Saturday, 9 December 2017

पराली को जलाने की बजाये पशु चारे के रूप में करें प्रयोग

पराली न जलाने वाले किसान समाज के सच्चे हितैषी : डीसी 
जींद जिला बना पराली ब्रिकी केंद्र की बहुत बड़ी मंडी
देशभर से व्यापारी पराली खरीद को लेकर आ रहे जींद

जींद 
पराली जलाना आज के समय की एक गम्भीर समस्या है। पराली जलाने से पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है साथ ही पशुओं के लिए चारे की समस्या भी बन जाती है। सरकार पराली न जलाने के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए समय- समय पर जागरूकता अभियान भी चलाती है, यहां तक की पराली जलाने पर सरकार द्वारा प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है, उसके बावजूद भी किसान पराली जलाते रहते है। अगर यह कहा जाये कि किसान पराली जलाकर अपने जीवन तथा आने वाली पीढिय़ों के लिए गम्भीर समस्या पैदा कर रहे है तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। इस बीच कुछ किसान ऐसे भी है जो पराली को न जला कर इसे इक_ा करते हैं और अपने लिए मुनाफे का सौदा बना लेते है। यह किसान अन्य किसानों के लिए किसी प्रेरणा स्त्रोत से कम नहीं है। लोगों को चाहिए कि वे पराली को न जलाकर इसका प्रयोग पशुचारे के रूप में करे और अपने आर्थिक स्तर को भी मजबूत करने का काम करें। 
पराली इक_ा कर बेचने का व्यवसाय कर रहे युवा
मनोहरपूर गांव के किसान प्रमोद रेढू, राजकुमार, जगबीर सिंह, सुरेन्द्र ऐसे किसान है जो पराली को कभी नहीं जलाते बल्कि आसपास के इलाके की पराली को ईक्कठा कर इसकी ब्रिकी करते है। प्रमोद रेढू ने बताया कि फिलहाल उसके पास 14 हजार क्विंटल पराली का स्टॉक है। हर वर्ष वह पराली इक_ी करने का काम करता है, जिससे मोटा मुनाफा कमा कर परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करता है। उन्होंने बताया कि सीजन के दौरान 5००- 6०० रुपये के हिसाब से एक एकड़ क्षेत्र की पराली मिल जाती है। उन्होंने सीधे शब्दों में बताया कि सीजन के दौरान 1०० रुपये क्विंटल के हिसाब से पराली खरीद लेते हैं और कुछ समय के बाद इस पराली को लगभग 15० रुपये क्विंटल के हिसाब से बेचा जाता है। अगर पराली को काट कर बेचा जाये तो इसकी कीमत लगभग 19० रुपये प्रति क्विंटल तक हो जाती है। 
कौन है पराली के खरीदार
किसान प्रमोद रेढू, राजकुमार, जगबीर सिंह, सुरेंद्र ने बताया कि पराली के ज्यादातर खरीददार राजस्थान के व्यापारी हैं। ये व्यापारी हर वर्ष हरियाणा से लाखों टन पराली की खरीददारी करते हैं। पराली के कोई निर्धारित रेट नहीं होते हैं। अगर राजस्थान के क्षेत्रों में सही मात्रा में बारिश हो जाती है तो वहां चारे की कोई कमी नहीं रहती है, इस स्थिति में हरियाणा प्रदेश से व्यापारी कम मात्रा में पराली खरीदते हैं जिससे पराली के रेटो में काफी कमी आ जाती है। उन्होंने बताया कि कुछ व्यापारी हरियाणा प्रदेश के महेन्द्रगढ़, झज्जर जिलों से भी यहां पराली खरीदने के लिए आते हैं, यह व्यापारी वहां के बिजली पांवर प्लाटों को ईंधन के लिए पराली सप्लाई करने का कार्य भी करते हैं। इसके अलावा गता फैक्टरियों में पराली का प्रयोग होता है कुछ व्यापारी गता फैक्टरियों से भी पराली की खरीद के लिए यहां पहुंचते है। 
जिला में यहां है पराली की बड़ी मंडियां
पराली की मांग को देखते हुए जींद जिला में अनेक बड़ी-बड़ी मंडियां विकसित हो रही हैं। नगूरां, रामराये, सफीदों क्षेत्र में कई बड़ी मंडियां उभरी रही है। दूसरे प्रदेशों से हर वर्ष हजारों की संख्या में व्यापारी इन मण्डियों में पराली खरीद के लिए आ रहे है। मंडियों में कटी तथा साबुत पराली की ब्रिकी हो रही है। 
पराली व्यवसाय बन रहा है लाभ का सौदा
जिस पराली को किसान बेकार वस्तु मान कर जला देते थे, अब वही पराली किसानों के लिए लाभ का सौदा बन रही है। प्रति एकड़ लगभग 5०० से 1००० रुपये में किसान इसकी ब्रिकी कर रहे हैं। व्यापारी भी इसे अच्छा खासा लाभ प्राप्त कर रहे है। जब से पराली ब्रिकी ने व्यवसाय का रूप लिया है, तब से पराली को जलाना भी कम हुआ है। जिसका सीधा सकारात्मक असर मानव के जीवन पर पड़ रहा है। 
नंदीशालाओं के लिए कम रेट में पराली उपलब्ध करवाने को भी तैयार
मनोहरपूर गांव के पराली स्टोकर किसान सुरेंद्र सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा गौवंश को सुरक्षित आश्रय स्थल उपलब्ध करवाने के लिए जीन्द में एक बहुत बड़ी अस्थाई नंदीशाला बनाई गई है। इस कार्य में अगर जिला प्रशासन सहयोग की अपील करता है तो वह काफी कम दरों पर पराली उपलब्ध करवा सकता है। इस तरह के परोपकार के कार्य करने वाले जिलाभर से अनेक किसान है। कुछ किसानों का कहना है कि सीजन के दौरान अगर जिला प्रशासन पराली लेना चाहे तो वे नि:शुल्क पराली उपलब्ध करवा सकते है।
कंबाइन मशीन द्वारा कटाई गई पराली है चिन्ता का विषय
किसान प्रमोद रेढू ने बताया कि  हाथ से काटी गई पराली की खरीद की जा सकती है। इसे किसानों को तो फायदा पहुंचता ही है, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण पर भी अंकुश लगता है। फिलहाल अगर कोई समस्या है तो कंबाइन मशीन द्वारा काटी गई पराली है। इस पराली को जलाने के सिवाय किसान के पास कोई दूसरा चारा नहीं होता है। उन्होंने बताया कि अगर कोई इस तरह की तकनीक इजाद कर ली जाये कि इस पराली को खेत में ही काटकर इसका चारा बना दिया जाये तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तो खत्म होगी ही साथ ही पशु चारे की कोई कमी भी नहीं रहेगी।

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