शुगर, बीपी के मरीजों को लंबी उम्र चाहिए तो कम से कम पानी लें
जींद : स्वस्थ रहने को लेकर आम धारणा यह है कि ज्यादा से ज्यादा जल गटका जाए। ज्यादा से ज्यादा पानी पीने को स्वस्थ रहने के लिए बहुत जरूरी बताया जा रहा है। इस धारणा के ठीक विपरीत दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के सीनियर कन्सलटैंट एमडी (आयुष) गोल्ड मैडलिस्ट और शोधकर्ता डा. परमेश्वर अरोड़ा का यह कहना है कि शरीर की जरूरत से ज्यादा जल सेहत के लिए घातक है। शुगर और हाई बीपी के मरीजों को लंबी उम्र चाहिए तो वह कम से कम पानी लें। इसके लिए डा. अरोड़ा वेदों और चरक को आधार बता रहे हैं। वह अब तक अपनी इस थ्यूरी को लेकर कई यूरोपिय देशों और चाइना आदि में अपनी बात रख चुके हैं। पिछले डेढ़ साल में अपनी इस मुहिम पर वह अपनी जेब से लगभग 28 लाख रूपए की राशि लोगों को जल के सेवन को लेकर जागरूक करने पर खर्च कर चुके हैं। डा. परमेश्वर अरोड़ा मंगलवार को इस सिलसिले में जींद पहुंचे। उन्होंने लोक निर्माण विश्राम गृह में इस मसले पर अपनी बात बेहद प्रभावशाली तरीके से रखते हुए कहा कि आज जहां संपूर्ण विश्व स्वास्थ्य लाभ के लिए अधिक से अधिक जल पीने की वकालत कर रहा है वहीं अपने पौराणिक वेदों एवं आयुर्वेद के विस्तार से अध्ययन करने पर बहुत ही हैरान कर देने वाला तथ्य सामने आता है। डा. अरोड़ा ने कहा कि सभी शास्त्र एक मत होकर अच्छे स्वास्थ्य के लिए किसी भी व्यक्ति को न्यूनतम पर्याप्त मात्रा में ही जल पीने का निर्देश देते हैं। साथ ही अनेकों ऐसे रोग भी हैं, जहां जल सेवन को निषेध करते हुए असहनीय होने पर ही जल अल्प मात्रा में पीने का विधान बतलाया गया है। स्पष्ट है कि जल सेवन को लेकर आधुनिक विचार एवं शास्त्रोक्त निर्देषों में विरोधाभास देखने को मिलता है।
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आज कल कहा जाता है, कि यदि पेट की बीमारियों जैसे कब्ज, एसिडिटी एवं गैस आदि को ठीक करना है तो खूब पानी पियो। शरीर का विशुद्धिकरण करना है तो खूब पानी पियो। पेशाब में जलन होती हो तो खूब पानी पियो। मोटापा कम करना है तो खूब पानी पियो। डा. अरोड़ा ने कहा कि इन परिस्थितियों में अपनी शक्ति एवं जरूरत से बढ़ाकर पिया गया पानी कैसे मदद करता है, इसकी कोई वैज्ञानिक विवेचना पढऩे या सुनने को नहीं मिल पाती। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार इन परिस्थितियों में जल का अधिक मात्रा में सेवन शरीर को लाभ नहीं बल्कि नुकसान पंहुचाता है। पेट के सभी रोग कब्ज, एसिडिटी इत्यादि पाचक अग्नि की मंदता के कारण उत्पन्न होते हैं। अत: इन रोगों में पाचक अग्नि को बढ़ा कर ही इन रोगों से पूर्ण मुक्ति पाई जा सकती है। डा. अरोड़ा ने ज्यादा जल पीने की वकालत करने वालों से सवाल किया कि ऐसे में अग्नि के प्रबल विरोधी जल का अत्याधिक प्रयोग, कैसे हमारे अग्नि बल को बढ़ाएगा और कैसे हमें इन बीमारियों से मुक्ति दिलाएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन रोगों में क्षणिक लाभ के लिए लिया गया अत्याधिक पानी ही, पेट के इन सामान्य रोगों को कभी नहीं ठीक होने वाले असाध्य रोग बना देता हो।
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प्यास लगने पर भी एक साथ अधिक जल का सेवन बना सकता है आपको रोगी
डा. अरोड़ा ने कहा कि आयुर्वेद के अनुसार किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को ग्रीष्म (मई मध्य से जुलाई मध्य तक का समय) एवं शरद ऋतु (सितम्बर मध्य से नवम्बर मध्य तक का समय) में सामान्य मात्रा में तथा शेष अन्य ऋतुओं में न्यूनतम पर्याप्त मात्रा में जल पीना चाहिए। प्यास लगने पर भी एक साथ अधिक मात्रा में जल पीने की प्रवृति यदि किसी व्यक्ति की होती है तो पिया गया यह जल पित्त एवं कफ रोगों जैसे अपच, आलस्य, पेट का फूलना, जी मिचलाना, उल्टी लगना, मुंह में पानी आना, शरीर में भारीपन और यहां तक की खांसी, जुकाम एवं श्वास के रोग को उत्पन्न करता है। विशेषत: बुखार के रोगी को तो बहुत ही संयम के साथ अल्प मात्रा में बार-बार गरम पानी का ही सेवन करना चाहिए।
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शुगर, बीपी के मरीजों के लिए जरूरत से ज्यादा जल घातक
डा. अरोड़ा ने कहा कि शुगर और बीपी के मरीजों के लिए जरूरत से ज्यादा जल घातक साबित हो सकता है। ऐसे मरीजों के दिल पर जो दबाव बनता है, उसे शरीर पेशाब के रूप में बाहर निकालता है और ऐसे मरीज अगर जरूरत से ज्यादा जल का सेवन करेंगे तो उनकी दिक्कत निश्चित रूप से बढ़ेगी। बाक्स
सही विधि से लिया गया जल ही अमृत अन्यथा शरीर के लिए विष के बराबर
डा. अरोड़ा का मानना है कि शास्त्रों के अनुसार जल को अकेले लिया जाए या औषधियों से सिद्ध करके लिया जाए, उबाल कर लिया जाए अथवा शीतल लिया जाए, या सिर्फ गरम करके लिया जाए, शरीर की अवस्था के अनुसार ऐसा विचार करके, सही मात्रा में, सही समय पर एवं सही विधि से लिया गया जल अमृत के समान गुणकारी होता है अन्यथा शरीर में विषाक्तता को उत्पन्न करता है। स्पष्ट है कि आयुर्वेद में गलत विधि से पिए गए जल को विष तक की संज्ञा दी गई है।
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अधिक जल सेवन से शरीर में पेट के रोग, मधुमेह, रक्तचाप, एवं किडनी इत्यादि से संबंधित अनेक रोग होने का खतरा
डा. अरोड़ा के अनुसार आयुर्वेद यह मानता है कि अधिक जल के सेवन से शरीर में पेट के रोग, मधुमेह, रक्तचाप, एवं किडनी इत्यादि से संबंधित अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। अधिक जल सेवन किस प्रकार से शरीर में मधुमेह, रक्तचाप, किडनी की बीमारी इत्यादि में कारण बन सकता है और कैसे शरीर के अन्य अंगो कों नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, इसका ‘जल-अमृत या विष?’ नामक पुस्तक में आयुर्वेदिक एवं आधुनिक आधार पर विस्तार से स्पष्टीकरण दिया गया है।
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जरूरत के अनुसार पानी लिया जाए तो हर रोज बच सकता है देश में 1500 करोड़ लीटर पानी
डा. अरोड़ा का कहना है कि देश की 25 प्रतिशत जनता भी अगर शरीर की जरूरत के अनुसार पानी पीना शुरू करे तो हर रोज लगभग 1500 करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है। इससे जल संरक्षण तो होगा ही, साथ ही लोग बीमार भी नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि 150 साल तक भारत के लोगों ने विदेशियों का स्वास्थ्य के मामले में अनुकरण किया है। नतीजा यह है कि देश के लोगों के स्वास्थ्य और शारीरिक ताकत का लेवल शून्य पर आ गया है। महाराणा प्रताप जैसे बली और महारानी लक्ष्मीबाई जैसी ताकतवर महिलाएं अब देश में नहीं हैं। उस समय न तो बड़े चिकित्सक थे और न ही बड़े अस्पताल थे। केवल खान-पान और शारीरिक मेहनत से ही लोग स्वस्थ रहते थे। आयुर्वेद और चरक जैसे ग्रंथों में स्वस्थ रहने के जो तरीके बताए गए थे, केवल उन्हीं का पालन वह लोग करते थे। अब समय आ गया है कि भारत के लोग स्वस्थ रहने और खासकर स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की विदेशियों की बातों में नहीं आकर आयुर्वेद और चरक जैसे ग्रंथों को मानें और शरीर की जरूरत के अनुसार ही जल का सेवन करें।