कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर इस झगड़े को निपटाने उतरी खाप पंचायत की दूसरी बैठक मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में हुई। इसकी अध्यक्षता बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की। बैठक में खरक पूनिया से पूनिया पंचग्रामी के प्रधान अमीर ¨सह पूनिया, समैन-बिठमड़ा खाप के प्रतिनिधि व खाप प्रेस प्रवक्ता सूबे सिंह गिल तथा बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने भी विशेष तौर पर शिरकत की।
सर्व जातीय सर्व खाप के प्रतिनिधियों ने किसान पाठशाला में पहुंचकर लगातार साढ़े चार घंटे इस मुद्दे पर गहन मंथन किया। इस दौरान किसान खेत पाठशाला के मास्टर ट्रेनर किसानों ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष बेजुबान कीटों का पक्ष रखा।
शाकाहारी कीटों पर रहा फोकस
मंगलवार को खाप पंचायत की दूसरी बैठक के दौरान कीट मित्र किसानों ने खाप पंचायत के प्रतिनिधियों के सामने शाकाहारी कीटों का पक्ष रखा। मास्टर ट्रेनर किसान मनबीर रेढू ने कपास की फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी कीटों के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि कपास की फसल में दो प्रकार के शाकाहारी कीट होते है। एक रस चुसने वाले और दूसरे चबाकर खाने वाले। रस चुसने वाले कीट पत्तों से रस चुसकर और चबाकर खाने वाले कीट पत्तों को खाकर अपनी वंश वृद्धि करते है। रेढू ने बताया कि कपास की फसल में पत्तों का खाने वाले सलेटी भूंड, भात-भात के टिडे, लाल व बिहारन बालों वाली सूंडी, कुबड़ा कीट, अंधे कीट, सुरंगी कीट, तंबाकू सूंडी होती है।
पाठशाला बनी प्रयोगशाला
दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो, इसके लिए कीट कमांडों किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं, इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मूला अपनाया है। किसानों ने पंचायत में पहुंचे खाप के पांचों प्रतिनिधियों के हाथों खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पलो का तीसरा हिस्सा कटवा दिया। पाठशाला के संचालक डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि पलो काट कर फसल को जितना नुकसान उन्होंने किया है उतना नुकसान कोई कीट फसल में नहीं कर सकता। दलाल ने कहा कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलना की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
कौन-कौन से कीट थे फसल में मौजूूद
60 से 70 दिन की कपास की फसल में फिलहाल कौन-कौन से कीट मौजूद है, इसकी पहचान करने के लिए किसानों के पांच ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक गु्रप के किसानों ने दस-दस पौधों पर मौजूद कीटों को बही-खाते में उतारा। इस दौरान किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चूरड़ा, डाक बुगड़ा, क्राइसौपा, मकड़ी, सलेटी भूूंड, अंगीरा नामक कीट मौजूद थे। रणबीर मलिक ने बताया कि सफेद मक्खी, चूरड़ा व हरा तेला पत्तों से रस चुसकर तथा सलेटी भूंड पत्तों के किनारे खाकर अपना गुजारा करते है। डाकू बुगड़ा चूरड़ा का खून पीकर तथा क्राईसौपा शाकाहारी कीटों को खाकर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने ब“ो पलवाता है और इस प्रक्रिया में मिलीबग का खात्मा हो जाता है। इस प्रकार शाकाहारी व मांसाहारी कीटों की जीवनयापन की प्रक्रिया में किसान को लाभ मिल जाता है।
क्या करे किसान
खाप पंचायत के प्रतिनिधियों ने जब डॉ. सुरेद्र दलाल से पूछा कि जब तक किसानों को कीटों का ज्ञान नहीं होता, तब तक किसानों को फसल में किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। डॉ. दलाल ने कहा कि अगर फसल में किसानों को किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नजर आए तो किसान जिंक, यूरिया व डीएपी का घोल तैयार कर उसका छिड़काव कर सकते है। डॉ. दलाल ने कहा कि आधा केजी जिंक, अढ़ाई केजी यूरिया व अढ़ाई केजी डीएपी का 100 केजी पानी में घोल तैयार कर फसल पर स्प्रे कर सकते है।
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