Tuesday, 2 October 2012

बिना कीट ज्ञान के कीटनाशकों से छुटकारा संभव नहीं


खाप पंचायत की 15वीं बैठक में हुई किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए

जींद।  गीता के चौथे अध्याय में श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा है कि हे पार्थ ज्ञान रूपी हवन सामग्री रूप यज्ञ से बेहतर होता है। इस ज्ञान रूपी गंगा में गोता मारने से सारे पाप कट जाते हैं। इसलिए कहीं भी तत्ववेता मिल जाए तो उसके पैरों में पड़कर भी हमें ज्ञान लेना चाहिए। यह बात किसान खेत पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने निडाना गांव में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए आयोजित 15वीं खाप पंचायत की बैठक में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। डा. दलाल ने कहा कि  इसी प्रकार किसानों को भी अपना खुद का ज्ञान पैदा करने के लिए कीट ज्ञान का सहारा लेना चाहिए। बिना कीट ज्ञान के कीटनाशकों से छुटकारा पाना संभव नहीं है। बैठक की अध्यक्षता सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में पाबड़ा (हिसार) से कुंडू खाप के प्रधान मुंशीराम कुंडू भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
बैठक की शुरूआत के साथ ही किसानों ने फसल में कीट सर्वेक्षण कर कीट बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक ने कहा कि यहां के किसानों ने अभी तक कपास की फसल में 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों के आधार पर रसचूसक, पुष्पाहारी, पर्णभक्षी व फलाहारी चार किस्मों में बांटा है। कपास की फसल में 20 किस्म के रस चूसक कीट होते हैं, जिसमें तीन किस्म के कीटों को मेजर, पांच प्रकार के कीटों को सूबेदार मेजर व बाकि के कीटों को आलगोल की केटैगरी में रखा है। मलिक ने बताया कि पंजाब में मिलीबग को मेजर, हरियाणा में सूबेदार मेजर व निडाना के किसान आलगोल मानते हैं। 
 कीटों का बही खाता तैयार करते किसान।
क्योंकि पंजाब के लोग कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग करते हैं। मलिक ने बताया कि जब कीटों पर कीटनाशक का हमला होता है तो कीट अपना जीवनचक्र कम कर अपनी बच्चे पैदा करने की ताकत बढ़ा लेते हैं। जिससे वह कम जीवनकाल में ही अधिक बच्चे पैदाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। करसोला से आए किसान सुरेंद्र ने बताया कि जब से उसने होस संभाला है तभी से खेतीबाड़ी से जुड़ा हुआ है। लेकिन फसल में आने वाले कीटों की पहचान न होने के कारण वह सलेटी भूंड को सफेद मक्खी समझकर फसल पर अंधाधुंध कीटनाशकों का छिड़काव करता था, लेकिन पाठशाला में आने के बाद उसने कीटों की पहचान शुरू कर दी है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि शाकाहारी कीट फसल में जितना नुकसान करते हैं उससे ज्यादा नुकसान तो किसानों के साथ मंडी में घटतोली में हो जाता है। डा. दलाल ने बताया कि प्रयोगरत खेत में प्रत्येक फावे का वजन 6 ग्राम तक आ रहा है, जिससे फसल की बंपर पैदावार होने का अनुमान बना हुआ है। उन्होंने कहा कि कीटनाशक के प्रयोग से नुकसान की केवल सात प्रतिशत ही भरपाई की जा सकती है। राजपुरा गांव के किसान बलवान सिंह ने बताया कि फसल में कीटनाशक के प्रयोग से पौधे की सुगंध छोडऩे की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे भ्रमित होकर एक साथ कई किस्म के कीट फसल में आ जाते हैं। पाठशाला के समापन पर खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। 

बिना कीट खेती संभव नहीं 

खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दुनिया में एक सीजन में 25 लाख टन कीटनाशकों का प्रयोग होता है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से आज कैंसर जैसी लाईंलाज बीमारियां पनप रही हैं। ढांडा ने कहा कि अमेरिका के एक वैज्ञानिक के अनुसार कीटनाशक का केवल एक प्रतिशत भाग ही कीटों पर प्रयोग में आता है, बाकि 99 प्रतिशत बेकार जाता है। ढांडा ने कहा कि बिना कीटनाशक के खेती संभव है, लेकिन बिना कीटों के खेती संभव नहीं है। 




 कुंडू खाप के प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।

 किसानों को कीटों की पहचान करवाते पाठशाला के मास्टर ट्रेनर।

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