फिल्म के विरोध को बताया अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला
पद्मावती के रिलीज होने का जींद में बेसब्री से इंतजार
जींद : संजय लीला भंसाली की बेहद चर्चित और अब पूरे देश में विवाद का विषय बन चुकी फिल्म पद्मावती की जींद में छात्र-छात्राओं को रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार है। इस ऐतिहासिक फिल्म का विरोध करने वालों के विरोध में जींद के छात्र-छात्राएं आवाज बुलंद कर रहे हैं। उनका साफ कहना है कि फिल्म को देखे बिना महज एक सीन के आधार पर फिल्म का विरोध अभिव्यक्ति की आजादी पर बहुत बड़ा हमला है।
जींद के राजकीय महिला कालेज की छात्राओं से लेकर प्राध्यापिकाओं और राजकीय पीजी कालेज के छात्रों तक सब इस बात के पक्ष में हैं कि पहले फिल्म को देखा जाए। उसमें कुछ गलत नजर आए, तब उसका विरोध किया जाए। फिल्म को देखे बिना उसका इतने बड़े स्तर पर विरोध करना समझ से बाहर है। इस मुद्दे पर जितने विद्यार्थियों से बात की गई, उनमें से सभी ने एक सुर में कहा कि अभी तक जो बात गर्भ में है, उसका इस तरह से विरोध करना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। इस तरह के हमले भारतीय संस्कृति पर भी हमले हैं और यह समझ से बाहर है। छात्र-छात्राओं ने कहा कि उन्हें फिल्म के रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार है और फिल्म के रिलीज होते ही वह इसे देखने के लिए जरूर जाएंगे। अगर फिल्म में कहीं भी इतिहास के साथ छेड़छाड़ मिली और रानी पद्मावती तथा राजपूत समुदाय के मान-सम्मान को यह फिल्म ठेस लगाती मिली, तब वह एकजुट होकर फिल्म का पुरजोर विरोध करेंगे।
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फिल्म देखने से पहले इतना विरोध कतई तर्क संगत नहीं : अमृत कौर
जींद के राजकीय महिला कालेज की बीएससी मैडीकल अंतिम वर्ष की छात्रा अमृत कौर पिलानिया का कहना है कि पद्मावती फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है। इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने राजपूतों का सम्मान और गौरव बढ़ाया है या उस पर चोट की है, यह गर्भ में है। फिल्म अभी राजपूत समाज और देश ने देखी नहीं है और इससे पहले ही इतने बड़े स्तर पर फिल्म का विरोध तथा संजय लीला भंसाली और फिल्म में काम करने वाले कलाकारों दीपिका पादूकोण तथा रणबीर सिंह की नाक आदि काट लेने के फरमान जारी करने से साफ है कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों और रंजिश के कारण फिल्म का विरोध कर रहे हैं। यह भारतीय संस्कृति और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। फिल्म का विरोध पूरी तरह तर्क विहीन है तथा इसे किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता। आज के पढ़े-लिखे युग में इस तरह का विरोध समझ से बाहर है। अमृत कौर ने यह भी कहा कि संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्म में राजपूतों का गौरव बढ़ाया है। एक बार राजपूत समाज फिल्म देख लेगा तो उसे भी लगेगा कि संजय लीला भंसाली ने राजपूतों का सम्मान घटाने की बजाए उसे बढ़ाने का काम किया है।
कलाकारों, निदेशक को धमकी देने वालों पर दर्ज हो केस : नंदिनी
कालेज छात्रा नंदिनी ने फिल्म पद्मावती का विरोध करने वालों और इसमें काम करने वाले कलाकारों तथा फिल्म निदेशक को धमकी देने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ केस दर्ज होने चाहिएं। फिल्म को तुरंत रिलीज करने की इजाजत दी जानी चाहिए। इस फिल्म को राजनीति के फेर में उलझाकर रख दिया गया है। नंदिनी के अनुसार फिल्म में जिस घूमर नृत्य को लेकर राजपूत समाज इतना बवाल मचा रहा है, वह हकीकत में भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी धरोहर है। भारतीय संस्कृति की धरोहर बचाने के लिए सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है और संजय लीला भंसाली ने यह खुद अपने खर्च पर किया है। इसके बावजूद संजय लीला भंसाली की गर्दन कलम करने जैसे फरमान जारी किए जा रहे हैं। यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। फिल्मकार स्वतंत्र होते हैं और उन पर इस तरह की पाबंदियां लगाना कतई उचित नहीं।
फिल्म देखने से पहले विरोध समझ से बाहर : रिचा
छात्रा रिचा के अनुसार फिल्म देखने से पहले उसका इस तरह विरोध हर किसी की समझ से बाहर है। पहले फिल्म रिलीज होनी चाहिए। फिल्म देखने के बाद इसमें कुछ गलत नजर आए तो विरोध करें। रिचा का कहना है कि फिल्म को देखे बिना इसका विरोध करने वालों पर केस दर्ज होने चाहिएं।
फिल्म तुरंत रिलीज होने का इंतजार : राधा
छात्रा राधा, मंजू के अनुसार पद्मावती के तुरंत रिलीज होने का युवा वर्ग को इंतजार है। फिल्म देखने के बाद ही इस पर कोई राय कायम होनी चाहिए। फिल्म देखे बिना उसका विरोध केवल राजनीतिक रंजिश है और यह नहीं होना चाहिए। अगर इस फिल्म में कहीं भी निदेशक संजय लीला भंसाली राजपूतों के सम्मान को ठेस पहुंचाते नजर आएं तो कोर्ट का सहारा लेना चाहिए। अभी फिल्म गर्भ में है और गर्भ में ही इसका विरोध पूरी तरह गलत है।
फिल्म देखे बिना विरोध किसी भी तरह उचित नहीं : अमित
राजकीय पीजी कालेज के छात्र अमित भारद्वाज का कहना है कि पद्मावती को देखे बिना इसका विरोध कतई उचित नहीं। इस तरह फिल्म का विरोध अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। ऐसे हमले की इजाजत किसी भी वर्ग को नहीं होनी चाहिए।
फिल्म को रोककर जन भावनाओं को पहुंचाई जा रही ठेस : प्रो. सुमिता आसरी
राजकीय महिला कालेज की प्राध्यापिका सुमिता आसरी का कहना है कि फिल्म को देखे बिना उसे इस तरह रोककर जन भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है। आज फिल्म रिलीज होती और लोग इसे देखते, तब पता चलता कि संजय लीला भंसाली ने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की है या नहीं और राजपूत समुदाय के सम्मान को बढ़ाया है या कम किया है। फिल्म देखे बिना यह धारणा बना लेना कि इसमें राजपूत समुदाय का अपमान किया गया है, सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि घूमर नृत्य भारतीय संस्कृति में शामिल है और नृत्य एक ऐसी कला है, जिसने भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। एक घूमर नृत्य के सीन पर ही इतना बवाल मचा देना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है।
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