31 अक्टूबर को देव उठेंगें तो बरसाएंगे कृपा, शुरु होंगे मांगलिक कार्य
देव उठनी एकादशी पर शालीग्राम के साथ होगा तुलसी का विवाह
जींद
देवशयनी एकादशी के बाद भगवान श्री हरि यानि भागवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वे निद्रा में चले जाते हैं उसे देवशयनी कहा जाता है और जिस दिन निद्रा से जागते हैं वह कहलाती है देवोत्थान एकादशी। अबकी बार ये एकादशी 31 अक्टूबर को है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के बाद मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी। इसी दिन अपने पितरों की पूजा करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलेगी।
आज जागेंगे भगवान विष्णु
जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि देव उठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब श्री हरि जागते हैं तो वे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। देवोत्थान एकादशी का व्रत 31 अक्तूबर को है। साधु सन्यासी, विधवाओं एवं मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिये वैकल्पिक एकादशी एक नवंबर को रखा जाएगा। इसे वैकल्पिक एकादशी को वैष्णव एकादशी भी कहा जाता है।
देवोत्थान एकादशी की व्रत कथा
एक बार की बात है माता लक्ष्मी ने भगवान श्री विष्णु से कहा कि प्रभु आप या तो दिन रात जागते रहते हैं या फिर लाखों करोड़ों वर्ष तक सोते रहते हैं और सृष्टि का भी विनाश कर डालते हैं। इसलिये हे नाथ आपको हर साल नियमित रूप से निद्रा लेनी चाहिये। तब श्री हरि बोले देवी आप ठीक कहती हैं। मेरे जागने का सबसे अधिक कष्ट आपको ही सहन करना पड़ता है आपको क्षण भर के लिये भी मेरी सेवा करने से फुर्सत नहीं मिलती। आपके कथनानुसार मैं अब से प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार मास तक के लिये शयन किया करूंगा ताकि आपको और समस्त देवताओं को भी कुछ अवकाश मिले। मेरी यह निद्रा अल्पकालीन एवं प्रलयकारी महानिद्रा कहलायेगी। मेरी इस निद्रा के दौरान जो भी भक्त भावना पूर्वक मेरी सेवा करेंगें और मेरे शयन व जागरण को उत्सव के रूप में मनाते हुए विधिपूर्वक व्रत, उपवास व दान-पुण्य करेंगें। उनके यहां मैं आपके साथ निवास करूंगा।
देव उठनी एकादशी व्रत पूजा विधि
पुजानी नवीन शास्त्री ने बताया कि एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सर्वप्रथम नित्यक्रिया से निपट कर स्नानादि कर स्वच्छ हो लेना चाहिए। स्नान किसी पवित्र धार्मिक तीर्थ स्थल, नदी, सरोवर अथवा कुएं पर किया जाए तो बहुत बेहतर अन्यथा घर पर भी स्वच्छ जल से किया जा सकता हैं। स्नानादि के पश्चात निर्जला व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये। सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिये। इस दिन संध्या काल में शालिग्राम रूप में भगवान श्री हरि का पूजन किया जाता है। तुलसी विवाह भी इस दिन संपन्न करवाया जाता है।
गुरु अस्त रहने के चलते नहीं हो सकेगा विवाह आदि मंगल कार्य
इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी पर गुरु अस्त रहेगा। इसके चलते अबूझ मुहूर्त में से एक माने जाने वाली इस तिथि पर विवाह आदि मंगल कार्य नहीं हो पाएंगे। 10 अक्टूबर को अस्त हो चुके गुरु का उदय 11 नवंबर होगा लेकिन विवाह के शुभ मुहूर्त 19 नवंबर से हैं। पंडित नवीन शास्त्री के अनुसार ग्रह के देर से उदय होने के कारण विवाह के मुहूर्त 19 नवंबर से 10 दिसंबर तक रहेंगे। इसके बाद 14 दिसंबर को शुक्र सुबह 8.38 बजे अस्त हो जाएगा, जिससे एक बार फिर विवाह समेत शुभ कार्यों पर विराम लग जाएगा। वहीं 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ खर मास भी शुरू होगा जिसका समापन मकर संक्रांति को होगा।
नवंबर में नौ मुहुर्त - 19 से 24, 28 से 30 तक।
दिसंबर में छह मुहुर्त -3, 4, 5 व 8 से 10 तक।
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