फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते है और उन्हे अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते है, उन्हीं कीटों को ललितखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती है। इन कीटों के साथ इन महिलाओं का काफी गहरा संबंध बन चुका है। ये कीट भी अब इन महिलाओं को पहचानने लगे है और खेत में काम करते वक्त बड़े आराम से इनके पास आकर बैठ जाते है।
ललितखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते है। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इस तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मांसाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगूल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके ब“ो खून चूसक होते हैं। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किसका खून चूसता है।
मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चुराड़े ही मौजूद है, इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्हीं कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को स्लेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में स्लेटी भूंड की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है और पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इस दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके ब“ो व इसका प्रौढ़ दोनों मांसाहारी होते है, जो शाकाहारी कीटों को खाकर अपना वंश चलाते है। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चुसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में दो से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करे तो पररागन के कारण दो से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमति जताई। विषय विशेषज्ञ डॉ. राजपाल सुरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा और पाली गांव का उदाहरण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है।
उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाय कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते है तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों है। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक मौजूद थे।
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