लोगों को भी समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी और महिलाओं के प्रति अपने नजरिए में लाना होगा बदलाव
जींद। आज देश में बढ़ रही रेप तथा गैंगरेप की घटनओं के कारण विश्व में देश का सिर शर्म से झुक गया है। दिल्ली गैंगरेप की घटना ने तो महिलाओं की अंतरआत्मा को बुरी तरह से जख्मी कर सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। चारों तरफ घटना की पूर जोर ङ्क्षनदा हो रही है। देश का हर नागरिक इस घटना से आहत है। देश की राजधानी में घटीत इस घिनौने कांड के बाद जनता में आक्रोष की लहर दौड़ गई है। इस घटना के लिए देश का हर नागरिक सरकार को कोस रहा है। विपक्षी दलों ने भी बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों की आंच पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम किया है। दूसरों को जगाने वाली दामिनी जिंदगी की जंग हार कर खुद हमेशा के लिए सो गई है। आज देश का हर व्यक्ति दामिनी को मौत की नींद सुलाने वालों के लिए फांसी की सजा तथा रेप की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून की मांग कर रहा है लेकिन जरा सोचिए क्या बलात्कारियों को फांसी देने या बलात्कारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने मात्र से ही देश में बलात्कार की घटनाएं रूक जाएंगी? शायद नहीं। किसी को मौत का डर दिखाने से इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगापाना संभव नहीं है। क्योंकि मौत किसी समस्या का समाधान नहीं है। मृत्युदंड देकर हम पापी को मार सकते हैं पाप को नहीं। इस बुराई को अगर जड़ से उखाडऩा है तो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और इस बुराई को जड़ से कुरेदने के लिए इस मसले पर गंभीरता से विचार करना होगा लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी कहां समझ रहे हैं। क्योंकि किसी ने भी इस बुराई को जड़ से खत्म करने पर विचार-विमर्श करने की बजाए दोषियों को फांसी देने और कठोर कानून की ही मांग की है या फिर विरोध प्रदर्शन कर या कैंडल मार्च निकाल कर अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर ली है। केवल सड़कों पर केंडल मार्च निकालना, प्रदर्शन करना या सरकार को इन सब के लिए दोषी ठहराना हमारी जिम्मेदारी नहीं है। इस तरह की घटनाओं के लिए सरकार और हम बराबर के दोषी हैं, क्योंकि हम खुद ही इस तरह के अपराधों को बढ़ावा देने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और इसमें सरकार हमारा सहयोग कर रही है। आज टी.वी. चैनलों तथा अन्य प्रचार-प्रसार के माध्यम से खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है और हम सब मिलकर बड़े मजे से इसका आनंद ले रहे हैं। सरकार भी इस तरह के कार्यक्रमों को रोकने में किसी तरह की सख्ती नहीं दिखा रही है। आज हमारी संस्कृति और मनोरंजन के साधन पूरी तरह से अश्लीलता की भेंट चढ़ चुके हैं। हमारे प्रचार-प्रसार के साधनों के माध्यम से हमारी प्रजनन क्रियाओं के अंगों को हमारे सामने मनोरंजन के साधन के रूप में पेश किया जा रहा है। इससे युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर प्रजनन क्रियाओं के अंगों को मनोरंजन का साधन समझकर इस तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित हो रही है। इसलिए कहीं ना कहीं हमारे मनोरंजन के साधन भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
किसी को फांसी देना या कठोर कानून किसी समस्या का समाधान नहीं है। जरा सोचिए क्या 302 के अपराधी यानि किसी की हत्या करने वाले व्यक्ति को कानून में फांसी देने का प्रावधान नहीं है। जब हत्यारे को कानून में फांसी देने का प्रावधान है और इस कानून के तहत मुजरिमों को फांसी की सजा दी भी जा चुकी है तो क्या देश में हत्या होनी बंद हो गई हैं, नहीं। तो फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि बलात्कारियों को फांसी देने से देश में बलात्कार रूक जाएंगे। मैं बलात्कारियों को फांसी नहीं देने या इस तरह के अपराधियों के लिए कठोर कानून नहीं बनाने का पक्षधर नहीं हूं लेकिन यह भी तो सच है कि केवल फांसी देने या कठोर कानून से इस तरह की घटनाओं को रोक पाना संभव नहीं है। मैं तो अगर पक्षधर हूं तो केवल इस बात का कि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए इन घटनाओं की तह तक जाने की जरूरत है। क्योंकि हमारी कानून प्रणाली काफी लचिली है और कठोर कानून बनाने के बाद जहां उसका सद्उपयोग होगा, उससे कहीं ज्यादा उसका दुरुपयोग भी होगा। जैसा की दहेज उन्मूलन कानून में हो रहा है।
हमारे लिए कितने दुख की बात है कि भारत जैसे देश में हर 18 मिनट में एक बलात्कार की घटना घट रही है। इसका मुख्य कारण अश्लीलता की भेंट चढ़ रहे हमारे मनोरंजन के साधन हैं। आज हमारे पास मनोरंज के अच्छे साधन होने के बावजूद भी हमारे पास मनोरंजन की अच्छी सामग्री नहीं है। बढ़ रही अश्लीलता तथा दूषित हो रहे हमारे खान-पान से हमारी मानसिक प्रवृति में काफी परिर्वतन हो चुका है। नैतिक मूल्य में काफी गिरावट हुई है। हम अपने प्रजनन के अंगों को मनोरंजन के रूप में देखने लगे हैं। हमारा रहन-सहन काफी बदल गया है, हमारा पहनावा काफी उतेजक हो चुका है। हमारी शिक्षा प्रणाली सही नहीं है, जिससे किशोर अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के दौरान किशोरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता और वे अपने पथ से भटक जाते हैं।
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