Friday, 19 April 2013

गेहूं की फसल पर भी आए कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक प्रयोग


ईंटल कलां गांव के किसान ने गेहूं की फसल पर किया प्रयोग
नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं का लिया अच्छा उत्पादन


जींद। निडाना गांव के गौरे से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति के सकारात्मक परिणाम जिले के किसानों के सामने आने लगे हैं। हालांकि निडाना सहित लगभग दर्जनभर गांवों के किसान कपास व धान की फसल पर तो अपने कीट ज्ञान का सफल प्रयोग कर चुके हैं लेकिन इस बार इस मुहिम से जुड़े किसान द्वारा गेहूं की फसल पर किए गए प्रयोग से भी काफी सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए हैं। कीटनाशक रहित खेती की मुहिम से जुड़े ईंटल कलां गांव के किसान कृष्ण कुमार ने गेहूं की फसल में नामात्र रासायनिक उर्वकों का प्रयोग कर गेहूं की फसल से अन्य किसानों से ज्यादा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार द्वारा तैयार की गई गेहूं की खास बात यह है कि इस गेहूं का वजन दूसरे किसानों द्वारा तैयार की गई गेहूं से ज्यादा है।
लोगों की थाली को जहरमुक्त करने के लिए कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत वर्ष 2007 में जिले के गांव रुपगढ़ से शुरू हुई थी। कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2008 में गांव निडाना के किसानों इस मुहिम को अपना कर रफ्तार देने का काम किया था। इसके बाद निडाना गांव के साथ-साथ आस-पास के लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा गांवों में इस क्रांति ने दस्तक दी। इसी के साथ गांव ईंटल कलां से भी कुछ किसान इस मुहिम में शामिल हुए। गांव ईंटल कलां के किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि पहले वह भी अन्य किसानों की तरह खेती-बाड़ी का काम करता था और अच्छे उत्पादन की चाह में फसल में अंधाधुंध उर्वकों व कीटनाशकों का इस्तेमाल करता था। फसल में अधिक उर्वकों के इस्तेमाल के कारण फसल उत्पादन पर उसका खर्च तो बढ़ता चला गया लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ा। इससे उसके सामने आर्थिक संकट खड़ा होने लगा। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि वह वर्ष 2012 में कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ा और कपास के सीजन के दौरान निडाना गांव में लगने वाली किसान पाठशालाओं से कीट ज्ञान हासिल किया। कीटों की पहचान के साथ-साथ उसने फसल में उर्वकों तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम कर दिया। इससे उसकी काफी परेशानियां तो स्वयं ही खत्म हो गई। कृष्ण कुमार ने बताया कि इस बार उसने 4 एकड़ जमीन में 1711 तथा 17 नंबर गेहूं के बीज का मिश्रण कर बिजाई की थी। इसमें से अढ़ाई एकड़ जमीन से कृष्ण ने गेहूं की कटाई कर ली है, जबकि डेढ़ एकड़ से अभी गेहूं की कटाई बाकी है। किसान कृष्ण कुमार का कहना है कि जहां कपास की फसल में उसने नामात्र उर्वकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया था, वहीं अब गेहूं की फसल में भी नामात्र उर्वकों का इस्तेमाल कर अन्य किसानों से अच्छा उत्पादन लिया है। किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि उसे प्रति एकड़ से 50 मण गेहूं का उत्पादन हुआ। जबकि गांव के अन्य किसान को प्रति एकड़ से 40 से 45 मण का उत्पादन मिला है। अन्य किसानों के गेहूं के मुकाबले उसके गेहूं में वजन ज्यादा है। उसके गेहूं की खास बात यह है कि उसकी गेहूं की फसल में उर्वकों का प्रयोग नामात्र होने तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने के कारण उसकी गेहूं काफी हद तक जहर मुक्त है।

इस तरह बढ़ाया उत्पादन

ईंटल कलां निवासी कृष्ण कुमार ने इस बार अपनी गेहूं की फसल की बिजाई के बाद केवल 68 किलोग्राम यूरिया, 8 किलोग्राम डी.ए.पी. तथा 2 किलोग्राम जिंक  डाली है। इसके लिए कृष्ण ने डी.ए.पी., यूरिया तथा जिंक का घोल तैयार कर हर 15 दिन के अंतर में कुल 4 बार फसल पर स्प्रे पम्प से इस घोल का छिड़काव किया है। एक बार के घोल में कृष्ण ने 100 लीटर पानी में 2 किलो यूरिया, 2 किलो डी.ए.पी. तथा आधा किलो जिंक प्रयोग की है। इसके अलावा 20-20 किलो यूरिया 3 बार सीधे फसल में डाला है। जबकि पहले यह किसान अपनी एक एकड़ फसल में 150 से 200 किलो यूरिया का इस्तेमाल करता था और इसके अलावा काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग भी करता था।
 ए.डी.ओ. कमल सैनी के साथ मौजूद किसान कृष्ण कुमार अपना अनुभव सांझा करते हुए।  

पकाई के दौरान फसल को नाइट्रोजन की होती है अधिक जरुरत 

पिछले वर्ष की बजाए इस वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। क्योंकि पिछले वर्ष ठंड का मौसम लंबा चला था लेकिन इस वर्ष तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव हुआ है। इस कारण गेहूं की फसल को पकने के लिए पूरा समय नहीं मिल पाया। ईंटल कलां के किसान कृष्ण ने यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर जो छिड़काव किया है। उससे उसका उत्पादन बढ़ा है। क्योंकि गेहूं की फसल को पकते वक्त सबसे ज्यादा नाइट्रोजन व फासफोर्स की जरुरत होती है। नाइट्रोजन से फसल में अमीनो एसिड बनता है और अमीनो एसिड प्रोटीन बनाने में सहायक होता है। अगर फसल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होगी तो फसल का वजन बढ़ेगा। गेहूं की फसल को पकाई के दौरान नाइट्रोजन की अधिक जरुरत होती है लेकिन आखिरी स्टेज मेंपौधो जमीन से अधिक नाइट्रोजन नहीं ले पाता। इसलिए इस स्टेज में जमीन में खाद डालने की बजाए अगर यूरिया, डी.ए.पी. व जिंक का घोल तैयार कर फसल पर छिड़काव करें तो इससे पौधे के पत्ते को सीधे नाइट्रोजन मिल जाएगा और उसे जमीन से नाइट्रोजन लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इससे दाने में वजन बनेगा और ज्यादा उत्पादन होगा।
डा. कमल सैनी, ए.डी.ओ.
कृषि विभाग, रामराय

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