Saturday, 27 April 2013

गेहूं की कटाई के साथ ही नरमा की बिजाई ने पकड़ा जोर


 नरमा की अच्छी पैदावार के लिए बिजाई के दौरान विशेष बातों का ध्यान रखें किसान
जींद।  गेहूं की कटाई के साथ ही नरमा उत्पादन क्षेत्र के किसान नरमा की बिजाई में जुट गए हैं। नरमा की फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान बीज की अच्छी किस्म से लेकर बिजाई के लिए भिन्न-भिन्न तरीके अपना रहे हैं लेकिन अगर कृषि विभाग के अधिकारियों व प्रगतिशील किसानों की मानें तो नरमा के अच्छे उत्पादन के लिए सबसे पहली प्राथमिकता खेत में नरमा के पौधों की पर्याप्त संख्या तथा ङ्क्षसचाई के लिए अच्छा पानी है। अगर खेत में नरमा के पौधों की संख्या ही पूरी नहीं होगी तो उत्पादन में बढ़ौतरी संभव नहीं है। खेत में नरमा के पौधों की पर्याप्त संख्या के बाद पौधों के लिए सही मात्रा में खाद व पानी की जरुरत होती है। इसके अलावा अधिक उत्पादन के लिए किसान नरमा की लम्बी अवधी की किस्म की भी बिजाई कर सकते हैं।  
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खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या पहली प्राथमिकता
नरमा के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या जरुरी है। अगर खेत में पौधों की संख्या कम होगी तो इससे उत्पादन भी कम होगा। एक एकड़ में नरमा के पौधों की संख्या 4 हजार से 4800 तक होनी चाहिए। नरमा की बिजाई करते समय पौधों के बीच में सवा 3 से सवा 3 का फासला रखना चाहिए। ताकि पौधों को बढऩे के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। पौधों के बीच का फासला सही होने से पौधे को धूप भी बराबर मिलती रहेगी और धूप मिलने से पौधे आसानी से भोजन बना सकेंगे। किसानों को अधिक उत्पादन की चाह में फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। किसानों को कीटनाशकों के प्रयोग की बजाए पौधों व पौधों पर मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों को समझने की जरुरत है। पौधे अपनी जरुरत के अनुसार समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। फसल में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से पौधों की सुगंध छोडऩे की यह क्षमता गड़बड़ा जाती है। इससे फसल के उत्पादन पर भी काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
बलवान 
प्रगतिशील किसान, राजपूरा
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किसानों को नरमा की बिजाई के दौरान अच्छे उत्पादन के लिए नरमा के बीज के किस्म को लेकर असमंजस की स्थिति में नहीं पडऩा चाहिए। अच्छे उत्पादन के लिए किस्म नहीं बल्कि पौधों की पर्याप्त संख्या व पौधों की जरुरत के अनुसार खाद तथा पानी देना जरुरी है। वह खुद पिछले 2 वर्षों से घर पर ही देसी कपास का बीज तैयार कर नरमा की बिजाई करता है। इसके बावजूद भी हर वर्ष उसे अच्छा उत्पादन मिलता है। इसके अलावा किसान नरमा की फसल के बीच में बेल वाली सब्जियों या मूंग इत्यादि की बिजाई भी कर सकते हैं। 
रणबीर मलिक
प्रगतिशील किसान, निडाना
मौसम के बिगड़ते मिजाज को देखते हुए किसानों को इस वर्ष कपास की बिजाई सीधे करने की बजाए डोलियों पर करनी चाहिए। अगर किसान नरमा की बिजाई हाथ से चौब कर करें तो बीज के साथ गोबर की खाद जरुर डालें। इसके अलावा किसानों को मंडी से खाद व बीज खरीदते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। खाद व बीज खरीदते समय दुकान से पक्का बिल अवश्य लेना चाहिए। अगर कोई दुकानदार पक्का बिल देने से मना करता है या बीज या खाद के साथ टैङ्क्षगग करता है तो तुरंत इसकी सूचना कृषि विभाग के अधिकारियों को दें।
महाबीर पूनिया
प्रगतिशील किसान, निडानी
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जिले में ज्यादातर किसान अधिक उत्पादन के लिए बी.टी. की बिजाई करते हैं। बी.टी. की बिजाई करने वाले किसानों को इस बात का ध्यान जरुर रखना चाहिए कि इस किस्म को तैयार होने के लिए ज्यादा खुराक की जरुरत होती है। इसलिए इसकी बिजाई के दौरान किसान एक एकड़ में 20 किलो पोटास, एक बैग डी.ए.पी., 20 किलो यूरिया तथा 10 किलो ङ्क्षजक सल्फेड जरुर डालें। खेत में पौधों की संख्या का भी विशेष ध्यान रखें। एक एकड़ में कम से कम 4 हजार पौधे जरुर होने चाहिएं। जिस क्षेत्र में पानी ज्यादा खारा है, उस क्षेत्र के किसानों को नरमा की बिजाई से पहले एक एकड़ में कम से कम 8 से 10 ट्राली गोबर की खाद डालनी चाहिए। क्योंकि नरमा के पौधे कम नमक को तो सहन कर सकते हैं लेकिन ज्यादा नमक को सहन नहीं कर पाते। इसके अलावा नरमा की बिजाई के 15 दिन बाद से ही फसल की नुलाई-गुडाई शुरू कर देनी चाहिए। तापमान अधिक होने पर 4-5 दिन के अंतर पर पानी का हलका स्प्रे जरुर करें। पौधों को पर्याप्त खुराक देने के लिए 15 दिन के अंतर पर आधा किलो ङ्क्षजक, ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डी.ए.पी. का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर स्प्रे करें। 
डा. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकारी, रामराय



Wednesday, 24 April 2013

दुनिया भर में बजा म्हारी मुर्राह भैंस का डंका


 अमेरीकी देशों में निर्यात होगा हरियाणा की मुर्राह नस्ल का सीमन 
जींद। हरियाणा की मुर्राह भैंस अब दुनियां भर के किसानों की पसंद बनती जा रही है। इस के दूध की गुणवत्ता के कारण विदेशी पशुपालक इस नस्ल को अपने देश में पालना चाहते हैं। चार देशों के किसानों ने इस नस्ल का सीमन आयात करने की इच्छा जाहिर की है। प्रदेश के इस काले सोने को देखने के लिए ख़ास तौर पर दक्षिणी अमेरीकी देशों कोलम्बिया, वेनेजुएला, कोस्टारिका और अर्जेंटाइना का 28 सदस्य दल मुर्राह भैंस के रखरखाव के तौर तरीके सीखने लक्ष्य मिल्क प्लांट के आधुनिक डेयरी फार्मों का दौरा करने के बाद गांव दालमवाला पहुंचा। यहां दल ने गांव स्थित मुर्राह रिसर्च सेंटर में किये जा रहे शोध कार्यों की जानकारी भी हासिल की। दल के साथ  केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान हिसार के पूर्व निदेशक आरके सेठी भी  मौजूद रहे। 
विश्व के कई हिस्सों में देखने को मिलेगी मुर्राह भैंस
हरियाणा की प्रसिद्ध मुर्राह भैंस  अब विश्व के कई हिस्सों में देखने को मिलेगी। इस नस्ल को अपने देश में पालने के लिए दक्षिणी अमेरीकी देशों के पशुपालक इन दिनों भारत के दौरे पर हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की और  हरियाणा के दौरे पर निकले इस दल के 28 पशु पालक बुधवार को लक्ष्य मिल्क प्लांट के डेयरी फार्मों को देखने जींद पहुंचे। यहां उन्होंने दुग्ध उत्पादन में शानदार प्रदर्शन करने वाली इस भैंस के रखरखाव और उस के खानपान के बारे में विस्तार से जानकारी ली। 
भैंस शोध संस्थान का भी किया दौरा
दल ने गांव दालमवाला में बनाये गए लक्ष्य मिल्क प्लांट के भैंस शोध संस्थान में मुर्राह नस्ल सुधार कार्यकर्म का जायजा लिया। दल ने प्रदेश के  पहले  निजी मिल्क प्लांट का भी अध्ययन किया और दुग्ध उत्पाद बनाये जाने की तकनीक से संबंधित जानकारी ली। इस मौके पर दल के साथ आये केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान हिसार के पूर्व  निदेशक डा. आरके सेठी ने कहा की दक्षिणी अमरीकी देशों में भैंस का दूध काफी पसंद किया जाता है। इसलिए इन देशों के पशु पालक हरियाणा में अध्ययन करने आया है। इन्हें आधुनिक पशुपालन  की झलक दिखाने के लिए जींद लाया गया है  
अंग्रेज भी हुए मुर्राह के कायल
दल के साथ आये लुईस क्लेचर और रिकार्दो बोतेरो जर्मिलो ने कहा की वे  मुर्राह भैंस के कायल हो गए हैं और इस नस्ल का सीमन अपने देश मंगवाएंगे। लक्ष्य मिल्क प्लांट के मैनेजिंग डायरेक्टर बलजीत रेढू ने बताया की मुर्राह भैंस भविष्य का जानवर है और कई देशों से इस के सिमन की मांग आ चुकी है। लक्ष्य के पास उत्तम नस्ल मुर्राह झोटे हैं, जिन के सीमन पर शोध कार्य चल रहा है। इस कार्य के संपन्न होते ही भविष्य में सीमन निर्यात किये जाने की योजना तैयार की जा रही है। 

Tuesday, 23 April 2013

दिल्ली के दुराचारी को हो फांसी की सजा


गांव बीबीपुर में हुई महिला ग्राम सभा
दिल्ली दरिंदगी पर जताया रोष
सभा में पारित प्रस्तावों को पीएम को भेजा
जींद। गांव बीबीपुर में सोमवार को दिल्ली में पांच वर्षीय बालिका के साथ हुए गैंगरेप को लेकर महिला ग्राम सभा का आयोजन किया गया। जिसमें  महिला ग्राम सभा ने दुराचार मामले के आरोपियों को फांसी दिए जाने की मांग की। इसके अलावा पुलिस महकमे में मनोविशेषज्ञों की भर्ती किए जाने की भी मांग की गई। जो दुराचार जैसे अपराधों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण करें और इन अपराधों को किस तरह से रोका जा सकता है, इस बारे में शोध करें। ग्राम सभा में महिलाओं का कहना था कि इस प्रकार के अपराध करने वाले व्यक्ति मानसिक रूप से ठीक नहीं होते हैं। जिसके कारण इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते हैं। 
महिला ग्राम सभा की अध्यक्षता करते हुए रितु जागलान ने कहा कि इस तरह की घटनाएं सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग हैं। दिल्ली में गत १६ दिसंबर को युवती के साथ हुए सामूहिक दुराचार तथा अब दिल्ली में अबोध बालिका के साथ दुराचार करने वाले आरोपियों को फांसी से कम सजा नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुकद्मे का फैसला जल्द से जल्द होना चाहिए। ग्राम सभा में मौजूद महिला सावत्री देवी ने कहा कि दुराचार पीडि़त का न केवल न्याय मिलना चाहिए बल्कि उसे न्याय मिलते दिखायी भी देना चाहिए। महिलाओं का कहने का तात्पर्य यह है कि फैसला कम से कम समय में होना चाहिए। जिस तरह से बच्चियों के साथ ऐसी वारदातें हो रही हैं, उन्हें रोकने के लिए सरेआम फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए। 
महिलाओं ने कहा कि जब तक समाज महिलाओं को लेकर अपनी सोच नहीं बदलेगा। तब तक ये जघन्य अपराध रूकेंगे नहीं चाहे कितना भी सख्त कानून क्यों न बना दें। कमलेश देवी ने कहा कि क्या वे इसलिए कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ अभियान चला रही हैं कि बड़ी होने पर बच्चियों के साथ इस तरह से दुराचार होगा। उन्होंने कहा कि वे किस तरह से महिलाओं को यह समझाएंगी कि वे कन्या की कोख में हत्या न करवाएं। जब तक समाज महिलाओं को लेकर अपनी सोच नहीं बदलेगा। तब तक ये जघन्य अपराध रूकेंगें नहीं। उन्होंने कहा कि कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। अपराध तभी रूकेंगे जब सोच बदलेगी। अनिता जागलान ने कहा कि जब तक दुराचार जैसे संवेदनशील मसले पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेवारी नहीं समझेगा। तब तक इस प्रकार की घटनाएं रूकेंगी नहीं। उन्होंने कहा कि घटना होने के बाद कुछ दिन तक देश में हाय तौबा होती है। लेकिन इतने भर करने से काम नहीं चलेगा। समाज का प्रत्येक व्यक्ति जब तक अपनी यह जिम्मेवारी नहीं समझेगा कि बहु बेटियां सभी की एक समान हैं। तब इस प्रकार के अपराध नहीं रूकेंगे। बीबीपुर के सरपंच सुनील कुमार जागलान ने ग्रामसभा के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, महिला आयोग को भेजकर दुराचार के दोषी के लिए फांसी की सजा की मांग की जाएगी। प्रस्ताव में केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा कि पुलिस महकमे मनोवैज्ञानिकों की भी भर्ती की जाए। जो इस प्रकार के अपराधों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण करें। 

Saturday, 20 April 2013

ईंटल कलां के किसान ने पेश की मिसाल


गेहूं की फसल में किया नामात्र रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
कृष्ण की गेहूं का वजन दूसरे किसानों की गेहूं से ज्यादा
वर्ष २०१२ में जुड़ा कीट ज्ञान क्रांति मुहिम से
जींद। निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक परिणाम जिले के किसानों के सामने आने लगे हैं। हालांकि निडाना सहित लगभग दर्जनभर गांवों के किसान कपास व धान की फसल पर तो अपने कीट ज्ञान का सफल प्रयोग कर चुके हैं लेकिन इस बार इस मुहिम से जुड़े किसान द्वारा गेहूं की फसल पर किए गए प्रयोग से भी काफी सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए हैं। कीटनाशक रहित खेती की मुहिम से जुड़े ईंटल कलां गांव के किसान कृष्ण कुमार ने गेहूं की फसल में नामात्र रासायनिक उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं की फसल से अन्य किसानों से ज्यादा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार द्वारा तैयार की गई गेहूं की खास बात यह है कि इस गेहूं का वजन दूसरे किसानों द्वारा तैयार की गई गेहूं से ज्यादा है। यही कारण है कि किसान कृष्ण कुमार को गेहूं की फसल का अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन मिला है। 
लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के लिए कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत वर्ष 2007 में जिले के गांव रुपगढ़ से शुरू हुई थी। कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2008 में गांव निडाना के किसानों इस मुहिम को अपना कर रफ्तार देने का काम किया था। इसके बाद निडाना गांव के साथ-साथ आस-पास के लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा गांवों में इस क्रांति ने दस्तक दी। इसी के साथ गांव ईंटल कलां से भी कुछ किसान इस मुहिम में शामिल हुए। गांव ईंटल कलां के किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि पहले वह भी अन्य किसानों की तरह खेती-बाड़ी का काम करता था और अच्छे उत्पादन की चाह में फसल में अंधाधुंध उर्वकों व कीटनाशकों का इस्तेमाल करता था। फसल में अधिक उर्वकों के इस्तेमाल के कारण फसल उत्पादन पर उसका खर्च तो बढ़ता चला गया लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ा। इससे उसके सामने आॢथक संकट खड़ा होने लगा। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि वह वर्ष 2012 में कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ा और कपास के सीजन के दौरान निडाना गांव में लगने वाली किसान पाठशालाओं से कीट ज्ञान हासिल किया। कीटों की पहचान के साथ-साथ उसने फसल में उर्वकों तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम कर दिया। इससे उसकी काफी परेशानियां तो स्वयं ही खत्म हो गई। कृष्ण कुमार ने बताया कि इस बार उसने 4 एकड़ जमीन में 1711 तथा 17 नंबर गेहूं के बीज का मिश्रण कर बिजाई की थी। इसमें से अढ़ाई एकड़ जमीन से कृष्ण ने गेहूं की कटाई कर ली है, जबकि डेढ़ एकड़ से अभी गेहूं की कटाई बाकी है। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि जहां कपास की फसल में उसने नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया था, वहीं अब गेहूं की फसल में भी नामात्र उर्वकों का इस्तेमाल कर अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि उसे प्रति एकड़ से 50 मण गेहूं का उत्पादन हुआ। जबकि गांव के अन्य किसान को प्रति एकड़ से 40 से 45 मण का उत्पादन मिला है। अन्य किसानों के गेहूं के मुकाबले उसके गेहूं में वजन ज्यादा है। उसके गेहूं की खास बात यह है कि उसकी गेहूं की फसल में उर्वकों का प्रयोग नामात्र होने तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने के कारण उसकी गेहूं काफी हद तक जहर मुक्त है। 
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इस तरह बढ़ाया उत्पादन
ईंटल कलां निवासी कृष्ण कुमार ने इस बार अपनी गेहूं की फसल की बिजाई के बाद केवल 68 किलोग्राम यूरिया, 8 किलोग्राम डी.ए.पी. तथा 2 किलोग्राम ङ्क्षजक डाली है। इसके लिए कृष्ण ने डी.ए.पी., यूरिया तथा ङ्क्षजक का घोल तैयार कर हर 15 दिन के अंतर में कुल 4 बार फसल पर स्प्रे पम्प से इस घोल का छिड़काव किया है। एक बार के घोल में कृष्ण ने 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया, 2 किलो डी.ए.पी. तथा आधा किलो ङ्क्षजक प्रयोग की है। इसके अलावा 20-20 किलो यूरिया 3 बार सीधे फसल में डाला है। जबकि पहले यह किसान अपनी एक एकड़ फसल में 150 से 200 किलो यूरिया का इस्तेमाल करता था और इसके अलावा काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग भी करता था। 
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पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। क्योंकि पिछले वर्ष ठंड का मौसम लंबा चला था, जिस कारण गेहूं की फसल को पकने के लिए पूरा समय मिला था लेकिन इस वर्ष तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव हुआ है। इस कारण गेहूं की फसल को पकने के लिए पूरा समय नहीं मिल पाया। ईंटल कलां के किसान कृष्ण ने यूरिया, डी.ए.पी. व ङ्क्षजक का घोल तैयार कर फसल पर जो छिड़काव किया है। उससे उसका उत्पादन बढ़ा है। क्योंकि गेहूं की फसल को पकते वक्त सबसे ज्यादा नाइट्रोजन व फासफोर्स की जरुरत होती है। नाइट्रोजन से फसल में अमीनो एसिड बनता है और अमीनो एसिड प्रोटीन बनाने में सहायक होता है। अगर फसल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होगी तो फसल का वजन बढ़ेगा। गेहूं की फसल को पकाई के दौरान नाइट्रोजन की अधिक जरुरत होती है लेकिन आखिरी स्टेज मेंपौधो जमीन से अधिक नाइट्रोजन नहीं ले पाता। इसलिए इस स्टेज में जमीन में खाद डालने की बजाए अगर यूरिया, डी.ए.पी. व ङ्क्षजक का घोल तैयार कर फसल पर छिड़काव करें तो इससे पौधे के पत्ते को सीधे नाइट्रोजन मिल जाएगा और उसे जमीन से नाइट्रोजन लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इससे दाने में वजन बनेगा और ज्यादा उत्पादन होगा।
डा. कमल सैनी, ए.डी.ओ.
कृषि विभाग, रामराये


Friday, 19 April 2013

आधुनिकता की भेंट चढ़ रही शादी की परम्पराएं


फिल्मी संगीत की भेंट चढ़ रहे महिलाओं द्वारा शादी में गाए जाने वाले मंगल गीत


जींद। आज आधुनिकता के इस दौर में बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हरियाणवी संस्कृति लगातार अपनी पहचान खो रही है। हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ इसका प्रभाव अब विवाह-शदियों के दौरान दिए जाने वाले बाने की रीति-रिजवों पर भी तेजी से पड़ रहा है। बाने की रीति-रिवाज को निभाते वक्त सुनाई देने वाले महिलाओं के मंगल गीतों की जगह अब फिल्मी संगीत ने ले ली है। जिस कारण महिलाएं विवाह-शादियों में हरियाणवी गीतों की बजाए फिल्मी गीतों पर थिरकती नजर आती हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण अब विवाह-शादी के दौरान निभाई जाने वाली हरियाणवी रीति-रिवाज लगातार अपनी पहचान खोती जा रही है।  
हरियाणवी संस्कृति में शादी से पहले बन्ने (दूल्हा) या बन्नी (दुल्हन) के लिए बाने की रिवाज होती थी। इस रिवाज के अनुसार शादी से पहले परिवार के लोगों द्वारा बारी-बारी बन्ना या बन्नी के लिए अपने-अपने घरों पर एक वक्त के खाने की व्यवस्था की जाती थी। हरियाणवी संस्कृति में इसे बाना कहा जाता था। बाने के दौरान एक ही व्यक्ति के घर में पूरे परिवार के लोगों का खाना तैयार किया जाता था। बन्ना या बन्नी को खाना खिलाने के बाद महिलाएं मंगल गीत गाती हुई उन्हें उनके घर तक ले जाती थी। इस दौरान बन्ने या बन्नी के सिर पर लाल चुन्नी रखकर एक थाली रखी जाती थी। थाली में सरसों के तेल का दिया व अन्य सामग्री भी रखी जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीतों में 'किसियां बाना ए नोंदिया, किसयां के घर जा', 'चालो सांझड़ी ए सांझघर चालो, जिस घर दिवला नित बलै', 'बन्नी हे म्हारी कमरे में घूमै' व 'म्हारे बनड़े का भूरा-भूरा मुखड़ा, ऊपर धार धरी ऐ शेरे की' इत्यादि प्रमुख थे। इसके बाद महिलाएं विवाह-शादी वाले घर में एकत्रित होकर गीत गाती थी और नृत्य करती थी। इनमें 'तेरा दामण सिमादू बनड़ी बोलैगी के ना', 'बन्ना काला कोठ सिमाले रे, अंग्रेजी बटन लगवाले रे', 'पहलां तो पिया दामण सिमादे, फेर जाइए हो पलटल में', 'मेरा दामण धरा री तकियाले में हे री-हे री ननद पकड़ा जाइए', मेरी छतरी के नीचे आ जा, क्यों भिजे कमला खड़ी-खड़ी' इत्यादि प्रमुख थे। बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन समय से चली आ रही इस रिवाज के पीछे का कारण शादी से पहले लड़के या लड़की को अच्छा खाना खिलाकर शारीरिक रूप से मजबूत करना था। विवाह-शादी में बाने की रिवाज को काफी शुभ माना जाता था। बाने की शुरूआत शादी के दिन से 7 दिन पहले की जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले मंगल गीत सुनने वालों के दिल में एक तरह की उमंग सी भर देते थे। बाने की परम्परा को पूरा करते हुए महिलाएं देर रात तक गीत गाती और नृत्य करती थी लेकिन आधुनिकता के इस दौर में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने हरियाणवी संस्कृति को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इसमें हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ हमारी रीति-रिवाजों को भी काफी हद तक समाप्त ही कर दिया है। आधुनिकता के इस युग में बाने की परम्परा शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से भी समाप्त होती जा रही है। बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के मंगल गीतों की जगह फिल्मी गीत सुनाई देते हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं पुरानी रीति-रिवाजों को भूलती जा रही हैं। अब महिलाएं बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के गीतों की बजाए ज्यादातर फिल्मी गीतों पर ही नृत्य करती नजर आती हैं। इस दौरान फिल्मी गीतों पर महिलाओं का डांस देखने के
 शादी के दौरान डी.जे. पर फिल्मी गीतों पर थिरकती महिलाएं।
लिए काफी संख्या में लोग भी एकत्रित हो जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण विवाह-शादियों में अब अश्लीलता भी पैर पसारने लगी है।

फेशियल व बलिच ने लिया मटने का स्थान

विवाह-शादी के दौरान पहले बन्ने या बन्नी का रंग निखारने के लिए हल्दी, ज्यों व चने का मिश्रण कर एक लेप तैयार किया जाता था। जिसे मटना कहा जाता था। शादी से कई दिन पहले ही महिलाएं बन्ने या बन्नी को मटना लगाना शुरू कर देती थी। प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया है यह लेप बन्ने या बन्नी के रंग को निखारने में काफी कारगर साबित होता था लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ मटने का स्थान फेशियल व बलिच ने ले लिया है। अब शादी के दौरान बन्ना या बन्नी मटने का इस्तेमाल करने की बजाए पार्लर में जाकर फेशियल व बलिच करवाने को प्रथमिकता देते हैं। रासायनिक उत्पादों से तैयार किए गए यह प्रौडक्ट एक बार तो भले ही चेहरे पर नूर चढ़ा देते हैं लेकिन बाद में ये चेहरे की रंगत को बिगाड़ देते हैं। 

गेहूं की फसल पर भी आए कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक प्रयोग


ईंटल कलां गांव के किसान ने गेहूं की फसल पर किया प्रयोग
नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं का लिया अच्छा उत्पादन


जींद। निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक परिणाम जिले के किसानों के सामने आने लगे हैं। हालांकि निडाना सहित लगभग दर्जनभर गांवों के किसान कपास व धान की फसल पर तो अपने कीट ज्ञान का सफल प्रयोग कर चुके हैं लेकिन इस बार इस मुहिम से जुड़े किसान द्वारा गेहूं की फसल पर किए गए प्रयोग से भी काफी सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए हैं। कीटनाशक रहित खेती की मुहिम से जुड़े ईंटल कलां गांव के किसान कृष्ण कुमार ने गेहूं की फसल में नामात्र रासायनिक उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं की फसल से अन्य किसानों से ज्यादा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार द्वारा तैयार की गई गेहूं की खास बात यह है कि इस गेहूं का वजन दूसरे किसानों द्वारा तैयार की गई गेहूं से ज्यादा है।
लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के लिए कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत वर्ष 2007 में जिले के गांव रुपगढ़ से शुरू हुई थी। कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2008 में गांव निडाना के किसानों इस मुहिम को अपना कर रफ्तार देने का काम किया था। इसके बाद निडाना गांव के साथ-साथ आस-पास के लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा गांवों में इस क्रांति ने दस्तक दी। इसी के साथ गांव ईंटल कलां से भी कुछ किसान इस मुहिम में शामिल हुए। गांव ईंटल कलां के किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि पहले वह भी अन्य किसानों की तरह खेती-बाड़ी का काम करता था और अच्छे उत्पादन की चाह में फसल में अंधाधुंध उर्वकों व कीटनाशकों का इस्तेमाल करता था। फसल में अधिक उर्वकों के इस्तेमाल के कारण फसल उत्पादन पर उसका खर्च तो बढ़ता चला गया लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ा। इससे उसके सामने आर्थिक संकट खड़ा होने लगा। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि वह वर्ष 2012 में कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ा और कपास के सीजन के दौरान निडाना गांव में लगने वाली किसान पाठशालाओं से कीट ज्ञान हासिल किया। कीटों की पहचान के साथ-साथ उसने फसल में उर्वकों तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम कर दिया। इससे उसकी काफी परेशानियां तो स्वयं ही खत्म हो गई। कृष्ण कुमार ने बताया कि इस बार उसने 4 एकड़ जमीन में 1711 तथा 17 नंबर गेहूं के बीज का मिश्रण कर बिजाई की थी। इसमें से अढ़ाई एकड़ जमीन से कृष्ण ने गेहूं की कटाई कर ली है, जबकि डेढ़ एकड़ से अभी गेहूं की कटाई बाकी है। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि जहां कपास की फसल में उसने नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया था, वहीं अब गेहूं की फसल में भी नामात्र उर्वकों का इस्तेमाल कर अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि उसे प्रति एकड़ से 50 मण गेहूं का उत्पादन हुआ। जबकि गांव के अन्य किसान को प्रति एकड़ से 40 से 45 मण का उत्पादन मिला है। अन्य किसानों के गेहूं के मुकाबले उसके गेहूं में वजन ज्यादा है। उसके गेहूं की खास बात यह है कि उसकी गेहूं की फसल में उर्वकों का प्रयोग नामात्र होने तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने के कारण उसकी गेहूं काफी हद तक जहर मुक्त है।

इस तरह बढ़ाया उत्पादन

ईंटल कलां निवासी कृष्ण कुमार ने इस बार अपनी गेहूं की फसल की बिजाई के बाद केवल 68 किलोग्राम यूरिया, 8 किलोग्राम डी.ए.पी. तथा 2 किलोग्राम जिंक  डाली है। इसके लिए कृष्ण ने डी.ए.पी., यूरिया तथा जिंक का घोल तैयार कर हर 15 दिन के अंतर में कुल 4 बार फसल पर स्प्रे पम्प से इस घोल का छिड़काव किया है। एक बार के घोल में कृष्ण ने 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया, 2 किलो डी.ए.पी. तथा आधा किलो जिंक प्रयोग की है। इसके अलावा 20-20 किलो यूरिया 3 बार सीधे फसल में डाला है। जबकि पहले यह किसान अपनी एक एकड़ फसल में 150 से 200 किलो यूरिया का इस्तेमाल करता था और इसके अलावा काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग भी करता था।
 ए.डी.ओ. कमल सैनी के साथ मौजूद किसान कृष्ण कुमार अपना अनुभव सांझा करते हुए।  

पकाई के दौरान फसल को नाइट्रोजन की होती है अधिक जरुरत 

पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। क्योंकि पिछले वर्ष ठंड का मौसम लंबा चला था लेकिन इस वर्ष तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव हुआ है। इस कारण गेहूं की फसल को पकने के लिए पूरा समय नहीं मिल पाया। ईंटल कलां के किसान कृष्ण ने यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर जो छिड़काव किया है। उससे उसका उत्पादन बढ़ा है। क्योंकि गेहूं की फसल को पकते वक्त सबसे ज्यादा नाइट्रोजन व फासफोर्स की जरुरत होती है। नाइट्रोजन से फसल में अमीनो एसिड बनता है और अमीनो एसिड प्रोटीन बनाने में सहायक होता है। अगर फसल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होगी तो फसल का वजन बढ़ेगा। गेहूं की फसल को पकाई के दौरान नाइट्रोजन की अधिक जरुरत होती है लेकिन आखिरी स्टेज मेंपौधो जमीन से अधिक नाइट्रोजन नहीं ले पाता। इसलिए इस स्टेज में जमीन में खाद डालने की बजाए अगर यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर छिड़काव करें तो इससे पौधे के पत्ते को सीधे नाइट्रोजन मिल जाएगा और उसे जमीन से नाइट्रोजन लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इससे दाने में वजन बनेगा और ज्यादा उत्पादन होगा।
डा. कमल सैनी, ए.डी.ओ.
कृषि विभाग, रामराय

'बेसहारा' हुए दूसरों को सहारा देने वाले


बंद होने वाला है बेसहारों को आश्रय देने वाला शैल्टर होम 
शैल्टर होम चलाने वाली संस्था ने मदद से खींचे हाथ


जींद। बेसहारों को सहारा देने तथा अपनों से बिछुड़े बच्चों को उनके अभिभावकों तक पहुंचाने में बाल संरक्षण विभाग एक कड़ी का काम करता है। बिछुड़े हुओं को मिलवाने का काम करने वाले इस विभाग के अधिकारियों के सामने अब जींद जिले में एक गंभीर समस्या आन खड़ी हुई है। क्योंकि अब जिले में अनाथ व बेसहारा बच्चों के रहने के लिए विभाग के पास कोई आश्रय स्थल नहीं बचा है। कारण यह है कि जिले में अनाथ व बेसहारा बच्चों को आश्रय देने वाली संस्था स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया ने बेसहारों को सहारा देने से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। मिशन इंडिया संस्था द्वारा बेसहारा व अनाथ बच्चों के रखने के लिए शहर की अर्बन एस्टेट कालोनी में शुरू किए गए शैल्टर होम को बंद कर दिया है। शैल्टर होम बंद होने के कारण अब बाल संरक्षण विभाग के पास बेसहारा बच्चों को आश्रय देने के लिए कोई आश्रय स्थल नहीं है।  
अनाथ व बेसहारा बच्चों को सहारा देने की जिम्मेदारी भी बाल संरक्षण विभाग के पास है। किसी भी परिस्थितियों में अपनों से बिछुड़कर बाल संरक्षण विभाग के पास पहुंचे बच्चों को उनके परिजनों के मिलने तक विभाग द्वारा आश्रय दिया जाता है। बाल संरक्षण विभाग द्वारा जिले में बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए एक सामाजिक संस्था स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया के माध्यम से आश्रय मुहैया करवाया जाता था। इसके लिए मिशन इंडिया संस्था द्वारा शहर की अर्बन एस्टेट कालोनी में एक शैल्टर होम की व्यवस्था की गई थी। बाल संरक्षण विभाग को मिलने वाले बेसहारा व अनाथ बच्चों को इसी शैल्टर होम में आश्रय दिया जाता था लेकिन बेसहारा व अनाथों को सहारा देने वाले बाल संरक्षण विभाग के अधिकारियों के सामने जींद जिले में अब एक बड़ी समस्या आन खड़ी हुई है। यह समस्या है बेसहारा तथा अनाथ बच्चों को आश्रय मुहैया करवाने की। क्योंकि बेसहारों व अनाथों को आश्रय देने वाली मिशन इंडिया संस्था ने अब बाल संरक्षण विभाग की मदद से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। संस्था ने बाल संरक्षण विभाग को शैल्टर होम बंद करने सम्बंधि नोटिस भेजा है। संस्था द्वारा नोटिस मिलने के बाद बाल संरक्षण विभाग ने शैल्टर होम में रहने वाले बेसहारा बच्चों को दूसरे जिले के शैल्टर होम में शिफ्ट करवा दिया है। 

पूरे जिले में विभाग के पास था एकमात्र शैल्टर होम

मिशन इंडिया संस्था का शैल्टर होम बंद होने के कारण बाल संरक्षण विभाग के अधिकारी गंभीर समस्या में फंस गए हैं, क्योंकि बेसहारा व अनाथ बच्चों को आश्रय देने के लिए पूरे जिले में यह एक मात्र शैल्टर होम था और अब यह भी बंद हो गया है। ऐसे में अगर अब कोई बेसहारा या अनाथ बच्चा विभाग के पास पहुंचता है तो बच्चे के मैडीकल से लेकर अन्य कागजी कार्रवाई पूरी करने तक बच्चे को आश्रय देने के लिए विभाग के पास कोई स्थान नहीं बचा है। 

3 साल से कागजों में अटका शैल्टर होम का निर्माण

बाल संरक्षण विभाग द्वारा जिले में शैल्टर होम का निर्माण करने के लिए बीबीपुर गांव में साइट तय की गई है। विभाग द्वारा बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए पिछले 3 साल से प्रयास जारी हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अभी तक विभाग बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के लिए जमीन भी अधिग्रहण नहीं कर पाया है। जमीन अधिग्रहण नहीं होने के कारण शैल्टर होम का निर्माण कार्य सिर्फ कागज में ही सिमट कर रह गया है। 
 वह मकान जहां मिशन इंडिया संस्था द्वारा शैल्टर होम खोला गया था। 

आर्थिक परेशानी के चलते लिया शैल्टर होम बंद करने का निर्णय

इस बारे में जब स्टेट कोर्डिनेटर मिशन इंडिया संस्था के संचालक मनफूल सिंह से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि संस्था आर्थिक परेशानी से गुजर रही थी। आर्थिक परेशानी के कारण उन्होंने शैल्टर होम बंद करने का निर्णय लिया है। शैल्टर होम बंद करने से सम्बंधित नोटिस बाल संरक्षण विभाग के अधिकारियों के पास भेज दिया गया है।  

मिशन इंडिया संस्था द्वारा शैल्टर होम बंद करने से सम्बंधित नोटिस मिला है। जिले में यह एकमात्र शैल्टर होम था। अनाथ व बेसहारा बच्चों को आश्रय से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आने दी जाएगी। उन्होंने जिला प्रशासनिक अधिकारियों को इस बारे अवगत करवा दिया है। प्रशासन द्वारा शैल्टर होम से सम्बंधित समस्या का जल्द ही समाधान निकाल कर दूसरे शैल्टर होम की व्यवस्था कर दी जाएगी। बीबीपुर गांव में शैल्टर होम के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी गई है। विभाग से मंजूरी मिलते ही जमीन अधिग्रहण कर शैल्टर होम का निर्माण शुरू करवा दिया जाएगा। 
सरोज तंवर
जिला बाल संरक्षण अधिकारी, जींद 

Sunday, 14 April 2013

खून से लाल हो रही है रेल की पटरियां



हर माह बढ़ रही है रेलवे ट्रैक पर मरने वालों की संख्या 


जींद। जिले का रेलवे ट्रैक हर माह खून से लाल हो रहा है। जिंदगी से परेशान लोग मौत को गले लगाने के लिए रेलवे ट्रैक को चून रहे हैं। ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। अकेले वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में ही ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है। रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के बढ़ते मामले जी.आर.पी. के लिए भी सिर दर्द बन रहे हैं। जी.आर.पी. को मृतकों की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए खाक छाननी पड़ रही है।
आज भाग दौड़ व टैंशन भरी ङ्क्षजदगी से परेशान होकर लोग अपने जीवन से मुहं मोड़ रहे हैं। टैंशन भरी जिंदगी से छुटकारा पाने के लिए लोग रेलवे ट्रैक को माध्यम बना रहे हैं। इसलिए ट्रेन के आगे कूद कर एक ही झटके में ङ्क्षजदगी से छुटकारा पाना चाहते हैं। अगर पिछले 3 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। वर्ष 2011 में रेलवे ट्रैक पर जान देने वालों की संख्या लगभग 110 के करीब थी, तो वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 110 से बढ़कर 133 पर पहुंच गया। वर्ष 2013 में पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन 3 माह में हर माह 2 से 3 व्यक्तियों का आंकड़ा बढ़ा है। इनमें महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या ज्यादा है। जनवरी माह में रेल की चपेट में आने के कारण 5 लोगों की मौत हुई है, जिनमें पांचों पुरुष थे। पांचों मामलों में 3 आत्महत्या के थे, जबकि 2 लोगों की मौत स्वभाविक रुप से हुई थी। फरवरी माह में ट्रेन की चपेट में आने से 7 लोग काल का ग्रास बने। इनमें 5 पुरुष तथा 2 महिला थी। सातों मामलों में 2 मामले आत्महत्या के तथा 5 मामले दुर्घटना के थे। मार्च माह में कुल 8 लोग ट्रेन की चपेट में आने के कारण जिंदगी से हाथ धो बैठे। इनमें 6 पुरुष व 2 महिलाएं थी। आठों मामलों में 5 आत्महत्या के तथा 3 मामले दुर्घटना के थे। लगातार बढ़ रहे आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो यह साफ हो रहा है कि लोग तनाव भरे जीवन से छूटकारा पाने के लिए ट्रेन को आसान साधन मानते हैं। रेलवे ट्रैक पर बढ़ते हादसे जी.आर.पी. के लिए भी सिरदर्द बनते हैं। जी.आर.पी. को मृतक की पहचान व उसके परिजनों का पता लगाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है।

72 घंटे तक रख सकते हैं शव 

रेलवे ट्रैक पर लावारिस शव मिलने पर जी.आर.पी. द्वारा पंचनामा भरने के बाद शव का पोस्टमार्टम करवाया जाता है। शव मिलने के बाद शव की पहचान के लिए जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा सूचना दी जाती है। शव मिलने पर शव को 72 घंटे तक सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद उनकी पहचान नहीं होने पर शव का दांह संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।

लावारिश शव बनते हैं जी.आर.पी. के गले की फांस

जी.आर.पी. को शव मिलने पर उनकी पहचान नहीं होने पर जी.आर.पी. को शव की पहचान के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। पिछले 3 माह में रेलवे ट्रैक पर मरने वाले 20 लोगों में से अभी भी 4 शवों की पहचान नहीं हो पाई है। जिस कारण जी.आर.पी. ने शवों को लावारिश घोषित कर शवों को दहा संस्कार के लिए मार्कीट कमेटी को सौंप दिया है।

किया जाता है प्रचार-प्रसार

रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है। आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होने के कारण जी.आर.पी. को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्टाफ की कमी के चलते जी.आर.पी. पर काम का बोझ भी बढ़ जाता है। जी.आर.पी. द्वारा शवों की पहचान के लिए काफी प्रचार-प्रसार भी किया जाता है। इसके बाद अगर शव की पहचान नहीं हो पाती है तो शव का दहा संस्कार के लिए  मार्कीट कमेटी को सौंप दिया जाता है।
विक्रम सिंह, एस.एच.ओ.
जी.आर.पी., जींद

लोगों के दिल में पनप रही है गलत धरना 

ट्रेन सबसे पुराना साधन है। पुराने समय में ट्रेन की चपेट में आने से कुछ हादसे होने के बाद ट्रेन की तरफ लोगों की गलत धारण भी जुड़ गई है। जब किसी व्यक्ति का जिन्दगी से मोह उठ जाता है तो उसके मन में मौत को लेकर किसी तरह का डर नहीं रहता है। इस तरह की परिस्थिति में व्यक्ति सिर्फ यह सोचता है कि आत्महत्या के दौरान संयोग से कहीं उसकी मौत नहीं हुई और उसके शरीर का कोई अंग भंग हो गया तो उसकी जिंदगी बेकार हो जाएगी। अन्य वाहनों की बजाए ट्रेन की चपेट में आने से मौत जल्दी हो जाती है। इसलिए आत्महत्या के लिए लोग ट्रेन को ही सबसे ज्यादा चुनते हैं, क्योंकि ट्रेन की चपेट में आने के बाद बचने के चांस कम होते हैं। जीवन भगवन का अनमोल तोहफा है छोटी-मोटी परेसनियों के कारण इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए
नरेश जागलान
 नरेश जागलान का फोटो

आधुनिकता की भेंट चढ़ रही शादी की परम्पराएं



फिल्मी संगीत की भेंट चढ़ रहे महिलाओं द्वारा शादी में गाए जाने वाले मंगल गीत


जींद। आज आधुनिकता के इस दौर में बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हरियाणवी संस्कृति लगातार अपनी पहचान खो रही है। हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ इसका प्रभाव अब विवाह-शदियों के दौरान दिए जाने वाले बाने की रीति-रिजवों पर भी तेजी से पड़ रहा है। बाने की रीति-रिवाज को निभाते वक्त सुनाई देने वाले महिलाओं के मंगल गीतों की जगह अब फिल्मी संगीत ने ले ली है। जिस कारण महिलाएं विवाह-शादियों में हरियाणवी गीतों की बजाए फिल्मी गीतों पर थिरकती नजर आती हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण अब विवाह-शादी के दौरान निभाई जाने वाली हरियाणवी रीति-रिवाज लगातार अपनी पहचान खोती जा रही है।  
हरियाणवी संस्कृति में शादी से पहले बन्ने (दूल्हा) या बन्नी (दुल्हन) के लिए बाने की रिवाज होती थी। इस रिवाज के अनुसार शादी से पहले परिवार के लोगों द्वारा बारी-बारी बन्ना या बन्नी के लिए अपने-अपने घरों पर एक वक्त के खाने की व्यवस्था की जाती थी। हरियाणवी संस्कृति में इसे बाना कहा जाता था। बाने के दौरान एक ही व्यक्ति के घर में पूरे परिवार के लोगों का खाना तैयार किया जाता था। बन्ना या बन्नी को खाना खिलाने के बाद महिलाएं मंगल गीत गाती हुई उन्हें उनके घर तक ले जाती थी। इस दौरान बन्ने या बन्नी के सिर पर लाल चुन्नी रखकर एक थाली रखी जाती थी। थाली में सरसों के तेल का दिया व अन्य सामग्री भी रखी जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीतों में 'किसियां बाना ए नोंदिया, किसयां के घर जा', 'चालो सांझड़ी ए सांझघर चालो, जिस घर दिवला नित बलै', 'बन्नी हे म्हारी कमरे में घूमै' व 'म्हारे बनड़े का भूरा-भूरा मुखड़ा, ऊपर धार धरी ऐ शेरे की' इत्यादि प्रमुख थे। इसके बाद महिलाएं विवाह-शादी वाले घर में एकत्रित होकर गीत गाती थी और नृत्य करती थी। इनमें 'तेरा दामण सिमादू बनड़ी बोलैगी के ना', 'बन्ना काला कोठ सिमाले रे, अंग्रेजी बटन लगवाले रे', 'पहलां तो पिया दामण सिमादे, फेर जाइए हो पलटल में', 'मेरा दामण धरा री तकियाले में हे री-हे री ननद पकड़ा जाइए', मेरी छतरी के नीचे आ जा, क्यों भिजे कमला खड़ी-खड़ी' इत्यादि प्रमुख थे। बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन समय से चली आ रही इस रिवाज के पीछे का कारण शादी से पहले लड़के या लड़की को अच्छा खाना खिलाकर शारीरिक रूप से मजबूत करना था। विवाह-शादी में बाने की रिवाज को काफी शुभ माना जाता था। बाने की शुरूआत शादी के दिन से 7 दिन पहले की जाती थी। बाने के दौरान महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले मंगल गीत सुनने वालों के दिल में एक तरह की उमंग सी भर देते थे। बाने की परम्परा को पूरा करते हुए महिलाएं देर रात तक गीत गाती और नृत्य करती थी लेकिन आधुनिकता के इस दौर में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने हरियाणवी संस्कृति को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इसमें हमारे खान-पान व पहनावे के साथ-साथ हमारी रीति-रिवाजों को भी काफी हद तक समाप्त ही कर दिया है। आधुनिकता के इस युग में बाने की परम्परा शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से भी समाप्त होती जा रही है। बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के मंगल गीतों की जगह फिल्मी गीत सुनाई देते हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं पुरानी रीति-रिवाजों को भूलती जा रही हैं। अब महिलाएं बाने की परम्परा के दौरान महिलाओं के गीतों की बजाए ज्यादातर फिल्मी गीतों पर ही नृत्य करती नजर आती हैं। इस दौरान फिल्मी गीतों पर महिलाओं का डांस देखने के
 शादी के दौरान डी.जे. पर फिल्मी गीतों पर थिरकती महिलाएं।
लिए काफी संख्या में लोग भी एकत्रित हो जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण विवाह-शादियों में अब अश्लीलता भी पैर पसारने लगी है।

फेशियल व बलिच ने लिया मटने का स्थान

विवाह-शादी के दौरान पहले बन्ने या बन्नी का रंग निखारने के लिए हल्दी, ज्यों व चने का मिश्रण कर एक लेप तैयार किया जाता था। जिसे मटना कहा जाता था। शादी से कई दिन पहले ही महिलाएं बन्ने या बन्नी को मटना लगाना शुरू कर देती थी। प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया है यह लेप बन्ने या बन्नी के रंग को निखारने में काफी कारगर साबित होता था लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ मटने का स्थान फेशियल व बलिच ने ले लिया है। अब शादी के दौरान बन्ना या बन्नी मटने का इस्तेमाल करने की बजाए पार्लर में जाकर फेशियल व बलिच करवाने को प्रथमिकता देते हैं। रासायनिक उत्पादों से तैयार किए गए यह प्रौडक्ट एक बार तो भले ही चेहरे पर नूर चढ़ा देते हैं लेकिन बाद में ये चेहरे की रंगत को बिगाड़ देते हैं। 

कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई की तरफ बढ़ा जिले के किसानों का रुझान



पशुओं के लिए चारे की कमी के कारण कम्बाइन से गेहूं की कटाई से हुआ किसानों का मोह भंग

जींद।जिले में पिछले कुछ वर्षों से भले ही कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई का रकबा बढ़ा हो लेकिन इस वर्ष जिले में कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की फसल की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी हुई है। इसे किसानों की मजबूरी कहें या पशुओं के लिए चारे की जरुरत जिस कारण जिले के किसानों को कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अगर कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किसानों का कम्बाइन से गेहूं की कटाई से मोह भंग होने का मुख्य कारण पशुओं के लिए चारे की जरुरत के साथ-साथ गेहूं के बीज की किस्म में हुआ बदलाव रहा है। 
पिछले कुछ वर्षों से जिले के किसान का रुझान हाथ से गेहूं की फसल की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की कटाई करवाने की तरफ बढ़ रहा था। जिस समय किसानों का रुझान कम्बाइन से गेहूं की कटवाई की तरफ बढ़ा था उस वक्त जिले में गेहूं के बिजाई के कुल क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की 343 किस्म की बिजाई होती थी। 343 किस्म की गेहूं की फसल की बढ़ौतरी काफी अच्छी होती थी। इस कारण कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई के बाद पशुओं के लिए चारे के लिए भी व्यवस्था ठीक-ठाक हो जाती थी लेकिन पिछले एक-दो वर्ष से गेहूं के बीज की किस्म में बड़ा बदलाव हुआ है। जिले में 343 की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई में वृद्धि हुई है। इस वर्ष जिले में गेहूं की फसल का कुल रकबा 2 लाख 17 हजार हैक्टेयर है। इस कुल रकबे में से 80 हजार हैक्टेयर में 343 किस्म तथा 80 हजार हैक्टेयर में एच.डी.2851 की बिजाई की गई है। यानि गेहूं के कुल क्षेत्र में से 40 प्रतिशत में 343 किस्म, 40 प्रतिशत में एच.डी. 2851 और बाकी 20 प्रतिशत में गेहूं की अन्य किस्मों की बिजाई की गई है। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होती है। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म की फसल की बढ़ौतरी कम होने के कारण कम्बाइन से कटाई करवाने के बाद इसका भूसा कम होता है। इससे पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। एच.डी. 2851 का रकबा बढऩे तथा 343 किस्म का रकबा कम होने के कारण किसानों का रुझान मजबूरन हाथ की कटाई की तरफ बढ़ रहा है। 

क्यों बढ़ा एच.डी. 2851 का रकबा

जिले में पिछले कुछ वर्षों से गेहूं की एच.डी. 2851 किस्म का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि 343 किस्म का रकबा कम हुआ है। एच.डी. 2851 के रकबे में बढ़ौतरी का मुख्य कारण यह है कि इस किस्म की बिजाई पछेती होती है। पछेती बिजाई के बावजूद भी इस किस्म से 343 किस्म के बराबर का उत्पादन होता है। जिले में गेहूं की पछेती बिजाई का कारण कपास की फसल का सीजन लम्बा चलना रहा है। कपास की फसल का सीजन लम्बा चलने के कारण गेहूं की बिजाई भी लेट हो पाती है। इसलिए किसान 343 की बजाए एच.डी. 2851 को प्राथमिकता दे रहे हैं।

गेहूं खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों ने सख्त किए नियम

गेहूं की खरीद को लेकर खरीद एजैंसियों द्वारा नियम भी सख्त तय किए गए हैं। खरीद एजैंसियों द्वारा गेहूं की फसल में ज्यादा नमी होने पर गेहूं की खरीद में देरी की जाती है। कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई होने पर गेहूं की फसल में नमी रह जाती है। इससे खरीद एजैंसियां गेहूं खरीद में देरी करती हैं। यह भी एक कारण है कि किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से गेहूं की कटाई को प्राथमिकता दे रहे हैं। 

पशुओं के लिए चारे की कमी सबसे मुख्य कारण

जिले में हर वर्ष कम्बाइन से गेहूं की कटाई के रकबे में बढ़ौतरी होने के चलते किसानों के समक्ष पशुओं के चारे की किल्लत भी आड़े आने लगी थी। गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 की ग्रोथ कम होने के कारण इस किस्म की फसल से भूसा कम निकलता है। कम्बाइन से गेहूं की फसल कटाई के बाद भूसा कम निकलने के कारण पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में चारे की व्यवस्था नहीं हो पाती है। चारे की कमी के कारण भी किसान हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं।
 हाथ से गेहूं की फसल की कटाई करते किसान। 

कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं किसान । 

जिले में कुछ वर्षों से किसान हाथ की कटाई की बजाए कम्बाइन से गेहूं की फसल की कटाई को प्राथमिकता देने लगे थे। अब एक-दो वर्षों से जिले में गेहूं की 343 किस्म की बजाए एच.डी. 2851 किस्म की बिजाई का क्षेत्र बढ़ा है। एच.डी. 2851 की पैदावार तो 343 के बराबर ही होती है लेकिन इसकी ग्रोथ कम होती है। कम ग्रोथ होने के कारण भूसा कम होता है। इस कारण पशुओं के लिए चारे की पूरी व्यवस्था नहीं हो पाती। पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए ही किसान कम्बाइन की बजाए हाथ से कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं। 
रामप्रताप सिहाग, उपनिदेशक
कृषि विभाग, जींद

Thursday, 4 April 2013

पुलिस के सहयोग के साथ साथ आत्मरक्षा में निपुण हो महिलाएं: राणा



जींद। पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने कहा कि जिला पुलिस द्वारा महिलाओं को उत्पीडऩ व अन्य समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जल्द ही जिला के सभी शिक्षण संस्थानों में लैटर बॉक्स लगवाए जाएंगे। इन बॉक्सों में कोई भी महिला अपनी समस्या को लिख कर डाल सकती है। इन बॉक्सों के माध्यम से प्राप्त होने वाली समस्याओं पर पुलिस विभाग द्वारा शीघ्र कार्यवाही की जाएगी। विभाग द्वारा यह बॉक्स प्रत्येक सप्ताह खोलकर समस्याओं को निपटाया जाएगा। उन्होंने छात्राओं का आह्वान करते हुए कहा कि वे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकती है। राणा वीरवार को महिला आत्मरक्षा जागरूकता रैली के जींद रंगशाला में पहुंचने पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। महिला आत्मरक्षा जागरूकता रैली चंडीगढ से प्रारंभ हुई थी और वीरवार को जींद पहुंची थी। जींद पहुंची इस रैली की अगुवाई इंडिया मीडिया सेंटर के बैनर तले राष्ट्रीय सचिव व पानीपत पुलिस प्रवक्ता नरेन्द्र सिंह ने की। पुलिस अधीक्षक बलवान राणा ने कहा कि  जिला में पुलिस विभाग द्वारा ऐक ऐसा तंत्र विकसित किया जा रहा है। जिसके माध्यम से जिला के किसी भी कोने में होने वाली आपराधिक घटनाओं पर समय रहते अंकुश लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि इस कार्य में सकारात्मक सोच के व्यक्तियों को आगे आकर पुलिस विभाग का सहयोग करना होगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा व जागरूकता के लिए पुलिस द्वारा तरह-तरह के अभियान व हैल्प लाइनस शुरू की हुई हैं ताकि महिलाओं को किसी प्रकार की सुरक्षा में परेशानी न हो। महिला आत्मरक्षा से भी अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह से सक्षम होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिला को अपने ऊपर होने वाले उत्पीडऩ के प्रति शिकायत देनी चाहिए ताकि अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाही की जा सके। अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद मलहान ने कहा कि महिलाओं को अपने हक अधिकारों के प्रति जागरूक व उत्पीडऩ के प्रति आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर कोई भी 
 
महिला स्वावलम्बी बन सकती है। उन्होंने इन्डियन मीडिया सैंटर हरियाणा के सौजन्य से आयोजित इस जागरूकता रैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि निश्चित तौर पर यह रैली महिलाओं में आत्म विश्वास की बढ़ौतरी करेगी। सचिव नरेन्द्र सिंह ने भी छात्राओं को आत्म सुरक्षा से जागरूक और निर्भर होने व रहने के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर रेडक्रास सचिव रणदीप सिंह श्योकन्द, डीएसपी अमरीक सिंह, महिला संरक्षण अधिकारी कृष्णा चौधरी, सिटी एसएचओ दीपक कुमार, रोहताश पांचाल, दिलबाग सिंह अहलावत सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे।


एसएफआई ने फूंका ममता बैनर्जी का पुतला


 एएसएफआई राज्य कमेटी सदस्य की हत्या पर जताया रोष
ममता बैनर्जी से की इस्तीफा देने की मांग 
जींद। स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के आह्वान पर पश्चिम बंगाल में हुई एसएफआई राज्य कमेटी सदस्य सुधिप्तो गुप्ता की हत्या के विरोध में वीरवार को कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया और राजकीय महाविद्यालय के सामने जींद-गोहाना मार्ग पर ममता बैनर्जी का पुतला फूंका। एसएफआई कार्यकर्ताओं ने मांग की कि सुधिप्तो गुप्ता के हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अपने पद से इस्तीफा दें। प्रदर्शन से पूर्व कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एसएफआई जिला प्रधान विनोद धड़ौली ने कहा कि कलकत्ता में एसएफआई के आह्वान पर कार्यकर्ता शांतिपूर्ण ढंग से अपने जनतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन सरकार के इशारे पर पुलिस ने प्रदर्शनकारी छात्रों पर लाठी चार्ज कर दिया और एसएफआई नेता सुधिप्तो गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया। बाद में पुलिस ने उसकी पिटाई की और उसे चलती गाड़ी से बाहर फैंक दिया। जिससे उसकी मौत हो गई। उन्होंने कहा कि ममता बैनर्जी सरकार छात्रों की आजादी को दबाने के लिए ऐसे हथकंडे अपना कर तानाशाही प्रवृति का परिचय दे रही हैं। जिसे छात्र कभी सहन नहीं करेंगे। भारत की जनवादी नौजवान सभा के जिला प्रधान असीम ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार छात्र संघ चुनाव के जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला बंद करे व दोषियों के खिलाफ कार्रवाइ की जाए। उन्होंने मांग की कि सुधिप्तो गुप्ता की पिटाई करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाए और ममता बैनर्जी अपने पद से इस्तीफा दें। बाद में छात्र प्रदर्शन करते हुए राजकीय महाविद्यालय के सामने जींद-गोहाना मार्ग पर पहुंचे और ममता बैनर्जी का पुतला फूंका। इस मौके पर अशोक अहिरका, विक्रम, नीरज, प्रवीण, अशोक डाहौला, अशोक ने विचार व्यक्त किए। 

खुद को पर्यावरण के लिए महिला वकील ने कर दिया समर्पित

अब तक लगवा चुकी 177 त्रिवेणी जींद। महिला एडवोकेट संतोष यादव ने खुद को पर्यावरण की हिफाजत के लिए समर्पित कर दिया है। वह जींद समेत अब तक...