Saturday, 20 October 2012

नागक्षेत्र तीर्थ पर उमड़ी रही श्रद्धालुओं की भीड़


सफीदोंधर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आने वाले जींद क्षेत्र का अपना ही इतिहास है। इस धरा की महत्ता को जानकर भगवान इंद्र ने अपने पुत्र जयंत के नाम से इस नगर को बसाया था। जींद को हरियाणा की काशी के नाम से भी जाना जाता है। जिले के अधिकतर क्षेत्रों से प्राचीन काल से वृतांत और कहानियां जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक क्षेत्र है नागक्षेत्र। सफीदों में स्थित इस क्षेत्र पर काफी मान्यता है। नवरात्र के दिनों में यहां सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। राजा परीक्षित एक दिन उदास थे। उन्होंने अपनी उदासी को दूर करने के लिए वह शिकार करने के लिए जंगलों में गए। परीक्षित को वहां एक स्थान पर शभीक ऋषि तपस्या करते मिले। शभीक मुनि राजा परीक्षित को महत्व न देकर अपनी तपस्या के लीन रहे। राजा परीक्षित ने इसे अपना अपमान समझा तथा वहीं पर पड़े हुए एक मृत सांप को उठाकर तपस्या कर रहे शभीक मुनि के गले में डाल दिया। परीक्षित के इस कार्य पर मुनि पुत्र ने क्रोधित होकर राजा परीक्षित का श्राप दिया कि आज से सातवें दिन यही मरा हुआ सांप जीवित होकर राजा को डंसेगा। परीक्षित ने मुनि पुत्र के श्राप से बचने के लिए भरकम प्रयास व उपाय किए, लेकिन राजा परीक्षित की मौत बताई गई समयावधि में ही हो गई थी। उसके बाद राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा ली। जन्मेजय ने अपनी प्रतिज्ञा में कहा कि वह पृथ्वी से समस्त सर्प जाति का विनाश कर देगा। जन्मेजय ने बदला लेने के लिए सफीदों के इसी क्षेत्र में सर्प विनाश की खातिर सर्प दमन यज्ञ का आयोजन किया, जहां आज नागक्षेत्र है। इससे मंत्रोच्चारण के प्रभाव से पृथ्वी के समस्त सर्प वहां आकर गिरने लगे व धू-धू करके जलने लगे। अंत में एक तक्षक नाग ही शेष बचा, जिसे बाद में राजा इंद्र द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान शिव के आशीर्वाद से ही बचाया जा सका। इसके बाद से इस क्षेत्र की काफी मान्यता है और हजारों श्रद्धालु यहां पूजा के लिए आते है।उत्तरी छोर पर एक अन्य तीर्थ स्थितनागक्षेत्र के उत्तरी छोर पर एक अन्य तीर्थ भी स्थित है। हंसराज नामक इस तीर्थ के संबंध में कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान गरवरिक योद्धा का भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सिर काटने के बाद यहां टीले पर यह सिर स्थापित किया गया और इच्छा वरदान के अनुसार उसने सारा महाभारत का युद्ध यहां से देखा। युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को उसने बताया कि उसने युद्ध में भगवान का सुदर्शन चक्र और द्रोपदी का खपर ही क्रियान्वित होते देखा है।

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