Monday, 9 October 2017

खुद के साथ दूसरों की जिंदगी डाल रहे खतरे में

नाबालिगों के हाथों में दुपहिया वाहन के हैंडल
नियमों को ताक पर रख बच्चे चला रहे स्कूटी, बाइक
बच्चों को खुद मौत के मुंह में धकेल रहे अभिभावक
सबसे ज्यादा नियमों का उल्लंघन कर रही लड़कियां

जींद

: उनकी उम्र 18 साल की भी नहीं और इनके पास ड्राइविंग लाइसैंस भी नहीं है लेकिन दुपहिया वाहन को वह फर्राटा बना रहे हैं। ऐसा करके स्कूली बच्चे अपने साथ-साथ सड़क पर दूसरे लोगों की जिंदगी भी खतरे में डाल रहे हैं। अभिभावक खुद अपने बच्चों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। यातायात पुलिस और परिवहन विभाग भी ऐसे नाबालिग दुपहिया वाहन चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय केवल समझाने भर से ही काम चलाने का प्रयास कर रहे हैं। स्कूल संचालक भी खुद को ऐसे बच्चों और उनके अभिभावकों के सामने बेबस पा रहे हैं।
यहां जिक्र हो रहा है उन नाबालिग स्कूली बच्चों का, जिनके हाथों में खुद उनके अभिभावकों ने हादसों की चाबियां सौंपी हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा नियमों का उल्लंघन  तो लड़कियां कर रही हैं। लड़कियों की चैकिंग के लिए चौक आदि पर महिला पुलिस कर्मचारी भी मौजूद नहीं हैं। यह सब बातें ढेर सारे सवालों को अपने पीछे छोड़ रही हैं। अभिभावकों की ढीली लगाम के कारण ही बच्चे इन दुपहिया वाहनों पर फर्राटा भरते देखे जा सकते हैं। इसे रफ्तार की लगाम कहें या फिर मौत के सारथी, अभिभावकों के लिए यह सोचने का विषय है। उनके लाड़-प्यार के कारण ही बच्चों के हाथ चलते-फिरते यमराज की चॉबी लग रही है। इस तथ्य से पूरी तरह वाकिफ होकर भी अभिभावक अनजान बन रहे हैं और अपने बच्चों के हाथों में उन्होंने दुपहिया वाहनों के हैंडल थमाए हुए हैं। रूह तक को कंपाने वाले हादसों के बाद भी अभिभावक जागे नहीं हैं। इस कारण स्कूल, कॉलेज एवं गलियों में छोटे-छोटे बच्चे स्कूटर, बाइक एवं स्कूटी चलाते हुए देखे जा सकते हैं। प्रशासन भी इन्हें देखकर मूकदर्शक बना हुआ है। 
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स्कूलों के पास सड़कों पर फर्राटे भर रही मौत
स्कूलों की छुट्टी होते ही सड़कों पर नाबालिगों के हाथों में दुपहिया वाहनों के हैंडल नजर आते हैं। यदि एक स्कूल में 100 बच्चों के पास दुपहिया वाहन हैं तो मुश्किल से 10 बच्चों के पास ही लाइसैंस मिलेंगे, क्योंकि स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की उम्र 18 वर्ष तक नहीं होती, इसलिए वह लाइसैंस नहीं बनवा पाते लेकिन माता-पिता अपने लाड़-प्यार  के कारण बच्चों को स्कूटी और बाइक लेकर दे देते हैं। बच्चे दुपहिया वाहनों को चलाना तो सीख जाते हैं, मगर उन्हें यातायात नियमों का कतई ज्ञान नहीं होता। इस कारण शहर की सड़कों पर आए दिन हादसे बढ़ रहे हैं। 
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स्कूली बच्चों के चालान से पुलिस भी कर रही परहेज
नाबालिग स्कूली बच्चों के हाथों में स्कूटी और बाइक के हैंडल देखने के बाद भी पुलिस उनके चालान करने से परहेज ही करती है। स्कूलों के सामने कभी नाके लगाकर इस बात की जांच नहीं की गई कि कितने नाबालिग बच्चे दुपहिया वाहन सड़कों पर फर्राटे से दौड़ा रहे हैं। इसके अलावा बस स्टैंड और दूसरे जिन स्थानों पर पुलिस वाहनों की जांच कर यातायात नियमों के उल्लंघन पर उनके चालान करती है, वहां भी स्कूली बच्चों को महज बच्चा जानकर छोड़ दिया जाता है। यही बच्चे शहर में सड़क हादसों की बड़ी वजह बन रहे हैंं। लगभग हर चौथे सड़क हादसे की वजह शहर में इसी तरह के नाबालिग बच्चे बन रहे हैं। कई बार वह खुद हादसे के शिकार हो जाते हैं तो कई बार सड़क पर चल रहे दूसरे लोगों को वह टक्कर मार कर घायल कर देते हैं। कई मामलों में ऐसे बच्चों को बचाने के फेर में बड़े वाहन हादसे का शिकार हो जाते हैं। 
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सबसे ज्यादा नियमों का उल्लंघन कर ही लड़कियां
यातायात नियमों के उल्लंघन के मामले में लड़कियां द्वारा लड़कों से ज्यादा नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। शहर के एकाध चौक पर ही महिला पुलिस कर्मचारी की तैनाती है। एक स्कूटी पर 3 लड़कियां सवार होकर आसानी से निकल जाती हैं लेकिन पुलिस कर्मचारी द्वारा नियमों की अवहेलना करने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। स्कूल और कालेजों में स्कूटी लेकर आने वाली लड़कियां एक स्कूटी पर 3 की संख्या में बैठकर सफर करती देखी जा सकती हैं। 
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स्कूटी, बाइक बनी मजबूरी 
स्कूल जाने वाले नाबालिग बच्चों को स्कूटी और बाइक देने को लेकर अभिभावक अपनी मजबूरी का रोना रो रहे हैं। कुछ अभिभावकों विजेंद्र, सतीश, सचिन, सोनू से बात की गई तो उनका कहना था कि स्कूल जाने का मामला हो या स्कूल के बाद घर से टयूशन जाने का, बच्चों को बाइक या स्कूटी देना मजबूरी है। शहर में अभिभावकों के पास अपनी नौकरी या काम से इतनी फुर्सत नहीं कि वह बच्चों को टयूशन पर छोड़कर आएं और फिर घर वापस लाएं। सीधा रास्ता यही निकलता है कि खतरे को दरकिनार कर और इसे समझते हुए भी बच्चों को बाइक या स्कूटी देना मजबूरी है। 
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नाबालिगों के दुपहिया वाहनों को स्कूल में एंट्री नहीं : डा. विद्यार्थी
डीएवी स्कूल के प्राचार्य और डीएवी संस्थाओं के क्षेत्रीय डा. धर्मदेव विद्यार्थी से नाबालिग बच्चों के हाथों में स्कूटी और बाइक के हैंडल होने को लेकर बात की गई तो उनका कहना था कि उनके स्कूल में नाबालिग बच्चों के दुपहिया वाहनों के लिए एंट्री ही बैन है। केवल वही बच्चे दुपहिया वाहन स्कूल में ला सकते हैं, जिनके पास उन्हें चलाने के लाइसैंस हैं। 
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स्कूली बच्चों के बिना लाइसैंस दुपहिया वाहन चलाने पर होगी कार्रवाई : एसएसपी
एसएसपी डा. अरूण सिंह का इस मामले में कहना है कि वह यातायात पुलिस और शहर थाना तथा सिविल लाइन थाना पुलिस को इस बात के निर्देश देंगे कि जहां भी कोई नाबालिग बच्चा स्कूटी या बाइक चलाता नजर आए, उस दुपहिया वाहन को इम्पाऊंड कर सीधे बच्चे के अभिभावक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। बच्चों से ज्यादा उनके अभिभावक इसके लिए जिम्मेदार हैं। 

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