पंचकुंडीय गायत्री महायज्ञ में देवउठनी एकादशी का बताया महत्व
जींद
स्थानीय भिवानी रोड स्थित भगवद् भक्ति आश्रम में आश्रम के संस्थापक स्वामी परमानंद महाराज के आर्शीवाद से विश्व शांति हेतू चल रहे पंचकुंडीय गायत्री महायज्ञ के तीसरे दिन जींद सदाव्रत के प्रधान महेश सिंगला, किशोरीलाल, जयभगवान, अर्जुन और महेंद्र यादव ने देव पूजन किया और यज्ञ में आहूति डाली। संकीर्तन में मंगलवार को देवउठनी एकादशी के महत्व पर प्रकाश डाला गया। श्रद्धालुओं को बताया गया कि आषाढ़ माह की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक साल में 24 एकादशी होती हैं। एक महीने में दो एकादशी आती हैं। सभी एकादशी में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन के धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे। इसके साथ इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी भी माना जाता है। वैसे तो सभी एकादशी पापमुक्त करने वाली मानी जाती हैं, लेकिन इसका महत्व अधिक है। इसके लिए मान्यता है कि जितना पुण्य राजसूय यज्ञ करने से होता है उससे अधिक देवउठनी एकादशी के दिन होता है। इस दिन से चार माह पूर्व देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इसके लिए माना जाता है कि भगवान विष्णु समेत सभी देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते हैं। इसलिए इन दिनों पूजा-पाठ और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। किसी तरह का शुभ कार्य जैसे शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार आदि नहीं किए जाते हैं।
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