Wednesday, 8 August 2012

किसान-कीट की जंग में जीत के लिए किसानों को पैदा करना होगा खुद का ज्ञान

किसान-कीट की जंग में जीत के लिए किसानों को पैदा करना होगा खुद का ज्ञान

किसान-कीट के विवाद की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की सातवीं बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता बराह कलां बारहा खाप के प्रधान एवं सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक, चौपड़ा खाप नरवाना के प्रधान अजमेर सिंह चौपड़ा तथा सतरोल खाप के प्रधान सूबेदार इंद्र सिंह विशेष रूप से मौजूद रहे। बैठक की अध्यक्षता करते हुए कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस तरह इंसानों के पास अपनी सुरक्षा के लिए वायु सेना व थल सेना हैं, ठीक उसी प्रकार कीटों के पास भी वायु सेना व थल सेना हैं। कीटों की थल सेना में दीमक की पूरी फौज है। जो जमीन के अंदर रहकर अपनी लड़ाई लड़ती है और रही बात वायु सेना की हवाई सेना में टिड्डी हैं। अगर खुदा न खास्ता कीटों की वायु सेना ने हमला कर दिया तो दूर-दूर तक कुछ नहीं बेचेगा। टिड्डियां जहां से गुजरती हैं वहां फसल, पेड़-पौधे सब कुछ खत्म हो जाता है। इसलिए कीटों का पलड़ा भारी है और किसान-कीट की इस जंग में जीत भी कीटों की ही निश्चित है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं है तथा कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिस कारण किसान समय पर स्वयं निर्णय नहीं ले पाता और किसान को अपनी समस्या के समाधान के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए किसानों को इस जंग में जीत हासिल करने के लिए खुद का ज्ञान पैदा करना होगा। डा. दलाल ने कहा कि कीटों पर काम कर रहे किसानों ने अब तक 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इन कीटों को चार भागों में बांटा गया है। पहले भाग में रस चूसने वाले, दूसरे भाग में पर्णभक्षी तथा तीसरे भाग में फूलाहारी व चौथे भाग में फलाहारी कीटों को रखा गया है। इन 43 कीटों में से सिर्फ तीन किस्म के ही ऐसे मेजर कीट हैं, जो फसल का रस चूसते हैं और फसल को इनसे सबसे ज्यादा नुकसान का खतरा रहता है। इसलिए इस पाठशाला में कीटों का पक्ष रखने के लिए हर सप्ताह नए-नए प्रयोग किए जाते हैं और फसल में मौजूद इन तीनों मेजर कीटों की गिनती करवा कर कीट-बही खाता तैयार किया जाता है। अब तक तैयार किए गए कीट बही खाते से प्राप्त आंकड़ों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अब तक कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। जिस खेत में यह प्रयोग चल रहा है वह फसल भी अभी  तक पूरी तरह से स्वस्थ है। राजपुरा भैण से आए किसान बलवान ने बताया कि कीटों की पढ़ाई शुरू करने से पहले उनके गांव के किसान कपास की भस्मासुर के नाम से मशहूर मिलीबग से ज्यादा डरते थे। फसल में मिलीबग की दस्तक के साथ ही अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। लेकिन जब से किसानों को कीटों की पहचान होने लगी है तब से किसानों का मिलीबग के प्रति जो भय था वो निकल गया है। अब उनके गांव के किसानों ने फसल में कीटनाशकों की जगह डीएपी, यूरिया व जिंक का छिड़काव करते हैं। पाठशाला में चल रहे पत्ते काटने के प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए खाप प्रतिनिधियों से पत्ते कटवाए गए। इसके साथ ही किसानों ने फसल में अवलोकन के दौरान देखे दर्शयों को किसानों के साथ सांझा किया। मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस अनोखे कार्य की सरहाना की। इस अवसर पर पाठशाला में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, चाबरी, सिवाहा, ईगराह, खरकरामजी, र्इंटलकलां, राजपुरा भैण सहित कई गांवों के किसान मौजूद थे।

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