मार्कीटिंग की व्यवस्था न होने के कारण किसानों को नहीं मिल रहे हैं उत्पादों के अच्छे भाव
जींद। सरकार द्वारा किसानों को परम्परागत खेती से हटाकर आधुनिक खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए बागवानी विभाग के माध्यम से अनुदान पर पॉली हाऊस लगाने के लिए शुरू की गई योजना को मार्कीट के अभाव के कारण करारा झटका लग रहा है। बागवानी विभाग ने पॉली हाऊस में बेमौसमी सब्जियां उगाकर अच्छी आमदनी लेने के लिए किसानों को ऊंचे सपने तो दिखा दिए लेकिन विभाग द्वारा सब्जियों की बिक्री के लिए उचित व्यवस्था नहीं करने के कारण किसानों के इन सपनों पर कुछ ही समय में ग्रहण लग गया है। बागवानी विभाग द्वारा किसानों के लाखों रुपए खर्च करवाकर पॉली हाऊस तो खड़े करवा दिए लेकिन लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी यह पॉली हाऊस किसानों के लिए मददगार साबित नहीं हो पा रहे हैं। विभाग द्वारा सब्जियों की मार्कीटिंग की उचित व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण किसानों को महंगे भाव की सब्जियां मजबूरन कौडिय़ों के भाव बेचनी पड़ रही हैं। किसानों द्वारा विभाग के अधिकारियों के पास अलग से मार्कीटिंग की व्यवस्था की बार-बार गुहार लगाने के बावजूद भी अधिकारी इस ओर से अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। इस प्रकार अधिकारियों की बेरूखी के कारण अब पॉली हाऊस भी किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहे हैं।
सब्जियों के नहीं मिल रहे हैं अच्छे भाव
अलेवा के किसान जोगेंद्र ने बताया कि घरौंडा स्थित उत्कृष्ट केंद्र के अधिकारियों की मानकर उसने अपने पॉली हाऊस में अंजलि यैलो व आदित्यी रैल किस्म की शिमला मिर्च की फसल तैयार की थी। उत्कृष्ट केंद्र के अधिकारियों ने इस फसल के लिए उसे प्रेरित किया था और उसे बताया गया था कि यह बेमौसमी फसल है और फसल तैयार होने के बाद मार्कीट में किसानों को इसके 135 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भाव मिलेंगे। लेकिन उनकी इस फसल के साथ ही हिमाचल से भी शिमला मिर्चों की सप्लाई शुरू हो चुकी है। इस कारण उनकी उन्हें उनकी फसल के अच्छे भाव नहीं मिल पा रहे हैं। 135 रुपए प्रति किलो की उनकी यह सब्जी अब मार्कीट में 8 रुपए किलो के भाव बिक रही है। इसके अलावा पॉली हाऊस में तैयार किया गया टमाटर भी सिर्फ 208 रुपए प्रति करेट बिक रहा है। जोगेंद्र ने बताया कि इस फसल पर उसके लगभग 12 हजार रुपए खर्च हुए हैं लेकिन अभी तक इससे उसे सिर्फ 4 हजार रुपए की आमदनी ही हुई। जबकि बिना कीटनाशक व न्यूनतम उर्वकों के प्रयोग के बावजूद भी उसकी एक एकड़ की कपास की फसल 70 हजार व धान की पी.आर. की फसल से 35 हजार की आमदनी हुई है।
पॉली हाऊस में सब्जियां दिखाते किसान। |
मार्कीटिंग की नहीं है कोई व्यवस्था
पॉली हाऊस से जुड़े किसानों की मानें तो बागवानी विभाग द्वारा जिले में कहीं भी पॉली हाऊस में तैयार सब्जियों की बिक्री के लिए स्पेशल मंडी की व्यवस्था नहीं है। इसलिए उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे जिलों का रूख करना पड़ रहा है। इससे उन पर ट्रांसपोर्ट का अतिरिक्त खर्च तो पड़ता ही है लेकिन वहां भी उन्हें फसलों के अच्छे भाव नहीं मिल पा रहे हैं। किसानों का कहना है कि सब्जियों के अच्छे भाव नहीं मिलने के कारण पॉली हाऊस में फसल तैयार करने पर उन्होंने जो खर्च किया है उनका वह खर्च भी पूरा नहीं हो पा रहा है।
बैट्री चालित मोबाइल वैन भी हुई ठप्प
किसानों को पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों को शहर में बेचने के लिए सरकार द्वारा जिले में ट्रायल पर एक बैट्री से चलने वाली ए.सी. मोबाइल वैन चलाई गई थी। ताकि किसान शहरों में जाकर अच्छे रेटों पर अपने उत्पाद बेच सकें। इस वैन की कीमत लगभग एक लाख 40 हजार रुपए थी। लेकिन इस मोबाइल वैन को शुरू हुए अभी ठीक से एक माह भी नहीं हुआ था कि ट्रायल पर चलने वाली यह वैन भी जवाब दे गई। लाखों रुपए कीमत की यह वैन अब कंडम हालात में खड़ी है।
कंडम अवस्था में खड़ी बैट्री चालित ए.सी. मोबाइल वैन।
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किसान खुद तैयार करें अपनी मार्कीट
प्रगतिशील किसान राजबीर कटारिया ने कहा कि मार्कीटिंग की कमी के कारण किसानों को पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों के अच्छे भाव नहीं मिल पाते हैं। कटारिया ने कहा कि किसानों को अगर पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों के अच्छे भाव लेने हैं तो उन्हें इसके लिए खुद ही मार्कीटिंग की व्यवस्था करनी पड़ेगी। बिना मार्कीट के फसलों के अच्छे भाव मिलने संभव नहीं है। कटारिया ने कहा कि किसानों को अपने उत्पादों को खुद बेचने में किसी प्रकार की शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए।
560 एस.क्यू. मीटर में शिमला मिर्च की फसल पर हुए खर्च का विवरण
मद का नाम खर्च का विवरण
शिमला मिर्च की पौध 3200 रुपए
पौध लाने व लेबर खर्च 1700 रुपए
सुतली व लेबर खर्च 3700 रुपए
खाद 900 रुपए
कङ्क्षटग 400 रुपए
स्प्रे 450 रुपए
कीटनाशक व फफुंदनाशक 900 रुपए
पालीथिन 400 रुपए
कुल खर्च 11,650 रुपए
नोट इसके अलावा सब्जियों की बिक्री के लिए ट्रांसपोर्ट खर्च अलग है।
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