नरवाना
दशहरा का त्यौहार जाने के बाद लोग दिवाली की तैयारियों में लगे हुए है। वही आज के युग में दिवाली के अवसर पर होने वाली चकाचौंध चाइना से आने वाली विभिन्न प्रकार के आईटमों में खोकर रह गई है वहीं दिवाली के मौके पर हाथ के बनी आईटमों की जहां अलग से पहचान होती थी वहीं कारीगरों की भी सारी साल की कमाई दिवाली के मौके पर ही होती थी, लेकिन आजकल बनावटी खिलौनों की चकाचौंध में हाथ के कारीगरों की बनी आईटमें गायब होती जा रही है और इनका रोजगार छीनता नजर आ रहा है। आधुनिक युग में लोगों ने रेडिमेट सामान खरीदकर त्यौहार मनाना शुरू कर दिया है। दीपावली दीपों का पर्व है इसके बाबजूद भी लोग चाईनिज दीपों व लाईटों का प्रयोग करते है। जहां लोग दिवाली से तीन दिन पहले हाथ से बने दीयों को जलाते थे तथा घर की साफ-सफाई कर खील-खिलौनों से ही दीपावली की पूजा की जाती थी। वहीं आजकल दीयों की जगह बिजली की लडिय़ों ने ले ली है वहीं खील-खिलौनों की जगह मिलावटी मिठाईयों ने ले ली है। कुम्हार समाज के कारीगर पवन ने बताया कि चाइना आईटम के बाजार में आने से उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ा है जहां आजकल मिट्टी भी नहीं मिल रही है वहीं मिट्टी से बने खिलौनों की खरीदारी ना होने से उनका काम ठप्प हो गया है। उन्होंने बताया कि काफी सालों पहले दिवाली से तीन महीने पहले ही दीये व खिलौने बनाना शुरू कर देते थे तथा दिवाली तक उनकी मांग और भी ज्यादा बढ़ जाती थी। जिसके चलते ग्राहकों को उनकी मांग के हिसाब से माल नहीं मिल पाता था। जिस कारण पूरी साल की कमाई ही दिवाली के त्योहार पर हो जाती थी लेकिन अब लोग चाईनिज लाईट ही पसंद करते है।
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