजाब का उदहारण देते हुए कहा कि पंजाब में आज यह स्थिति है कि लगभग प्रत्येक घर में कैंसर का एक मरीज है। भविष्य में इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए किसानों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि किसान आम तौर पर यह सोचते हैं कि ऑर्गेनिक फार्मिंग से उत्पादन कम होता है। जबकि यह सही नहीं है। ऑर्गेनिक फार्मिंग से भी उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अपने एक माह के शोध के दौरान वह जिले के अलग-अलग क्षेत्र के फार्मों का दौरा कर यहां के किसानों से ऑर्गेनिक फार्मिंग के गुर सीखेंगे तथा अपने देश में अपनाई जा रही ऑर्गेनिक फार्मिंग की पद्धति के बारे में यहां के किसानों को बताएंगे। ऑर्गेनिक फार्मिंग के क्या लाभ हैं इसके बारे में भी किसानों को बताया जाएगा।

भाजपा के मंत्रियों को पसंद आया 'म्हारे किसानों का कीट ज्ञान'

केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री ने कीटाचार्य किसानों से मांगा कीट ज्ञान का प्रस्ताव

दिल्ली में मुरली मनोहर जोशी के आवास पर भाजपा नेताओं के साथ हुई किसानों की मीटिंग


जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए अब भाजपा सरकार इस पर मंथन करेगी। भाजपा के मंत्रियों को म्हारे किसानों का यह कीट ज्ञान पसंद आ गया है। कीट ज्ञान की इस मुहिम को देश में कैसे फैलाया जाए और किसानों को इससे क्या फायदा होगा इस विषय पर केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण ने कीटाचार्य किसानों से एक प्रस्ताव मांगा है। कीटाचार्य किसानों द्वारा जल्द ही एक प्रस्ताव तैयार कर कृषि मंत्री को भेजा जाएगा।
मकर संक्रांति के अवसर पर भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी द्वारा दिल्ली के राय सिन्हा रोड पर स्थित अपने निवास पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में भाजपा के केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण, केंद्रीय राज्य पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, भाजपा के केंद्रीय एवं किसान नेता नरेश सिरोही तथा कई अन्य बुद्धिजीवी लोगों को बुलाया गया था। इस कार्यक्रम में जींद जिले के किसानों को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। भाजपा नेताओं के आमंत्रण पर कीटाचार्य रणबीर मलिक के नेतृत्व में महिला किसान सविता, मीना मलिक तथा शकुंतला मीटिंग में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। यहां भाजपा नेताओं के साथ लगभग दो घंटे तक हुई मीटिंग में कीटाचार्य किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जींद जिले में शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम से अवगत करवाया। किसानों ने बताया कि फसल में आने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट खुद ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। किसानों को तो गुमराह कर कीटनाशकों के दलदल में धकेला जा रहा है। यदि किसानों को कीट ज्ञान से अवगत करवा दिया जाए तो किसानों को कीटनाशकों के
केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बाल्याण के साथ बातचीत करते कीटाचार्य किसान। 
दलदल से निकालने के साथ-साथ खेती पर बढ़ते किसानों के खर्च को कम किया जा सकता है। भाजपा के केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण ने किसानों के कीट ज्ञान के महत्व को स्वीकार करते हुए कीटाचार्य किसानों को इस पूरी मुहिम का एक प्रस्ताव तैयार कर जल्द उन्हें भेजने के लिए कहा। अब किसानों द्वारा जल्द ही एक प्रस्ताव तैयार कर कृषि मंत्री को भेजा जाएगा।

लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा नेताओं ने किसानों के साथ की थी मीटिंग

देश में लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों के साथ 9 मार्च 2014 को दिल्ली में अपने निवास पर एक मीटिंग की थी। मीटिंग के दौरान किसानों ने मुरली मनोहर जोशी के साथ अपने अनुभव सांझा किए थे। किसानों के कीट ज्ञान से प्रभावित होकर मुरली मनोहर जोशी ने कीटाचार्य किसानों से वायदा किया था कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद इस कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर में फैलाया जाएगा। देश के किसानों को कीट से अवगत करवाकर थाली को जहरमुक्त किया जाएगा।

'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो'

जहर मुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित


जींद। कीट साक्षरता मिशन द्वारा बुधवार को शहर के रोहतक रोड स्थित किसान कृषि प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में जहरमुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय नेशनल सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें निडाना में चलाई गई कीट साक्षरता के परिणामों पर भी चर्चा की गई। कीट साक्षरता का हिस्सा रही निडाना, रधाना व ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने बताया कि अमर उजाला का सहयोग मिलने से उनके अभियान को मजबूती मिली है। इस दौरान महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत भी प्रस्तुत किए, जिसमें 'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो' के माध्यम से कीटनाशकों के प्रयोग से शरीर और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताया। गीत के माध्यम से बताया गया कि किस प्रकार कीटनाशकों के कारोबारियों का धंधा जम रहा है और किसान बर्बाद हो रहा है। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों और कृषि वैज्ञानिकों ने कीट गीत की सराहना की। सेमिनार में हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल, चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार (एचएयू) से डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच, जींद के एसडीएम वीरेंद्र सहरावत, जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, अमर उजाला से महाप्रबंधक बजरंग राठौर, न्यूज एडिटर अर्जन निराला, स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, हिसार बागवानी से डॉ. भूपेंद्र दूहन, कृषि विभाग से एपीपीओ अनिल नरवाल, एसटीओ डॉ. संत मलिक, ट्रेनिंग इंचार्ज बलजीत लाठर, मास्टर ट्रेनर डॉ. राजेश लाठर, डॉ. सुभाष, एएसओ डॉ.
 कार्यक्रम में दीप प्रजवलित करते अतिथि।
सर्वजीत, एडीओ डॉ. कमल सैनी, कैलिफोर्निया (यूएसए) यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली, निकोलस, जिला सूचना एवं लोक संपर्क अधिकारी सूबे सिंह, अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा के अध्यक्ष सुनील कंडेला सहित कीट साक्षरता मिशन से जुड़े सैंकड़ों महिला व पुरुष किसान मौजूद रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्
 कीट ज्ञान का अपना अनुभव बताती कीटाचार्य।
सेमिनार को संबोधित करते बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा।
जवलित कर किया गया। कार्यक्रम के समापन पर अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सभी अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट किए गए। 
हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीट ज्ञान की एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यह मुहिम सरकारी अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत है। कीट ज्ञान की यह मुहिम किसी सरकारी विभाग की मुहिम नहीं होकर सामाजिक मुहिम है। इसी के चलते इस मुहिम ने सरकारी विभागों के अधिकारियों, किसानों, सामाजिक संस्थाओं तथा मीडिया को भी एक छत के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है। जब तक किसानों को कीटों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक जहर से मुक्ति संभव नहीं है। इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों को विद्यार्थियों के विषय में शामिल करना चाहिए और कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों से प्रशिक्षण दिलवाएं ताकि कीट विज्ञान जैसे जटिल विषय को आसानी से विद्यार्थियों को रूबरू करवाया जा सके।
हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को सम्मानित करते किसान।
कार्यक्रम में पहुंचे कैलिफोरनिया विश्वविद्यालय के शोधार्थी।

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ा सफेद मक्खी का प्रकोप

एचएयू डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों ने कीटों पर अनोखे शोध किए हैं। एचएयू से इस शोध को वैज्ञानिक मान्यता दिलवाने के लिए इस क्षेत्र में काम चल रहा है। डॉ. सिवाच ने कहा कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा रहा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ा है। 

किसानों के अनुभव से बढ़ा ज्ञान

एसडीएम वीरेंद्र सहरावत ने कहा कि कीट ज्ञान के बारे में जितनी जानकारी यहां के किसानों को है, उतनी जानकारी तो उन्हें भी नहीं है। इस कार्यक्रम को देखकर उन्हें काफी जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले उन्हें प्रकृति के इस चक्र के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी नहीं थी। किसानों के अनुभव से यह साफ हो गया है कि कीट ज्ञान के बिना थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है।

कृषि विभाग उठा रहा है विशेष कदम

जिला उपकृषि निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि इस काम को करीब से नहीं देखा जाए तो इस काम को समझ पाना संभव नहीं है। खेतों में जाकर ही यह ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग की तरफ से विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
 किसानों को संबोधित करते एचएयू के शोध विभाग के निदेशक डॉ. एसएस सिवाच।

जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर बरवाला में चलाई पाठशाला

हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने कहा कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण खान-पान दूषित हो रहा है और इससे मनुष्य के का शरीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने कहा कि जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर उन्होंने बरवाला में भी इसी तर्ज पर किसान पाठशालाएं शुरू करवाई हैं। इन्हीं किसानों ने वहां जाकर किसानों को प्रशिक्षित किया है। डॉ. भ्याण ने कहा कि पेस्टीसाइड खेती को रोकने के लिए उन्होंने हिसार में कीट साक्षरता कमेटी बनाई है।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्यों को सम्मानित करती कुसुम दलाल।

किसान और कीटों की लड़ाई में खाप बनेंगी मध्यस्थ

कार्यक्रम के दौरान बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा उन्हेें किसानों और कीटों के बीच छिड़ी लड़ाई को समाप्त करने के लिए ज्ञापन दिया था। अब जल्द ही इस विषय पर खाप पंचायत बुलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस खाप पंचायत में देश भर से कृषि वैज्ञानिकों और कीट विशेषज्ञों को भी बुलाया जाएगा। ढांडा ने कहा कि पिछले 40-50 सालों से किसानों ने कीटों की सैकड़ों पीढिय़ों को नष्ट करके देख लिया, लेकिन हमेशा जीत कीटों की हुृई है। अब समय आ गया है कि कीटों और किसानों के बीच सहयोग होना चाहिए। लड़ाई से जो कुछ नहीं हुआ, अब आपसी मेलजोल से वह किया जाएगा। ढांडा ने कहा कि अमर उजाला फाउंडेशन ने इस लड़ाई को रोकने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। यह बहुत ही पुण्य का काम है। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन के इस प्रयास से यह मुहिम पूरे उत्तर भारत के किसानों तक पहुंची है, जो सबसे बड़ा काम है। अमर उजाला के प्रयास का ही परिणाम है कि पंजाब, हिमाचल तथा अन्य राज्यों के किसान भी इस विधि को देखने के लिए जींद का रूख कर रहे हैं।
किसानों को संबोधित करते एसडीएम विरेंद्र सिंह सहरावत।

पैदावार का तुलनात्मक अध्ययन

कार्यक्रम के दौरान हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण तथा एडीओ डॉ. कमल सैनी ने पीपीटी के माध्यम से उन खेतों की पैदावार को बताया, जहां कीटनाशकों का प्रयोग नहीं हुआ। इन खेतों में अन्य के मुकाबले अधिक पैदावार हुई और कीटनाशकों का खर्च भी बचा।

बेटा खोकर पता चला कीटनाशकों का नुकसान

अपने अनुभव बताते हुए निडानी गांव के किसान जयभगवान ने कहा कि फसल पर कीटनाशक  के कारण उसका जवान बेटा कैंसर की चपेट में आ गया। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी बेटे को खोने के बाद उन्हें फसलों पर छिड़के जा रहे जहर के असली नुकसान का पता चला है और पांच साल से वह बिना कीटनाशक की खेती कर रहा है। इससे पैदावान कम होने की बजाय बढ़ रही है।


डॉ. बलजीत सिंह भ्याण को सम्मानित करते अमर उजाला के जीएम बजरंग सिंह राठौर।
कीटों की प्रजंटेशन देती महिला किसान।

कार्यक्रम के दौरान प्रजंटेशन  देते डॉ. बलजीत सिंह भ्याण












खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...