चौधरियों के फैसले तथा मेहमान नवाजी की कायल हुई डेर
जर्मन पत्रिका सानडरा स्कूलज में छपेगें चौधरी
जर्मन के लोग जानेगें भारत की खाप पंचायतों को
करीब तीन घंटे तक चौधरियों की बातों को दुभाषिय की मदद से सुना
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जींद। उत्तर भारतीय सामाजिक ताने बाने को बनाए रखने तथा सामाजिक समरसता में खाप पंचायतों की कार्यशैली से अब जर्मन के लोग भी रूबरू होंगे। विविध भाषा, धर्म, संस्कृति वाले देश में आखिरकार रीति रिवाज, पंरपराएं, मान्यताएं, प्रथा किस प्रकार से सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखते हैं। उसी खाप पंचायत की कार्रवाई को फिल्माने तथा रिपोर्टिंग के लिए जर्मन की पत्रिका सनडरा स्कूलज् की रिपोर्टर डेर स्पाइजल अपनी टीम के साथ गांव खरकरामजी पहुंची। बराह बाहरा तपा की महापंचायत की कार्रवाई शुरू होने से पूर्व जर्मनी रिपोर्टर डेर स्पाइजल ने दुभाषिय के माध्यम से ग्रामीण आंचल की महिलाओं से बातचीत की। उन्होंने गांव खरकरामजी की महिलाओं से महिलाओं पर बढ़ रहे अपराधों जिसमें दुराचार, यौन शोषण व घरेलू हिंसा के बारे में विचार सांझा किए। डेर स्पाइजल के सवालों का जवाब घुंघट की ओट में महिलाओं ने भी बखूबी दिया। गांव खरकरामजी से बराह बाहरा द्वारा नशे पर लगाम कसने के लिए बुलाई गई महापंचायत को करीब से देखने तथा ग्रामीण आंचल के लोगों से रूबरू होने के लिए जर्मन रिपोर्टर डेर स्पाइजल रविवार अल सुबह गांव खरकरामजी पहुंच गई थी। डेर ने कहा कि उन्होंने उत्तर भारत की खाप पंचायतों के बारे में सुना और पढ़ा था, लेकिन खाप पंचायतों की कार्रवाई को नहीं देखा था। सामूहिक रूप से समाज हित तथा मानव कल्याण के लिए सौहार्दपूर्ण माहौल में निर्णय लेना, पंचायत में हर व्यक्ति की सुनना। फिर सभी की सहमती से फैसला लेकर उसे मौखिक तौर पर लागू करना। फिर उसी फैसले का ग्रामीणों द्वारा सम्मान किया जाना आश्चर्यजनक ही नहीं, बल्कि अविश्वनीय भी है। मगर महापंचायत की एक मत फैसला और सभी को मान्य होना वाक्य ही भारतीय परंपरा महान है। स्मैक जैसे गोरखधंधे पर तपा के चौधरियों ने लगभग तीन घंटे तक गहन विचार विर्मश किया। जर्मन रिपोर्टर डेर तपा पंचायत को केवल सुन रही थी। लेकिन भाषण बाजी के दौरान खाप चौधरियों के बदल रहे तेवरों पर जरूर थोड़ा बहुत अंदाजा लगा पा रही थी। डेर की सहायता के लिए आया दुभाषिय हर खाप चौधरी, हर हलचल की जानकारी डेर को दे रहा था। महापंचायत के बीच में जब चौधरियों को चाय परोसी तो डेर ने भी उनके साथ चाय की चुस्की ली। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर ग्रामीणों ने प्रसाद के तौर पर उन्हें लड्डू दिए। ग्रामीणों द्वारा की गई मेहमान नवाजी से डेर ग्रामीण आंचल की कायल दिखाई दी। डेर ने हरिभूमि से विशेष बातचीत में बताया कि उनकी इच्छा उत्तर भारतीय तानेबाने और खापों की भूमिका के बारे में जानने की थी। जर्मनी से स्पेशल रिपोर्टिंग करने के लिए दिल्ली पहुंची, फिर उन्होंने महापंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा से संपर्क किया। वास्तव में उत्तर भारतीय समाज अनूठा है। रीति रिवाज, परंपराएं, प्रथा, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में कितना योगदान देती है यह पंचायत के फैसले से पता चला।
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