Sunday, 1 October 2017

जाति ही पूछो साधु की नाटक से व्यवस्थाओं पर किया कटाक्ष


दो-टूकपन और व्यंगता ने दर्शकों को किया लोट-पोट 

जींद 
एक्टिव थियेटर एंड वैलफेयर सोसायटी द्वारा हरियाणा कला परिषद व हरियाणा संस्कृत अकादमी पंचकूला के तत्वावधान में चल रहे 11 दिवसीय नवरस राष्ट्रीय नाटय उत्सव के दसवें दिन जाति ही पूछो साधु की नाटक का मंचन रंगकर्मी दुष्यंत के निर्देशन में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्यअतिथि निदेशक सुप्रीम स्कूल व प्रमुख समाज सेवी रामनिवास दूहन व अतिरिक्त मुख्य सलाहकार मैक कुरुक्षेत्र संजय भसीन अध्यक्षता में हुआ। नाटक जाति ही पूछो साधू की विजय तेन्दुलकर का यह नाटक समकालीन सामाजिक विद्रूप को थोड़ा व्यंग्यात्मक नजरिये से खोलता है। एमए की डिग्री से लैस होकर महीपत नौकरी की जिस खोज-यात्रा से गुजरता है, वह शिक्षा की वर्तमान दशा, समाज के विभिन्न शैक्षिक स्तरों के परस्पर संघर्ष और स्थानीय स्तर पर सत्ता के विभिन्न केंद्रों के टकराव की अनेक परतों को खेलती जाती है। इस नाटक को पढ़ते देखते हुए हमें स्वातंत्रयोत्तर भारत की कई ऐसी छवियों का साक्षात्कार होता है जो धीरे-धीरे हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा हो चुकी है। वे हमें स्वीकार्य लगती हैं लेकिन उन्हीं के चलते धीरे-धीरे हमारा सामूहिक चरित्र खोखला होता जा रहा है। अपने दो-टूकपन, सामाजिक सरोकार और व्यंग्य की तीव्रता के कारण अनेक निदेेशकों, अभिनेताओं और असंख्य दर्शकों की पसंद रहे इस नाटक के दिल्ली में ही शताधिक मंचन हो चुके हैं। नाटक के मुख्य पात्र महिपत बबरूवाहन व नलिनी दोनों ही शिक्षक हैं। बबना बिगडैल मां-बाप की औलाद है। वह लड़कियों को छेडऩा, पढ़ाई न करना ये उसके फितरत में शामिल है। नाटक में दिखाया गया के किस तरह से एक अंगूठा छाप का एक एजुकेशन सोसायटी का चेयरमैन बन जाता है और जब एक लैक्चरर पद के लिए महिपत नाम के उम्मीद्वार का इन्टरव्यू में जाति, धर्म, शादी के बारे में पूछा जाता हैै जबकि चेयरमैन खुद अंगूठाटेक है। नाटक ने हमारी शिक्षा व्यवस्था पर करारा कटाक्ष किया। जिसको देखकर दर्शक भावविभोर हो गए व तालियों की गडग़ड़हाट से कलाकारों का मान बढ़ाया। इस मौके पर डा. केएस गोयल, डा. रमेश बंसल, डा. प्रियदर्शी, मंजू मानव, डा. बनीष गर्ग सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। 

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