निडाना के कीट साक्षरता केंद्र के किसानों द्वारा मंगलवार को किसान जोगेंद्र मलिक के खेत में किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। किसान गोष्ठी में कीट साक्षरता केंद्र के मास्टर ट्रेनरों द्वारा किसानों को कपास की फसल में मौजूद कीटों की पहचान करवाई तथा बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए कीट प्रबंधन के माध्यम से ही अच्छा उत्पादन लेने के टिप्स दिए।
किसानों ने कपास की फसल में मौजूद चूरड़ा, सफेद मक्खी, हरा तेला, टीडे (ग्रास होपर), सूरा पांच प्रकार के कीटों की पहचान की। इस अवसर पर किसानों ने सुरंगी नाम एक नए कीट की खोज की। कीट साक्षरता केंद्र के मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढू ने बताया कि फिलहाल कपास की फसल में चूरड़ा, सफेद मक्खी, हरातेला, टिडे और सूरा नामक पांच प्रकार शाकाहारी कीट मौजूद है। इसमें सफेद मक्खी, टिडे, सूरा व हरातेला तो नाममात्र की संख्या में है, लेकिन चूरड़ा की तादाद थोड़ी ज्यादा है, लेकिन अभी तक चूरड़ा भी फसल को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं है।
किसान गोष्ठी के दौरान किसानों ने सुरंगी नामक एक नए कीट की खोज की है। यह कीट पलो के अंदर रहकर अपना जीवन चक्र चलाता है। जब यह खा-पीकर अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तब पलो में एक छोटा सा छेद करके पलो से बाहर आता है। इसके बाद इसका क्यूपा बनता है, इसके बाद में पतंगा तैयार होता है। किसान गोष्ठी के दौरान किसानों के गु्रप बनाकर उन्हे कपास की फसल में कीटों की पहचान करवाकर व्यवहारिक ज्ञान भी दिया गया। कृषि विभाग के एडीओ डॉ. सुरेद्र दलाल ने बताया कि कीट शाकाहारी व मांसाहारी दो प्रकार के होते है, लेकिन कीट का शरीर सिर, धड़ व पेट तीन भागों में बटा होता है। मुंह के हिसाब से कीट दो प्रकार के होते है। एक जिनके डंक होता है व दूसरे वे जिनके जबड़ा होता है। डंक वाले कीट फसल से रस चूस कर तथा जबड़े वाले कीट फसल के पत्तों को कुतर-कुतर कर खाते है।
डॉ. दलाल ने बताया कि आमतौर पर कीट की तीन जोड़ी पैर, दो जोड़ी पंख होते है। इस अवसर पर खरकरामजी निवासी रोशन ने बताया कि वह फसल में की जाने वाली सभी गतिविधियों को अपनी डायरी में नोट करता है। इस मौके पर किसान गोष्ठी में ललितखेड़ा, निडाना, चाबरी, निडानी, खरकरामजी, राजपुरा भैण, अलेवा किसान मौजूद थे।
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