Wednesday, 13 December 2017

भगवान श्रीराम कथा मानव को भक्ति का उज्जवल पथ दिखाती : साध्वी सुमेधा


ऋषियों के दिखाए मार्ग पर चलने से मानव जीवन में होगा कल्याण

जींद 
साध्वी सुमेधा भारती ने कहा कि श्रीराम कथा की पावन पयस्विनी जन-जन को प्रेम सुध से आप्लावित करती है। यह माया व विकारों के अंंंधेरे में भटक रहे मानव को भक्ति का उज्जवल पथ दिखला कर उसके शुष्क हृदय में संवेदनाओं और भावनाओं का संचार करने में भी सक्षम है। साध्वी सुमेधा भारती दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वावधान में सैनी कन्या स्कूल में आयोजित श्रीराम कथा के प्रथम दिवस के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि ईश्वरीय महिमा से ओतप्रोत प्रभु की कथा सदैव जन-जन का कल्याण करती है और जनमानस को जनकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा भी देती है। हमारे भारतवर्ष में सदा से परकल्याण की भावना प्रधान रही है। ईश्वर के सभी अवतारों या ऋषियों-मनीषियों ने यूं तो अनेकों महान कार्य किए हैं लेकिन अगर उनके कार्यों में साम्य देखा जाए तो सभी ने स्वयं साध्नस्थ रह कर परमार्थ किया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने कंटकाकीर्ण वन पथ का चयन इस लिए किया ताकि अधर्म का समूल नाश कर सभी के जीवन में सुख व समृद्धि के पुष्प खिलाए जाएं। भूतभावन भगवान भोलेनाथ ने जन-जन के रक्षण हेतु सागर से निकले विष को कण्ठस्त कर लिया। कहीं विवेकानंद तो कहीं रामतीर्थ, कहीं वर्धमान तो कहीं राजा शिबि, कहीं दधिचि ऋषि तो कहीं भर्तृहरि इसी परकल्याण रूपी मणिका के समुज्जवल मोती हैं जिन्होंने स्वयं परहित हेतु अपने जीवन के सुखों का त्याग कर दिया और मानव के आगे एक प्रेरणा स्रोत बन गए। उन्होंने कहा कि अर्वाचीन समाज में आवश्यकता है कि मानव इन महान विभूतियों को आदर्श बना कर इनसेे शिक्षा ग्रहण करें। क्योंकि आज घोर कलिकाल के प्रभाव के कारण प्रेम, भावनाओं व संवेदनाओं से रहित मानव का हृदय शुष्क हो चुका है। आपाधपी भरे जीवन में सभी केवल अपने लिए जीते हैं लेकिन शास्त्रा कहते हैं कि मानव तो वह है जो औरों के लिए जीए। अपने दुख में तो सभी गमगीन हो ही जाते हैं लेकिन सच्चा मानव तो वह है जो दूसरों के दुख देखकर द्रवित हो उठे। जो दूसरों की भलाई के लिए अपने सुखों का त्याग कर दे। साध्वी सुमेधा ने बताया कि मानव के अंधकारमय हृदय में परकल्याण रूपी भावना का सूर्य तभी उदय हो पाएगा जब उसकी सोच विशाल होगी। क्योंकि संकीर्ण दायरों में बंध मानव कभी भी विशाल संसार के बारे में नहीं सोच सकता है। हमारे ऋषियों की सोच विशाल थी, इसीलिए तो उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष किया। उनके लिए तो सारा विश्व अपना परिवार था। वह सदा इस परिवार के सुख की कामना करते हुए कहते थे सभी सुखी हों, सभी के दुख-दर्द समाप्त हों, सभी अपने बुरे कर्मों से मुक्त हो कर सुंदर जीवन व्यतीत करें। प्रभु की कथा इसी अध्यात्म ज्ञान का संदेश देती है। इस अवसर पर जवाहर सैनी, नरेश सैनी, हरेंद्र सैनी, रामतीर्थ गुप्ता व कृष्ण लाल सहगल विशेष तौर पर मौजूद रहे।




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